जंगली जानवरों को खाना खिलाना, यह दोस्ती है या उनसे दुश्मनी निभाना

Janaki LeninJanaki Lenin   22 Sep 2018 12:54 PM GMT

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जंगली जानवरों को खाना खिलाना, यह दोस्ती है या उनसे दुश्मनी निभाना

श्रीलंका के याला नेशनल पार्क से होकर सिथुलपहुवा बौद्ध मंदिर जाने वाली उस कच्ची सड़क के किनारे राजा नाम का हाथी खड़ा था। वह बड़ी उदासीनता से सड़क किनारे लगे पेड़ की पत्तियां चबा रहा था। पहली नजर में वह एक सामान्य सा हाथी लग रहा था जिसे सिर्फ अपने काम से काम था। उसी समय श्रद्धालुओं से भरी एक वैन उसके पास आकर रुकी। वैन का ड्राइवर समझ नहीं पा रहा था कि वह सामने खड़े हाथी के बगल से गाड़ी निकाल कर ले जाए या फिर उसके हटने का इंतजार करे। राजा ने भी कोई ऐसा संकेत नहीं दिया जिसे देखकर लगे कि वह वहां से हटने वाला है, इसलिए ड्राइवर ने वैन थोड़ा और आगे बढ़ाई। एक बार वैन और नजदीक आई तो राजा ने उदासीनता का नाटक छोड़ा और घूमकर वैन के सामने आकर उसका रास्ता रोक लिया। एक श्रद्धालु ने उसे कुछ केले खाने को दे दिए। केले का टैक्स पाकर राजा खुशी-खुशी एक ओर हट गया और गाड़ी को निकलने का रास्ता दे दिया। रोमुलस और मैंने यह दृश्य कई बार देखा था।

जानवरों को खाना खिलाने से उन्हें हमारे पास आने का बढ़ावा मिलता है।

सड़क पर आगे चलकर मंदिर परिसर में कुछ श्रद्धालु लंगूरों के एक झुंड को मिठाइयां, पकवान, फल, बिस्किट और पिकनिक का बचा हुआ खाना खिला रहे थे। भूले-भटके राजा भी वहीं आकर दावत उड़ाने लगता था। जब खाना खत्म हो जाता और श्रद्धालुओं के लौटने का समय हो जाता तो एक चायवाला या स्थानीय गार्ड अखबार के बंडल में आग लगाकर उसे एक मशाल की तरह जला लेता था और हाथी को डराकर भगा देता था।

हम इंसानों को मिल-बांटकर खाना खाना पसंद है। त्यौहारों का अंत अक्सर परिवार और दोस्तों के साथ एक भव्य दावत में होता है। हम दोस्तों को घर पर खाना खाने के लिए बुलाते हैं। अपनी इसी आदत के अनुसार हम दूसरे जानवरों को भी खाना खिलाने लगते हैं।

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जानवरों को खाना खिलाने से उन्हें हमारे पास आने का बढ़ावा मिलता है। जब वे नजदीक आते हैं तो हम शिकायत करने लगते हैं कि जानवर समस्या पैदा कर रहे हैं। राजा नाम का यह हाथी धीरे-धीरे सड़क पर वसूली करने वाला बाहुबली बन गया था जिसे शुरू में श्रद्धालुओं ने भले मकसद से खाने की चीजें दी थीं। हालांकि यह कहानी श्रीलंका की है लेकिन यहां भारत के वन अभ्यारण्यों में भी हम बंदरों, नीलगाय और सांभर को खाना खिलाने लगते हैं। हमारी इस उदारता के पीछे अक्सर करुणा का भाव या फिर जीवों को भोजन कराकर पुण्य मिलने जैसा विचार होता है। पर असलियत में इस तरह हम अपनी और जानवरों की जिंदगी से खिलवाड़ करते हैं।

