मदर मिल्क बैंक: "किसी महिला के दूध ने मेरे बच्चे की जिंदगी बचाई, मैं किसी और के लिए अपना दूध दान करती हूं"

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर पढ़िए उन महिलाओं की कहानियां जो किसी दूसरे का बच्चे को दूध मिल जाए, बिन मां के बच्चों की जान बच जाए इसलिए वो अपना दूध दान करती हैं। उदयपुर के इस मदर मिल्क बैंक की बदौलत हजारों बच्चों को जीवन मिला है..

Arvind ShuklaArvind Shukla   7 March 2021 5:11 PM GMT

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उदयपुर (राजस्थान)। "मेरे बच्चे का जन्म ऑपरेशन से हुआ था, इसलिए तीन दिन तक मैं उसे दूध नहीं पिला पाई। बेटे के लिए दूध मदर मिल्क बैंक से आया। जिसने भी वो दूध डोनेट (दान) किया था, उसकी वजह से मेरे बच्चे को जिंदगी मिली, मेरे बच्चे की तरह दूसरे के बच्चों को दूध मिल जाए इसलिए मैं अपना दूध यहां दान करने आती हूं।"

उदयपुर के मदर मिल्क में दूध दान करने आई पारुल (25 वर्ष) कहती हैं। डबोक की रहने वाली पारुल पिछले कई दिनों से दिन में दो बार ये काम करने आती हैं। पारूल को ये भी नहीं मालूम कि जिस मां के दूध ने उसके बच्चे की जान बचाई वो कौन थी, कहां की रहने वाली थीं। पारुल जब उदयपुर के पन्ना धाय राजकीय महिला चिकित्सालय, आरएनटी मेडिकल कालेज में बने दिव्य मदर मिल्क बैंक (Mother Milk Bank) में अपना दूध दान करने के लिए इंतजार कर रही थीं, अंदर एक दर्जन महिलाएं दूध दान कर रही थीं। ये प्रक्रिया सुबह से लेकर शाम तक चलती रहती है। इनमें ज्यादातर महिलाएं ऐसी थीं, जिनकी दो दिन पहले से लेकर 10 दिन में डिलीवरी हुई थीं।

उदयपुर के पन्ना धाय महिला अस्पताल के दिव्य मिल्क बैंक में मिल्क डोनेट करती महिलाएं। फोटो- अरविंद शुक्ला

"यहां महिला अस्पताल में जिन महिलाओं की डिलीवरी होती है हम उन्हें दूध दान करने के फायदे समझाते हैं। क्योंकि ये दूध न सिर्फ बिना मां वाले बच्चों की जान बचाता है बल्कि इन तमाम उन बच्चों के लिए जीवन देने वाला बनता है जिनकी मां किन्हीं वजह से दूध नहीं पिला पाती हैं। आजकल रोज 50-60 महिलाएं यहां रोजाना यहां सिटिंग (मिल्क डोनेट) करने आती हैं।" दिव्य मदर मिल्क की केंद्र प्रभारी मनोरमा दरानी बताती हैं।

डिलिवरी के बाद जो महिलाएं यहां मिल्क डोनेट करती हैं वो सबसे पहले अस्पताल के बच्चा वार्ड में भर्ती नवजातों को दिया जाता है। इसके साथ ही उन बच्चों को भी ये ही दूध मिलता है, जिनकी माएं किन्हीं वजहों से दूध नहीं पिला पातीं, वो बच्चे जो आईवीएफ तकनीकी से पैदा हुए हैं और वो बच्चे भी जिन्हें उनकी मां से पर्याप्त दूध नहीं मिल पाता है।

राजस्थान में इन दिनों 22 मदर मिल्क संचालित हैं। राजस्थान की देखा-देखी कई दूसरे राज्यों में भी मदर मिल्क खोले गए हैं। ये एशिया की सबसे बड़ी मदर मिल्क चेन भी है, जहां हजारों लीटर मदर मिल्क महीनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है, जिससे कई हजार बच्चों को बीमारियों और असमय मौत से भी बचाया जा रहा है।

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Mother Milk महिलाओं द्वारा दान किया गया दूध।

मां के दूध को सुरक्षित रखने की पहल साल 2012 में छोटे बच्चों को पालने वाली गैर सरकारी संस्था महेश आश्रम की तरफ से की गई थी। मदर मिल्क बैंक खोलने की जरुरत पर मां भगवती विकास संस्थान' (महेश आश्रम) के संस्थापक योग गुरु देवेंद्र अग्रवाल कहते हैं, "हमारे शिशुग्रह में फाइव स्टार होटल जैसी सुविधाएं थी, 24 घंटे अच्छे डाक्टर थे, बावजूद इसके कई बच्चे बीमार हो जाते थे, मैंने इस बारे में डाक्टरों से पूछा कि ऐसा क्यों होता है कि हम पानी जैसे पैसा बहाते हैं फिर भी बच्चे क्यों बीमार हो जाते हैं? तो डाक्टर ने कहा कि यहां सब कुछ है लेकिन हमारे पास मां का दूध नहीं है, इसलिए बच्चों के अंदर रोग प्रतिरोधक क्षमता नहीं है।"

देवेंद्र अग्रवाल बताते हैं, मैंने डाक्टर से कहा की मैं पन्ना धाय की जमीन से हूं। जिस पन्ना धाय ने मेवाण राजवंश को बचाने के लिए अपने बेटे का बलिदान कर दिया था, मैं अपने बच्चों के लिए कुछ भी करूंगा। जिसके बाद मैंने सरकार को खत लिखा और उदयपुर के मेडिकल कालेज में मदर मिल्क बैंक की शुरुआत की। वीडियो यहां देखिए



