"बंबई में का बा" भोजपुरी रैप के जरिए मनोज बाजपेयी और अनुभव सिन्हा ने दिखाई प्रवासियों और ग्रामीण भारत की लाचारी

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लॉकडाउन के दौरान शहरों से लौटती हताश निराश प्रवासियों की भीड़ सबने देखी। वो हजारों किलोमीटर पैदल चले, कई कई दिन भूखे रहे, कईयों की चलते-चलते पैरों की खाल घिस गई। लेकिन ये लोग मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों की तरफ आते ही क्यों हैं? इनकी क्या मजबूरी होती है? कैसा उनका सामाजिक परिवेश होता है? कैसे कैसे दर्द से गुजरते हैं?

प्रवासी जब कमाने शहर में आता है उसके परिवार पर क्या बीतती है? इन सबको एक गीत के जरिए अभिनेता मनोज वाजपेई और निर्देशक अनुभव सिन्हा ने पर्दे पर उतारा है। भोजपुरी भाषा में मनोज वाजपेई द्वारा गाया गया रिलीज होते ही लोगों की जुबान पर चढ़ गया है।

कोरोना काल में बड़े शहरों से लौटने वालों में सबसे ज्यादा लोग बिहार और उत्तर प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल से। बिहार और खासकर पूर्वी यूपी से लाखों लोग आजीविका की तलाश में अपने गांव छोड़ते हैं इनमें से बड़ी आबादी मुंबई जाती है। कोरोना काल में ये लोग वापस और इनमें से फिर लाखों लोग शहरों की तरफ लौट पड़े हैं क्योंकि गांव में कमाई का कोई जरिया नहीं।

अभिनेता मनोज वाजपेई और निर्देशक अनुभव सिन्हा जो खुद बिहार से ताल्लुक रखते हैं, भोजपुरी रैप के जरिए इनकी मनोदशा को सामने लाते हैं। 'बंबई में का बा' के बोल डॉ. सागर के हैं जबकि इसे गाया मनोज वाजपई ने है।

गीत के बोल कुछ इस तरह से हैं,

ना त बंबई में का बा ?इहवाँ का बा ?

ना त बम्बई में का बा ? इहवाँ का बा ?


दू बिगहा में घर बा लेकिन

सूतल बानी टेम्पू में

जिनगी ईअंझुराइल बाटे

नून तेल आ सेम्पू में

मनवा हरियर लागे भैया

हाथ लगवते माटी में

जियरा अजुवो अंटकल बाटे

गरमे चोखा बाटी में

जिनगी हम त जियल चाहीं

खेत बगइचा बारी में

छोड़छाड़ सब आइल बानी

हम इहवाँ लाचारी में

ना त बम्बई में का बा? इहवाँ का बा?

ना त बम्बई में का बा? इहवाँ का बा?


बनिके हम सिकोरटी वाला

डबल डियुटिया खटत बानी

ढिबरी के बाती के जइसे

रोज रोज़ हम घटत बानी

केकरा एतना सवख बाटे

मच्छर से कटवावे के

के चाहेला एह तरे

अपने के नर्भसावे के

गांव सहर के बिचवा में हम

गजबे कंफ्यूजिआइल बानी

दू जून की रोटी खातिर

बॉम्बे में हम आइल बानी

ना त बंबई में का बा?इहवाँ का बा?

ना त बम्बई में का बा? इहवाँ का बा?


घीव दूध आ माखन मिसरी

मिलेला हमरा गाँवे में

लेकिन इहवाँ काम चलत बा

खाली भजिया पावे में

काम काज ना गांव में बाटे

मिलत नाहीं नोकरिया हो

देखs कइसे हाँकत बाड़ें

जइसे भेंड़ बकरिया हो

काम धाम रोजगार रहित त

गंउवे स्वर्ग बनइतीं जा

जिला जवारी छोड़िके इहवाँ

ठोकर कांहें खइतीं जा

ना त बम्बई में का बा? इहवाँ का बा?

ना त बम्बई में का बा ? इहवाँ का बा?


कइसे केहू दुखवा बांटे

हम केतना मजबूर हईं

लरिका फरिका मेहरारू से

एक बरिस से दूर हईं

के छोड़ले बा एह तरे अब

हमहन के लाचारी में

अपना छोटकी बुचिया के हम

भर न सकीं अँकवारी में

बूढ़ पुरनिया माई बाबू

ताल तलैया छूट गइल

केकरा से देखलाईं मनवा

भितरे भितरे टूट गइल

ना त बम्बई में का बा? इहवाँ का बा?

ना त बम्बई में का बा? इहवाँ का बा?


हंसुवा अउरी खांची फरुहा

बड़की चोख कुदार उहां

लमहर चाकर घर दुतलिया

हमरो ए सरकार उंहा

हमरे हाथ बनावल बिल्डिंग

आसमान के छूवत बे

हम त झोपडपट्टी वाला

हमरे खोली चूवत बे

आके देख सहरिया बबुआ

का भेड़ियाधसान लगे

मुरगी के दरबा में जइसे

फंसल सभे के जान लगे

ना त बम्बई में का बा? इहवाँ का बा?

ना त बम्बई में का बा? इहवाँ का बा?


