जीएम सरसों से तिलहन में आत्मनिर्भरता की दरकार

खाद्य जीएम फसलें मानव स्वास्थ, पर्यावरण और खेती-किसानी के लिए कितनी उपयोगी होगीं यह आने वाले कुछ वर्षों के बाद ही तय होगा। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा वैज्ञानिकों की देखरेख में कराये गये प्रदर्शनों के बाद दावा किया गया है कि जीएम सरसों की डीएमएच 11 किस्म भारत की कई स्थानीय सरसों की प्रजातियों के मुकाबले 30 प्रतिशत तक अधिक उत्पादन देने की क्षमता रखती है।

Dr. Satyendra Pal SinghDr. Satyendra Pal Singh   3 Nov 2022 7:59 AM GMT

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जीएम सरसों से तिलहन में आत्मनिर्भरता की दरकार

देश में तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए अब जीएम सरसों की खेती होगी। भारत की जेनेटिक इंजीनियरिंग ऑपरेशन कमेटी (जीईएसी) ने जेनेटिकली मॉडिफायड (जीएम) सरसों की नई किस्म डीएमएच 11 को क्षेत्र परीक्षण के लिए जारी कर दिया गया है। पिछले अनुभवों के आधार पर देखा जाये तो भारत में अब तक जीएम फसल के रूप में सिर्फ बीटी कॉटन को ही अनुमति दी गई है। जबकि पर्यावरणविदों एवं कृषि जानकारों के विरोध के कारण देश में बीटी बैंगन के क्षेत्र परीक्षण के बाद भी इसको उगाने की अनुमति नहीं मिल पाई थी। खाद्य जीएम फसलें मानव स्वास्थ, पर्यावरण और खेती-किसानी के लिए कितनी उपयोगी होगीं यह आने वाले कुछ वर्षों के बाद ही तय होगा।

बताया जा रहा है कि सरसों की इस जीएम प्रजाति को वर्ष 2002 में तैयार किया गया था। इसके बाद से पूरी दुनिया और भारत में इसके प्लॉट स्तरीय प्रदर्शन कराये जा रहे थे। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा वैज्ञानिकों की देखरेख में कराये गये प्रदर्शनों के बाद दावा किया गया है कि जीएम सरसों की डीएमएच 11 किस्म भारत की कई स्थानीय सरसों की प्रजातियों के मुकाबले 30 प्रतिशत तक अधिक उत्पादन देने की क्षमता रखती है।

अब जीएम सरसों की क्षेत्र परीक्षण के लिए जारी की गई प्रजाति के तहतः व्यावसायिक रिलीज से पहले किसानों के खेतों पर बीज उत्पादन कार्यक्रम लेना होगा। भारत देश में सरसों की इस प्रजाति को पहली ट्रांसजेनिक खाद्य फसल के रूप में देखा जा रहा है। उत्तर भारत सहित सम्पूर्ण भारत में सरसों की फसल को प्रमुख तिलहन फसल के रूप में उगाया जाता है।

देश में उत्पादन और क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से देखा जाये तो सरसों, मूंगफली और सोयाबीन प्रमुख तिलहन फसलें हैं। देश में सोयाबीन के बाद सरसों का उत्पादन दूसरे नंबर पर आता है। सरसों उत्तर भारत के राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब आदि राज्यों की प्रमुख तिलहनी फसल है।


सरसों की फसल में कम पानी तथा कम लागत की आवश्यकता होती है। जानकारों के अनुसार पिछले कुछ वर्षों से सरसों के उत्पादन में ठहराव सा आता जा रहा है। हांलाकि देश में कई प्राइवेट कंपनियों द्वारा किसानों को सरसों की हाइब्रिड प्रजातियों के बीज की भी बिक्री की जा रही है। बताया जा रहा कि सरसों की हाइब्रिड प्रजातियों से अच्छा उत्पादन मिलने के साथ ही फसल में रोग और बीमारियों से लड़ने की क्षमता प्राप्त हुई है।

राष्ट्रीय सरसों अनुसंधान केन्द्र, भरतपुर के वैज्ञानिकों द्वारा भी बेहतर सरसों की प्रजातियों के विकास में निरंतर अतुलनीय योगदान दिया जा रहा है। बावजूद इसके देश में खाद्य तेल की बढ़ती मांग की पूर्ति नहीं हो पा रही है। भारत सरकार तिलहन योजना के अलावा पाम तेल के लिए पाम की खेती को मिशन मोड में आगे करने के लिए प्रोत्साहन दे रही है।

भारत में सरसों की हाइब्रिड किस्मों का चलन अभी काफी कम हैं। देश के अधिकतर किसान अभी सरसों की शंकुल प्रजातियों की खेती पर ही भरोसा करते हैं। हालांकि सरसों की हाइब्रिड प्रजातियों की तुलना में इन किस्मों का बीज काफी सस्ता और विश्वसनीय है। भारत के इतर सरसों की हाइब्रिड प्रजातियों को कई देशों में प्रमुखता से अपनाया जा रहा है। जिसमें कनाडा में 85 प्रतिशत, यूरोप में 90 प्रतिशत और चीन में 70 प्रतिशत तक राई से विकसित की गई हाइब्रिड सरसों की खेती की जा रही है।

ऐसे में भारत में जीएम सरसों के आगाज होने के बाद प्रमुख यक्ष प्रश्न यह है कि क्या इससे से देश में तिलहन में आत्मनिर्भरता हासिल हो सकेगी। सरसों का तेल एक खाद्य तेल है, क्या जीएम सरसों की किस्म से प्राप्त तेल खाद्य सुरक्षा की दृष्टि से मानव सहित पालतू पशुओं के स्वास्थ्य के लिए बेहतर और सुरक्षित होगा। यह एक चिंताजनक पक्ष हो सकता है जिसके बारे में आने वाले कुछ वर्षों के बाद ही पता चल सकेगा।


