मुख्यमंत्री जी, प्रदेश में पशु चिकित्सा केंद्रों का हाल देखिए

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मुख्यमंत्री जी, प्रदेश में पशु चिकित्सा केंद्रों का हाल देखिएजर्जर हालत में है गोंडा जिला स्थित वजीरखंड विकासखंड का पशु चिकित्सालय,    

स्वयं प्रोजेक्ट टीम

लखनऊ। जहां एक ओर गोरक्षा के नाम पर जगह-जगह आंदोलन हो रहे हैँ, वहीं इन पशुओं को बीमारियों से बचाने और नस्ल सुधार के लिए गाँवों में स्थित पशु अस्पतालों का हाल यह है कि कहीं बिल्डिंग खस्ताहाल है, तो कहीं महीनों से डॉक्टर ही नहीं जा रहे।

बारिश के मौसम में जब पशुओं को कई बीमारियों का डर होता है, ऐसे में पशु चिकित्सा का हाल जानने के लिए 'गाँव कनेक्शन' ने 13 जिलों में पड़ताल की तो हालात बदतर ही दिखे।लखनऊ जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर की दूर मोहनलालगंज तहसील के समेसी गाँव में पशु चिकित्सालय तो बना है, लेकिन यहां मौरंग-बालू डंप होता है और बेचा जाता है। डॉक्टर चार वर्ष से अस्पताल पहुंचे ही नहीं है।

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इसकी शिकायत कई बार की गई, फिर भी कार्रवाई नहीं हुई। समेसी गाँव के पूर्व प्रधान पुतान ने कहा, "मेरे कार्यकाल में तो ये सेंटर खुला ही नहीं, कई बार प्रयास किया। अभी शिकायत पर दो तीन अधिकारी आए थे, पर खानापूर्ति करके चले जाते हैं।" समेसी गाँव के ही दिलीप कुमार कहते हैँ, "चार वर्ष से डॉक्टर नहीं बैठ रहे, काफी शिकायत करने के बाद छह-सात दिन से बैठने लगे हैं।" प्रदेश सरकार ने पशु चिकित्सा का हाल सुधारने के लिए गाँवों में सचल मोबाइल वैन शुरू करने के साथ ही पशु चिकित्सालयों में डॉक्टरों का बैठना भी सुनिश्चित करने की बात कही थी, लेकिन इसका असर इन डॉक्टरों पर होता नहीं दिख रहा।

उत्तर प्रदेश पशुपालन विभाग के अनुसार प्रदेश में 2,200 पशु चिकित्सालय, 2,575 पशु सेवा केंद्र और 5,043 कृत्रिम गर्भाधान केंद्र हैं। नेशनल सेंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन (एनएसएसओ) की रिपोर्ट के अनुसार, देश में 6.02 करोड़ परिवारों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से पशु धन पर असर डालती है।

इस बारे में प्रमुख सचिव पशुधन डॉ. सुधीरएम बोबडे ने बताया, "कई जगहों पर काफी समय से तैनात डॉक्टरों को हटाया गया है। बस तीन साल ही एक जिले में डॉक्टर रह सकता है। डॉक्टरों की उपस्थिति को देखने के लिए जिओ टैगिंग की व्यवस्था की जाएगी। डॉक्टर चिकित्सालयों में उपलब्ध हैं या नहीं, इसके लिए ऑनलाइन उपस्थिति का इंतजाम किया जाना है।" उन्होंने आगे कहा, "जहां-जहां फार्मासिस्ट, पशु चिकित्सक, पशुधन प्रसार अधिकारी की कमी है, इसकी लिस्ट तैयार करके कमी को पूरा किया जाएगा।"

