पशु आहार की बढ़ती कीमतों से परेशान है तो पशुओं को खिलाएं ये देसी और सस्ते आहार

Diti BajpaiDiti Bajpai   6 May 2018 10:07 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
पशु आहार की बढ़ती कीमतों से परेशान है तो पशुओं को खिलाएं ये देसी और सस्ते आहारअच्छे चारे से मिलता है अच्छा दूध। फोटो गांव कनेक्शन

लखनऊ। पशुओं के पारंपरिक आहार की बढ़ती कीमतें और उपलब्धता की कमी वजह से पशुपालकों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है, लेकिन हमारे आस-पास पशुओं को खिलाने के लिए बहुत से अपारम्परिक आहार उपलब्ध है ये आहार उपयोग में लाकर खर्चा तो कम किया ही जा सकता है साथ पशुओं का उत्पादन भी बढ़ाया जा सकता है।

अपारंपरिक पशु आहार वह आहार है जो पशु आहार के रूप में प्रयोग नहीं होते हैं। इनका मुख्य स्त्रोत कृषि के उपोत्पाद है। अपारंपरिक आहार जैसे फसलों के अवशेष, औद्योगिक सहउत्पाद, पत्तियों तथा बीजों से बने आहार, पशु वधशालाओं के सहउत्पाद, चाय की पत्तियों के अवशेष, आम की गुठली औेर पशुओं से प्राप्त कार्बानिक अवशेष आदि हैं। अधिकतर अपारम्परिक आहारों में कुपोषक तत्व अधिक मात्रा में पाये जातें हैं।

महुआ की खल

महुआ खल का प्रतिवर्ष उत्पादन लगभग 1.2 लाख टन है। इसकी खल को खेतों में कीटनाशक और खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसमें 18 से 20 प्रतिशत तक प्रोटीन होती है। लेकिन इसमे मौरिन और टेनिन जैसे हानिकारक और विषैले तत्व भी होते हैं। इसको क्षार से उपचार करने के बाद दाना मिश्रण में 10 से 15 प्रतिशत तक मिलाकर पशु को खिलाया जा सकता है।

ये भी पढ़ें- नेपियर घास एक बार लगाएं पांच साल हरा चारा पाएं, वीडियों में जानें इसको लगाने की पूरी विधि

नीम की खल

भारत में प्रतिवर्ष लगभग 9 लाख टन नीम की खल पैदा होती है। बाजार में नीम की खली दो प्रकार की मिलती हैं। एक वह जिसमें निबौली का छिलका निकालकर तेल निकाला जाता है। दूसरे प्रकार की खल में निबौली को मय छिलके के पेर देते हैं। छिलका रहित निबौली से निकली खल में जहां प्रोटीन की मात्रा 35 से 40 प्रतिशत तक होती है, वहीं छिलके समेत निबौली से निकली खल में 18 से 20 प्रतिशत प्रोटीन होती है। दोनों प्रकार की खलों को 24 घंटे तक पानी में भिगोकर, धोने के बाद सुखाकर पशुओं के दाने में 30 प्रतिशत मिलाकर खिलाया जा सकता है। खल को बिना उपचार के नहीं खिलाना चाहिए।

अरंड की खल

अरंड की खल में 30 से 35 प्रतिशत प्रोटीन होती है, लेकिन इसमें रिसिन नाम का जहरीला पदार्थ पाया जाता है। पशुओं के आहार में उपयोगी बनाने के लिए इसको 2 प्रतिशत नमक, 25 प्रतिशत चूने का पानी और 1 प्रतिशत सोडियम हाइड्रॅाक्साइड से रसायनिक प्रसंसकरण करना पड़ता है।

करंज की खल

इस खल का प्रतिवर्ष उत्पादन लगभग 1 लाख टन है। खल में 25 से 28 प्रतिशत प्रोटीन होती है, लेकिन इसमें करंजिन जैसे कुछ विषैले पदार्थ होते हैं, जिनके कारण इसको पशु को खिलाने पर उनके स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है। लेकिन सालवेंट से निचोड़ी गई कंरज की खल पशु को खिलाई जा सकती है।

