पिछले साल लॉकडाउन के बाद इस बार खराब फसल की वजह से लीची किसानों को हो सकता है नुकसान

लगातार नुकसान उठा रहे लीची किसानों को इस बार फिर नुकसान उठाना पड़ सकता है, क्योंकि लगातार पानी रहने की वजह से ज्यादातर पेड़ों पर मंजर के बजाए नई पत्तियां निकल आयीं हैं।

Divendra SinghDivendra Singh   26 March 2021 10:56 AM GMT

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पिछले साल लॉकडाउन के बाद इस बार खराब फसल की वजह से लीची किसानों को हो सकता है नुकसान

बिहार का मुजफ्फरपुर जिला लीची उत्पादन के लिए जाना जाता है, लेकिन यहां पर दिसम्बर पानी रुका रहा, जिससे बहुत कम फल आए हैं। (फोटो: गाँव कनेक्शन)

लॉकडाउन की वजह से पिछले साल नुकसान उठा चुके बिहार के लीची किसानों को उम्मीद थी कि इस बार तो अच्छा मुनाफा हो जाएगा, लेकिन इस बार खराब मौसम की वजह से किसानों को नुकसान उठाना पड़ सकता है।

बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के मीनापुर प्रखंड की मालती सिंह के पास लगभग दस एकड़ की दो बाग हैं, जिनमें एक हजार से ज्यादा लीची के पेड़ लगे हुए हैं। लेकिन इस बार आधे से भी कम पेड़ों पर फल आए हैं। मालती सिंह बताती हैं, "हमारी तरफ इस बार अक्टूबर तक बारिश होती रही, बाढ से बाग में पानी भरा रहा, जिसकी वजह से आधे से ज्यादा पेड़ों पर कल्ले (नई पत्तियां) निकल आए, जिन पेड़ों पर नए कल्ले निकले उन पर फूल ही नहीं आए। पूरी बाग में किसी पेड़ पर फल आए हैं किसी पर कल्ले निकल आए हैं, बहुत से ऐसे भी पेड़ हैं जिनमें एक चौथाई कल्ले निकल आए हैं और कुछ एरिया में फल आए हैं।" ये अकेले मालती सिंह की परेशानी नहीं है, क्योंकि अकेले मुजफ्फरपुर जिले में 11 हजार हेक्टेयर में लीची के बाग हैं, जिनमें से ज्यादातर बाग में यही हाल है।

पिछले साल लॉकडाउन की वजह से इन्हें नुकसान उठाना पड़ा था, इसके पहले साल में दो लाख और 95 हजार रुपए में दोनों बागें बिकी थीं, लेकिन पिछली बार खुद से लीची तोड़वाकर बेचना पड़ा। इस बार कम फल आने के कारण व्यापारी आ तो रहे हैं, लेकिन बहुत कम दाम दे रहे हैं। मालती कहती हैं, "पिछले साल जिन किसानों की बाग होली तक बिक गई थी, वही बेचे पए थे, उसके बाद कोरोना आ गया, उसके पहले साल में शुरूआत में सब सही रहा, उसके बाद चमकी की वजह से बहुत नुकसान हुआ। इस बार अभी एक व्यापारी आया था, वो पचास हजार से ज्यादा देने को तैयार नहीं है, इसलिए अभी तक बाग नहीं बेची है।"

पिछले साल अच्छा उत्पादन हुआ था, तब लॉकडाउन की वजह से बाहर से व्यापारी नहीं आ पाए, जिसका खामियाजा किसानों को उठाना पड़ा। फोटो: गाँव कनेक्शन

भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान के अनुसार, इस समय पूरे देश में लगभग 83 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में लीची की खेती होती है। विश्व में चीन के बाद सबसे अधिक लीची का उत्पादन भारत में ही होता है। इसमें बिहार में 33-35 हज़ार हेक्टेयर में लीची के बाग हैं। भारत में पैदा होने वाली लीची का 40 फीसदी उत्पादन बिहार में ही होता है। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे प्रदेशों में भी लीची की खेती होती है। अकेले मुजफ्फरपुर में 11 हजार हेक्टेयर में लीची के बाग हैं।