19वीं पशुगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश में 4.75 करोड़ पशु हैं। पूरे देश में 30 करोड़ गाय-भैंसों में से लगभग 70 फीसदी बहुत कम आय वाले परिवारों के पास हैं। देश के दुग्ध उत्पादन का लगभग 80 फीसदी हिस्सा इन्हीं कम आय वाले परिवारों से आता है।शाहजहांपुर जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर कांट ब्लॉक के कुररौली गाँव के रामकांत यादव बताते हैं, ''पशु जब बीमार पड़ता है तो हम डॉक्टर को फोन करते हैं, 'तो वो आ रहे हैं' कह के टाल देते हैं, और आते नहीं। इसलिए हमें ज्यादा पैसे देकर प्राइवेट में इलाज कराना पड़ता है।"

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इससे पहले गाँव कनेक्शन से बात करते हुए यूपी के पशुधन मंत्री ने कहा था, "पशु चिकित्सालयों की बदहाल स्थिति और पशु चिकित्सकों की कमी को दूर करने के लिए इसी वर्ष 195 पॉलीक्लिनिक खोले जाएंगे, जहां पर गर्भाधान, वैक्सीनेशन के साथ एक्स-रे मशीन, ऑपरेशन किया जाएगा। इसके साथ ही ग्रामीणों तक योजनाओं का लाभ पहुंचाने के लिए एक टोल फ्री नंबर की शुरुआत की जाएगी।"

वहीं बागपत जिले के खेकड़ा गाँव के पशुपालक संजय कुमार (47 वर्ष) बताते हैं, "हमारे पशु बीमार चल रहे थे, लेकिन डॉक्टर नहीं होने की वजह से फार्मासिस्ट ने पशु का चेकअप कर लिया और दवाई की गोलियां भी मिल गईं। हमें बताया कि डॉक्टर फील्ड में किसी चुनावी ड्यूटी में गए हैं।"

पशुधन प्रमुख सचिव डॉ. सुधीरएम बोबडे बताते हैकई जगहों पर काफी समय से तैनात डॉक्टरों को हटाया गया है। बस तीन साल ही एक जिले में डॉक्टर रह सकता है। डॉक्टरों की उपस्थिति को देखने के लिए जिओ टैगिंग की व्यवस्था की जाएगी। डॉक्टर की ऑनलाइन उपस्थिति का इंतजाम किया जाएगा।

डॉक्टरों व फार्मासिस्टों को नहीं है परवाह, दर-दर भटकने को मजबूर हैं ग्रामीण

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

गोरखपुर। सीएम के शहर की पशु चिकित्सा व्यवस्था बदहाल है। डॉक्टर व फार्मासिस्ट मौज कर रहे हैं। कोई भी पशु चिकित्सक समय से चिकित्सालय नहीं पहुंच रहा है। यह बात इसलिए पुख्ता होती है कि दस बजे के बाद ही डॉक्टर अस्पताल पहुंचते हैं। सोमवार को गाँव कनेक्शन टीम ने जिले के विभिन्न पशु चिकित्सालय केंद्रों का दौरा किया जहां पर कई अजीबोगरीब स्थिति देखने को मिली।

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राजकीय पशु चिकित्सालय खोराबार में सुबह आठ से दस के बीच में सिर्फ चपरासी व सचल दल की गाड़ी के ड्राइवर ही मौजूद थे। डॉ. बीके सिंह व वेटनरी फार्मासिस्ट केपी सिंह की कुर्सी खाली पड़ी थी। चपरासी मेवालाल ने बताया कि डॉक्टर साहब अभी आने ही वाले हैं। दस बजकर कुछ मिनट पर दोनों लोग आ गए। बात चली तो डॉ. बीके सिंह व फार्मासिस्ट केपी सिंह बोलने लगे की मरीज देखने गए थे।

पूछा गया कि क्या आप गए थे तो रजिस्टर में कहीं दर्ज किया है। मरीजों के हित में जाना पड़ता है। इतने में झंगहा केंद्र के भी डॉक्टर यहीं पर आ गए। इससे अंजादा लगाया जा सकता है कि झंगहा केंद्र पर क्या हो रहा होगा। खोराबार केंद्र परिसर में चारों तरफ झाड़ियां उगी हुई हैं। पशुओं के इलाज की व्यवस्था बदहाल पड़ी है। इसी प्रकार सरदारनगर, चरगावां, ब्रह्मपुर, बड़हलगंज सहित विभिन्न केंद्रों पर टीम ने दौरा किया। यह सब नजारा देखने के बाद कहा जा सकता है कि जिले की पशु चिकित्सालय की व्यवस्था रोगी हो चुकी है। इसके इलाज की दरकार है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि जब सीएम के जिले की यह हालत है तो प्रदेश के अन्य जिलों का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।

