एक देशभक्त जिसे देशद्रोही घोषित कर दिया गया था

शेखर गुप्ता | Jul 19, 2017, 11:12 IST
rajasthan
नरेश चंद्रा को जानने वाला हर कोई यह मानेगा कि वह किसी भी अन्य आईएएस अधिकारी की तरह नहीं थे। वह किसी भी अधिकारी के लिए संभव लगभग हर अहम पद पर रहे। राजस्थान के मुख्य सचिव, केंद्र में जल संसाधन, रक्षा और गृह मंत्रालयों में सचिव रहने के बाद नौकरशाही के उच्चतम स्थान कैबिनेट सचिव पद पर भी रहे।


नरेश चंद्रा (1934-2017) कोई साधारण देशभक्त नहीं थे। बड़े दिल वाले चंद्रा समस्या को सुलझाने की अपनी काबिलियत के चलते नौ प्रधानमंत्रियों के विश्वासपात्र बने रहे। किसी भी महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक शख्सियत के निधन के बाद उन्हें श्रद्धांजलि देने के क्रम में हम आसानी से और निरापद रूप से ‘देशभक्त’ का उल्लेख कर देते हैं। दरअसल हम यह मानकर चलते हैं कि हरेक भारतीय देशभक्त जरूर होगा। यह निरापद भी होता है क्योंकि कोई भी इस पर सवाल नहीं उठा सकता है। हम किसी मृत व्यक्ति के बारे में कुछ गलत कहने से परहेज करते हैं।

लेकिन हालात उस समय बदल जाते हैं जब बात एक ऐसे शख्स से संबंधित हो जिसे कभी एक देशद्रोही और विदेशी ‘भेदिया’ तक घोषित किया जा चुका हो। ऐसा करने वाले बेहद ताकतवर और रसूखदार लोग थे। इस धारणा में बदलाव भी आता है क्योंकि उस व्यक्ति को नीति-निर्माताओं की दो पीढ़ियों के बीच देश के लिए पूरी तरह समर्पित इंसान के भी रूप में देखा जाता रहा। वह नौ प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल में अपनी सेवाएं देते रहे। नरेश चंद्रा को जानने वाला हर कोई यह मानेगा कि वह किसी भी अन्य आईएएस अधिकारी की तरह नहीं थे। वह किसी भी अधिकारी के लिए संभव लगभग हर अहम पद पर रहे।

राजस्थान के मुख्य सचिव, केंद्र में जल संसाधन, रक्षा और गृह मंत्रालयों में सचिव रहने के बाद नौकरशाही के उच्चतम स्थान कैबिनेट सचिव पद पर भी रहे। वह अपनी तरह के अनूठे शख्स थे। समझदार लोगों के संपर्क में रहने के दौरान शायद ही मुझे ऐसे दो लोग मिले होंगे जो नई चुनौती या संकट का सामना करने के लिए हमेशा आतुर रहते हों। किसी भी समस्या का समाधान करते समय उनमें और निखार आ जाता था और संकट उन्हें प्रेरित करता था। इसके अलावा कहानी कहने में भी उन्हें महारत हासिल थी। वह उन किस्सों को ऐसे बताते थे मानो वह कोई मजाकिया कहानी हो। खास बात यह थी कि वह कभी भी मामले से संबंधित सारे तथ्य नहीं बताते थे। चाहे मैं दिल्ली में रहूं या न्यूयॉर्क में रहूं, सुबह जल्दी नहीं उठता। इस लिहाज से सुबह छह बजे फोन की घंटी बजना मुझे कभी भी अच्छा नहीं लगता है। वर्ष 1997 की उस सुबह न्यूयॉर्क के लेक्सिंगटन होटल में मेरे साथ कुछ ऐसा ही हुआ था।

