मोटे अनाजों की खरीद के लिए ठोस व्यवस्था बने

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने बजट सत्र के अपने अभिभाषण में खेती-किसानी सहित तमाम क्षेत्रों की उपलब्धियों का ज़िक्र किया।

Arvind Kumar SinghArvind Kumar Singh   31 Jan 2024 5:24 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
मोटे अनाजों की खरीद के लिए ठोस व्यवस्था बने

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने नए संसद भवन में अपने पहले अभिभाषण में एक दशक की शानदार उपबल्धियों का ज़िक्र करते हुए इस बात का खास उल्लेख किया कि कोरोना काल से 80 करोड़ देशवासियों को जो मुफ्त राशन मिल रहा आगामी 5 वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया है। इस पर 11 लाख करोड़ रुपए और खर्च होंगे।

उन्होंने विकसित भारत के चार मुख्य स्तंभों में किसानों के साथ युवाशक्ति, नारीशक्ति और गरीबों को मानते हुए इस बात पर खुशी जतायी कि एक दशक में करीब 25 करोड़ देशवासी गरीबी से बाहर निकले। बीते एक दशक में गाँवों में पौने 4 लाख किमी नई सड़कें बनीं और करीब 2 लाख गाँव पंचायतों को ऑप्टिकल फाइबर से जोड़ा जा चुका है। जन धन आधार मोबाइल त्रिशक्ति ने भ्रष्टाचार रोका। इस माध्यम से अब तक 34 लाख करोड़ रुपए डीबीटी से ट्रांसफर हुआ। करीब 10 करोड़ फर्जी लाभार्थी सिस्टम से बाहर हुए।

राष्ट्रपति के अभिभाषण में इस बात पर ख़ास जोर था कि सरकार खेती को लाभकारी बनाने पर बल दे रही है। प्रयास चल रहा है कि खेती में लागत कम हो। 10 करोड़ से अधिक छोटे किसानों को कृषि योजनाओं में प्रमुखता दी है। आंकड़ों के आधार पर उन्होंने बताया कि पीएम-किसान सम्मान निधि के तहत अब तक 2 लाख 80 हज़ार करोड़ रुपए किसानों तक पहुँचे हैं। बैंक से आसान कर्ज 3 गुना बढा है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना ने किसानों को मदद की है।


पिछले 10 वर्षों में, लगभग 18 लाख करोड़ रुपए केवल गेहूं और धान की एमएसपी के रूप में किसानों को मिले हैं। तिलहन और दलहन की खरीद भी 10 साल में सवा लाख करोड़ रुपए की हुई। कृषि निर्यात करीब 4 लाख करोड़ रुपए तक पहुँच गया है। सस्ती खाद पर 11 लाख करोड़ रुपए से अधिक खर्च हुए। पहली बार सहकारिता मंत्रालय बनाया गया और सहकारी क्षेत्र में, दुनिया की सबसे बड़ी अनाज भंडारण योजना शुरू की गई है। राष्ट्रपति ने मत्स्य-पालन और पशुपालन क्षेत्र का भी जिक्र किया।

राष्ट्रपति का अभिभाषण सरकार तैयार करती है और विभिन्न विभागों की इसमें भूमिका होती है। ऐसे में उपलब्धियों का जिक्र स्वाभाविक है। कोरोना संकट ने ग्रामीण भारत से अलग-थलग रहने वालों को भी खेती और किसान का महत्व बता दिया था। सारे संकटों के बाद भी किसानों ने रिकार्ड उपज की और मुफ्त अनाज की योजना उसी के नाते साकार हो सकी। क्योंकि बाहर से अन्न मँगाकर इतनी बड़ी खाद्य सुरक्षा योजना चलाना संभव नहीं। उसी दौरान लोगों को यह भी पता चला कि खेती उपेक्षा के बाद भी हमारी अर्थव्यवस्था का भी मेरुदंड बनी हुई है जिस पर 58 फीसदी आबादी का जीवन निर्भर करता है। यह अलग बात है कि जिस कृषि और संबद्ध क्षेत्र की देशक से सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) में हिस्सेदारी 1960-61 में 57 फीसदी थी वह आज न्यूनतम स्तर पर और करीब 15 फीसदी पर आ गयी है।

आज़ादी के बाद जो कृषि क्षेत्र 35 करोड़ लोगों का भरण पोषण करने में भी सक्षम नहीं था, आज 140 करोड़ आबादी को खाद्य सुरक्षा दे रहा है। हमारा कृषि उत्पादन करीब 2022-23 में 351.91 मिलियन टन तक पहुँच गया है। 2022-23 में 314.40 लाख टन गेहूँ, बासमती और गैर बासमती चावल, दलहन और अन्य अनाजों का निर्यात किया गया। कोरोना संकट में कई देशों को हमने अनाज उपहार में दिया।

पर खेती बाड़ी बेहद गहरी चुनौतियों से जूझ रही है। इसकी एक झलक सरकार को कोरोना के दौरान उस विराट किसान आंदोलन से मिल गयी थी जो 378 दिन चला और 9 दिसंबर 2021 को औपचारिक तौर पर तीन कृषि कानबनों की समाप्ति के बाद ही समाप्त हुआ। इस आंदोलन में 715 किसानों की जान गयी। किसानों की एक प्रमुख मांग एमएसपी के कानूनी अधिकार को लेकर भी सरकार ने वादा किया था लेकिन 18 जुलाई 2022 को इस बाबत बनी समिति अब तक बैठकों से आगे नहीं बढ़ी है। केवल खेती पर आश्रित छोटे किसानों की दशा दयनीय है।

