नेपियर घास एक बार लगाएं पांच साल हरा चारा पाएं, वीडियों में जानें इसको लगाने की पूरी विधि

Diti Bajpai | Apr 19, 2018, 18:44 IST
Swayam Project
पशुपालकों को हरे चारे की सबसे ज्यादा परेशानी होती है, बरसीम, मक्का, ज्वार जैसी फसलों से तीन-चार महीनों तक ही हरा चारा मिलता है। ऐसे में पशुपालक नेपियर घास लगाकर चार-पांच साल तक हरा चारा पा सकते हैं। नेपियर घास की रोपाई करने का यह सही समय है। यह घास बीस से पचीस दिनों में तैयार हो जाती है।

उत्तर प्रदेश में बरेली जिला मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर दूर गिरधारीपुर गाँव में रहने वाले संवालिया शरण सिंह (65 वर्ष) के पास 21 बीघा जमीन है जिसमें से दो बीघा जमीन पर संवालिया ने अपने 30 पशुओं के लिए नेपियर घास उगा रखी है। संवालिया बताते हैं, "अगर रोज पशुओं कोहरा चारादिया जाए तो उस पर काफी खर्चा आता है इस घास से पशुओं को हरा चारा भी मिलता है और कोई खर्चा भी नहीं आता है।"

पिछले तीन वर्षों से संवालिया नेपियर घास उगा रहे हैं। संवालिया बताते हैं, "पहले अपने पशुओं को हरा चारा खिलाने के लिए ज्वार और बाजरा उगाते थे, लेकिन उससे भी पशुओं को वर्षभर हरा चारा नहीं मिल पाता था। चारे को लगाने में बीज खरीद, जुताई और खाद की लागत भी ज्यादा आती थी। तब मैंने नेपियर घास लगाया और पशुओं को दिसंबर और जनवरी छोड़कर हर महीने हरा चारा मिलता है।"

पशुचारे का संकट पूरे देश में है। लगभग 20 करोड़ पशुओं के सापेक्ष आधा चारा ही उपलब्ध है। केंद्र सरकार की समिति ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें बताया गया है कि देश में हरे चारे और भूसे का संकट है। पशुओं को तीन तरह का चारा दिया जाता है, हरा, सूखा और सानी। तीनों तरह के पशु चारे का अभाव है। जितनी जरूरत है उससे हरा चारा 63 फीसदी, सूखा चारा 24 फीसदी और सानी चारा 76 फीसदी कम है।

संवालिया आगे बताते हैं, "मैंने नेपियर घास (प्रजाति CO3) की 500 रूट स्लिप्स (जड़) उगाई थी। इससे 2 बीघे जमीन पर 2500 गुच्छे तैयार हो जाते है। एक पशु के लिए दो पोधे रोज काटते है जिनसे उनको पर्याप्त हरा चारा मिलता है इससे पशुओं का दूध उत्पादन भी अच्छा हुआ है।
संवालिया आगे बताते हैं, "मैंने नेपियर घास (प्रजाति CO3) की 500 रूट स्लिप्स (जड़) उगाई थी। इससे 2 बीघे जमीन पर 2500 गुच्छे तैयार हो जाते है। एक पशु के लिए दो पोधे रोज काटते है जिनसे उनको पर्याप्त हरा चारा मिलता है इससे पशुओं का दूध उत्पादन भी अच्छा हुआ है।"

नेपियर घास का उत्पादन प्रति एकड़ लगभग 300 से 400 कुंतल होता है। इस घास की खासियत यह होती है कि इसे कहीं भी लगाया जा सकता है। एक बार घास की कटाई करने के बाद उसकी शाखाएं पुनः फैलने लगती हैं और 40 दिन में वह दोबारा पशुओं के खिलाने लायक हो जाती है। प्रत्येक कटाई के बाद घास की जड़ों के आसपास हल्का यूरिया का छिड़काव करने से इसमें तेजी से बढ़ोतरी भी होती है। वैसे इसके बेहतर उत्पादन के लिए गोबर की खाद का छिड़काव भी किया जाना चाहिए।

भारत में कृषि योग्य भूमि का केवल चार फीसदी पशु चारे के लिए इस्तेमाल की जाती है। पिछले चार दशकों में चारा उत्पादन के लिए उपयोग की जाने वाली जमीन की दर में जरूरी बढ़ोत्तरी नहीं हुई है।

नेपियर घास के बारे में बरेली के केवीके के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. बीपी सिंह ने बताया, "हरे चारे की कमी को पूरा करने के लिए पशुपालकों के लिए यह बेहतर विकल्प है। अभी तक कई किसानों को इसके पौध दिए जा चुके है। बरेली के कई किसान इसको खिला रहे है। एक बार इस घास लगाने पर चार-पांच साल तक हरा चारा मिलता है। इसमें ज्यादा सिंचाई की जरूरत भी नहीं पड़ती है।"

अगर कोई पशुपालक इस घास को खरीदना चाहता है तो वह आईवीआरआई इज्जतनगर बरेली से खरीद सकता है।

डॉ. बीपी सिंह, प्रधान वैज्ञानिक

कृषि विज्ञान केंद्र,आईवीआरआई

फोन नं—: 0581-2301181

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