डॉ. केपी सिंह, मुख्य पशु चिकित्साधिकारी, गोरखपुर ने कहा कि सभी डॉक्टर व कर्मचारी को समय से अस्पताल आने के कड़े निर्देश हैं। इसमें किसी भी प्रकार की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। शीघ्र ही निरीक्षण कर चेक करूंगा। पशुओं के इलाज के केंद्र पर पुख्ता इंतजाम हैं। अगर कहीं कोई कमी है तो मीडिया हमें बताए दूर करने का प्रयास किया जाएगा।

पशु चिकित्सकों की भी कमी

जिले में कुल 52 पशु चिकित्सा केंद्र हैं। इनमें पहले से दस के करीब डॉक्टरों की कमी चली आ रही थी। इसके लिए मांग भी विभागीय स्तर पर चल रही थी। इसी बीच शासन स्तर से करीब डॉक्टरों का अचानक तबादला कर दिया गया। फिलहाल जिले में 32 के करीब डॉक्टर हैं। ऐसे में वायरल के प्रकोप से पशुओं को होने वाले रोग पर कैसे काबू पाया जाएगा, यह बड़ी समस्या है।

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प्रधानमंत्री के क्षेत्र में जैसा चाहिए, वैसा ही मिला

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

वाराणसी। पीएम के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में पशु चिकित्सालय की स्थिति जैसी होनी चाहिए, वैसी ही देखने को मिली। सोमवार को गाँव कनेक्शन की टीम करीब दस बजे सबसे पहले ब्लाक स्थित राजकीय पशु चिकित्सालय एवं अतिहिमीकृत वीर्य केंद्र पहुंची। जहां पर सबसे पहला कमरा पशु चिकित्साधिकारी अरुण कुमार सिंह का है, लेकिन कुर्सी खाली थी।

पूछने पर वहां मौजूद फार्मासिस्ट वंशीधर सिंह बताते हैं, "साहब के परिवार में अचानक किसी की मृत्यु हो गई, इसलिए वे चुनार चले गए हैं। उपस्थिति रजिस्टर का अवलोकन करने पर टोटल चार कर्मचारियों के आने का समय लगभग आठ बजे दर्ज था।" बुखार से पीड़ित बकरी के बच्चे का इलाज कराने आए पशुपालक विवेक पाल (21 वर्ष) बताते हैं, "यहां के सभी कर्मचारी अच्छे हैं और बेहतर इलाज होता है। बहुत दूर से भी लोग यहां जानकारों के इलाज के लिए आते हैं।"

पशु चिकित्सालय परिसर खण्डहर में तब्दील

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

बहराइच। पशुओं के उपचार के लिए जाना जाने वाला चिकित्सालय की हालत बेहद ही जर्जर हो चुकी है। गाँव कनेक्शन की टीम जब पड़ताल करने यहां पहुंची तो निश्चित समय प्रातः आठ बजे पशु चिकित्सालय में न तो कोई कर्मचारी मौजूद था और न ही पशु चिकित्साधिकारी से मुलाकात हो सकी। बतातें चले किसी की उपस्थिति न होने पर पशु चिकित्साधिकारी से सम्पर्क किया गया लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका।

समय पर मिल रहा पशुओं को इलाज

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

कानपुर। कानपुर नगर जिले में स्थित पशु चिकित्सालय सुबह 8 बजे खुल जाते हैं चाहे वह बिल्हौर ब्लॉक का राजकीय पशु चिकित्सालय हो या चौबेपुर ब्लॉक का पशु चिकित्सालय।

