'लखनऊ के रिवर फ्रंट ने गोमती को मार डाला'

उत्‍तर प्रदेश के आठ जिलों से होकर बहने वाली गोमती का अस्‍तित्‍व संकट में क्‍यों है, इसे जानने के लिए गांव कनेक्‍शन की टीम ने नदी के उद्गम स्‍थल (माधव टांडा, पीलीभीत) से लेकर लखनऊ तक करीब 425 किमी की बाइक यात्रा की। यह इस सीरीज की पांचवीं रिपोर्ट है।

Ranvijay SinghRanvijay Singh   21 March 2019 1:46 AM GMT

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लखनऊ के रिवर फ्रंट ने गोमती को मार डाला

रणविजय सिंह/दया सागर

''एक वक्‍त था जब गोमती के इस इलाके में कई तरह की मछलियां मिलती थीं, पानी भी बहुत साफ होता था। लेकिन अब पानी में गंदगी है और बदबू भी आती है। हमें मछलियों के लिए अब दूर जाना होता है, क्‍योंकि इस पानी में मछलियां जी ही नहीं सकतीं।'' लखनऊ के कुड़ियाघाट पर मिले मछुआरे अनिल यह बात कहते हैं।

पीलीभीत के माधवटांडा से निकलकर जौनपुर में गंगा में मिलने से पहले गोमती नदी लखनऊ से होकर गुजरती है। उत्‍तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2015 से 2017 में नदी के दोनों किनारों पर सौंदर्यीकरण करने के लिए रिवर फ्रंट डेवलपमेंट परियोजना लागू की। इस दौरान लखनऊ में गोमती नदी के 8.2 किलोमीटर के किनारों पर कंक्रीट की दीवार खड़ी की गई। लखनऊ में स्‍थ‍ित बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय (बीबीएयू) के रिसर्चर की रिपोर्ट के मुताबिक, रिवर फ्रंट की इस परियोजना ने नदी को बांधने का काम किया जिसने नदी में स्‍वत: होने वाली कई प्रक्रियाओं को बदल दिया। साथ ही यह ईको सिस्‍टम के लिए भी नुकसानदेह साबित हुआ।

अनिल बताते हैं, ''पहले नदी में कई तरह की मछलियां मिलती थीं, लेकिन जब से नदी में काम हुआ है यहां मछलियां मिलती ही नहीं।'' अनिल इस नदी को 'मरी हुई नदी' कहकर पुकारते हैं। अनिल की बात को नदी विशेषज्ञ डॉ. वेंकटेश दत्ता सही करार देते हैं। वो कहते हैं, ''लखनऊ में रिवर फ्रंट बनने से गोमती का भविष्‍य अधर में चला गया। अब नदी में जीवन बचा ही नहीं। रिवर फ्रंट के बीच में जलीय जीवन बिल्‍कुल खत्‍म है। इसमें न तो मछलियां हैं, न ही कछुए हैं। क्‍योंकि पानी में ऑक्‍सीजन बहुत कम है और लखनऊ में ही 26 नाले गोमती में गिर रहे हैं, जिनसे इसका ऑक्‍सीजन लेवल सही होने की उम्‍मीद भी नहीं बचती। कुड़ि‍याघाट से लामार्ट रबर डैम (रिवट फ्रंट का 8.2 किमी का इलाका) तक पानी सड़ता रहता है, क्‍योंकि इसमें कई बैरियर बना दिए गए हैं। एक तरह से पूरी की पूरी नदी को कैनाल बना दिया गया है, जो कि नदी की प्रवृत्ति के उलट है। इससे नदी का ईको सिस्‍टम खत्‍म हो गया है। हम कह सकते हैं कि रिवर फ्रंट ने गोमती को मार डाला है।''

लखनऊ में गोमती नदी का क्षेत्र और रिवर फ्रंट के लिए चुनी गई 8.2 किमी के इलाके का नक्‍शा।

