गन्ने की फसल को कीटों से बचाने के लिए ये उपाय हैं सबसे उम्दा...

इस समय गन्ने की फसल में कई तरह के कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है, अगर सही समय पर इनका नियंत्रण न किया गया तो किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

Divendra SinghDivendra Singh   27 Aug 2018 7:58 AM GMT

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गन्ने की फसल को कीटों से बचाने के लिए ये उपाय हैं सबसे उम्दा...

लखनऊ। इस समय वातावरण में नमी और तापमान की अधिकता से गन्ने की फसल में कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है। गन्ने की फसल में लगभग 68 प्रतिशत पौधे किसी न किसी कीट द्वारा प्रकोपित होते हैं। गन्ना फसल में होने वाले कीड़ों के नुकसान से देश को प्रति वर्ष करीब 300 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ता है।

भारत में गन्ने की फसल को 170 विभिन्न प्रकार के कीट नुकसान पहुंचाते हैं, जिसमें से करीब 32 कीट आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। हमारे प्रदेश में आर्थिक दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण कीट दीमक, अग्र तना वेधक, शीर्ष तना वेधक, फुदका, पपड़ी कीट, छोटा गुलाबी मतकुण्ड, चेपा और सफेद मक्खी है, इनको हटाने के लिए कई तरह के उपाय अपना सकते हैं, जिससे फसल को नुकसान न हो।

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भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. अजय कुमार साह बताते हैं, "इल्ली से प्रभावित गन्ने की फसल के लिए किसानों को ट्राइकोडरमा 2.5 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 75 किग्रा गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए। इससे इल्ली के प्रभाव को रोका जा सकता है।"

कीट जिनसे रहता है गन्ने की फसल को खतरा

दीमक


इस कीट का प्रकोप हल्की जमीन और जहां सिंचाई के पर्याप्त साधन नही हैं वहां पर अधिक होता है। ये कीट जमीन के अंदर और बाहर गन्ने की गाठों, जड़ों, आंखों इत्यादि को खाकर समूचे पौधे को नष्ट कर देते हैं। इसकी पहचान जमीन पर बने इसके घर जो दूर से ही दिखाई देते हैं और आक्रमण पर फसल मुरझाकर पौधा सूख जाता है, जिसे आसानी से उखाड़ा जा सकता है।

अग्रतना छेदक

यह कीट फसल की छोटी अवस्था में नुकसान अधिक पहंचाता हैं। इल्ली तने में छेदकर ऊपर की ओर सुरंग बनाकर खाती है, जिससे ऊपर का भाग सूख जाता है जिसे मृत देह या डेड हार्ट कहते हैं, इस डेड हार्ट को आसानी से खींचा जा सकता है।

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शिरा छेदक

इस छेदक का प्रकोप तो साल भर रहता है। इस कीट की 5-6 संततियां होती हैं। इल्ली गन्ने की ऊपरी भाग की पोई को लपेट कर अंदर घुस जाती है और पहले पत्तों को काटकर उसमें बहुत छेद बनाती हुई तने के उपरी भाग से प्रवेश करती हुई नीचे की ओर सुरंग बनाकर खाती है, जिससे उपर की पोई सूख जाती है। जिसे हार्ट कहते हैं। इसके डेड हार्ट को आसानी से नही खींचा जा सकता है। इल्ली जहा तक सुरंग बनाती है वहां से बहुत से कल्ले निकलते हैं जिसे बन्ची टाप कहते हैं लेकिन इन कल्लों से गन्ने नही बन पाते हैं यही इस कीट के प्रकोप की मुख्य पहचान हैं।

गन्ने की फुदका (पायरिला)


