बरेली में खुला अनोखा पैडबैंक, जहां गरीब महिलाओं को मुफ्त में मिलता है सैनेटरी पैड

जागरुकता और अशिक्षा के कारण आज भी गांव और झुग्गी झोपड़ी में रहनी वाली किशोरियां और महिलाएं माहवारी के दौरान गंदे कपड़े का प्रयोग करती हैं, उन्हें नहीं पता कि यह उनकी सेहत के लिए कितना खतरनाक है

Chandrakant MishraChandrakant Mishra   8 May 2019 10:48 AM GMT

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बरेली (उत्तर प्रदेश)। फिल्म पैडमैन देखकर बरेली निवासी एक छात्र चित्रांश सक्सेना इतने प्रभावित हुए की उन्होंने पैड बैंक खोल डाली। इस पैड बैंक में छात्र-छात्राएं हैं जो इस अनोखे बैंक का काम संभालते हैं। ये सभी छात्र-छात्राएं अलग-अलग कॉलेज से पढ़ाई कर रहे हैं जो गाँव और शहर के आसपास घरों में जाकर महिलाओं और किशोरियों को जागरूक कर उन्हें मुफ्त में सैनेटरी पैड देते हैं और इसके इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित करते हैं।

यूपी के बरेली निवासी चित्रांश सक्सेना एमएसडब्लयू के छात्र हैं। चित्रांश ने बताया, " जागरुकता और अशिक्षा के कारण आज भी गांव और झुग्गी झोपड़ी में रहनी वाली किशोरियां और महिलाएं माहवारी के दौरान गंदे कपड़े का प्रयोग करती हैं। उन्हें नहीं पता कि यह उनकी सेहत के लिए कितना खतरनाक है। इसके साथ ही कई महिलाओं के पास इतना पैसा नहीं होता है कि वे पैड खरीद सकें।"

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" मैं इसी विषय पर काम करना चाहता था, तभी अक्षय कुमार की फिल्म पैडमैन आ गई। इस फिल्म को देखकर मैं इतना प्रभावित हो गया कि मैंने एक पैड बैंक खोलने का निर्णय लिया। मैंने अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर एक समूह तैयार किया। इस ग्रुप में सात लड़कियां और तीन लड़के हैं।" चित्रांश ने आगे बताया।

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पैडबैंक की सदस्य रितिका ने बताया, " पैडबैंक से जुड़ने के बाद मुझे पता चला कि, अभी भी कुछ जगहों पर महिलाएं माहवारी के दौरान गंदे कपड़े और राख यूज करती हैं। यह मेरे लिए यकीन न करने वाली बात थी। महिलाओं के अंदर आज भी जागरुकता की कमी है। कहीं पर पैसा भी मैटर करता है। गंदे कपड़े यूज करने से महिलाएं कई बीमारियों का शिकार हो रही हैं। हम लोग गाँव और झुग्गी झोपड़ी में रहने वाली किशोरियों और महिलाओं को पैड के बारे में जागरुक करते हैं। लोगों ने इससे होने वाले फायदों के बारे में बाताते हैं। हमें अच्छा लगात है कि हमारी वजह से महिलाएं जागरूक हो रही हैं। "

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पैडबैंक की सदस्य शिल्पा सक्सेना ने बताया, " गरीब महिलाओं और किशोरियों को सेनेटरी पैड मुहैया कराने के लिए हम लोगों ने एक पैड बैंक की शुरुआत की। सबसे पहले हम लोगों ने वीर सावरकर नगर में ही एक पैंड बैंक खोला। इस पैडबैंक मे 100 से ज्यादा किशोरियों के अकाउंट खोले जा चुके हैं जिन्हें एक पासबुक भी उपलब्ध कराई गई है। इसके आधार पर वे हर महीने इस पैडबैंक में आकर पैड ले सकती हैं और जो आने में असमर्थ हैं उन्हें पैड उनके घरों तक पहुंचा दिया जाता है। जिन किशोरियों के आकाउंट खुल गए हैं हम लोग उन्हें हर माह दौ पैकैट सेनेटरी पैड के देते हैं और उसके पास बुक पर इंट्री कर देते हैं। हम लोग अपने जेब खर्च से पैसे बचाकर इस मुहीम को आगे बढ़ा रहे हैं।"

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सेनेटरी पैड को लेकर लोगों में है झिझक पैड बैंक में काम करने वाली शहर चौधरी ने बताया, " देश में ज्यादातर लड़कियों को माहवारी आने से पहले इस प्रक्रिया के बारे में पता ही नहीं होता क्योंकि इस बारे में बात करना अच्छा नहीं माना जाता। यही वजह है कि कठिनता से भरे इन चार पांच दिनों में उनकी बुनियादी जरूरत को पूरा करने पर भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता। सबसे ज्यादा दिक्कत ग्रामीण परिवेश और मलिन बस्तियों में रहने वाली किशोरियों के साथ होती है। हम लोग मलीन बस्तियों और ग्रामीण इलाकों में किशोरियों और महिलाओं में माहवारी के दौरान स्वच्छता के प्रति जागरूक कर रहे हैं। हमारा उद्देश्य सैनिटरी पैड के बारे में समाज में फैली झिझक को मिटाना है और उन्हें मुफ्त में सेनेटरी पैड मुहैया कराना है।"

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स्कूलों और गांवों में जाकर करते हैं लोगों को जागरूक पैड बैँक में काम करने वाली ऐश्वर्या ने बताया, " हम लोग ग्रामीण इलाकों की, झुग्गी झोपड़ी में रहने वाली गरीब और बीमारियां झेल रही महिलाओं को तलाश करके उन्हें सेनेटरी पैड बांटने का काम करते हैं। हम लोग स्कूलों में भी जाते हैं, क्योंकि वहां एक साथ बहुत सी बच्चियां मिल जाती हैं। बच्चियों को समझाना बहुत आसान होता है। जब हम लोग गांव में गए तो पता चला कि बहुत से ग्रामीण इलाकों की महिलाएं सेनेटरी पैड के बारे में जानती ही नहीं थी। वहां महिलाएं पीरियड के वक्त सिर्फ कपड़ा ही इस्तेमाल करती थीं। हम चाहते हैं कि महिलाओं में पीरियड से संबंधित बीमारियों के प्रति जागरूकता बढ़े। हमारे इस काम से बहुत सी महिलाएं बेहद खुश हैं।

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