गोमती में ऑक्‍सीजन लेवल के कम होने की बात कई बार नदी में मछलियों के मरने की खबर से सामने आती रही हैं। ऐसी ही एक खबर 29 जनवरी 2017 को एनबीटी की वेबसाइट पर पब्‍लिश की गई थी। इसका शीर्षक है- 'ऑक्सीजन बिना मर गईं हजारों मछलियां'। इस जैसी कई खबरें आपको पढ़ने को मिल जाएंगी, जिनसे साबित होता है कि गोमती नदी के रिवर फ्रंट के इलाके में जलीय जीवन को कितना नुकसान पहुंचा है।

डॉ. वेंकटेश दत्ता रिवर फ्रंट परियोजना पर कहते हैं, ''लखनऊ में नदी को एक प्रयोग का साधन बनाया गया। इसके पीछे मकसद था कि कंक्रीट लॉबी, सीमेंट लॉबी, एसटीपी लॉबी को फायदा पहुंचाया जा सके। गोमती नदी को ग्रामीण और शहरी नदी की कैटगरी में बांटा गया, जबकी नदी एक नदी होती है। ऐसा साबरमती के साथ भी हुआ। वृंदावन में यमुना के साथ भी हो रहा है। शहरी कैटगरी में लाने के बाद प्‍लानर यह सोचता है कि हम नदी के कितना करीब आ जाएं और उसके आसपास कितना निर्माण कर सकें। इसी कड़ी में रिवर व्‍यू अपार्टमेंट बनते हैं, होटल बनते हैं और नदी की जमीन महंगे दामों में बिकती है। इसलिए रिवर का ब्रीथिंग स्‍पेस यानी उसके फ्लड प्‍लेन पर पूरी तरह से कब्‍जा हो जाता है। यही गोमती रिवट फ्रंट के साथ भी हुआ है।''

डॉ. वेंकटेश बताते हैं, ''नदी के दोनों तरफ के किनारे उसका ब्रीथिंग स्‍पेस होते हैं, उसमें पानी रिचार्ज होना, नए वैजिटेशन बनने जैसे काम होते हैं। लेकिन नदी के जमीन से इस जुड़ाव को हमारे सिंचाई के इंजीनियर्स समझ नहीं पाते। उन्‍हें सिर्फ कैनाल का सिस्‍टम पता है। उन्‍हें यह पता है कि नदी से पानी कैसे निकाला जाए, लेकिन उन्‍हें नदी में पानी कैसे लाया जाए इसका विज्ञान नहीं पता। आप नदी को कैनाल की समझ कर काम नहीं कर सकते।''

रिवर फ्रंट के निर्माण के वक्‍त यह बात भी उठी थी कि गोमती नदी भूजल से पोषित नदी है, यह जमीन से पानी लेती है और भूजल को रिचार्ज भी करती है। रिवर फ्रंट के निर्माण से नदी का भूजल से रिश्‍ता खत्‍म हो जाएगा। ऐसे में नदी के जीवन पर सीधा असर होगा। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India) के पूर्व निदेशक वीके जोशी इस बात को याद करते हुए कहते हैं, ''साबरमती के तट की तरह गोमती को विकसित करने की बात आई। साबरमती अलग नदी है, गोमती अलग नदी है। रिवर फ्रंट का खाका तैयार करने वाले इस बात को भूल गए। नदी किनारे सौंदरीकरण में कोई दिक्‍कत नहीं थी, खेल कूद के मैदान बनाते, घूमने की जगह बनाते, लेकिन उसके साथ गलती यह कर दी क‍ि सीमेंट की दीवार दोनों किनारों पर बना दी गई। इसपर हमने आवाज उठाई कि गोमती नदी भूजल से जल लेती है और भूजल को जल देती है। किस जगह पर जल लेती और किस जगह पर जल देती है इसका डाटा सेंट्रल ग्राउंड वॉटर डिपार्टमेंट के पास है। मुझे यकीन है कि वो डाटा राज्‍य सरकार को दिया भी गया था, लेकिन उसे किसी ने पढ़ने की जहमत नहीं उठाई।''

(पहली तस्‍वीर: 2011 में नदी का किनारा है, जिसमें रेत है साथ ही भिन्‍न प्रकार के जीवों के निवास के लिए एक अच्‍छा वातावरण है।

