'शब्दों का अपना वज़न होता है, लेकिन कला बहावदार होती है'

पेंटिंग्स जनजातियों के सांस्कृतिक इतिहास और प्राकृतिक परिवेश को रिकॉर्ड करती हैं, जिसे वे पवित्र मानते हैं। रेखाएं, बिंदु, डैश, कर्व इस कला को खास बनाते हैं। वे संगीत, नदी के बहाव, मौसम के बदलाव, जीवन चक्र के बारे में एक समझ पैदा करते हैं।

TikuliTikuli   17 May 2022 11:03 AM GMT

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शब्दों का अपना वज़न होता है, लेकिन कला बहावदार होती है

तन्हाई आपको अनापेक्षित जगहों की तरफ ले जाती है। कभी-कभी खोज का सफर रंगों, रेखाओं और कर्व से शुरू होता है तो कभी-कभी शब्दों के माध्यम से शुरूआत होती है। जो आपको खुद की खोज और उपचार की तरफ ले जाती है।

जब मैं अपने विचारों को शब्दों का पैरहन नहीं दे पाती हूं तो मैं पेंटिंग बनाती हूं। शब्दों का अपना वज़न होता है लेकिन कला बहावदार होती है।

पिछले कुछ वर्षों में, मैंने विभिन्न कला रूपों और माध्यमों के साथ प्रयोग करना शुरू किया। यह प्रक्रिया जितनी अधिक जटिल होती है, तनाव और आंतरिक संघर्षों को सुलझाने के लिए यह उतना ही अधिक प्रभावी साधन बन जाती है। कला मेरे लिए एक ध्यान की तरह है। बस कुछ समय का सृजन किसी उपचार से कम नहीं होता है और मुझे एक आंतरिक शांति मिलती। मैं ऑनलाइन उपलब्ध सभी स्रोतों से सीखने में घंटों बिताती हूं, एक दैनिक रियाज़ से सीखने में घंटों बिताता हूं, और मन के प्रशिक्षण की इस प्रक्रिया की अपनी गहराई होती है।

कभी-कभी संतुलन आपके माध्यम को खोजने जितना आसान नहीं होता है और मैंने इसे कला, विशेष रूप से लोक और जनजातीय कला में पाया। भारत में स्वदेशी कला रूपों की एक समृद्ध परंपरा है। उन्हें फिर से बनाने की इच्छा ने मुझे विभिन्न तकनीकों, जनजातियों और उनकी सांस्कृतिक परंपराओं के बारे में शोध करने के लिए प्रेरित किया। जब भी संभव हो मैंने कलाकारों से मिलने, उनके संघर्षों के बारे में जानने, उनके जीवन के बारे में और जानने की कोशिश करती हूं, ताकि मैं उन्हें फिर से बना सकूं जो उनका वास्तविक रूप होता है।

किसी इंसान के लिए कुछ ऐसा जिंदगी में शामिल करना मुश्किल है जो उनके दैनिक जीवन का हिस्सा नहीं है, इसलिए किसी विशेष लोक/आदिवासी कला में इस्तेमाल किए गए रूपांकनों के महत्व को अपनी रचनात्मक्ता के साथ सही तरीके से आत्मसात करना बेहद जरूरी है।

हालांकि मैं विभिन्न कला रूपों के साथ प्रयोग कर रही हूं, लेकिन मेरा दिल गोंड पर टिका हुआ है, जो आकर्षक, रहस्यमय दुनिया का प्रतिनिधित्व करता है। मैंने इसकी कोई ट्रेनिंग नहीं ली है, लेकिन खुद से अलग-अलग माध्यमों से सीखती रहती हूं।


गोंड भारत की सबसे बड़ी जनजाति है, जो मुख्य रूप से मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और ओडिशा के इलाकों में बसी है।

दुनिया भर में सभी लोक कलाओं में मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य एक महत्वपूर्ण विषय है। गोंड चित्रकला में भी प्रकृति की छाप देखने को मिलती है। शहरीकरण और घटते प्राकृतिक संसाधनों के इस समय में हमें इन्हें बनाए रखने की जरूरत है।

पेंटिंग जनजातियों के सांस्कृतिक इतिहास और प्राकृतिक परिवेश को रिकॉर्ड करती हैं, जिसे वे पवित्र मानते हैं। रेखाएं, बिंदु, डैश, कर्व इस कला को खास बनाते हैं। वे संगीत, नदी के बहाव, मौसम के बदलाव, जीवन चक्र के बारे में एक समझ पैदा करते हैं।

