आधुनिक विज्ञान भी मानता है इन 15 जड़ी बूटियों का लोहा

डॉ दीपक आचार्य | Feb 28, 2018, 11:33 IST
Sehat
पौधों और तमाम तरह की जड़ी बूटियों को आदिवासी पूजा पाठ में इस्तेमाल करते हैं और ग्रामीण अंचलों में इन्ही सब जड़ी बूटियों से रोगोपचार भी किया जाता है। आदिवासी जड़ी बूटियों के इस्तेमाल से पहले इन्हें पूजते हैं, ऐसी मान्यता है कि इससे जड़ी-बूटियों की असरकारक क्षमता दुगुनी हो जाती है।

आदिवासियों के द्वारा एकत्र इन जड़ी-बूटियों और इनके बतलाए उपयोगों को आधुनिक विज्ञान की नजरों से देखा जाए तो इनके तथ्यों का लोहा मानना जरूरी होगा क्योंकि इन 15 जड़ी-बूटियों और उनके गुणों की पैरवी और पुष्ठी आधुनिक विज्ञान भी कर चुका है। चलिए इस सप्ताह जानते हैं इन 15 जड़ी-बूटियों और आदिवासियों के द्वारा उपयोग में लाए जाने वाले विभिन्न रोगोपचार और नुस्खों को..

दूब घास

इसे दूर्वा भी कहा जाता है, आदिवासियों के अनुसार इसका प्रतिदिन सेवन शारीरिक स्फूर्ति प्रदान करता है और शरीर को थकान महसूस नहीं होती है। आदिवासी नाक से खून निकलने पर ताजी व हरी दूब का रस 2-2 बूंद नाक के नथुनों में टपकाते हैं जिससे नाक से खून आना बंद हो जाता है। लगभग 15 ग्राम दूब की जड़ को 1 कप दही में पीसकर लेने से पेशाब करते समय होने वाले दर्द से निजात मिलती है।

मक्का

मक्के के बीज, रेशम जैसे बाल, मक्के की पत्तियां सभी जबरदस्त औषधीय गुणों की खान होती हैं। मक्के के दानों में वे सभी महत्वपूर्ण तत्व होते हैं जिनकी वजह से मांसपेशियां और हड्डियां मजबूत बनती हैं। मध्यप्रदेश के आदिवासी रक्त-अल्पता के रोगियों और कमजोर शारीरिक वृद्धि वाले व्यक्तियों को मक्के की रोटियां खाने की सलाह देते हैं।

लटजीरा

इसे अपामार्ग भी कहा जाता है, इसके सूखे बीजों को वजन कम करने के लिए कारगर माना जाता है। इसके तने से दातून करने से दांत मजबूत हो जाते हैं। लटजीरा के तने को कुचलकर कत्थे के साथ मिलाया जाए और 2-4 पत्तियां सीताफल की कुचलकर डाल दी जाए। ये सारा मिश्रण पके हुए घाव पर लगाया जाए तो घाव में आराम मिल जाता है। इसमें टैनिन नामक रसायन घाव सुखाने के लिए महत्वपूर्ण है।

कनेर

कनेर को बुखार दूर करने के लिए कारगर माना जाता है। आदिवासी हर्बल जानकार सर्पदंश और बिच्छु के काटने पर इसका अत्यधिक उपयोग करते हैं। कनेर की पत्तियों को दूध में कुचल कर बालों पर लगाया जाए तो गंजापन दूर होता है, साथ ही बालों का असमय पकना दूर हो जाता है।

दाल चीनी के स्वाद वाली तुलसी

तुलसी

सर्दी, खांसी और बुखार में उपयोग के अलावा तुलसी सोरायसीस और दाद-खाज के इलाज में भी कारगर है। तुलसी की 15-20 ताजी हरी पत्तियों को लेकर एक कप पानी में डाला जाए और धीमी आंच पर रख दिया जाए, इस काढ़े के ठंडे होने पर इसे मुहांसों पर दिन में 4 से 5 बार लगाया जाना चाहिए आराम मिलता है।