दूसरी तस्‍वीर: 2015 की तस्‍वीर जब रिवर फ्रंट परियोजना के तहत नदी के किनारों को बड़ी-बड़ी मशीनें लगाकर मिट्टी से पाट दिया गया।)

''जब यह दीवार बनाई जा रही थी तो हमने आवाज उठाई। इसपर इंजीनियर्स ने कह दिया कि हमने इसमें पीवीसी के पाइप डाल दिए हैं, ताकि लेन देन बना रहे। उनको कौन समझाता कि यह जो लेने देने होता है यह ऐसे नहीं होता। यह रेत के कणों के बीच में होता है। यह अदान प्रदान माइक्रो लेवल पर होता है, वो पीवीसी के पाइप से थोड़े न होगा, यह तो एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। इसकी वजह से गोमती का पानी रिचार्ज होना बंद हो गया।'' - वीके जोशी कहते हैं

डॉ. वेंकटेश भी दीवार में पीवीसी पाइप लगाने की बात को नौटंकी करार देते हैं। वो कहते हैं, ''हमने बहुत विरोध किया तो उन लोगों ने कहा कि दीवार में छेद कर दे रहे हैं, लेकिन नदी छेद देखकर तो ग्राउंड वॉटर लेगी नहीं। यह बात उन्‍हें कौन समझाए। अब तक तो वो छेद बंद भी हो गए होंगे।''


डॉ. वेंकटेश दत्‍ता नदी में बनाई गई दीवार को भी अनुचित मानते हैं। वो कहते हैं, ''आप सोचिए इतनी मोटी दीवार चला दी गई। इसकी लाइफ करीब 50 साल होगी। यह दीवार 16 मीटर की है, जो कि नदी के बेड से 11 मीटर नीचे और 5 मीटर ऊपर तक बनी है। इसकी चौड़ाई .6 मीटर की है। इसमें 32 एमएम के सरिया का जाल लगा है। मतलब यह काफी मजबूत स्‍ट्रक्‍चर है, ऐसा स्‍ट्रक्‍चर बंदरगाहों पर बनाया जाता है। इतना कुछ करने की जरूरत ही नहीं थी। इसकी वजह से नदी पूरी तरह से बांध दी गई, इसे मार दिया गया। अगर किनारों पर कुछ करना ही था तो स्‍टोन पीचिंग करते। लेकिन उसमें पैसा नहीं था और रिवर फ्रंट बनाने में तो बहुत पैसा होता, इसलिए स्‍टोन पीचिंग का काम नहीं किया गया।''

वेंकटेश दत्ता कहते हैं, ''इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंगा प्रदूषण मामले में सुनवाई करते हुए पूर्व में एक निर्णय दिया था जिसमें इलाहाबाद में गंगा-यमुना नदी के तट से 500 मीटर तक की दूरी पर किसी भी प्रकार का नवीनीकृत निर्माण कार्य नहीं होगा। यह 500 मीटर नदी के बीच से दोनों किनारों तक 250-250 मीटर था। इस आदेश को अधार बनाते हुए ही नदी के आस पास विकास करना चाहिए, क्‍यों‍कि नदी का एक ब्रीथिंग स्‍पेस होता है। इसके साथ छेड़छाड़ करना सही नहीं है, लेकिन नियम मानता कौन है। इन कब्‍जों की वजह से नदी के बहाव पर भी असर हो रहा है।''

लोक भारती के राष्‍ट्रीय संगठन मंत्री बृजेंद्र सिंह भी रिवर फ्रंट बनाने की योजना को गलत ठहराते हैं। वो कहते हैं, ''इसकी वजह से नदी का खुद का जीवन खत्‍म हो गया, साथ ही नदी में रहने वाले कितने जीव खत्‍म हो गए। नदी के किनारों पर खड़ी दीवार चलाई गई, इससे नदी का किनारों से संपर्क खत्‍म हो गया। कुछ जीव ऐसे होते हैं जो नदी में भी रहते हैं और उन्‍हें जमीन भी चाहिए, जैसे कछुआ नदी में भी रहता है और जमीन पर भी रहता है। लेकिन खड़ी दीवार चलाने से वो जमीन पर नहीं आ सकता। इसकी वजह से कछुओं के प्रजनन पर असर हुआ और अब यह रिवर फ्रंट के इलाके में खत्‍म ही हो गए हैं।'' लोक भारती संस्‍थान पर्यावरण और विशेषकर गोमती नदी को फिर से जीवित करने को लेकर कार्य करती है।

