‘मोगैंबो’ क्यों नहीं चाहते थे कि उनका बेटा बॉलीवुड में आए...
Shefali Srivastava 22 Jun 2017 2:13 PM GMT

लखनऊ। बॉलीवुड के खलनायकों की बात होती है तो अमरीश पुरी का नाम सबसे पहले याद आता है। अमरीश पुरी ही वो नाम है जिससे आज की पीढ़ी भी उतना ही इत्तेफाक रखती है जितना एक दशक पुरानी पीढ़ी। फिर मिस्टर इंडिया जितना बच्चों के बीच लोकप्रिय हुआ उतना ही फिल्म का खलनायक मोगैंबो यादगार बना।
आज अमरीश पुरी का आज जन्मदिन है। बात करें अमरीश पुरी की तो जिस उम्र में दर्शक एक्टर्स को भी साइडलाइन कर देते हैं उस उम्र में उन्होंने बॉलीवुड में कदम रखा था। उनकी थरथराती और दमदार आवाज जिसे उनकी कमजोरी कहा जाए या ताकत आज भी दर्शकों के दिल-ओ-दिमाग में छाई हुई है। उनकी आवाज को उनकी कमजोरी इसलिए कहा जा सकता है कि इस वजह से उन्हें कभी हीरो बनने का मौका नहीं मिला। वहीं आवाज को ताकत इसलिए क्योंकि इसी के दम पर वो एक समय में इंडस्ट्री के सबसे सफल और सबसे महंगे खलनायक बन गए थे।
मनमुताबिक फीस न मिलने पर छोड़ दी थी सिप्पी की फिल्म
वह इस बात को मानते भी थे। अपनी मनमुताबिक फीस न मिलने की वजह से उन्होंने एनएन सिप्पी की फिल्म छोड़ दी थी जिसके लिए उन्होंने आठ मिलियन (80 लाख) रुपए मांगे थे।
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उन्होंने तकरीबन 21 साल सरकारी नौकरी की और ए ग्रेड ऑफिसर के रूप में नौकरी से त्यागपत्र दिया था। इसी के साथ उन्होंने अपना थियेटर भी जारी रखा। एक इंटरव्यू में अमरीश पुरी ने बताया, इब्राहिम अल्काजी 1961 में थियेटर में मुझे लेकर आए। वहां मैंने सत्यदेव दुबे को असिस्ट किया और वह मेरे गुरु बन गए। जब लोगों ने मुझे एक्टर के रूप में देखा और फिल्मों के लिए अप्रोच किया तो मुझे नौकरी छोड़नी पड़ी।
उनकी पहली फिल्म 1971 में फिल्म रेशमा और शेरा थी लेकिन ज्यादा पहचान नहीं मिली उन्हें। इस बारे में अमरीश पुरी ने एक इंटरव्यू में बताया, ‘फिल्म के डायरेक्टर ने मुझे एक नाटक में परफॉर्म करते देखा और मुझे एक मुस्लिम कैरेक्टर ऑफर किया। फिल्म में दूसरे सभी कैरेक्टर हिंदू थे। मैंने हामी भर दी। मेरा चरित्र एक ऐसे व्यक्ति का था जो लोगों को करीब लाने का काम करता है। हालांकि इससे पहले भी वे 1954 में एक बार स्क्रीन टेस्ट दे चुके थे जिसमें वे फेल हो गए थे।’
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फिल्में करते हुए भी अमरीश पुरी ने थियेटर जारी रखा। वह इस बारे में कहते थे, ‘लोग थियेटर को फिल्मों का जरिया बना लेते हैं लेकिन मैंने कभी ऐसा नहीं किया। थियेटर एक ऐसी चीज है जिसे मैं हमेशा करता रहूंगा। ये मुझे संतुष्टि देता है।’
उधर अमरीश उस जमाने के मशहूर बैनर बॉम्बे टॉकीज में शामिल हो गए और निशांत, मंथन, भूमिका, कलियुग और मंडी जैसी सुपरहिट फिल्में की। इसके बाद अमरीश पुरी ने खलनायकी को ही अपने करियर का आधार बनाया।
अमरीश पुरी की पसंद के किरदार की बात करें तो उन्होंने सबसे पहले अपना मनपसंद और न कभी नहीं भुलाया जा सकने वाला किरदार गोविन्द निहलानी की साल 1983 में प्रदर्शित कलात्मक फिल्म अर्धसत्य में निभाया। इस फिल्म में उनके साथ ओमपुरी थे।
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‘मोगैम्बो’ के किरदार बना यादगार
साल 1987 में फ़िल्म 'मिस्टर इंडिया' में उनका किरदार 'मोगैम्बो' बेहद मशहूर हुआ। फ़िल्म का संवाद 'मोगैम्बो खुश हुआ', आज भी लोगों के ज़ेहन में बरक़रार है। वर्ष 1987 में अपनी पिछली फिल्म मासूम की सफलता से उत्साहित शेखर कपूर बच्चों पर केन्द्रित एक और फिल्म बनाना चाहते थे जो इनविजिबल मैन के ऊपर आधारित थी। इस फिल्म मे नायक के रूप मे अनिल कपूर का चयन हो चुका था जबकि कहानी की मांग को देखते हुए खलनायक के रूप मे ऐसे कलाकार की मांग थी जो फिल्मी पर्दे पर बहुत ही बुरा लगे।
मोंगैंबो के किरदार के लिए निर्देशक ने अमरीश पुरी का चुनाव किया। जो फिल्म की सफलता के बाद सही साबित हुआ। इस फिल्म मे अमरीश पुरी द्वारा निभाये गए किरदार का नाम था मोगैंबो और यही नाम इस फिल्म के बाद उनकी पहचान बन गया।
ब्रेन हैमरेज के चलते हुई थी मौत
उनके जीवन की अंतिम फिल्म 'किसना' थी जो उनके निधन के बाद वर्ष 2005 में रिलीज हुई। उन्होंने कई विदेशी फिल्मों में भी काम किया। उन्होंने इंटरनेशनल फिल्म 'गांधी' में 'खान' की भूमिका निभाई था जिसके लिए उनकी खूब तारीफ हुई थी। अमरीश पुरी का 12 जनवरी 2005 को 72 वर्ष के उम्र में ब्रेन हैमरेज की वजह से उनका निधन हो गया। उनके अचानक हुये इस निधन से बॉलीवुड जगत के साथ-साथ पूरा देश शोक में डूब गया था।
‘सख्त नहीं हिम्मती इंसान थे मेरे पिता’
अमरीश पुरी फिल्मी पर्दे पर भले ही खलनायक की भूमिका निभाते हों लेकिन असल जीवन में वह बेहद मिलनसार और सकारात्मक व्यक्ति थे। बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में उनके बेटे राजीव पुरी ने बताया, ‘मेरे पिता कठोर नहीं थे। वो एक हिम्मती इंसान थे। वो एक पारिवारिक आदमी थे। उन्हें अनुशासन में रहना पसंद था। उन्हें हर काम सही तरीके से करना पसंद था।’ राजीव के मुताबिक अमरीश पुरी ने उन पर कभी अपनी मर्जी नहीं थोपी। वो कहते हैं, ‘उस वक्त बॉलीवुड की स्थिति अच्छी नहीं थी तो उन्होंने मुझे कहा कि यहां मत आओ और जो अच्छा लगता है वो करो। तब मैं मर्चेंट नेवी में गया।’
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