गणेश पूजन और वनसंपदा संरक्षण की गजब मिसाल

मध्यप्रदेश के पातालकोट घाटी में निवास करने वाले वनवासी गणेशोत्सव के 10 दिनों में 21 विभिन्न प्रकार के पौधों को श्रीगणेश को समर्पित करते हैं।

Deepak AcharyaDeepak Acharya   13 Sep 2018 7:40 AM GMT

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गणेश पूजन और वनसंपदा संरक्षण की गजब मिसाल

गणेशोत्सव सारे देश में बड़ी धूम-धाम से मनाया जा रहा है, भगवान श्रीगणेश के इस 10 दिनों के उत्सव को वनवासी अंचलों में भी खूब जोरशोर से मनाया जाता है। वनवासियों के बीच रहकर हर्बल शोध और संकलन के करीब 18 साल के अनुभवों और गैर पारंपरिक शिक्षा के दौरान वनवासियों की अनेक परंपराओं, त्योहारों, संस्कार क्रियाओं आदि से रूबरू होता आया हूं। वनवासी अंचलों में गणेशोत्सव और इससे जुड़ी परंपराओं को बड़े करीब से देखा और जाना है। जहां एक ओर इस उत्सव का पारंपरिक और दैवीय महत्व हैं वहीं हर्बल चिकित्सा से जुड़े हुए कुछ अनोखे आयाम भी हैं। अब आप सोचेंगे कि आखिर हर्बल चिकित्सा यानि जड़ी-बूटियों का संबंध गणेशोत्सव से कैसे हो सकता है? मेरे पास उपलब्ध जानकारियों में से कुछ आपके साथ बांटना चाहूंगा।


पातालकोट में भगवान श्री गणेश की स्थापना के इन दस दिनों में अनेक पुष्प और पत्रों का समावेश बतौर पूजा किया जाता है और उन्हे श्री गणेश को अर्पित किया जाता है। ये खास जड़ी-बूटियां या फूल-पत्र क्या हैं और क्यों वनवासी इन्हें श्रीगणेश को अर्पित करते हैं? इस बात की जानकारी अधिकांश लोगों को विस्तार से नहीं पता। मध्यप्रदेश के पातालकोट घाटी में निवास करने वाले वनवासियों की मानी जाए तो कुछ जड़ी-बूटियां जिनके कंद औषधीय महत्व के होते हैं, उन्हें उनकी पत्तियों को देखकर ही पहचाना जाता है। ये कंद-मूल वाली जड़ी-बूटियां मुख्यत: भाद्रपद में ही दिखाई देती हैं और करीब 3 से 4 महीनों के बीत जाने पर पत्तियां परिपक्व होकर पौधे से टूटकर गिर जाती हैं और फिर जमीन के भीतर उपस्थित कंदों को खोज पाना मुश्किल हो जाता है।

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तमाम वनवासी इस प्रक्रिया को श्री गणेश उत्सव से जोड़कर देखते हैं। इनका मानना है कि भाद्रपद में एकत्र की गई वनस्पतियां अति-कारगर होती हैं और वर्ष भर खराब ना होने वाली वनस्पतियों को इसी काल में एकत्र किया जाता है। वनवासी हर्बल जानकार जिन्हें स्थानीय लोग भुमका कहते हैं, वे मानते हैं कि श्रीगणेश को हर एक नेक काम की शुरूआत करने से पहले पूजा जाना चाहिए और तमाम रोगों के इलाज के लिए एकत्र की जाने वाली वनस्पतियों को श्रीगणेश के पूजन के दौरान अर्पित किया जाना चाहिए और फिर इनका उपयोग विभिन्न दवाओं के निर्माण में होना चाहिए। इन वनवासियों के अनुसार भाद्रपद में एकत्र जड़ी-बूटियां श्रीगणेश की तरह दर्द और विघ्नहारक गुणों की होती हैं। इनकी मान्यताओं के अनुसार बुद्धि के दाता श्रीगणेश के चरणों में समर्पित ये जड़ी-बूटियां श्रीगणेश की तरह दुख:हारक होती है।

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श्रीगणेश पूजा के लिए वनवासी हर्बल जानकार अपनी बस्ती के होनहार बच्चों को पहले से सारी प्रक्रिया को सिखाना शुरू कर देते हैं। वृद्ध हर्बल जानकारों का यह प्रयास होता है कि इनकी नई पीढी इस विद्या को इसी बहाने सीखने की कोशिश करे। इस दौरान मूलरूप से 21 विभिन्न प्रकार के पौधों और उनके अंगों को एकत्र किया जाता है जिसे "इक्कीस दिवापत्र" पूजा कहते हैं। गणेशोत्सव के 10 दिनों में 21 विभिन्न प्रकार के पौधों को श्रीगणेश के समक्ष समर्पित किया जाता है और साथ इतनी ही संख्या में दीपक तैयार कर मूर्ति के आसपास लगाए जाते हैं। ये सभी 21 पौधे अत्यधिक औषधीय गुणों युक्त होते हैं। श्रीगणेश स्थापना और उसके बाद के 10 दिनों के दौरान इन वनस्पतियों को एकत्र कर, पूजा-पाठ में सम्मिलित किया जाता है। और बाद में इन्हें इलाज के लिए उपयोग में लाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इससे जड़ी-बूटियों की असरकारक क्षमता दुगुनी हो जाती है।

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वनवासियों के द्वारा एकत्र इन जड़ी-बूटियों और इनके बतलाए उपयोगों को आधुनिक विज्ञान की नजरों से देखा जाए तो इनके तथ्यों का लोहा मानना जरूरी होगा क्योंकि इन 21 जड़ी-बूटियों और उनके गुणों की पैरवी और पुष्टि आधुनिक विज्ञान भी कर चुका है। सबसे ज्यादा गौर करने की बात यह है कि वनवासी कभी भी इन पौधों का मूर्ति के साथ विसर्जन नहीं करते अपितु इन्हें अपने हर्बल नुस्खों या फ़ार्मुलों के तौर पर अपना लिया जाता है। पातालकोट के गोंड और भारिया जनजाति के वनवासी गणेश पूजन के साथ प्राकृतिक वनसंपदा संरक्षण की ऐसी गजब मिसाल पेश करते हैं, जिसे सीखने के लिए वाकई में उम्र कम पड़ जाए।

(लेखक गाँव कनेक्शन के कंसल्टिंग एडिटर हैं और हर्बल जानकार व वैज्ञानिक भी।)

       

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