हाड़ ठेठावत दुनों परानी

खटत रहीं किसानी में

एक टांग प खाढ़ रहींजा

माघ महीना पानी में

एतना मुवला जियला पर भी

फूटल कौड़ी मिलत ना

लौना लकड़ी खर्ची बर्ची

घर के कमवा जूरत ना

महानगर के तौर तरीका

समझ में हमरा आवे ना

घड़ी घड़ी पर डांटे लोगवा

ढंग से कुछू बतावे ना

ना त बम्बई में का बा? इहवाँ का बा?

ना त बम्बई में का बा? इहवाँ का बा?


जबरा के हथवा में भैया

नियम और कानून उहां

छोटी छोटी बतियन प ऊ

कइ देलन स खून उहां

एह समाज में देखs केतना

ऊंच नीच के भेद हवे

उनका खातिर संविधान में

ना कौनो अनुच्छेद हवे

बेटा बेटी लेके गाँवे

जिनगी जियल मोहाल हवे

ना निम्मन इस्कूल कहीं बा

नाहीं अस्पताल हवे

ना त बम्बई में का बा? इहवाँ का बा?

ना त बम्बई में का बा? इहवाँ का बा?


जुलुम होत बा हमनी सँगवा

केतना अब बरदास करीं

देस के बड़का हाकिम लो पर

अब कइसे बिस्वास करीं

हम त भुइयां लेकिन तोहार

बहुते ऊंच सिंघासन बा

सबके पता ह केकरा चलते

ना घरवा में रासन बा

ए हाकिम लो!ए साहेब लो!

हमरो कुछ सुनवाई बा

गांव में रोगिया मरत बाड़ें

मिलत नाहीं दवाई बा

ना त बम्बई में का बा? इहवाँ का बा?

ना त बम्बई में का बा? इहवाँ का बा?

Updating

गांव कनेक्शन ने कोरोना लॉकडाउन के दौरान ग्रामीण भारत का सबसे बड़ा सर्वे कराया था। 23 राज्यों में कराए गए इस सर्वे में प्रवासी मजदूर, कामगार लोग सबसे अहम कड़ी थे। गांव कनेक्शन इनसाइट द्वारा कराए गए इस सर्वे में 25000 से ज्यादा लोग शामिल थे, जिसमें प्रवासियों ने बताया था कि वो कितनी मुश्किलों को झेलकर वापस आए थे, न ट्रेन चल रही थी न बस ऐसे में लाखों प्रवासी पैदल, साइकिल, रिक्शा, ट्रक आदि के जरिए अपने अपने गांवों को पहुंचे थे। गांव कनेक्शन के सर्वे में शामिल प्रवासियों में से 23 फीसदी ने कहा था कि वो पैदल चलकर अपने गांव पहुंचे थे, जिसमें उन्हेें 2 से 15 दिन लगे थे। ये पूरी सर्वे रिपोर्ट www.ruraldata.in से डाउनलोड कर सकते हैं

ये भी पढ़ें- लॉकडाउन में पैदल लौटने को मजबूर हुए 23 % प्रवासी मजदूर : गाँव कनेक्शन सर्वे

गांव कनेक्शन का ये सर्वे 30 मई से 16 जुलाई तक चला। इस सर्वे में 963 प्रवासी मजदूर-कामगार शामिल थे, जो शहर से लौटकर गांव आए थे, इनमें से 36 फीसदी ने कहा था कि वो कोरोना के डर से गांव लौटे थे, जबकि 29 फीसदी ने कहा कि पैसों की कमी की वजह से गांव लौटे, जबकि 8 फीसदी को शहर में भुखमरी का डर था, 5 फीसदी के पास काम न होने का भय था, जबकि 2 फीसदी लोग ऐसे थे जिन्हें मकान मालिक किराए के लिए परेशान कर रहे, उनके हाथ खाली थे और मजबूरी में उन्होंने शहर छोड़ दिया।

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प्रवासी कितना दुख दर्द झेलकर वापस लौटे। उस वक्त लग रहा था ये शायद ही वापस जाएं लेकिन कुछ ही महीनों बाद लाखों की संख्या में प्रवासी फिर वापस शहर लौट गए हैं। लौटने का ये सिलसिला लगातार जारी है। गांव कनेक्शन के सर्वे में आधे से ज्यादा प्रवासियों ने तुरंत कहा था कि वो वापस जाएंगे क्योंकि गांव में गुजारा नहीं हो सकेगा। मनोज वाजपेई और अनुभव सिन्हा के इस भोजपुरी रैप में प्रवासियों के साथ ग्रामीण भारत की शिक्षा, बेरोजगारी, स्वास्थ्य और बदतर ग्रामीण हालात को भी शब्दों के जरिए दिखाया गया है।

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बंबई में का बा के निर्देशक अनुभव सिन्हा कुछ दिनों पहले नीलेश मिसरा के खास शो स्लो इंटरव्यू में आए थे। थप्पड़, आर्टिकल-15 और मुल्क जैसी फिल्मों का निर्देशक अनुभव सिन्हा खास तरह की फिल्में बनाने के लिए जाने जाते हैं। देखिए उनके जीवन और फिल्मों से जुड़े अनकहे किस्से और उनकी सोच और आगे की प्लानिंग।


   

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