प्रकृति का पाठ पढ़ाता उत्तर प्रदेश के गाँव का एक सरकारी स्कूल

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के इस स्कूल में शिक्षकों ने दुर्लभ पौधों और जड़ी-बूटियों का उद्यान बनाया है, ऐसे पेड़-पौधे जिनके बारे में अब तक बच्चे सिर्फ किताबों में ही पढ़ते थे। बच्चों को अब इससे सीखने में भी आसानी हो गई है।

Virendra SinghVirendra Singh   17 April 2023 7:29 AM GMT

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करपिया (बाराबंकी), उत्तर प्रदेश। यह एक ऐसा स्कूल है जहां बच्चे प्रकृति से सीखते हैं। करपिया गाँव के कंपोसिट स्कूल के परिसर दुर्लभ जड़ी-बूटियों, पेड़-पौधों से भरा हुआ है, ऐसे पेड़-पौधे जो विलुप्ति के कागार पर हैं, या फिर किताबों के पन्नों पर दिखते हैं।

लेकिन, मसौली ब्लॉक, बाराबंकी, उत्तर प्रदेश में स्थित इस स्कूल में, बच्चे प्रकृति के तोहफों से घिरे हुए हैं, जिनसे वो बहुत कुछ सीखते हैं।

"मैं 2016 में इस विद्यालय में नियुक्ति हुई। उस समय विद्यालय में गिट्टी बालू का ढेर लगा हुआ था, कोई बाउंड्री वाल नहीं थी। जहां पर हम बच्चों को बैठा कर पढ़ा सके या कुछ भी एक्टिविटी विद्यालय के परिसर में कर सकें, "विद्यालय के प्रधानाध्यापक अवधेश कुमार पांडे ने गाँव कनेक्शन को बताया। "2016 में स्कूल में सिर्फ 90 बच्चे थे। आज वही 360 बच्चे हैं, "उन्होंने आगे कहा।

पंच पल्ल्व वाटिका में बैठे विद्यालय के प्रधानाध्यापक अवधेश कुमार पांडे

वो आगे कहते हैं, "हमारा ये प्रयास था कि विद्यालय का प्रवेश ऐसा हो जहां पर बच्चे आकर कुछ अच्छा महसूस कर सकें, इसलिए हमने ग्राम प्रधान से मिलकर कायाकल्प योजना के तहत विद्यालय की बाउंड्री बनवाई।"

एक बार स्कूल के परिसर को दीवार से सुरक्षित करने के बाद, यह निर्णय लिया गया कि उन सभी पौधों के साथ एक बगीचा बनाया जाएगा जो धीरे-धीरे गायब हो रहे थे। भृंगराज, एलोवेरा, कुसुम, आंवला, कालमेघ, तेजपत्ता, काली इलायची, दालचीनी आदि औषधीय पौधे हैं।

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रुद्राक्ष, महोगनी, सीता सिंदूरी, लाल और सफेद चंदन जैसे कुछ पौधे जो पूरी तरह से लुप्त होने के कगार पर हैं, वे भी वहां पर लगाए गए हैं।

"ये ऐसे पौधे हैं जो हमारे रीति-रिवाजों में शामिल हैं साथ ही किताबों में जिन पौधों का जिक्र होता है। उन सभी पौधों का सिलेक्शन हमने अपनी वाटिका में किया ताकि बच्चे जिन पौधों को किताबों में देखें उन्हें छू कर उनके पास बैठकर उन्हें महसूस कर सकें, "प्रधानाध्यापक ने आगे कहा।


"ये ऐसे पौधे हैं जो हमारी परंपराओं और संस्कृति का हिस्सा हैं और जो अब केवल पाठ्यपुस्तकों में पाए जाते हैं। इसलिए हमने उन्हें यहां लगाया। ताकि छात्र उन्हें अपने लिए देख सकें, उन पौधों को छू सकें और अनुभव कर सकें, ”प्रिंसिपल ने कहा। उन्होंने कहा, "हमारे स्कूल की दीवारें वैज्ञानिक दुनिया के दिग्गजों की छवियों से आच्छादित हैं, ताकि बच्चे जहां भी मुड़ें उन्हें प्रेरणा मिल सके।"

वो आगे कहते हैं, "हमारे विद्यालय में नवग्रह और पल्लव वाटिका के माध्यम से हम बच्चों को हमारे धार्मिक अनुष्ठानों से जोड़ने का प्रयास करते हैं, क्योंकि इनका प्रयोग हमारे धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता है।"

कक्षा चार का छात्र अंकित सिंह अपने स्कूल के बगीचे में औषधीय पौधों के बारे में देखते और समझते हैं। “हमारे परिसर में लगे औषधीय पौधों के बारे में भी हमारे अध्यापक हमें उनके महत्व और उनके गुणों के बारे में समझाते हैं, "अंकित ने गाँव कनेक्शन को बताया।

टीएलएम के फायदे

पांडे ने कहा कि स्कूल के शिक्षक शिक्षण अधिगम सामग्री (टीएलएम) का की मदद से शिक्षा को और बेहतर बना रहे हैं।

विद्यालय के सहायक अध्यापक संजय कुमार श्रीवास्तव बताते हैं, "हमारे विद्यालय ने एक बीड़ा उठाया है कि जो पहले कंसेप्ट में पढ़ाई की जाती थी उससे कुछ अलग हटकर किया जाएगा। कुछ नया जिसके तहत हम लोगों ने बच्चों के रूम को इस तरह से तैयार किया है कि अगर किसी क्षण अध्यापक कक्षा रूम में नहीं है तब भी बच्चे स्टडी करते रहें।"


अब शिक्षक नियमित रूप से पाठ्यक्रम आदि पूरा करने के साथ-साथ बच्चों को अधिक ध्यान देने को कहते हैं। "बच्चे जब घर से निकलते हैं विद्यालय आने के लिए तब उनसे सवाल पूछे जाते हैं कि आप घर से विद्यालय आने तक आपने क्या-क्या देखा और क्या-क्या सीखा बच्चे अपना जवाब विद्यालय में बनी पेटिका में डालते हैं, "श्रीवास्तव ने समझाया।

शिक्षकों ने कहा कि टीएलएम ने अद्भुत काम किया है और उनका दावा है कि वे अपने छात्रों में सुधार देख सकते हैं।

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