गाँव कनेक्शन की मुहिम ने यहाँ बदल दी माहवारी को लेकर ग्रामीण महिलाओं की सोच

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गाँव कनेक्शन की मुहिम ने यहाँ बदल दी माहवारी को लेकर ग्रामीण महिलाओं की सोचअब माहवारी को लेकर यहां की महिलाओं की सोच में काफी बदलाव आया है।

सिद्धार्थनगर। कुछ वक्त पहले तक जिन ग्रामीण महिलाओं को सैनिटरी नैपकिन ख़रीदना गैर ज़रूरी लगता था, गाँव कनेक्शन द्वारा चलाए गए माहवारी जागरूकता कार्यक्रम के बाद अब उनमें एक बदलाव आया है। ये महिलाएं अब माहवारी के दिनों में सैनिटरी नैपकिन की अहमियत को समझ गई हैं। गाँव कनेक्शन की इस मुहिम को चलाने वाली सिद्धार्थनगर के भरौली गाँव की कम्यूनिटी जर्नलिस्ट त्रिशला पाठक बताती हैं कि अब माहवारी को लेकर यहां की महिलाओं की सोच में काफी बदल गई है।

28 मई को विश्व माहवारी स्वच्छता दिवस पर गाँव कनेक्शन ने उत्तर प्रदेश के 25 ज़िलों में एक जागरूकता कार्यक्रम चलाया था। इस कार्यक्रम में प्रदेश के विभिन्न ज़िलों के गाँवों में महिलाओं को माहवारी के दौरान स्वच्छता बरतने, सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करने और इसके बारे में समझाने के लिए वर्कशॉप आयोजित की थीं। इन वर्कशॉप में ग्रामीण महिलाओं बढ़ चढ़कर ने हिस्सा लिया था। गाँव कनेक्शन ने जागरूकता कार्यक्रम में शामिल होने वाली महिलाओं को सैनिटरी नैपकिन भी बांटे थे ताकि वो समझ सकें कि माहवारी के दौरान इनका इस्तेमाल करने से किस तरह से स्वच्छता और स्वास्थ्य का ख्याल रखा जा सकता है।

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इसी क्रम में सिद्धार्थनगर के भरौली गाँव में भी गाँव कनेक्शन ने जागरूकता कार्यक्रम आयोजित कर महिलाओं को मुफ्त में सैनिटरी नैपकिन बांटे थे। इसके बाद वहां के कई महिलाओं की सोच में बदलाव आया। गाँव कनेक्शन की कम्यूनिटी जर्नलिस्ट त्रिशला पाठक के सहयोग से इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। त्रिशला बताती हैं कि वो अपने गाँव की महिलाओं को पहले भी सैनिटरी नैपकिन की ज़‍रूरत के बारे में बताने की कोशिश करती थीं लेकिन महिलाओं को ये लगता था कि वो अपने पैसे सैनिटरी नैपकिन जैसी गैर ज़रूरी चीज़ में बर्बाद नहीं करेंगी।

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वो त्रिशला की बातों को अनदेखा कर उनका मज़ाक भी उड़ाती थीं कि गाँव की लड़की माहवारी जैसी विषय पर बात क्यों कर रही है? त्रिशला बताती हैं कि गाँव कनेक्शन के माहवारी जागरूकता कार्यक्रम के बाद गाँव की महिलाओं की सोच उनके प्रति बदल चुकी है। जब महिलाओं ने कार्यक्रम में बांटे गए सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल किया तब उन्हें समझ आया कि माहवारी के दिनों में भी यह किस तरह से सफाई और स्वास्थ्य के लिहाज से अच्छा है। अब गाँव की महिलाएं त्रिशला का मज़ाक नहीं उड़ातीं बल्कि उनके प्रयासों की सराहना करती हैं।

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