बिहार में ज्यादातर किसान लीची की शाही और चाइना किस्म की खेती करते हैं, किसानों की माने तो शाही से ज्यादा चाइना किस्म में इस बार कम फल लगे हैं।

लीची ग्रोवर्स ऑफ इंडिया के अध्यक्ष बच्चा प्रसाद सिंह बताते हैं, "लीची स्थिति इस बार बहुत खराब है, कुछ जिलों में तो 30-40 प्रतिशत ही फल आए हैं। पिछले दो साल से यहां पर किसानों का नुकसान हो रहा है। दो साल पहले तो चमकी की अफवाहों के चलते लीची किसानों को नुकसान हुआ और फिर पिछले साल लॉकडाउन की वजह से व्यापारी ही नहीं आए, कई जिलों में जिला प्रशासन की मदद मिल गई थी, बाकी के लोगों को खुद से ही बेचना पड़ा।"

फोटो: पिक्साबे

साल 2019 में मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार से हो रही मौतों के बाद यह भी यह भी कहा जाने लगा कि कहीं बच्चों की मौत अधिक लीची खाने से तो नहीं हो रही? क्योंकि जहां चमकी बुखार बच्चों की मौतें हुईं वो मुजफ्फरपुर जिला भारत में लीची उत्पादन के लिए काफी चर्चित है। लेकिन विशेषज्ञों ने बताया कि लीची से चमकी का कोई कनेक्शन नहीं है।

वो आगे कहते हैं, "अब इस बार नवंबर-दिसम्बर तक बाढ़ का पानी रुका रहा, जिसका नुकसान किसानों को अब उठाना पड़ेगा, अगर बाग में ज्यादा फल नहीं आएंगे तो व्यापारी अच्छा पैसा नहीं देंगे। लीची बागवानी जैसी फसलों की खेती करने वाले किसान साल भर में एक बार ही कमाई करते हैं। पहले कोरोना की वजह से नुकसान हुआ और मौसम साथ नहीं दे रहा। अगर कहीं अप्रैल तक ओले गिर गए तो जो फल आने वाले हैं वो भी पूरी तरह से गिर जाएंगे।"

लीची की खेती करने वाले किसानों को उनके फसल पर मौसम की मार का डर है। मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों ने बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में इस वर्ष खराब लीची की फसल से किसानों को परेशानी में लाकर खड़ा कर दिया है। जिले में लीची की खेती करने वालों को इस मौसम में बंपर फसल की उम्मीद थी, लेकिन मौसम का मिजाज देखते हुए उन्हें आशंका है कि इस बार लीची की कम उपज होगी। उन्हें इस बात का भी डर है कि फसल की कमी के चलते देशभर में इस फल की कमी पड़ सकती है।

लीची किसानों को अभी भी डर है कि अगर आने वाले दिनों मौसम खराब होता है तो और नुकसान हो जाएगा। इसलिए इस समय कुछ बातों का ध्यान रखकर अभी भी किसान नुकसान से बच सकते हैं। इस बारे में बिहार के मुज्जफरपुर में स्थित लीची अनुसंधान निदेशालय के निदेशक डॉ एसडी पांडेय कहते हैं, "इस बार बाग में लगातार नमी बनी रहने के कारण लीची में मंजर कम आए हैं, लेकिन जितने भी मंजर आए हैं, उनमें अच्छे फल लगे इसलिए कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। अप्रैल से 10 मई तक का समय लीची की फसल के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है। इस दौराना ध्यान देना चाहिए कि खेती में नमी रहे, इसके लिए सिंचाई करें। अप्रैल के पहले सप्ताह में ही 400 ग्राम यूरिया और 400 ग्राम पोटाश लेकर प्रति पेड़ के नीचे छिड़काव करें।"

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