चौबेपुर ब्लॉक के पशु चिकित्सक डॉ. गोविंद बताते हैं, "ग्रामीण क्षेत्र होने के कारण यहां के लोग पशु चिकित्सक पर ही निर्भर रहते हैं और दवाइयों की उपलब्धता समय पर हो जाती है, चिकित्सालय खुलने का समय 8 से 2:30 बजे तक रहता है, लेकिन हम लोगों को 3 से 4 बजे तक भी रुकना पड़ जाता है।"

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वहीं कानपुर नगर में स्थित पशु चिकित्सालय के डॉ. विनोद बताते हैं, "शहरी क्षेत्र में चिकित्सालय में सबसे ज्यादा लोग अपने पालतू जानवरों को लेकर आते हैं, जिसमें ज्यादा संख्या कुत्तों की होती है, लेकिन विभाग द्वारा कुत्तों का पर्चा तो 10 रुपए का बनाया जाता है, लेकिन उनके लिए दवाएं एक पैसे की भी उपलब्ध नहीं होती हैं। ऐसे में लोगों को यह लगता है कि डॉक्टर साहब दवाएं नहीं देते हैं यह एक प्रमुख समस्या है क्योंकि जहां एक ओर बकरी का पर्चा दो रुपए, गाय-भैंस का पांच रुपए में बनता है। वहीं कुत्ते का पर्चा 10 रुपए में बनता है और कुत्तों के लिए दवाएं भी बाहर से लिखनी पड़ती हैं।"

जर्जर भवन कभी भी हादसे का बन सकता है कारण

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

सोहरामऊ (उन्नाव)। कस्बे का पशुचिकित्सालय बड़े ही जर्जर भवन में संचालित हो रहा है। इस भवन में जगह -जगह पर प्लास्टर टूटा है। अपने पशुओं का इलाज कराने आए कई लोग घायल हो चुके हैं। कस्बे के सुभाष गुप्ता अपनी बीमार भैंस का इलाज कराने पशुचिकित्सालय आए थे तभी भवन की छत से टूटकर गिरे प्लास्टर की चपेट मे आकर घायल हो गए थे। यहां तैनात डॉ. धनेश कुमार से बातचीत करने पर उन्होंने बताया, "भवन की हालत बहुत ही कंडम है। बरसात के मौसम में किसी भी दसा में इसमें बैठा नहीं जा सकता।"

दस हजार पशुओं के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी, भवन की लाचारी

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

गोंडा। मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर विकास खंड वजीरगंज विकास खंड का पशु चिकित्सालय की हालत खराब है, लेकिन पशुपालन विभाग के अधिकारी ध्यान नहीं दे रहे हैं।

यहां तैनात डॉ. आरएस मिश्र का कहना है, "इसकी सूचना विभाग को दे दी गई है। विभाग अगली प्रक्रिया कर भवन को कंडम घोषित कर देगा तभी नए भवन का बजट मिल पाएगा। भवन मिलने से पशुओं की स्वास्थ्य सेवाओं में इजाफा होगा।"

चिकित्सालय में समय से आते हैं डॉक्टर, मिलती है दवा

स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट

रायबरेली। रायबरेली जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर बछरावां ब्लाक के पशु चिकित्सालय की स्थिति काफी अच्छी है वहां डॉक्टर समय से आ जाते हैं और सुबह के आठ बजे से ही पशुपालक अपने जानवरों की दवा लेने के लिए आने लगते हैं। भैंस के लिए दवा लेने आए रविकांत गुप्ता बताते हैं, "हम जब भी आते हैं डॉक्टर साहब यहां मिलते हैं। आसानी से दवा भी मिल जाती है। अभी तक तो हम को कोई दिक्कत नहीं महसूस हुई।"

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जिले के पशुपालकों को नहीं होती परेशानी

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

जौनपुर। शासन की मंशा के अनुरूप जौनपुर जिले में पशुओं का इलाज भी बेहतर हो रहा। मछलीशहर ब्लॉक के निवासी अखिलेश सिंह (36 वर्ष) का कहना हैं, "हमारे जानवरों को टीकाकरण समय पर हो जाता है।"

