9 हजार रुपये महीने कमाने वाला ये सेल्समैन आधी से ज्यादा सैलरी नए पौधे लगाने में खर्च करता है...

Neetu SinghNeetu Singh   6 July 2018 7:45 AM GMT

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9 हजार रुपये महीने कमाने वाला ये सेल्समैन आधी से ज्यादा सैलरी नए पौधे लगाने में खर्च करता है...पर्यावरण प्रेमी नरपत सिंह राजपुरोहित पर्यावरण और जीवों की रक्षा के लिए हैं समर्पित 

लखनऊ। अगर आप की सैलरी 9 हजार रुपए महीने हुई तो आप कितने रुपए समाज सेवा, पेड़ पौधे लगाने या फिर घायल पशु-पक्षियों की दवा इलाज में लगाएंगे वो भी हर महीने... सवाल थोड़ा मुश्किल है... इस महंगाई में खर्च चलाना मुश्किल है। ऐसे में एक युवा है जो अपनी आधी कमाई इन सब पर खर्च कर देता है।

इस युवा को पर्यावरण के प्रति ऐसा प्रेम हुआ कि पॉलीटेक्निक की पढ़ाई भी पूरी न कर सका। छह साल पहले पौधे लगाने की शुरुआत की थी, अब तक ये 80 हजार पौधे लगा चुके हैं। नरपत सिंह राजपुरोहित (32 वर्ष) का पर्यावरण के प्रति ऐसा प्रेम है कि इन्होंने अपनी बहन की शादी में दहेज में धनराशि नहीं बल्कि पौधे ही भेंट किये थे।

राजस्थान के बाड़मेर जिला मुख्यालय से 13 किलोमीटर दूर 'कोजाणियो कि ढाणि लंगेरा' गाँव के रहने वाले नरपत सिंह पौधे लगाने के शौक को पूरा करने के लिए मिठाई की दुकान पर सेल्समेन की नौ हजार महीने की नौकरी करते हैं।

ये हर महीने चार हजार रुपए के पौधे खरीदकर लगाते हैं। पौधों की देखरेख भी अपनी सैलरी से ही करते हैं। नरपत सिंह ने गाँव कनेक्शन को फ़ोन पर बताया, "बचपन में हमारे एक मास्टर जी श्याम सुन्दर जोशी स्कूल में हमेशा पौधे लगाने के लिए कहते थे जो सबसे ज्यादा पौधा लगाता था उसे चॉकलेट देते थे, जिसमें मेरा नाम सबसे पहले रहता था। पर तब मैंने ये नहीं सोचा था कि मैं इतने सारे पौधे लगा पाऊंगा।"

वो आगे बताते हैं, "वन्यजीवों के प्रति ऐसा प्यार उमड़ा कि पॉलीटेक्निक की पढ़ाई सिर्फ दो साल ही की, तीसरी साल पढ़ाई छोड़कर जहाँ भी घायल जीवों की सूचना मिलती उन्हें बचाने के लिए पहुंच जाता। अबतक पक्षियों को पानी पीने के लिए लोगों के घर के बाहर पेड़ पर हजारों परिंडे लगा चुका हूँ, इसकी देखरेख वही लोग करें इसके लिए उन्हें इसे गोद दे देता हूँ।"

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नरपत सिंह हरे कपड़े पहनकर पर्यावरण के प्रति लोगों को करते हैं जागरूक

नरपत सिंह के द्वारा लगाये गये पौधों की देखरेख वह समय-समय पर जाकर खुद करते रहते हैं। 80 हजार पौधों में 60 हजार पौधे पूरी तरह से लग गये हैं। वन्य जीवों को पानी मिल सके इसके लिए इन्होने आसपास 18 कुंड बनवाए हैं पक्षियों को पानी मिल सके इसके लिए 1900 पानी के परिंडे लगाए हैं, जिसमें हर दिन पानी भरा जाता है। नरपत ने अपनी बहन की शादी में दहेज में एक भी रुपया नहीं दिया था बल्कि बहन के ससुरालवालों को 251 पौधे उपहार में दिए। यही नहीं, उनकी ससुराल में जाकर इन पौधों को लगाने का भी काम किया। आये हुए 500 बारातियों और मेहमानों को एक-एक पौधा देकर विदा किया था। वह ज्यादातर हरे कपड़े पहने होते हैं, उसके ऊपर पर्यावरण से बचाने का सन्देश लिखा होता है। जहाँ भी जाते हैं तोहफे में एक पौधा जरूर भेंट करते हैं।

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700 किलोमीटर की कर चुके हैं यात्रा, नवम्बर में चार हजार किलोमीटर की है तैयारी

साइकिल से 700 किलोमीटर की यात्रा कर चुके नरपत सिंह, अब चार हजार की तैयारी

नरपत सिंह राजस्थान के उदयपुर, राजसमन्द, पाली, जोधपुर, बाड़मेर जिलों में 700 किलोमीटर की साइकिल यात्रा करके लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक कर चुके हैं। ये अस्पताल, रेलवे स्टेशन, थाना, स्कूल या फिर कोई भी सार्वजनिक स्थल पर जाकर न सिर्फ पौधा लगाते हैं बल्कि लोगों को पौधा लगाने से लेकर उसकी देखरेख के लिए जागरूक करते हैं।

ये अपनी अगली यात्रा नवम्बर में छह राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, पंजाब, जम्मू, हरियाणा की शुरू करेंगे, जिसमे ये साइकिल से चार हजार किलोमीटर की यात्रा तय करेंगे। नरपत सिंह ने बताया, "जो कपड़े पहनते हैं, उसमे बहुत सारी जेब होती हैं, हर जेब में एक पौधा रखते हैं जहाँ भी जरूरत समझते हैं वहां पौधा लगा देते हैं। सिर्फ मेरे अकेले पौधा लगाने से ये मिशन पूरा नहीं हो सकता है इसमें हर किसी को आगे आना होगा।"

पक्षियों को पानी मिल सके, इसके लिए बनाए 1900 परिंडे

घायल वन्यजीवों की भी करते हैं देखरेख

कोई भी वन्य जीव घायल हो जाए तो नरपत अपना सारा काम छोड़कर उसे बचाने निकल जाते हैं। ये अबतक 114 घायल हिरन, तीन मोर, तीन खरगोश, एक बाज, एक नीलगाय को बचा चुके हैं। नरपत सिंह का कहना है, "किसी वन्यजीव का घायल होना मुझसे बर्दाश्त नहीं होता, मुझे बहुत तकलीफ होती है। पढ़ाई के समय से ही कक्षा बंक करके इन्हें देखने के लिए भाग जाता था। कटीली झाड़ियाँ हटाकर छायादार पौधे लगाते हैं जिससे लोग गर्मी के समय दो मिनट ठहर सकें।" नरपत पानी में डाली जाने वाली मूर्तियों को मना करते हैं पर जब कोई नहीं मानता हैं तो उसे निकालकर खुद ही फेंकने का काम करते हैं। गाँव स्तर से लेकर राज्य स्तर तक समय-समय पर रैलियां निकालते रहते हैं और लोगों को पर्यावरण के प्रति हर समय जागरूक करने की कोशिश में जुटे रहते हैं।

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