बृजेंद्र सिंह कहते हैं, ''सब जानते थे कि गोमती भूजल से पानी लेती है। इससे ही इस नदी का अस्‍तित्‍व है, लेकिन तमाम रिपोर्ट्स को किनारे कर रिवर फ्रंट बनाया गया। अब हाल ये है कि नदी भूजल से बिल्‍कुल कट गई है। रिवर फ्रंट के इलाके में आप जो पानी देख रहे हैं, वो दरअसल नालों का पानी है। इसमें ताजा जल बहुत कम है। इसी वजह से गोमती के किनारे बैठने पर सड़ांध की गंध आती है। यह इसलिए है कि पानी सड़ रहा है। इसके पीछे की वजह है कि गोमती नदी के नीचे सिल्‍ट बैठी हुई और किनारों पर दीवार खड़ी है, ऐसे में गोमती भूजल से रिचार्ज नहीं हो पा रही। पहले किनारे थे तो वहां से पानी जमीन में चला जाता था और गोमती जमीन से पानी ले भी लेती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं हो पाता।''

कुड़ियाघाट पर नदी के बीच में बनाया गया बंधा।

रिवर फ्रंट की शुरुआत जब हुई तब कुड़ियाघाट पर एक अस्‍थाई बंधा भी बनाया गया। यह इसलिए बना ताकि नदी में पानी का प्रवाह कम हो और जिससे ड्रेजिंग की जा सके और दीवार खड़ी हो सके। इस बांध को बनाने के बाद इंजीनियर इसे भूल गए, जिसकी वजह से नदी धारा प्रभावित होती है। डॉ. वेंकटेश दत्‍ता बताते हैं, ''हमने इस बंधे को हटाने के लिए कई बार पत्र लिखा, लेकिन इसे हटाने का काम नहीं हुआ। अभी थोड़ी सी जगह से नदी लखनऊ में प्रवेश करती है। इसकी वजह से ही रिवर फ्रंट में पानी बना रहता है, शायद उनकी सोच है कि इससे ही रिवर फ्रंट में पानी भरा हुआ दिखे।''

डॉ. वेंकटेश कहते हैं, ''अंग्रेजों के वक्‍त एक 'इंडियन ड्रेनेज एंड कैनाल एक्‍ट' बना था। इसके तहत प्राकृतिक नालों में किसी भी तरह का अवरोध पैदा करना, उसकी धारा को रोकना, मोड़ना कानूनन अपराध है। यहां तो साफ तौर से आपने रोक दिया है। पानी रुकने की वजह से उसके पास सिल्‍ट जम गई है, पूरा इलाका जलकुंभी से भर गया है। वहीं, जिस जगह बंधा बनाया गया वहां पहले नौका विहार होता था, ऐसे में उनकी रोजी रोटी भी चली गई।''

कुड़ियाघाट पर नाव चलाने वाले पुरुषोत्‍तम मल्‍लाह भी लोगों को गोमती नदी की सैर कराते हैं। वो बताते हैं, ''बंधे की वजह से हम आगे तक नहीं जा सकते। जबसे बंधा बना यहां पानी रुक गया और इसमें बदबू आने लगी, इसकी वजह अब लोग भी कम ही आते हैं। कभी 50 रुपए तो कभी कुछ भी नहीं कमा पाते। पहले रोजना कुछ न कुछ कमाई तो हो ही जाती थी।''