करंजाकला ब्लॉक निवासी आसिफ (57 वर्ष) कहना हैं, "पशुओं के इलाज की जो सेवाएं उपलब्ध हैं। पशुपालक उससे संतुष्ट हैं।" उपमुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. एसके अग्रवाल बताते हैं, "पशुओं को बीमारी से बचाने के लिए उसका टीकारण समय पर किया जाता है।"

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अस्पतालों में हर रोज नहीं पहुंचते डॉक्टर

स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट

सकरावा (कन्नौज)। पशु चिकित्सालयों में मवेशियों का इलाज डॉक्टर कम कर्मचारी अधिक करते हैं। हर रोज व समय से डॉक्टर ग्रामीण इलाकों के अस्पतालों में नहीं पहुंचते हैं। शनिवार को 'गाँव कनेक्शन' ने राजकीय पशु चिकित्सालय एवं कृत्रिम गर्भाधान केंद्र डडौनी, सौरिख पहुंचकर जमीनी हकीकत परखी। यहां मौके पर डॉक्टर नहीं थे। ड्रेसर रामेंद्र सिंह बताते हैं, ''डॉ. एसबी शर्मा की तैनाती है। वह पशुओं के बीमा का पैसा जमा करने गए हैं।'' अस्पताल में चहारदीवारी नहीं है। यहां लाइट व पानी नहीं थी। रामेंद्र आगे बताते हैं, ''बहुद्देशीय सचल वाहन सौरिख ब्लाक क्षेत्र में एक ही है।''

हसनपुर के निवासी दिनेश उर्फ पप्पू (42 वर्ष) कहते हैं, ''डॉक्टर कभी-कभी आते हैं। कभी-कभी नहीं आते हैं।'' इसी गाँव के सरनाम सिंह (43 वर्ष) बताते हैं, ''जब जरूरत होती है तो वाहन से फायदा मिला है।'' वहीं तिलक सिंह (60 वर्ष) का कहना है, ''पशुओं की समस्याओं का निदान हो जाता है।'' इस बाबत सीवीओ डॉ. वीके त्रिवेदी का कहना है, ''तीन डॉक्टरों का तबादला हो गया है। उनके स्थान पर तीन नए डॉक्टर आ रहे हैं। पशुओं के इलाज में किसी प्रकार की दिक्कत नहीं है।''

डॉक्टर रहे नदारद, बहुउद्देशीय सचल वाहन भी पूरी तरह दम तोड़ चुका

स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट

बागपत। पशुपालन को लेकर शासन की ओर से तरह-तरह की योजनाएं चलाई जा रहीं हैं फिर भी विभागीय उदासीनता के चलते चिकित्सालय के भवनों की हालत पूरी तरह से जर्जर है। बागपत तहसील मुख्यालय का पशु चिकित्सालय की हालत तो ठीक मिली, लेकिन वहां की सुविधाएं दम तोड़तीं दिखीं।

जब गाँव कनेक्शन की टीम 8.30 बजे चिकित्सालय पहुंची तो आनन-फानन में लोग अपनी सीट पर जाकर बैठे। डॉक्टर के बारे में पूछा गया तो एक साहेबान ने कहा डॉक्टर फील्ड में हैं। जब मुख्य पशुचिकित्साधिकारी से पूछा गया कि बहुउद्देशीय सचल वाहन की हालत बहुत जर्जर है तो उन्होंने गोलमोल जवाब देते हुए बताया, "हमने शासन को एक चिट्ठी दे रखी है। जल्द ही हमें वाहन मिल जाएंगे।" पशुपालक अफजल अहमद (68 वर्ष) बताते हैं, "हम कल ही अपना पशु लेकर अस्पताल गए थे, लेकिन डॉक्टर नहीं मिलने पर हमें भेज दिया गया और कहा डॉक्टर कल सुबह आएंगे तब आप आना।"

आठ वर्षों से ड्यूटी पर ही नहीं गए पशुधन प्रसार अधिकारी

स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट

लखनऊ। यूपी में सरकार भले ही बदल गई हो लेकिन अफसरों को रवैया अभी भी नहीं बदला। आपको हैरानी होगी कि पशुचिकित्सा विभाग के एक पशुधन प्रसार अधिकारी आठ वर्षों से ड्यूटी पर ही नहीं गए।

