कृषि कानून: बिचौलियों और आढ़तियों में क्या अंतर है? आढ़तियों को किसान अपना एटीएम क्यों कहते हैं?

ये बिचौलिए कौन होते हैं? आढ़तियों और बिचौलियों में क्या फर्क है? और किसान आंदोलन से इन आढ़तियों का क्या कनेक्शन है? आखिर आढ़तियों को किसानों का एटीएम क्यों कहा जाता है?

Arvind ShuklaArvind Shukla   2 Feb 2021 11:01 AM GMT

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- अरविंद शुक्ला/ दया सागर

नए कृषि क़ानूनों को लेकर किसानों के आंदोलन के 2 महीने से ज्यादा समय हो गया है। कृषि क़ानूनों के विरोधी इन्हें किसानों के लिए आत्मघाती बताते हैं तो कृषि क़ानूनों के समर्थक कहते हैं कि कृषि सुधार से खेती की दशा बदल जाएगी, बिचौलिए खत्म होंगे, किसानों की आमदनी बढ़ेगी।

ये बिचौलिए कौन होते हैं? आढ़तियों और बिचौलियों में क्या फर्क है? और किसान आंदोलन से इन आढ़तियों का क्या कनेक्शन है? ऐसे सवाल हज़ारों लोगों के मन हैं। कई मंत्री, नेता इन पर सवाल उठाते रहे हैं? गांव कनेक्शन ने किसानों, किसानों के परिजनों, आढ़तियों, मार्केट से जुड़े तमाम लोगों से बात कर इसे समझने की कोशिश की।

"आढ़ती हमारे सुख-दुख के साथी हैं। फसल लगानी हो या घर में शादी-ब्याह हो हम उनसे जितना चाहे पैसा मांग सकते हैं। अगर हम अपनी फसल प्राइवेट (मंडी से बाहर कॉरपोरेट या व्यापारी) को देना शुरू करेंगे तो वो हमसे रिश्ता थोड़े रखेगा, वो हमें एडवांस थोड़े देगा," पंजाब में संगरुर जिले के मानसा गांव के किसान लखविंदर सिंह कहते हैं। लखविंदर का घर हरियाणा-पंजाब के खनौरी बॉर्डर से 70 किलोमीटर दूर है।

संगरुर से करीब 200 किलोमीटर दूर हरियाणा के सोनीपत जिले में खरखौदा मंडी हैं। यहां पर करीब 80 आढ़ती हैं, नरेश दहिया उनमें से एक हैं जो करीब 400 किसानों से जुड़े हैं। नरेश गांव कनेक्शन को फोन पर आढ़ती, एपीएमसी (मंडी) का खेती और किसान आंदोलन से रिश्ता बताते हैं।

"पहली बात तो हम बिचौलिये नहीं हैं। ये बिचौलिया-बिचौलिया कह कर हमें बदनाम किया जाता है। हमें तो सरकार ने ही लाइसेंस दिये हैं। बिचौलिया वो होता है जो 10 रुपए की चीज लेकर 25 में बेचे। हम सैकड़ा पर ढाई फीसदी कमीशन लेते हैं, जो सरकार ने तय किया है। जिसके बदले हम किसान की सेवा करते हैं। मंडी में किसान की फसल, उतरवा कर साफ करवाकर तुलवाकर बिकवाते हैं, वक्त जरूरत किसान को रात 12 बजे भी भी कैश लेकर हाज़िर होते हैं। हम तो अपनी मेहनत का खाते है," नरेश दहिया कहते हैं।

तस्वीर दिल्ली की है। कृषि आंदोलन के खिलाफ दिल्ली में चल रहे आंदोलन में पंजाब और हरियाणा के किसानों की संख्या सबसे ज्यादा है।

आढ़ती, सरकारी मंडियों यानि कृषि उपज बाजार समिति (APMC) में किसानों और सरकारी एजेंसियों के बीच ख़रीद के लिए पुल का काम करते हैं। 3 जून 2020 को कृषि अध्यादेशों के लागू होने और 5 जून को राष्ट्रपति की मुहर के बाद किसान संगठनों के साथ आढ़तियों ने भी इसका विरोध शुरू किया था, मंडियों में हड़तालें हो गई थीं।

कृषि क़ानूनों के विरोध पर नरेश दहिया कहते हैं, "जून में हमने आम लोगों को जाकर ये बताया था कि किसान बर्बाद होने वाला है। हमारी मेहनत रंग लाई। और ये जन आंदोलन बना। क्योंकि किसान नहीं रहेगा तो आढ़ती भी कहां रहेगा।? रही बात आंदोलन में सहायता की जहां कहीं राशन, दाल आदि की जरुरत होती है तो हम पहुंचा देते हैं। इसके अलावा हमारा कोई सहयोग नहीं।"