सुरक्षा और असर के बारे में नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेस के वरिष्ठ वैज्ञानिक के. विजय राघवन का कहना है कि बार्नेस और बारस्टार आधारित हाइब्रिड राई का इस्तेमाल कनाडा में 1996, अमेरिका में 2002 और ऑस्ट्रेलिया में 2007 से हो रहा है। अकेले कनाड़ा में 2013 में 70 लाख टन राई और इसका बना 23 लाख टन तेल का निर्यात किया गया है। लेकिन किसी पर दुष्प्रभाव की बात 1996 से अब तक सामने नहीं आई है।

वहीं भारत में भी डीएमएच 11 से मनुष्यों में एलर्जी, जहर पहुंचने या पर्यावरण को नुकसान के आंकलन के लिए विस्तृत परीक्षण किए गए हैं। यदि सब कुछ अच्छा रहता है और जीएम सरसों की इस किस्म को उगाने के लिए जारी कर दिया जाता है तो भारत सरकार को खाद्य तेल के दृष्टिकोण से बहुत बड़ी राहत मिल सकती है। भारत ने 2021-22 में खाद्य तेल के आयात पर 1899 करोड़ डॉलर खर्च किये हैं। जीएम सरसों उगाकर उत्पादन मेें बढ़ोत्तरी करके इस खर्च में कमी लायी जा सकती है।

भारत में इस समय केवल जीएम तकनीकी से विकसित कपास को ही उगाने की अनुमति दी गई है। इसके अलावा जीएम बैंगन को व्यावसायिक उत्पादन के लिए जारी किया गया था लेकिन पर्यावरण कार्यकत्ताओं ने इसे खेती और फसलों के लिए नुकसानदायक बताते हुए रूकवा दिया था। हर बार की तरह इस बार भी जीन सवंर्धित अभियांत्रिकी मूल्यांकन समिति (जीईएसी) की सिफारिश का विरोध शुरू हो गया है।

देश के किसान संगठनों के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का आनुषांगिक संगठन भारतीय किसान संघ ने इसे आत्मघाती बताते हुए सरकार से सिफारिश वापस लेने की मांग की है। संघ का कहना है कि जीईएसी ने जीएम सरसों की गुणवत्ता और इसका पर्यावरण पर पड़ने वाले असर का कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं किया है। हालांकि भारतीय अनुसंधान परिषद और भारत सरकार ने प्रदर्शनों, अध्ययनों और सोच समझकर ही इतना बड़ा फैसला लिया होगा। यदि जीएम सरसों के परिणाम सकारात्मक हैं तो निश्चित रूप से आने वाले वर्षों में बड़ा बदलाव ला सकते हैं। इससे देश में खाद्य तेल में आत्मनिर्भरता हासिल करके काफी हद तक विदेशी मुद्रा बचाई जा सकती है। जहां तक जीएम फसलों से अधिक पैदावार की बात है तो देश में बीटी कॉटन से कोई बहुत अधिक कपास का उत्पादन बड़ा है ऐसा भी दिखाई नहीं देता है।


दूसरी तरफ जीएम फसलों के प्रति खासकर खाद्य फसलों के प्रति जो आंशकाएं हैं इनमें कुछ सच्चाई है तो यह निर्णय घातक भी हो सकता है। सरसों एक ऐसी फसल है जोकि मधुमक्खी पालन करने वाले किसानों के लिए अधिक सहयोगी रहती है। सरसों की खेती के साथ मधुमक्खी पालन भी व्यापक रूप से किया जाता है। सरसों की फसल में मधुमक्खी परागण का कार्य भी करती है।

मधुमक्खी सरसों के फूलों से पॉलन एवं नेक्टर एकत्र कर शहद उत्पादन करती है। लेकिन जीएम सरसों की फसल से जो पॉलन एवं नेक्टर ग्रहण करेगी और उससे जो शहद पैदा होगा उसका पूरा संघटन भी बदल सकता है। क्या जीएम सरसों की फसल से पॉलन एवं नेक्टर मिलने की प्रक्रिया होगी इस बात की भी आंशका है। जीएम सरसों की फसल से उत्पादित शहद स्वास्थ्य एवं गुणवत्ता की दृष्टि से कैसा होगा। जीएम सरसों की फसल से प्राप्त तेल एवं खली की गुणवत्ता कैसी होगी। यूरेसिक एसिड का प्रतिशत क्या होगा आदि-आदि मानव स्वास्थ्य से जुड़े विषय महत्वपूर्ण हो सकते हैं।

देश में जहां तक बीटी कॉटन से जीएम सरसों की तुलना की बात है तो कपास को अधिकांशतः कपड़े के रेसे के लिए उपयोग में लाया जाता है। जबकि सरसों तेल और खली का सीधा-सीधा उपयोग खाद्य के रूप में मानव और डेयरी पशुओं द्वारा होगा। सवाल और आंशकाएं कई हैं? लेकिन इन सब प्रश्नों के जबाब आने वाले वक्त में ही मिल सकेगें। फिलहाल देश को किसानों के खेतों पर जीएम सरसों के होने वाले क्षेत्र परीक्षणों के सुखद और अनुकूल परिणाओं की कामना करनी चाहिए। संभवतः आने वाले वर्षों में जीएम सरसों से तिलहन में आत्मनिर्भरता की दरकार पूरी हो सके।

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