उस समय संयुक्त राष्ट्र महासभा का अधिवेशन चल रहा था। अमेरिका में भारत के राजदूत नरेश चंद्रा ने मुझे फोन किया था। परेशान लग रहे चंद्रा ने अपनी इलाहाबादी जुबान में कहा, ‘अरे भाई ये क्या छाप दिया आपने? मैं तो यहां सफीर (राजदूत) हूं और ये महाशय कह रहे हैं कि मैं गुप्तचर हूं।’ थोड़ी देर बाद ही उन्हें गुजराल के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से मिलने जाना था। वह जिस लेख का जिक्र कर रहे थे उसे स्वदेशी जागरण मंच के संयोजक और मेरे दोस्त एस गुरुमूर्ति ने ‘द न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ के लिए लिखा था।

उस लेख में नरसिंह राव सरकार की तरफ से परमाणु परीक्षण की योजना बनाने और पोकरण में सारी तैयारी कर लेने के बाद ऐन मौके पर पीछे हट जाने का दावा किया गया था। उस लेख के मुताबिक क्लिंटन प्रशासन ने उपग्रह से ली गई तस्वीरों और खुफिया सबूतों के आधार पर नरसिंह राव की घेराबंदी कर दी थी। गुरुमूर्ति के मुताबिक, अमेरिका को इस योजना के बारे में सूचना एक भेदिये ने दी थी और वह नरेश चंद्रा थे। इतना बताने के बाद चंद्रा ने कहा कि वह लेख की फैक्स कॉपी लेकर होटल की लॉबी में मुझसे मिलने आ रहे हैं।

मैंने उन्हें यह समझाने की कोशिश की कि न्यू इंडियन एक्सप्रेस दरअसल एक दूसरा अखबार है और उसका उस अखबार से कोई लेना-देना नहीं है जिसका मैं संपादक था। चंद्रा का यह कहना था कि हम अब दुनियाभर को क्या मुंह दिखाएंगे? उस समय मैं उनकी कोई मदद नहीं कर पाया। मैं उनकी साख और उनके संपर्कों से अच्छी तरफ वाकिफ था। किसी भी सूरत में कैबिनेट सचिव होने के नाते उन्हें हर गुप्त रखी जा सकने वाली बात पता होती। खुफिया सेवा रॉ का नियंत्रण कैबिनेट सचिवालय के ही पास होता है। उसी के साथ आप गुरुमूर्ति को भी सिरे से खारिज नहीं कर सकते थे। आप अर्थशास्त्र और विदेश नीति से लेकर धर्मनिरपेक्षता संबंधित मुद्दों पर उनके विचारों को लेकर बहस कर सकते हैं पर उनकी देशभक्ति पर सवाल नहीं उठा सकते हैं। ऐसे में, इस मामले में सच क्या था?

मैं एक दशक तक जवाब तलाशने की कोशिश करता रहा। मैंने गुजराल, वाजपेयी और खुद नरसिंह राव के सामने भी यह मुद्दा उठाया। मुझे बस एक मुस्कराहट भरी नसीहत मिलती थी, ‘अब इसको छोड़िए आप।’ लेकिन सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों ने कभी भी चंद्रा पर लगी इस तोहमत पर यकीन नहीं किया। राव ने अमेरिका के साथ परमाणु और मिसाइल संबंधी मामलों पर चल रही बातचीत में उन्हें अपना वार्ताकार नियुक्त किया। गुजराल सरकार और फिर उसके बाद आई भाजपा सरकार के समय भी वह अमेरिका में भारतीय राजदूत बने रहे।

