मिलिए भारत के पहले दिव्यांग डीजे वरुण खुल्लर से...इनकी कहानी सुनकर आप भी कहेंगे वाह ! 

Neetu SinghNeetu Singh   24 Oct 2017 10:50 PM GMT

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मिलिए भारत के पहले दिव्यांग डीजे वरुण खुल्लर से...इनकी कहानी सुनकर आप भी कहेंगे  वाह ! छब्बीस वर्षीय वरुण खुल्लर हैं भारत के पहले दिव्यांग डिस्क जॉकी।

लखनऊ। वरुण खुल्लर भारत के पहले और दुनिया के दूसरे दिव्यांग आर्टिस्ट डिस्क जॉकी हैं। तीन साल पहले एक सड़क हादसे में इनके शरीर के नीचे का हिस्सा पूरी तरह से पैरालिसिस हो गया था। वरुण को अपनी मेहनत पर पूरा भरोसा था। ढाई साल बिस्तर पर रहने के बाद आज भारत के जाने माने क्लब ‘किट्टी सू’ में काम कर रहे हैं।

“लोग कहते थे खुद तो नाच नहीं पायेगा ये लोगों को क्या नचवायेगा, उनकी बात भी सही थी, जब मैं ढाई साल बिस्तर पर रहा तो लगातार लैपटॉप पर म्यूजिक की बारीकियां सीखता रहा।” ये कहना है दिल्ली के द्वारिका पुरी में रहने 26 वर्षीय वरुण खुल्लर का। वरुण गाँव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, “ये हमारे हिन्दुस्तान की समस्या है कि हमारे जैसे किसी भी साथी को देखते हैं तो सबसे पहला शब्द उनका बेचारा होता है, जिससे सामने वाला आधा तो ऐसे ही निराश हो जायेगा। वो बेचारा नहीं है ये हादसा तो किसी के साथ भी सकता है, कोई मुझे इसलिए काम दे कि मैं व्हीलचेयर पर बैठा हूँ, ये मुझे पसंद नहीं था, मैं अपने टैलेंट के दम पर काम पाना चाहता था और मैंने पाया भी।”

वरुण अपनी मेहनत और लगन की वजह से भारत के पहले और दुनिया के दूसरे दिव्यांग डीजे हैं। जबकि अमेरिका के सर पॉल जॉनसन दुनिया के पहले दिव्यांग डीजे हैं

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वरुण ने कभी हार नहीं मानी और अपने शौक को पूरा किया

वरुण सात जून 2014 को अपने दोस्तों के साथ कार से मनाली जा रहे थे। उसी समय एक सड़क हादसे में वरुण के शरीर के नीचे का हिस्सा घायल हो गया था। तीन महीने अस्पताल में रहने के बाद डॉक्टर ने वरुण से कहा था कि तुम्हारा सही से उठ बैठ पाना भी मुश्किल है। वरुण बताते हैं, “ढाई साल तक मुझे दो लोग बिस्तर से व्हीलचेयर पर उठाने-बैठाने के लिए रहते थे। हर दिन दो से तीन घंटे फीजियोथेरेपी और अभ्यास करने के लिए अस्पताल जाना पड़ता था, बाकी के समय मेरी अंगुलियाँ सिर्फ लैपटॉप पर रहती थी।” वरुण और इनके परिवार वालों ने कभी एक दूसरे को ये आभास नहीं होने दिया कि कोई हादसा भी हुआ है। वरुण हमेशा मुस्कुराते रहते थे और इनके घर के लोग इनकी हंसी में खुश रहते थे। इनका बचपन से ही डीजे बनने का सपना था, इसलिए ये हादसा भी इनके सपने में बढ़ा नहीं बना।