केवड़ा

जिन महिलाओं को मासिक धर्म संबंधित विकार होते हैं, आदिवासी हर्बल जानकार विकारों को दूर करने केवड़े के पौधे का इस्तमाल करते हैं।

शमी

शरीर की गर्मी दूर करने के लिए शमी की पत्तियों का इस्तेमाल किया जाता है और जिन्हें अत्यधिक पेशाब जाने की समस्या हो, उन्हें भी शमी की पत्तियों का रस सेवन कराया जाता है।

बेल

आदिवासियों के अनुसार बेल के पत्र दस्त और हैजा नियंत्रण में अति उत्तम होते हैं। शारीरिक दुर्गंध नाशक के रूप में भी इनका उपयोग किया जाता है। बेल के पके फलों के गूदे का रस या जूस तैयार करके पिलाने से पेट के कीड़े मर जाते हैं। डांग- गुजरात के आदिवासी मानते हैं कि बेल के फलों के बजाए पत्तों का रस का सेवन किया जाए तो ज्यादा बेहतर परिणाम प्राप्त होते हैं।

अर्जुन

हृदय रोगों में अर्जुन सर्वोत्तम माना गया है। अर्जुन छाल शरीर की चर्बी को घटाती है इसलिए वजन कम करने की औषधि के तौर पर भी इस्तमाल किया जाता है। अर्जुन की छाल के चूर्ण को चाय के साथ उबालकर पीने से हृदय और उच्चरक्तचाप की समस्याओं में तेजी से आराम मिलता है। चाय बनाते समय एक चम्मच इस चूर्ण को डाल दें इससे उच्च-रक्तचाप सामान्य हो जाता है।

मण्डूकपर्ण

बच्चों की बुद्धि और याददाश्त बेहतरी के लिए तथा बुजुर्गों में उच्चरक्तचाप सामान्य करने के लिए मण्डूकपर्ण को उपयोग में लाया जाता है।

अशोक

महिलाओं के लिए यह वरदान है। गर्भाशय की बेहतरी, मासिक धर्म संबंधित रोगों आदि के निवारण के लिए इसे उत्तम माना गया है। लगभग 50 ग्राम अशोक की छाल को 2 कप पानी में खौलाया जाए जब तक कि यह आधा शेष ना बचे। एक गिलास रोज पीने से तेजी से फायदा होता है।

जासवंत

इसे गुड़हल भी कहा जाता है। आदिवासी इसके फूलों को तनाव दूर करने और बेहतर नींद के लिए उपयोग में लाते हैं। गुड़हल के ताजे लाल फूलों को हथेली में कुचल लिया जाए और इस रस को नहाने के दौरान बालों पर हल्का हल्का रगड़ा जाए, गुड़हल एक बेहतरीन कंडीशनर है।

भृंगराज

बालों की बेहतरी, माइग्रेन और तनाव दूर करने के लिए भृंगराज अनेक नुस्खों के तौर पर उपयोग में लाया जाता है। भृंगराज की पत्तियों का रस शहद के साथ मिलाकर देने से बच्चों को खांसी में काफी आराम मिलता है।

आंवला

आंवला

घावों को ठीक करने में तथा पेट के विकारों के निवारण में आदिवासी इसका बेजा इस्तमाल करते हैं। आंवले के कच्चे फलों का नित सेवन त्वचा को चमकदार बनाता है। वैसे आंवला बढ़ती उम्र के साथ होने वाली अनेक समस्या की गति धीमी करने में मददगार होता है।

अमलतास

दस्त रोकने और नेत्र रोगों में अमलतास की फल्लियों को उपयोग में लाया जाता है। अमलतास के ताजे गूदे को अपचन से परेशान व्यक्ति को दिया जाए तो आराम मिलता है। गुजरात में आदिवासी इस गूदे के साथ कच्चे जीरे के साथ मिलाकर खिलाते है, काफी असरकारक होता है।

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