गोबर गैस स्लरी का चूर्ण

गोबर गैस संयंत्र से निकलने वाली स्लरी को तेज धूप में सुखाकर (जब उसमें 10-12 प्रतिशत से अधिक नमी न हो) पशुओं के आहार में 15 से 20 प्रतिशत तक प्रोटीन पाई जाती है। इसमें कैल्शियम भी 1 से 1.5 प्रतिशत पाया जाता है। लेकिन इसमें सिलिका की मात्रा अधिक होने के कारण इसे पशु को ज्यादा मात्रा में नहीं खिलाया जा सकता है। इसमें ऊर्जा की मात्रा भी कम होती है इसलिए शीरा मिलाकर खिलाने पर पशुओं के लिए अधिक फायदेमंद होगा।

सुबबूल की पत्तियां

यह एक दलहनी सदाबहार पेड़ है। हर मौसम में इससे हरा चारा मिल सकता है। इससे चारा कई बार काट सकते है। इसके चारे में प्रोटीन 15 से 20 प्रतिशत में पाया जाता है लेकिन इसमें एक जहरीला तत्व मीमोसीन होता है, जिसके पशु पर कई प्रकार के कुप्रभाव पड़ते है। इसकी पत्तियों को पशुओं के आहार में 20-25 प्रतिशत से ज्यादा नहीं खिलाना चाहिए।

ये भी पढ़ें- दुधारू पशुओं के लिए उत्तम हरा चारा है अजोला, वीडियों में जानें इसको बनाने की पूरी विधि

बरसीम का भूसा

बरसीम का भूसा गेहूं के भूसे और धान के पुआल की अपेक्षा अधिक पौष्टिक होता है। इसमें लगभग 3 -3.5 प्रतिशत पाच्य प्रोटीन होती है, जबकि भूसा और पुआल में आक्जेलेट तत्व भी होते है जो कि पशु के हानिकारक होते हैं।

अरहर का भूसा

बरसीम की तरह अरहर भी दलहनों की श्रेणी में आता है। इसका भूसा भी भूसा और पुआल की अपेक्षा अधिक पौष्टिक होता है। इसमें लगभग 10-11 प्रतिशत प्रोटीन, 4.0 प्रतिशत पाच्य प्रोटीन और 50 प्रतिशत कुल पाच्य पदार्थ होते हैं।

दालों की फलियों के छिलके

लोबिया की फली से दानों के निकलने के बाद जो छिलके बचते हैं उन्हें भूसे की तरह पशुओं को खिलाने के काम में लिया जा सकता है। इसी प्रकार ज्वार, अरहर, मूंग, उड़द आदि दालों की फली के छिलकों को भी भूसे की तरह काम में लाया जा सकता है।

ज्वार का भूसा

कुछ राज्यों में ज्वार की सूखी कडवी या भूसा का प्रयोग प्रचुरता से किया जाता है। पशुओं को ज्वार का भूसा गेहूं के भूसे की अपेक्षा कम स्वादिष्ट लगता है। इसे पशु उतनी मात्रा में नहीं खा सकते जितना कि पुआल और भूसा खाते हैं। ज्वार के भूसे में प्रोटीन, कैल्शियम, और फास्फोरस की मात्रा गेहूं के भूसे की अपेक्षा अधिक होती है।

चावल का घूटा

इसे धान की चोकर और चावल की भूसी भी कहा जाता है। यह प्रोटीन और ऊर्जा की अच्छी स्त्रोत है। तेल निकला चावल का घूटा बाजार में उपलब्ध है। इसकी शैल्फ लाइफ भी भंडारण के लिए होती है। इसमें 15-16 प्रतिशत प्रोटीन रहती है।

ये भी पढ़ें- पशुओं के लिए ट्रे में उगाएं पौष्टिक चारा, देखिए वीडियो

ये भी पढ़ें- दुधारू पशुओं में पोषक तत्वों की कमी को दूर करेगा बूस्टरमिन 

    

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.