कुड़ियाघाट पर नाव चलाने वाले पुरुषोत्‍तम मल्‍लाह।

डॉ. वेंकटेश कहते हैं, ''जब हमने पत्र लिखे तो जवाब मिला कि इस बंधे से पानी का लेवल बना रहता है, नहीं तो लखनऊ की पानी की स्‍पलाई पर असर पड़ेगा। पानी का लेवल बना रहे इसके लिए इन लोगों ने गोमती बैराज बना रखा है, फिर इस बंधे की क्‍या जरूरत है। लेकिन इनकी दलील है कि अगर स्‍थाई बंधा हटा तो पानी सूख जाएगा। अगर ऐसा ही है तो पहले जब बंधा नहीं बना था तब पानी की स्‍पलाई कैसे होती थी। नदी में खुदाई के वक्‍त इसे बनाया गया था तो अब इसे हटा देना चाहिए, ऐसा पूरी दुनिया में नहीं होता है।''

प्रदूषण ने गोमती को खत्‍म कर दिया

लखनऊ में गोमती नदी को प्रदूषण से भी बहुत नुकसान पहुंचा है। रिवर फ्रंट के इलाके में पानी के रुकने और इसमें नालों का पानी घुलने से यह जहरीला हो गया है। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India) के पूर्व निदेशक वीके जोशी कहते हैं, ''लखनऊ में कोई ऐसी इंडस्‍ट्री नहीं है फिर भी गोमती में मरकरी, जिंक, आरसेनिक जैसे रसायन पाए जाते हैं। इसके पीछे की दो वजहें हैं, पहला कि लखनऊ से आगे पीलीभीत तक जितने भी शहर गोमती के रस्‍ते में पड़ते हैं उनका मैला गोमती में जाता है। चीली मिल से लेकर फ्रैक्‍ट्रीयों का कचरा गोमती में ही डाल दिया जाता है। ऐसे में गोमती पहले से गंदी होती है, लेकिन इसमें बहाव होता है, तो जीवन की संभावना भी होती है। लेकिन जैसे ही नदी लखनऊ में आती है तो इसे बांध दिया जाता है। साथ ही लखनऊ शहर के करीब 26 नाले नदी में डायरेक्‍ट गिरते हैं। अब सोचिए कि यह पानी ठहरा हुआ है और इसमें और जहर मिल रहा है।''

वीके जोशी कहते हैं, ''मायावती सरकार के वक्‍त एशिया का सबसे बड़ा सीवेज ट्रीटमेंट प्‍लांट (एसटीपी) बनाया गया था। लेकिन उस वक्‍त यह सोचा नहीं गया कि इसको चलाने के लिए बिजली कहां से आएगी। इस वजह से वो ज्‍यादा चल ही नहीं पाया। बाद में इसे फिर चालू किया गया, लेकिन मेरी जानकारी में है कि शायद वो अपनी एक चौथाई क्षमता पर चल रहा है। अगर सबसे बड़ा एसटीपी बनाया तो पूरे शहर के सीवर लाइन को यहां आना चाहिए था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। नालों को आपस में इंटरलिंक नहीं किया गया। इसकी वजह से इतना ज्‍यादा मल गोमती में जा रहा है कि इसका पानी छूने के काबिल नहीं रहा है। गोमती का पानी जहरीला है। पानी में जीवन की संभावना बची ही नहीं है। आपने पूरे इको सिस्‍टम को अस्‍त व्‍यस्‍त कर दिया है। गोमती में सबसे बड़ा सीवेज ट्रीटमेंट प्‍लांट बनाने के बजाए, छोटे-छोटे ट्रीटमेंट प्‍लांट इन नालों पर बनते तो उसका ज्‍यादा फायदा मिलता।''

तो बाढ़ में डूब सकता है शहर?

वीके जोशी बताते हैं, ''गोमती नदी का एक पैटर्न है कि 100 साल में इसमें बाढ़ आती है। 1771, 1871, 1971 में बाढ़ आई है। अगर ये आंकड़े हैं तो उनको स्‍टडी करके काम करना चाहिए। नदी को अपने हिसाब से बांध देना सही नहीं है। ऐसे में जब कभी बाढ़ आएगी तो शहर में पानी भर जाएगा, क्‍योंकि नदी के किनारों को शहर से काट दिया गया। ऐसे में पानी शहर में भर जाएगा।''