यह पूरा मामला वर्ष 2006 में अपने मुकाम पर पहुंचने में सफल रहा। जसवंत सिंह की किताब के लोकार्पण पर नरेश चंद्रा को भी मंच पर आसीन देखा गया। चंद्रा ने मई 1998 में परमाणु परीक्षणों के बाद अमेरिका के तीखे तेवरों से संबंधित कई मजेदार किस्से सुनाए। जसवंत सिंह ने उस किताब में यह दावा किया था कि नरसिंह राव के इर्दगिर्द एक भेदिया भी था। अगर उन्हें थोड़ा भी संदेह होता कि वह भेदिया या जासूस चंद्रा ही थे तो उन्हें अपने साथ मंच पर बैठने का मौका तो नहीं ही देते। जब भी इस मुद्दे को मैंने नरसिंह राव के सामने छेड़ने की कोशिश की तो वह अपने पेट पर हाथ फेरने लगते थे। अपने ‘वाक द टाक’ कार्यक्रम में मैंने जब राव से इस बारे में पूछा तो उन्होंने यह कहते हुए मुझे चुप करा दिया, ‘कुछ तो अपनी चिता तक ले जाने के लिए मेरे पास छोड़ दीजिए।’

जसवंत सिंह की किताब इस बारे में अपनी तलाश जारी रखने का नया जोश भरती है। उसका नतीजा इस स्तंभ के लिए लिखे गए तीन लेखों के रूप में सामने आया। इस सीरीज के एक लेख ‘भेदिया और भेडि़या’ में चंद्रा भेदिया थे जबकि राव भेड़िया थे। उन लेखों में मेरा निष्कर्ष यह था कि राव का इरादा परमाणु परीक्षण करना था ही नहीं। दरअसल राव पर क्लिंटन प्रशासन की तरफ से भारी दबाव डाला जा रहा था कि भारत अपनी परमाणु योजनाओं को ठंडे बस्ते में डाल दे। ऐसे में भेड़िये ने ऐसी चाल चली कि अमेरिकी सरकार को ऐसा लगे कि भारत परमाणु परीक्षण करने जा रहा है पर उससे पहले ही अमेरिका उसे पकड़ने में कामयाब रहा और फिर क्लिंटन प्रशासन को राहत देने के लिए परीक्षण की योजना रद्द कर दी गई।

इससे भारतीय वैज्ञानिकों को अपना परमाणु कार्यक्रम आगे ले जाने के लिए वक्त मिल गया। इस खेल में नरेश चंद्रा ने शायद जानबूझकर भेदिये की भूमिका निभाई थी पर उसके पीछे मकसद देशभक्ति का ही था। इस विश्वासघात के बाद उन्हें मिले इनाम इसकी तरफ इशारा भी करते हैं। यह तथ्य है कि राजीव गांधी ने 18 मार्च 1989 को दिल्ली के पास तिलपत (फरीदाबाद) में वायुसेना के एक कार्यक्रम में चंद्रा से यह कहा था कि पाकिस्तान अपना परमाणु बम बनाने के बेहद करीब पहुंच गया है लिहाजा भारत को भी सक्रिय होना चाहिए। पोकरण-2 परीक्षण होने तक चंद्रा ने इस राज को अपने पास सहेजकर रखा। यहां पर यह ध्यान रखना होगा कि सरकार ने कुछ महीने बाद ही नरेश चंद्रा को पद्म विभूषण से सम्मानित करने का ऐलान किया जिसने तमाम अटकलों पर विराम लगा दिया।

चंद्रा की देशभक्ति वाली प्रतिबद्धता इतनी अडिग थी कि उनकी देशभक्ति पर सवाल उठने के बाद भी वह हिली नहीं। उन्होंने अपना संस्मरण भी नहीं लिखा ताकि देश उनके कुछ कामों के बारे में तो जान सके। वह कहते कि लोग जो पढ़ना चाहेंगे, वह मैं लिख नहीं सकता और मैं जो लिख सकता हूं, लोग उसे पढ़ेंगे नहीं। वह हमारे दौर के भारत माता के बेहतरीन सेवकों में से एक थे।

(लेखक अंतराष्ट्रीय मामलों के जानकार हैं यह उनके निजी विचार हैं।)



Tags:
  • rajasthan
  • Shekhar Gupta
  • Naresh Chandra
  • Patriot
  • traitor
  • Foreign 'insider'

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.