इस स्कूल के बच्चे पढ़ाई के साथ ही खेल-कूद में भी हैं आगे

यहां के बच्चों से कोई भी सवाल पूछो उसका जवाब तुरंत मिल जाएगा। ऐसा कम ही परिषदीय विद्यालयों में देखने को मिलता है। शिक्षा की गुणवत्ता हो या छात्र संख्या, कई मायनों में यह विद्यालय खास है।

Arvind Singh ParmarArvind Singh Parmar   25 Aug 2018 10:25 AM GMT

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इस स्कूल के बच्चे पढ़ाई के साथ ही खेल-कूद में भी हैं आगे

महरौनी (ललितपुर)। दस साल का प्रिंस अंग्रेजी में अपना परिचय देता है। उनको 40 से लेकर 100 तक का पहाड़ा याद है। वह अपने जिले, प्रदेश और देश के बारे में कई जरूरी बातें जानता है। मसलन उनको प्रधानमंत्री और कई प्रदेशों के मुख्यमंत्री तक के नाम पता हैं। प्रिंस बुंदेलखंड के ललितपुर जिले के कन्या प्राथमिक विद्यालय में पढ़ता है।

ललितपुर जिला मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दूर महरौनी ब्लॉक के कन्या प्राथमिक विद्यालय, छपरट के ज्यादातर बच्चे प्रिंस की तरह हैं। यहां के बच्चों से कोई भी सवाल पूछो उसका जवाब तुरंत मिल जाएगा। ऐसा कम ही परिषदीय विद्यालयों में देखने को मिलता है। शिक्षा की गुणवत्ता हो या छात्र संख्या, कई मायनों में यह विद्यालय खास है।

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प्रिंस समेत कई छात्र-छात्राएं पहले प्राइवेट स्कूल में पढ़ते थे। कक्षा चार में पढ़ने वाले प्रिंस बताते हैं कि वहां पर अच्छी पढ़ाई नहीं होती थी, मास्टर साहब अच्छा पढ़ाते भी नहीं थे। जब से यहां नाम लिखाया तब से बहुत कुछ सीख गये हैं। भाग, गुणा, अंग्रेजी, सामान्य ज्ञान सहित सभी विषयों की जानकारी मिली है। अच्छी शिक्षा हासिल करने के लिए ज्यादातर बच्चों ने प्राइवेट स्कूल छोड़ इस स्कूल में दाखिला ले लिया।


रंग लाई अध्यापकों की मेहनत

कक्षा पांच में पढ़ने वाली 11 साल की रचना बताती हैं कि पहले पढ़ाई में मन नहीं लगता था, इस स्कूल में दाखिला लेने के बाद मेरा मन पढ़ने में लगने लगा। अब रोज स्कूल आती हूं, कुछ न कुछ नया सीखने को मिलता है। इसका श्रेय जाता है यहां के अध्यापकों को। 2009 में आफताब अहमद ने जब प्रधानाध्यापक का पदभार ग्रहण किया उस समय 140 छात्रों का नामांकन था जो अब बढ़कर 180 हो गया है।

अध्यापकों ने लगातार प्रयास किया कि विद्यालय में शिक्षा का स्तर सुधारा जाए। शिक्षा को आसान और दिलचस्प बनाया जाए जिससे बच्चों का मन पढ़ाई में लगे। हिन्दी, गणित, विज्ञान, सामान्य ज्ञान जैसे कई विषय यहां आसान भाषा में पढ़ाए और समझाए जाते हैं। इसी का नतीजा है कि अब इलाके का कोई बच्चा प्राइवेट स्कूल नहीं जाता है। अफताब अहमद बताते हैं, इससे पहले बच्चे महरौनी के प्राइवेट स्कूलों में जाते थे, अब उनका नामांकन इस विद्यालय में है। पिछले कुछ सालों से एक भी बच्चा महरौनी के किसी भी प्राइवेट स्कूल में नहीं गया है। सारे बच्चों का नामांकन यहीं होता है।

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पाठ्यक्रम डायरी से होती है पढ़ाई

विद्यालय में सभी विषयों की एक पाठ्यक्रम डायरी है। हर साल इस डायरी के हिसाब से पढ़ाया जाता है। हालांकि साल दर साल छात्रों के हिसाब से डायरी में कुछ बदलाव भी किए जाते हैं। प्रधानाध्यापक आफताब अहमद बताते हैं, स्टाफ ने कक्षा 1,2,3,4,5 की सामग्री तैयार की है। बच्चों के मानक के अनुसार कितना ज्ञान देना हैं, उसी हिसाब से पाठ्यक्रम डायरी तैयार हुई है। इसके साथ-साथ रोज प्रत्येक अध्यापक जो पढ़ाता है वह भी शिक्षक डायरी में अंकित होता है। जिससे पाठ्यक्रम डायरी को अपडेट करने में मदद मिलती है। शिक्षकों की मेहनत का ही नतीजा है कि अभिभावकों में विद्यालय के प्रति विश्वास जगा है।

होता है मासिक मूल्यांकन

मासिक मूल्यांकन रजिस्टर दिखाते हुए अफताब अहमद बताते हैं, महीने भर में बच्चों ने जो भी सीखा है, विभिन्न विषयों में, उसका मासिक मूल्यांकन करते हैं। जिसके आधार पर यह तय होता है कि बच्चे का शैक्षिक स्तर सही है या नहीं। उसमें किसी बदलाव या सुधार की जरूरत होती है तो वह भी किया जाता है।

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जिले के अधिकारी भी करते हैं तारीफ

अफताब अहमद बताते हैं, विद्यालय की गुणवत्ता जांचने के लिए हर माह तीन या चार बड़े औचक निरीक्षण होते हैं। मण्डलायुक्त, जिलाधिकारी, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, खण्ड विकास अधिकारी, एसडीएम सहित विभिन्न विभागों के कई अधिकारी विद्यालय में औचक निरीक्षण कर चुके हैं। विद्यालय की पढ़ाई और शिक्षकों के काम से सभी अधिकारी संतुष्ट हुए हैं। पढ़ने के लिए बनाए गए रजिस्टरों की उन्होंने सराहना भी की है।

खेल कूद में भी बच्चे अव्वल

पढ़ाई के साथ ही विद्यालय के बच्चों ने खेल के क्षेत्र में भी नाम कमाया है। मण्डल स्तर तक लगभग तीस प्रतिशत प्रतियोगिताएं विद्यालय के बच्चों ने जीतीं। जिला स्तर पर 50 से 55 प्रतिशत तक प्रतियोगिताओं में भी विद्यालय के बच्चे विजेता बने।

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एसएमसी सदस्यों का भी सहयोग

विद्यालय प्रबंध समिति के अध्यक्ष देवेन्द्र यादव बताते हैं, हमारे स्कूल के बच्चे इतने होशियार हैं कि प्राइवेट स्कूल के बच्चे भी उनके सामने नहीं ठहरते। समिति व विद्यालय के काम से हम भी खुश हैं और हमारा गांव भी। अधिकारी भी स्कूल की तारीफ करते हैं। देवेन्द्र इसकी वजह भी बताते हैं कि हम लोग प्रयास करते हैं, माता पिता से बात करते हैं। जानने की कोशिश करते हैं कि बच्चा किस कारण पढ़ने नहीं जाता, कोशिश करके स्कूल लाते हैं। स्कूल में पढ़ाई का अच्छा स्तर देखकर माता-पिता को भी खुशी होती है।

      

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