बेशक भारत के किसानों ने अपने श्रम से कम उत्पादकता और बेहद असुविधाओं के बीच भी अपने देश को चीन के बाद सबसे बडा फल औऱ सब्जी उत्पादक बना दिया है। चीन और अमेरिका के बाद सबसे बड़ा खाद्यान्न उत्पादक देश भारत ही है। पाँच दशको में हमारा गेहूँ उत्पादन 9 गुना और धान उत्पादन तीन गुणा से ज्यादा बढ़ा है। लेकिन यह हकीकत भी है कि खेती की लागत लगातार बढी है। श्रम लागत, बीज, उर्वरक, कीटनाशकों, रसायनों से लेकर पेट्रोल और डीजल तक महँगे हुए हैं।


कृषि क्षेत्र के कारोबारी मौजूदा स्थिति में भले लाखों की आमदनी कमा रहे हों लेकिन किसान और उपभोक्ताओं दोनों पर लगातार मार पड़ रही है। एमएसपी पर सरकारी खरीद का दावा जो भी हो लेकिन हकीकत ये है कि करीब साढे 14 करोड़ किसानों की भूजोतों के लिहाज से एमएसपी पर मौजूदा खरीद ऊंट के मुंह में जीरा जैसा ही है। यह चंद राज्यों और दो फसलो तक सीमित है। पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम और झारखंड के पास खरीद के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा तक नहीं है।

2022 में आरएसएस के किसान संगठन भारतीय किसान संघ ने खुद दिल्ली में रैली करके कहा था कि किसानों की आय में बढ़ोतरी नहीं हो सकी। किसानों को उनकी लागत का लाभकारी मूल्य उनका अधिकार है, भीख नहीं। किसान संघ ने जीएम सरसों का विरोध करने के साथ कहा था कि छह लाख करोड़ की सब्सिडी बीज कंपनियों को दी गई, जबकि किसान खुद बीज का सृजन कर सकते थे। किसान संघ ने मांग की थी कि लागत के आधार पर लाभकारी मूल्य मिले और सरकार इसे सुनिष्चित करें। सभी तरह के कृषि आदानों से जीएसटी समाप्त हो, किसान सम्मान निधि में पर्याप्त बढ़ोत्तरी की जाए और जीएम फसलों की अनुमति वापस ली जाए।

बीते एक दशक में मोदी सरकार ने कृषि मंत्रालय का नाम बदल कर कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय बना दिया। मंत्रालय का आकार और छोटा करते हुए उससे सहकारिता और मात्सिकी और पशुपालन का अलग मंत्रालय बना दिया। खाद्य प्रसंस्करण पहले ही अलग था। 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने के लक्ष्य में अब भी काम बाकी है। पीएम किसान, किसान मानधन योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई परियोजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, जैविक खेती, मृदा स्वास्थ्य कार्ड से लेकर जैविक खेती जैसी कई पहलें हुईं भी हैं। लेकिन अभी भी कफ्यू कुछ किये जाने की जरूरत है। स्वामिनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने का दावा हुआ पर वह आधी अधूरी लागू हुई।

बेशक यह दावा बार बार होता रहा है कि सरकारी नीतियों का केंद्र गाँव गरीब औऱ किसान हैं। लेकिन बारीकी से अंतरिम बजट के दौरान 1 फरवरी 2019 को घोषित की गयी 'प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि' ही कुछ कारगर है। पहले इसके दायरे में दो हेक्टेयर से कम जोत वाले थे। लेकिन सालाना 6,000 रुपये की रकम नाकाफी है,और खुद सत्तादल के लोग इसे कमसे कम 10 हजार करने की मांग कर रहे हैं। योजना 1 दिसंबर 2018 से लागू की गयी और अब तक 15 किस्तें दी गयी हैं।

किसान सम्मान निधि ही वह योजना है जिसके कारण हमारा कृषि बजट 2019-20 से एक लाख करोड़ से अधिक हुआ है। आज कृषि बजट में आधे की हिस्सेदारी इसी योजना की है। 2018-19 में कृषि बजट 54 हजार करोड़ का था, जबकि 2023-24 में कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय का बजट आवंटन 125,035 करोड़ रखा गया है लेकिन यह चिंता की बात है कि 2014 से 2023 के दौरान कृषि बजट से 1.05,544 करोड़ की राशि सरकार को बिना खर्चा वापस हो गयी।

इस बीच में श्री अन्न यानी मोटे अनाजों पर सरकार ने खास जोर दिया है, जिसके चलते ज्वार बाजरा और अन्य मोटे अनाजों का औसत उत्पादन बढा है। इसका फायदा गैर हरित क्रांति वाले इलाके के छोटे किसानों को आगे मिल सकता है, बशर्ते खरीद की ठोस व्यवस्था बने। इन सारी चुनौतियों के बीच खेती बाड़ी बहुत अधिक सहारा चाहती है।

(अरविंद कुमार सिंह, वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं, ये उनके निजी विचार हैं।)

Budget 2024 KisaanConnection 

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.