लखनऊ में गोमती नदी का किनारा।

वीके जोशी बताते हैं, ''लखनऊ में करीब 300 से ज्‍यादा झीलें थीं। पिछले 40 साल में इनको सुनियोजित तरीके से पाटा गया। इन झीलों को शहर के कूड़े से भर दिया गया है। आशियाना एक बहुत बड़ी झील थी और वहां पूरे लखनऊ का कूड़ा डंप करके उसे भर दिया और उसपर कॉलोनी बना दी। ऐसी कई कॉलोनी हैं जैसे- राजाजीपुरम, जानकीपुरम इन्‍हें हमने पाट कर बनाया है। पहले तो हमने यह अपराध किया कि नेचुरल वॉटर बॉडी को खत्‍म कर दिया। दूसरा जब हमने झील को मिट्टी से पाट कर ऊंचा कर दिया तो यह टीले की तरह हो गया। अब बरसात में तमाम ऐसी खबरें आती हैं कि आशियाना में पानी भर गया। यह इस लिए है कि शहर का पानी झील की ओर जाएगा, क्‍योंकि वो ढलान पर है, लेकिन वहां पानी के लिए जगह बची ही नहीं है, ऐसे में पानी भर जाता है। टीले के किनारे-किनारे पानी लग जाता है, यह ऐसा ही है।''

जांच में प्राकृतिक रूप से समाप्‍त मिली गोमती

राज्‍य में योगी सरकार बनने के तुरंत बात रिवर फ्रंट परियोजना की जांच के लिए एक उच्च स्तरीय न्यायिक समिति गठित की गई। तीन सदस्‍यीय इस समिति के सदस्‍य आईआईटी बीएचयू के सेवानिवृत्त प्रोफेसर और नदी वैज्ञानिक यूके चौधरी ने गांव कनेक्‍शन को बताया कि ''नदी का आधारभूत भोजन ग्राउंड वॉटर है। अगर ग्राउंड वॉटर पर असर होगा तो नदी पर भी असर होगा। आपने दीवार बनाकर गोमती को घेर दिया तो इसकी वजह से लखनऊ जोन में नदी में भूजल मिल ही नहीं रहा। आपने नदी का ढाल खत्‍म कर दिया और खड़ी दिवार चलाकर इसे कैनाल बना दिया। इसमें बसने वाले जीव जिनका जमीन से भी संपर्क होता था वो पूरी तरह से कट गया और वो यहां से खत्‍म हो गए। साथ ही जो दूसरी नाले-नदियां मिलती हैं उसे आपने पूरी तरह से खत्‍म कर दिया। हमारी जांच में हमने पाया कि गोमती प्राकृतिक रूप से समाप्‍त थी। अगर इसे सही करना है तो ग्राउंड वॉटर को नेचुलर वॉटर से मिलने दिया जाए।''

(यह स्‍टोरी गांव कनेक्‍शन की सीरीज 'एक थी गोमती' के तहत की गई है। गोमती नदी को लेकर हमारी टीम ने एक पूरी सीरीज प्‍लान की थी। इसके तहत हमने गोमती नदी के उद्गम स्‍थल (पीलीभीत की ग्राम पंचायत माधवटांडा) से लेकर लखनऊ तक नदी को बाइक से ट्रैक किया। चार दिन में गोमती को ट्रैक करते हुए गांव कनेक्‍शन की टीम ने पीलीभीत, शाहजहांपुर, लखीमपुर खीरी, सीतापुर और लखनऊ में करीब 425 किमी बाइक से यात्रा की। इस बाइक यात्रा में हमने नदी के जीवन को जानने, उसकी हाल की स्‍थ‍िति देखने के साथ ही इसके आस पास बसने वाले लोगों से समझा कि गोमती नदी उनके लिए क्‍या मायने रखती है। gaonconnection.com पर आप इस सीरीज की खबरें पढ़ सकते हैं।)

सीरीज की अन्‍य स्‍टोरी पढ़ें-

1. जहां गोमती का हुआ जन्‍म, वहीं मारने की हुई शुरुआत

2. पीलीभीत से लेकर लखनऊ तक गोमती को मारने की कहानी

3. यादों में गुम होती आदिगंगा गोमती

4. साठा धान की खेती और भूजल के गिरते स्‍तर से सूख रही गोमती


   

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