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जब ये सड़क हादसा हुआ उस समय वरुण एमिटी यूनिवर्सिटी से मास कम्यूनिकेशन कर रहे थे। हादसे के बाद इनकी पत्रकारिता तो छूट गयी लेकिन इन्होने बिस्तर पर लेटे-लेटे म्यूजिक के कई ऑनलाइन कोर्स जरुर पूरे कर लिए। वरुण बताते हैं, “इस हादसे के बाद से मै हमेशा सोचता था मै कब चल पाऊंगा, मुझे आज भी भरोसा है कि मैं एक दिन अपने इन्ही पैरों से चलकर दिखाऊंगा। हादसे के बाद से मैं खुद से बिस्तर से व्हीलचेयर पर बैठने की कोशिश करता रहता था। ढाई साल बाद मैं पूरी तरह से अपने आपको बिस्तर से व्हीलचेयर और अपनी गाड़ी पर खुद ही बैठने लगा। मैं अपनी निर्भरता लोगों पर कम से कम रखना चाहता था, मेरे लिए गाड़ी चलाना मुश्किल था पर मैं अभी चला रहा हूँ।”

वरुण उन तमाम लोगों के लिए प्रेरणा श्रोत हैं जो अपने साथ हुए किसी भी हादसे के बाद खुद को टूटा हुआ मानते हैं। वरुण कभी भी समाज की सहानुभूति नहीं चाहते थे उन्हें अच्छा नहीं लगता था जब कोई उन्हें बेचारा कहता था। वरुण जाने माने क्लब किट्टी सु में अपने काम को लेकर अनुभव साझा करते हुए बताते हैं, “ये नामी क्लब ‘ललित समूह’ का है, इसके ऑनर मिस्टर केसव सूरी मुझसे मिलने आये और उन्होंने मेरा काम देखकर मुझे काम दिया, अगर ये मुझे सपोर्ट न करते तो शायद आज मैं यहाँ न पहुंच पाता। मेहनत तो हमारी थी पर काम का मंच मुझे इन्होने दिया।” वो आगे बताते हैं, “पहले मैं इस क्लब में एक ग्राहक की तरह जाता था, धीरे-धीरे अपने काम को दिखाया, तीन महीने वालेंटियर काम करने के बाद मुझे परमानेंट जॉब मिल गयी। उस समय ये एकलौता ऐसा क्लब था जिसने हमे बेचारा समझकर काम नहीं दिया बल्कि हमारे काम को देखकर हमें मौका दिया।”

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छह साल पहले ललित ग्रुप ने जब ‘किट्टी सु’ बनाया था उस समय भी यहाँ पर एक व्हीलचेयर बनवा दी थी। जिससे कोई भी दिव्यांग इस क्लब में आकर बैठ सकता है और इंजॉय कर सकता है। वरुण बताते हैं, “पहले से ही यहाँ व्हीलचेयर की एक सीट थी ये बात मुझे बहुत अच्छी लगी, मैं खुद म्यूजिक भी बनाता हूँ, भविष्य में बहुत बड़े-बड़े प्रोग्राम म्यूजिक शो के करना चाहता हूँ।” वरुण आज अपनी गाड़ी खुद ही ड्राइव करते हैं पर साथ में एक साथी को इसलिए रखतें हैं जिससे अगर कहीं कोई दिक्कत हो तो वो गाड़ी सम्भाल ले।

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दूसरें लिए प्रेरणा बने वरुण

वरुण सभी दिव्यांग साथियों को एक सन्देश देना चाहते हैं, “जो भी दिव्यांग हैं वो घर से बाहर निकलें, उन्हें अपनी लड़ाई खुद से लड़नी होगी। अगर आपको किसी सार्वजनिक स्थल पर व्हीलचेयर पर बैठने की या चढ़ने की सुविधा नहीं है तो सवाल करें लिखित रूप से मांगे। सरकार का दिव्यांगों के लिए अगर करोंड़ों का बजट आता है तो वो कहाँ जाता है।” वो आगे बताते हैं, “मेरी तरह हजारों लोग होंगे जो टैलेंटेड होंगे पर उन्हें बदलाव करने में या रिस्क लेने में डर लगता होगा। जिंदगी मे रिस्क लेना शुरू करें तभी आप आगे बढ़ सकते हैं और अपने आपको कभी बेचारा न समझें। मुझे मेरे पैरों पर खड़ा करने के लिए मेरे घरवालों ने मेरे इलाज में अपनी पूरी जमापूंजी खर्च कर दी, मैं इण्डिया का पहला दिव्यांग डीजे भले ही बन गया हूँ और आप सभी को भी आगे आना होगा।”

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