देवेंद्र अग्रवाल के मुताबिक उन्होंने मेवाड़ की धाय परंपरा पर तो शोध किया ही साथ ही मां के दूध के औषधीय गुणों की भी जानकारी जुटाई और ये भी पता लगाया कि दुनिया में कहां ऐसा काम हो रहा है। वो कहते हैं, "ब्राजील में सबसे बड़ा मिल्क बैंक है। हमने समझा कि वहां कैसे महिलाओं को चुनाव होता है, कैसे मिल्क सुरक्षित रखा जाता है। क्योंकि हमारे देश में जिन 100 बच्चों की होती है, उनमें 40 की जान बचाई जा सकती है अगर उन्हें मां का दूध मिल जाती है। क्योंकि ये बच्चे डायरिया, निमोनिया, पीलिया जैसी साधारण बीमारियों से काल का ग्रास बनते हैं।"

राजस्थान की मदर मिल्क बैंक में मांओं का दूध लेते वक्त कई तरह की सावधानियां रखी जाती हैं। कई तरह की जांच भी होती हैं। दिव्य मदर मिल्क उदयपुर की केंद्र प्रभारी मनोरमा दरानी बताती हैं, "जो महिलाएं मिल्क डोनेशन के लिए आती हैं उनकी मेडिकल हिस्ट्री समझी जाती है, देखा जाता है उन्हें कोई गंभीर बीमारी तो नहीं, अगर ऐसा होता है तो फिर उनका मिल्क नहीं लिया जाता है। हम पूरी एहतियात बरतते हैं। अभी तक कोई गलत वाक्या नहीं हुआ।"

उदयपुर के मेडिकल कालेज में बनाया गया पालना गृह, ये उनके लिए हैं जो अपने अनचाहे बच्चों को इधर-उधर फेंक जाते थे। पालना गृह में रखे पालने में बच्चे के रखते ही 2 मिनट बाद अंदर बेल बजती है, जिसके बाद उक्त बच्चे को अस्पताल के कर्मचारी अपने संरक्षण में ले लेते हैं।

मदर मिल्क की सफलता पर देवेंद्र अग्रवाल कहते हैं, "सरकार शुरु से ही इस अभियान में सहयोग कर रही रही थी, 2016 में सरकार ने बाकायदा इसके लिए बजट जारी कर पहले साल 10 मदर मिल्क बैंक खोलने के लिए बजट जारी किया फिर अगले साल 7 और बैंक खोले गए। बाद में केंद्र सरकार ने भी इस सराहनीय पहल की सफलता को देखते हुए 5 यूनिट खुलवाने का काम किया। इस तरह राजस्थान में 22 बैंक इन दिनों कार्यरत हैं। ये एशिया की सबसे बड़ी मदर मिल्क चेन है।"

राजस्थान की इस सुविधा का फायदा आसपास के राज्यों के लोग भी लेते हैं। मध्यप्रदेश के मंदसौर में रहने वाले 58 साल के सेवाराम अपनी पत्नी के साथ मदरमिल्क में दो बोतल दूध लेने पहुंचे थे, उनकी पत्नी कुछ दिनों पहले ही आईवीएफ तकनीकी से मां बनी थीं, और उनके दूध नहीं आ रहा था। इसी तरह मध्य प्रदेश के नीमच जिले की प्रतिभा बताती हैं, उन्हें पिछले दिनों बच्चा हुआ लेकिन दूध नहीं आ रहा है। इसलिए वो डाक्टर से पर्चा लिखवाकर लाती हैं और रोज दूध ले जाती हैं।

मध्य प्रदेश के बुजुर्ग दंपति जिन्हें मिला मदर मिल्क बैंक से लाभ।

दिव्य मदर मिल्क की सेंटर इंचार्ज मनोरमा दरानी कहती है, "डिलीवरी के बाद हार्मोनल बदलाव होते हैं तो दूध तो सबको आता है लेकिन कई बार ज्यादा उम्र में मां बनने वाली (खासकर आईवीएफ) के दूध नहीं आता है। ऐसी महिलाओं के बच्चे तो कई बार अस्पताल में रह जाते हैं लेकिन मांओं को घर भेज दिया जाता है इन बच्चों के लिए मदर मिल्क बैंक से दूध जाता है। हम ऐसी महिलाओं को दूध तो देते ही हैं कई बार इन महिलाओं को सही तरीके से ट्रेनिंग देने पर इनके ही दूध आने लगता है।"

मां के दूध को अमृत कहा जाता है। डाक्टरों के मुताबिक जन्म के तुरंत बाद बच्चे को मां का दूध दिया जाना चाहिए। स्तनपान से बच्चे और मां दोनों को शारीरिक और मानसिक लाभ होता है। मनोरमा दरानी कहती हैं, "मां का दूध तुरंत बच्चे को मिलने से उसके शरीर का तापमान ठीक रहता है। बच्चे को जरूरी पोषण मिलता है, उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है। उसमें जरुरी वैक्टीरिया पनपते हैं साथ ही ये दूध महिलाओं की डिलीवरी के बाद फिटनेस में मदद करता है। अतिरिक्त वसा इससे खत्म होती है।"

स्तन पान (ब्रेस्ट फीडिंग) को बढ़ावा देने के लिए दुनियाभर में हर साल 1 अगस्त से 7 अगस्त तक स्तनपान दिवस मनाया जाता है।

नोट- ये खबर मूलरुप से सितंबर 2019 में गांव कनेक्शन में प्रकाशित की गई थी। अंग्रेजी में ये खबर यहां पढ़ें

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