इस कीट को इसकी नुकीली चोंच के कारण आसानी से पहचाना जा सकता है। इनके अंडे पत्तियों की निचली सतह पर झुंड में सफेद रोमों से ढंके रहते हैं। ग्रसित फसल की पत्तियां पीली पड़ने लगती है, क्योंकि इस कीट के शिशु और वयस्कों द्वारा इनका रस चूस लिया गया होता है। पीली पत्तियों से कभी कभी किसानों को ऐसा भ्रम हो जाता है कि फसल में किन्हीं पोषक तत्वों की कमी है, लेकिन ऐसा नहीं है वह पायरिला कीट का प्रकोप है। रस चूसते समय यह कीट पत्तियों पर एक लसलसा सा पदार्थ छोड़ता है, जिससे पत्तियों पर काली फफूंद उगने लगती हैं। समूचे पत्ते काले पड़ने लगते हैं पौधों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में बाधा पड़ने लगती है। पत्तों पर विकसित फफूंद को खाने बहुत सी चिड़िया और कौए फसल पर मंडराते हैं इससे भी इस कीट के प्रकोप को दूर से ही पहचाना जा सकता है।

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सफेद मक्खी

यह कीट भी गन्ने की पत्तियों से रस चूसता है, ये पत्तों पर पीले सफेद और काले सफेद धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं। रस चूसते समय कीट भी एक चिपचिपा सा मधुस्त्राव छोड़ता है उस पर काली फफूंद का विकास हो जाता है, जिससे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में बाधा पड़ती है। ग्रसित फसल के पत्ते काले पड़ जाते हैं। इस कीट के प्रकोप से पत्तियां कमजोर पड़ जाती हैं। जिन क्षेत्रों में जल निकास की उचित व्यवस्था नही होती वहां पर इसका प्रकोप अधिक होता है।


चेपा कीट

यह कीट सैकड़ों की संख्या में गन्ने की गाठों से चिपके और सफेद रंग की मोमी पदार्थ से ढंके रहते हैं। पत्तियां सूखने लगती हैं और गाँठ के पास गड्ढ़े पड़ जाते हैं। जिन खेतों में इस कीट का प्रकोप होता है उन पौधों पर चीटों की संख्या अधिक दिखाई देती है। ये गन्ने के आंखों को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे गन्ने की अंकुरण क्षमता कम हो जाती हैं।

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कीटों से बचने के लिए यांत्रिक और भौतिक नियंत्रण

फसल का नियमित निरीक्षण कर बेधकों के डेड हार्ट को निकालकर ऊपर से तार डालकर इल्लियों को नष्ट कर दें।

पायरिला कीट के अंडों को खुरचकर, शिशु और वयस्क को जाली से पकड़कर नष्ट कर दें और सूखे हुए पत्तों को नियमित रूप से निकालते रहे और उन्हें जला दें।

दीमकों के घरों को खोदकर नष्ट कर दें, वैसे यह कार्य खेत खाली हाने पर ही कर लें तो अच्छा रहेगा।

बेधकों की मौथ को प्रकाश प्रपंच से पकड़कर नष्ट करें। इससे कीट के प्रकोप की संभावना का पता चलता हैं।

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जैविक नियंत्रण से फसल को रखें सुरक्षित


परजीवी और परभक्षियों का संरक्षण करें।

रासायनिकों का उपयोग कम करें।

बेधक कीटों के जैविक नियंत्रण के लिये 50 हजार ट्राइकोग्रामा अंड युक्त ट्राइकोकार्ड प्रति एकड़ लगायें। कार्ड टुकड़ों में काटकर पंत्तियों की निचली सतह पर नत्थी कर दें।

पायरिला कीट के अंडा परजीवी (टेट्रास्टिक्स पायरिली) के अंडो को काट-काट कर पूरे खेत में फैलाएं।

मेटाराईजियम ऐनीसोपली हरी सफेद फफूंद से ग्रसित 250 पाईरिला वयस्क प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छोड़े या इस फफूंद के 10 विषाणु (स्पोर) प्रति मिली लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

शीर्षतना छेदक के लिए - ट्राइकोग्रामा चिलोनिस परजीवी के 1-1.5 लाख अंडे प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेतों में छोड़े।

शिरा छेदकों के प्रकोप वाले क्षेत्रों में आईसोटोपा जैविन्सिस को छोड़े और उन्हें संरक्षित रखें।

पपड़ी कीट की रोकथाम के लिए - काक्सीनोलिड बीटल (लिन्डोरस लोफेन्थी) परभक्षियों के 1500 बीटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से प्रकोपित फसल पर छोड़ना चाहिए।

कपास के खेतों के पास वाले गन्ने के खेतों में क्राईसोपर्ला परजीवी, कीटों के अंडो को नष्ट करता है।

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