मिट्टी की दीवारों पर तस्वीर बनाने के लिए परंपरागत रूप से प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता था। प्रधान गोंड महिलाओं के जरिए तैयार की गई इस चित्र को दीघना के नाम से जाना जाता था। बाद में यह गोंड कला के वर्तमान स्वरूप का आधार बनी।

रंग-बिरंगी खास चित्रकला शैली, जो अब हम देखते हैं, कुछ दशक पहले जनगढ़ सिंह श्याम द्वारा प्रस्तुत की गई थी। उन्होंने गायन (बाना) की मौखिक परंपरा को परिवर्तित कर दिया, जिसमें जनजाति की किंवदंतियों, मिथकों, दंतकथाओं, देवताओं और बचपन की कहानियों और कला के दीघना रूप को किसी अन्य की तरह एक दृश्य कथा में दर्ज किया गया था।

तथ्य यह है कि एक युवक ने परंपराओं से परे जाने की हिम्मत की, जो मुझे पहले कभी कागज पर नहीं रखा गया था। यह मेरे सपनों से जुड़ा है, उन काल्पनिक कहानियों से जो मैं एक बच्चे के रूप में बनाती थी, किपलिंग और रस्किन बॉन्ड की दुनिया। मुझे लगा इसने एक कहानीकार और कवि के रूप में मेरी कल्पना को भी जगाया।

गोंड कला में चेतन और निर्जीव, दृश्यमान और अदृश्य के बीच एक सहज संबंध है। अन्य ग्रामीण कला परंपराओं के विपरीत, गोंड कला में हम बहुत सारी मंत्रमुग्ध कर देने वाली छवियां देखते हैं जो कलाकार की वास्तविक कल्पना से आती हैं। गोंड कला के लिए मेरा शौक सिर्फ सृजन करने की मेरी इच्छा को पूरा करने के लिए ही नहीं है, बल्कि इस चमत्कार को संरक्षित करने का भी है।

गोंड कला में प्रकृति की कल्पना समावेशिता, सह-अस्तित्व और लोगों के बीच सहजीवी संबंध, उनके जंगल और यहां तक ​​कि सबसे सांसारिक चीजों के लिए उनकी कृतज्ञता को दर्शाती है जो उन्हें बनाए रखने में मदद करती हैं।

मैं जब पेंट करती हूं तो मैं इसे ज्ञान, पृथ्वी के प्रति श्रद्धा और सभी जीवित और निर्जीव चीजों के साथ करता हूं जो हमारी इकोलॉजी और पर्यावरण में भूमिका निभाते हैं। मैं उस जनजाति को उपहार के रूप पेश करती हूं जो संरक्षण के सार, मानव प्रकृति संबंध और जीवन की लय को जानती है। अगर हम देखने और सीखने के लिए तैयार हैं तो प्रकृति एक महान शिक्षक है।

साझा की गई हर कलाकृति के साथ मैं लोगों को याद दिलाती हूं कि वे रुकें और चारों ओर देखें, प्रकृति के चमत्कार को देखने के लिए और उसे हल्के में न लें, पेड़ के रूपों और उनके इकोसिस्टम को समझने के लिए, उनके साथ जुड़ने के लिए।

मुझे लगता है कि स्वदेशी कला परंपराएं, विजुअल मीडिया के रूप में, अपने क्षेत्रीय प्राकृतिक वनस्पतियों और जीवों के साथ मनुष्यों के घनिष्ठ संबंध के बारे में जागरूकता पैदा करने का एक सबसे जरूरी स्रोत हैं।

गोंड कला का अभ्यास करने से मुझे खुद को नया रूप देने में मदद मिली है। इस कला का उद्देश्य है, अपने दृष्टिकोण को व्यापक बनाना और जीवन को उसके सभी रूपों में सम्मान देना।

टिकुली एक कवियत्री, कलाकार, पुरस्कार विजेता ब्लॉगर और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित लेखक हैं। टिकुली दिल्ली में रहती हैं। उनकी फिक्शन, नॉन फिक्शन, कविता प्रिंट और प्रसिद्ध ऑनलाइन साहित्यिक पत्रिकाओं में छपी हैं। वे तीन काव्य संग्रहों की लेखिका हैं। उनके इंस्टाग्राम/ट्विटर अकाउंट पर उनकी कलाकृतियां देख सकते हैं और उनसे संपर्क कर सकते हैं।

अंग्रेजी में पढ़ें

अनुवाद: मोहम्मद अब्दुल्ला सिद्दीकी


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