स्कूल को हरा-भरा रखने के लिए बच्चों ने छुट्टियों को कर दिया पेड़-पौधों के नाम

लखीमपुर के प्राइमरी स्कूल में बच्चों ने लगाए सैकड़ों पौधे, हराभरा रखने के लिए मई-जून में भी सुबह-शाम आकर दिया पानी…

Jigyasa MishraJigyasa Mishra   29 Jun 2018 5:58 AM GMT

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लखीमपुर खीरी। लोहे के जालीदार गेट के बगल में एक जामुन का पेड़, जिससे 10 कदम अंदर बढ़ते ही अनार से लदे पेड़ से लेकर काफी दूर तक फैली घास की कालीन मन को मोह लेगी। दीवारों पर नक़्शे और भारतीय धरोहरों के पोस्टर्स और उनके चारों ओर खुशबू बिखेरते गमलों में लगे फ़ूल… यह नजारा शहर के किसी पार्क का नहीं, लखीमपुर जिले के प्राथमिक स्कूल का है। ये हरियाली और नजारा इसलिए भी खास है क्योंकि इसे सजाया संवारा है यहां के बच्चों ने।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 150 किलोमीटर दूर प्रदेश की तराई बेल्ट लखीमपुरखीरी में शहर से थोड़ा आगे ग्रामीण इलाके में राजापुर प्राथमिक विद्यालय है। इस विद्यालय में अंग्रेजी में लगा साइन बोर्ड भी इसे खास नहीं बनाता है, बल्कि यहां के अध्यापकों और बच्चों ने खुद के प्रयासों से विद्यालय को एक उदाहरण बना दिया है।



ज़्यादातर बच्चे मार्च-अप्रैल आते ही गर्मी की छुट्टियों की राह देखने लगते हैं, लेकिन इस स्कूल के कई बच्चे इन गर्मियों में लगातार स्कूल आते रहे। कक्षाएं भले नहीं लग रही थी, लेकिन ये बच्चे आते जरुर थे, किताबों के बस्ते के जगह बाल्टी और मग होता था, जिससे वो यहां लगे पौधों को पानी दें सकें। ताकि वह नन्हे पौधे जिन्हें छात्रों ने खुद अपने हाथों से रोपा था और अब पेड़ बनते देख सकें।

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"हम हर रोज़ स्कूल आए। हमें डर था की जो पौधे हमने छुट्टियों के पहले लगाए थे कहीं वो बिना पानी के सूख न जाए, इसलिए उनमे पानी डालने आते रहे। " सूरज (11 वर्ष) ने बताया।

खुद अपने बाल भी न बना पाने वाली, छह साल की सविता को अपने लगाए गुड़हल की कम चिंता न थी। सविता स्कूल में लगे हैंडपंप से अपने दोस्तों की सहायता से सुबह-शाम, छोटे गुड़हल और अन्य पौधों में पानी डालने आयी।

पौधों से कराई दोस्ती

सूरज और सविता की तरह स्कूल के करीब 2 दर्जन बच्चे गर्मियों में यूंही स्कूल के चक्कर लगाते रहे। आमतौर पर, बागवानी, सरकारी विद्यालयों के पाठ्यक्रम में नहीं होती है। लेकिन अगर शिक्षक खुद से चाहें तो बच्चों को किसी भी रुप में ढाला जा सकता है। राजापुर विद्यालय की विद्यालय की प्रधानाध्यापिका, ऋतु अवस्थी ऐसे शिक्षकों में से एक हैं। कक्षा एक से पांचवीं तक 201 छात्रों को अकेले संभाल रहीं ऋतु कहती हैं कि उन्होंने आसपास के बच्चों को कई बार जामुन, अनार और आम के पेड़ को तोड़ते देखा तो लगा कि अगर बच्चों को ही इनका पहरेदार बना दिया जाए तो न सिर्फ पेड़ बचेंगे बल्कि बच्चों को प्रकृति से लगाव होगा। क्योंकि हमारे स्कूल में न माली है और न ही सुरक्षाकर्मी।

दिव्यांग छात्र भी लेते हैं बराबर हिस्सेदारी

राजापुर स्कूल जिले के दो मॉडल अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में से एक है, यहां शारीरिक रुप से कई दिव्यांग बच्चे भी पढ़ते हैं। ये बच्चे भी दूसरे बच्चों के साथ स्कूल के हर कार्यक्रम में शामिल होते हैं।

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अंग्रेजी में प्रार्थना करने और अपना परिचय देने वाले यह बच्चे सामाजिक समानता की भी मिशाल बने हुए हैं। शुरू में जब मिड-डे-मिल खाने की बारी आती थी तो कुछ बच्चे खाना खाने के लिए घर से अपने अलग थाली और गिलास लाते थे। पूछने पर कई बच्चों ने बताया उनके अभिवावक ही उन्हें ऐसा करने को कहते हैं लेकिन अब तस्वीर बदल गई है।

रविवार को भी आना चाहते हैं बच्चे स्कूल

प्रधानाध्यापिका, ऋतु बताती हैं, ''2015 में जब यह विद्यालय अंग्रेजी माध्यम हुआ तो सिर्फ बहुत कम बच्चे आते थे। स्कूल आने वाले 99 फीसदी बच्चे के अभिभावक मजदूर हैं तो वो कई बार अपने बच्चों को भी खेत ले जाते थे, घर में काम कराते थे, ऐसे में उन्हें स्कूल बुलाना अपने आम में चुनौती थी, लेकिन पढ़ाने की नई-नई तरकीबें और उन्हें समझाने से सब आसान हो गया।''

वो मुस्कुराते हुए आगे बताती हैं, अब तो तस्वीर बदल गई हैं, अब बच्चे शनिवार को घर जाते वक़्त मायूस हो जाते हैं कि रविवार को विद्यालय बंद रहेगा।"

       

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