राजधानी लखनऊ जिला मुख्यालय से 35 किमी की दूरी पर बसे विकास खंड मोहनलालगंज के सिसेंडी कस्बे के अन्तर्गत ग्राम जबरौली में जब गाँव कनेक्शन के संवाददाता ने पड़ताल की तो गाँव के काली प्रसाद (50 वर्ष) बताते हैं, "8-10 साल से यहां कोई डॉक्टर नहीं आया है। हम लोग अपने जानवरों को मजबूरी में प्राइवेट डॉक्टरों को दिखाना पड़ता हैं।" जबरौली के ग्राम प्रधान रमेश चंद्र गौड़ (55 वर्ष) ने बताया, "हमारे गाँव की आबादी लगभग सात हजार है और यहां पर पशुओं की संख्या लगभग छह सौ है।

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यहां पर कहने को तो पशुचिकित्सालय है पर दरवाजे, खिड़की उखड़ी पड़ी हैं, गंदगी घर बन गया है।" अपनी बात को जारी रखते हुए ग्राम प्रधान ने बताया, "मैंने कई बार शिकायत की उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। हां, इतना जरूर हो गया कि गुरुवार-शुक्रवार को एक डॉक्टर साहब आ जाते हैं।"इस विषय मे मंडल निदेशक रुद्र प्रताप से मिलने के लिए दो बार संवाददाता द्वारा समय मांगा गया, लेकिन रुद्र प्रताप नहीं मिले। फोन पर बात के दौरान रुद्र प्रताप ने कहा, "वहां जनता को दिक्कत नहीं है आप अनावश्यक नेतागिरी मत करो।"

पशु चिकित्सकों को घर बुलाकर इलाज कराना पड़ता है महंगा

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

ललितपुर। बुंदेलखंड में पशु चिकित्सालयों पर पशुओं के निःशुल्क उपचार की व्यवस्था है, लेकिन समय पर डॉक्टर नहीं मिलते, अगर डॉक्टर को घर बुलाओ तो अलग से फीस देनी पड़ती है और दवा बाजार से खरीदनी पड़ती है।

ललितपुर जनपद में 19 पशु चिकित्सालय पर 17 पशु चिकित्सक तैनात हैं। वहीं 29 उप पशु केन्द्रों में से 12 संचालित हैं। बाकी चिकित्सकों के अभाव में खुलते भी नहीं। ऐसे पशुपालकों को उचित समय पर इलाज नहीं मिल पाता।

नियम के अनुसार पशु चिकित्सालयों का खुलने का समय सुबह आठ से ढाई बजे तक रहता है, लेकिन ऐसे कम ही चिकित्सक हैं जो समय पर मिलते हैं। ललितपुर जनपद से 52 किमी बार ब्लाँक के दिदौरा गाँव के पहाड़ सिंह (54 वर्ष) बताते हैं, "गाँव में काफी दुधारू पशु हैं, मौसम परिवर्तन के दौरान तमाम तरह की बीमारियां फैलती हैं। पशु चिकित्सक से तुरन्त इलाज नहीं मिलता। चिकित्सक कभी अस्पताल में नहीं मिलते।"

रिपोर्टिंग टीम

कन्नौज-रवीन्द्र सिंह, बागपत-मोहित सैनी, लखनऊ-आशीष यादव, एटा-मो. आमिल, जौनपुर-खादिम अब्बास, कानपुर-राजीव शुक्ला, गोरखपुर-जितेन्द्र तिवारी, ललितपुर-सुखवेन्द्र सिंह, मेरठ-सुंदर चंदेल, बहराइच-रोहित श्रीवास्तव, गोंडा-हरिनारायण शुक्ला, उन्नाव-श्रीवत्स अवस्थी, वाराणसी-विनोद शर्मा और रायबरेली-लोकेश मंडल शुक्ला।

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