आदिवासी परिवारों के बच्चों की स्मार्ट क्लास, जहां प्रोजेक्टर जैसे माध्यमों से होती है पढ़ाई

उत्तर प्रदेश के आदिवासी बहुल ककरद गाँव में शिक्षा के महत्व के बारे में जागरूकता की कमी है, लेकिन वहां के एक प्रधानाध्यापक ने पढ़ाने तरीकों में स्मार्ट बदलाव लाए हैं जिससे बच्चों की संख्या तो बढ़ी ही है, साथ ही सीखने का माहौल भी बदल गया है।

Brijendra DubeyBrijendra Dubey   21 April 2023 6:07 AM GMT

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ककरद (मिर्जापुर), उत्तर प्रदेश। जिला मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में आदिवासी बहुल पटेहरा ब्लॉक में ककरद गाँव में है ये कंपोजिट स्कूल।

साल 2007 तक एक से आठ तक की कक्षाओं वाला स्कूल जर्जर अवस्था में था। कोई उचित कक्षाएं नहीं थीं, बच्चों की संख्या भी बहुत कम थी।

लेकिन, जब राजेंद्र सिंह अप्रैल 2007 में स्कूल आए, और इसके प्रधानाध्यापक के रूप में पदभार संभाला, तो उन्होंने ऐसी व्यवस्थाएं और शिक्षण विधियां स्थापित कीं, जो स्कूल में बदलाव की शुरूआत थी।


आज का स्कूल, पुराने वाले स्कूल से बहुत अलग है, बढ़िया क्लास चलती हैं, छात्रों के लिए साफ बाथरूम और खाने के लिए एक बड़ा सा हॉल है। स्कूल में छात्रों को अंग्रेजी और हिंदी दोनों में पढ़ाया जाता है।

“जब मैं 2007 में यहां आया था, तब इस स्कूल में केवल 77 बच्चे थे। लेकिन आज 226 बच्चे पूर्व माध्यमिक विद्यालय में और प्राथमिक विद्यालय में 271 बच्चे हैं, "53 वर्षीय राजेंद्र सिंह गांव कनेक्शन को बताते हैं।

“इस आदिवासी बहुल क्षेत्र में बहुत सारी चुनौतियाँ हैं। सबसे बड़ी समस्याओं में से एक यह है कि बच्चों के अभिभावक जागरूक नहीं हैं, ”प्रधानाध्यापक ने कहा। लेकिन अब, स्कूल द्वारा माता-पिता को नियमित अभिभावक शिक्षक बैठकों के लिए आमंत्रित करने से स्थिति में सुधार हो रहा है।

राजेंद्र सिंह ने कहा, "कई माता-पिता स्कूल नहीं गए हैं या कम से कम आठवीं तक ही पढ़े हैं।"


“हमें कभी-कभी बच्चों को स्कूल लाने के लिए उनके घर जाना पड़ता है। कभी-कभी वे अपने माता-पिता की मदद करने के लिए बाहर जाते हैं। लेकिन, हमने स्कूल को अधिक से अधिक नियमित रूप से स्कूल आने के लिए प्रेरित करने के लिए यथासंभव आकर्षक बनाने की कोशिश की है, ”प्रधानाध्यापक ने कहा।

“हर कमरे में फर्श पर चमचमाती टाइल्स, दीवारों पर शानदार पेंटिंग और हर कमरे में पंखे लगे हैं। सरकार के माध्यम से बच्चों के बैठने के लिए सीटों का इंतजाम किया। हम लोग एक-एक बच्चे पर ध्यान देते हैं।" हम लोग एक-एक बच्चे पर ध्यान देते हैं। हमारी कोशिश रहती है कि कोई भी बच्चा पढ़ाई में पीछे न रह जाए, "उन्होंने आगे कहा।

राज्य सरकार ने 2019 में इसे इंग्लिश मीडियम स्कूल बना दिया था। स्कूल को प्रोजेक्टर दिया गया था ताकि शिक्षक इसे शिक्षण सहायक के रूप में इस्तेमाल कर सकें। राजेंद्र सिंह ने कहा, "बच्चों को जटिल अवधारणाओं आदि को समझाने के लिए हम कार्टून और अन्य वीडियो क्लिपिंग की मदद लेते हैं।"

स्कूल में चार सरकारी शिक्षक हैं, दो शिक्षा मित्र हैं जो शिक्षकों की सहायता करते हैं, और एक अनुदेशक जो स्कूल में पाठ्येतर गतिविधियों जैसे कला, कंप्यूटर, शारीरिक प्रशिक्षण आदि का ध्यान रखते हैं।

अंशु शुक्ला, "जब हम शिक्षक के माध्यम से पढ़ाई करते हैं तो कुछ समझ में आ जाता है लेकिन जब वही चीज स्मार्ट क्लास प्रोजेक्टर के माध्यम से पढ़ते हैं, तो वीडियो को आगे पीछे करके अच्छे से उस चीज को आसानी से समझ लेते हैं, "आठवीं कक्षा की छात्रा अंशु ने बताया। "शिक्षक नहीं भी रहते है तो स्मार्ट क्लास में वीडियो के माध्यम से हम अपना पढ़ाई भी कर सकते हैं, "अंशु ने आगे कहा।


सबसे बड़ी चुनौती बच्चों को नियमित रूप से स्कूल लाना है। और, इससे उनकी शिक्षा पर असर पड़ता है, "स्कूल के शिक्षक संतोष कुमार दुबे ने गाँव कनेक्शन को बताया।

दुबे ने कहा कि त्योहारों के दौरान अनुपस्थिति तब अधिक होती है जब बच्चे त्योहार के कुछ दिन पहले और उसके बाद भी आना बंद कर देते हैं। लेकिन शिक्षक ने कहा कि यह ऐसी परिस्थितियां भी थीं जिसके कारण बच्चे नियमित रूप से स्कूल नहीं जा रहे थे।

“उदाहरण के लिए, इन दिनों महुआ गिर रहा है और गेहूं कटाई के लिए तैयार है और बड़े आदमी और औरतें सभी खेतों और जंगलों में हैं। इसलिए, इनमें से कई बच्चों को अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल के लिए घर पर ही रहना पड़ता है। यह एक जिम्मेदारी है जिससे वे बच नहीं सकते, ”दुबे ने समझाया।

फिर भी, जब बच्चे स्कूल आते हैं, तो उनके शिक्षक यह सुनिश्चित करते हैं कि उन्हें सर्वोत्तम संभव शिक्षा प्राप्त करने के लिए सभी प्रोत्साहन, प्यार और सुविधाएं दी जाएं, दुबे ने कहा।

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