अगर कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो जानवर शायद ही अपना भोजन किसी और के साथ बांटते हैं। जानवर प्रणय निवेदन के समय अपने साथी को उपहार देकर रिझाते हैं, माता-पिता अपने बच्चों को तब तक खिलाते हैँ जब तक कि वे खुद अपने लिए खाना जुटाने लायक न हो जाएं। इसके अलावा जंतु जगत में ताकतवर जानवर अपने से कमजोर से खाना छीनकर अपना पेट भरता है। इसलिए जब हम उन्हें खाना खिलाते हैं तो वे हमारे इस बर्ताव का क्या मतलब निकालते हैं? स्मिथसोनियन प्राइमेट बयोलॉजी प्रोग्राम के प्राइमेटोलॉजिस्ट वुल्फगैंग डिटस का कहना है कि बंदर खुद को खाना खिलाने वालों को अपना मातहत मानने लगते हैं। इसलिए अगर कोई इंसान उन्हें खाना नहीं देता है तो वे उसे छीन लेते हैं, धमकी देते हैं और आक्रामक हो जाते हैं।

हम अक्सर सोचा करते थे कि तब राजा क्या करेगा अगर कोई गाड़ी उसके पास रुक कर उसे खाना न दे। एक बार रोमुलस सिथुलपहुअवा वाले रास्ते पर जा रहे थे, राजा को देखकर वह रूक गए। तभी दूसरी तरफ से श्रद्धालुओं से भरी एक वैन आई। गाड़ी की छत पर खाने-पीने का सामान बंधा था। ड्राइवर ने बचकर निकलने की कोशिश की लेकिन राजा के सामने उसकी एक नहीं चली। राजा गाड़ी के ऊपर झुक गया और छत को अपनी सूंड में लपेट कर उसे उखाड़ने की कोशिश करने लगा।

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घबराए हुए ड्राइवर ने स्पीड बढ़ानी चाहिए लेकिन उसके दो पहिए हवा में उठ चुके थे। राजा ने अपने वजन से गाड़ी एक तरफ से दबा दी थी। वैन लहराने लगी। एक बुजुर्ग महिला समेत डरे हुए लोग गाड़ी से निकलकर भागने लगे। रोमुलस के साथ पार्क का एक रेंजर भी था, उसने लोगों से चिल्लाकर कहा कि वे गाड़ी से बाहर न भागें वरना हो सकता है हाथी उनमें से किसी एक पर हमला बोल दे। लेकिन उस धमाचौकड़ी में किसी ने उसकी बात नहीं मानी।

इसीबीच राजा ने छत पर बंधा सामान नोंच लिया, वैन के पहिए जैसे ही जमीन पर लगे ड्राइवर ने स्पीड बढ़ाई। वैन बुजुर्ग महिला को रौंदती हुई आगे निकल गई। खाने का सामान सड़क पर बिखर गया था। हाथी चुपचाप सब चीज सूंड से उठा-उठाकर अपने मुंह में भरने लगा, उसे रोते हुए बच्चों, इधर-उधर दौड़ते और चीखते लोगों से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। आखिरकार, घायल महिला और उसके दूसरे सहयात्री वैन में बैठकर वहां से निकल गए।

कुछ समय बाद जब हम याला वापस लौटे तो राजा वहां नहीं मिला। कुछ साल पहले पार्क पर हुए लिट्टे के हमले के बाद अब वहां सेना रहने लगी थी। हमारी गैर मौजूदगी में वहां सेना की टुकड़ियों की बदली हुई। नई टुकड़ी का एक सैनिक एक दिन अपने बंकर में सो रहा था कि अचानक उसे झटका लगा और वह जाग गया। उसने देखा कि किसी हाथी की सूंड़ उसके आस-पास खाने का सामान तलाश रही थी। अपनी जिंदगी बचाने के लिए उस डरे हुए सैनिक ने अपनी राइफल से हाथी पर गोलियां बरसा दीं।

काश राजा को इंसानी खाने की लत न पड़ती, उसे हम खाना न खिलाते तो मुमकिन है आज वह जिंदा होता।

(जानकी लेनिन एक लेखक, फिल्ममेकर और पर्यावरण प्रेमी हैं। इस कॉलम में वह अपने पति मशहूर सर्प-विशेषज्ञ रोमुलस व्हिटकर और जीव जंतुओं के बहाने पर्यावरण के अनोखे पहलुओं की चर्चा करेंगी।)

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