किसानों के उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (पदोन्नति और सुविधा) विधेयक 2020 (Farmers' Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation Bill), जो बाद में कानून बना, से सबसे बड़ा विरोध ये है कि सरकारी मंडियों (एपीएमसी) का वजूद खत्म हो जाएगा। कानूनी रूप से भी किसान अपनी फसलें खासकर अनाज सिर्फ मंडियों में ही बेच सकता है, नए कानून में कहीं भी बेचने की आज़ादी है। देश में सबसे अच्छा मंडी सिस्टम पंजाब-हरियाणा में है इसलिए सबसे पहले विरोध के सुर भी यहां से उठे। पंजाब में आढ़तियों और उससे जुड़े मज़दूरों की संख्या करीब 5 लाख है, जिन्हें अपनी आजीविका खतरे में नजर रही है। (हालांकि सरकार ने बाद के प्रस्तावों में कहा कि मंडी के बाहर भी टैक्स लगाया जाएगा, जो मूल कानून में नहीं था।)

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पंजाब में करीब 28,000 रजिस्टर्ड आढ़ती (कमीशन एजेंट) हैं। हर आढ़ती के पास करीब 6 से 20 लेबर साल के 6 महीने काम करते हैं। जो धान, गेहूं, कपास, बासमती, बाजरा, मक्का आदि की ख़रीद करते हैं। पंजाब में 1,850 बड़ी मंडियां हैं, जिनमें से 152 अनाज की मंडियां हैं। पिछले दिनों पंजाब में खाद्य, नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता मामलों की निदेशक अनिन्दिता मित्रा ने गांव कनेक्शन को बताया था कि कोविड के चलते पंजाब सरकार ने 22 जिलों में 1,850 की जगह 4,007 सेंटर के जरिए धान की खरीद की। देश में चालू ख़रीद सीज़न में 22 जनवरी तक कुल 578 लाख मीट्रिक टन धान की ख़रीद हुई है, जिसमें से 202.77 लाख मीट्रिक टन की धान ख़रीद अकेले पंजाब से हुई है।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में 2,477 बड़ी एपीएमसी (कृषि उपज एंव बाजार समिति) हैं जबकि 4,843 उप एपीएमसी हैं। कृषि सुधारों के लिए यूपीए सरकार में बनाए गए स्वामीनाथन आयोग की सिफ़ारिशें के मुताबिक देश में 42,000 मंडियों की जरूरत है।


नरेश दहिया कहते हैं, "हमसे करीब 400 किसान जुड़े हैं। हमारी खरखौंदा मंडी में 80 आढ़त हैं। अकेले हमारी मंडी से हर साल 10-12 करोड़ रुपए सरकार को टैक्स जाता है। पूरे हरियाणा में करीब 40 हजार के आसपास आढ़ती होंगे। हम तो अपनी मेहनत का पैसा लेते हैं। लेकिन ये सरकार हमें बदनाम करने में लगी है। क्योंकि इन्हें कॉरपोरेट को फायदा पहुंचाना है।"

एपीएमसी एक्ट में बदलाव की बातें कई वर्षों से उठ रही थीं। गेहूं और धान की ख़रीद के दौरान कई बार किसान, आढ़तियों की शिकायत भी करते रहे हैं लेकिन कृषि क़ानूनों के बाद हालात बिल्कुल बदल गए हैं। पंजाब-हरियाणा के बहुत सारे किसान आढ़तियों को अहम कड़ी मानते हैं।

पटियाला जिले की महिला किसान जसविंदर कौर (60 वर्ष) कहती हैं, "आढ़ती के बिना हमारा बेड़ा ही पार नहीं होगा। बैंक तो रात में बंद हो जाते हैं। लेकिन आढ़ती की बैंक हमेशा खुली रहती है। रात दो बजे भी दरवाज़ा खटकाओ तो पैसा मिलता है। पिछले दिनों ही अपनी बेटी की शादी में हमने 2 लाख रुपए लिए थे।"

पंजाब में गुरुदासपुर जिले के परगट सिंह, अपने साथ करीब 200-300 ट्रैक्टर के साथ 26 जनवरी को दिल्ली में होने वाली ट्रेक्टर परेड की तैयारी के दौरान फतेहगढ़ साहिब में गांव कनेक्शन की टीम से मुलाकात हो गई। उन्होंने बताया, "मैं किसान भी हूं और आढ़ती भी हूं। आप ये बताइए कि 3 जून को कृषि अध्यादेश आने से पहले क्या भारत में बड़ी कंपनियों को कारोबार करने की इजाज़त नहीं थी? फिर कानून लाने की क्या जरूरत थी। पंजाब में रोडवेज को प्राइवेट हाथों में दिया गया उसका हाल देखिए, अस्पतालों का हाल देखिये। सरकार कुछ भी कहे लेकिन मंडियों का भी वही हाल होने वाला है। यही विरोध की वजह है।"

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दिल्ली की आजादपुर मंडी में प्याज के कमीशन एजेंट (आढ़ती) हितेंद्र ढींगरा कहते हैं, "ज्यादातर लोगों को लगता है कि आढ़ती ही बिचौलिया है, वो ज्यादा पैसा कमा रहा है उसकी वजह से चीजें महंगी होती हैं लेकिन हम तो कमीशन पर काम करते हैं। हमारा तो रेट तय है, जो सरकार ने तय किया है। हमारे पास किसान भी सब्जी लेकर आता है और स्थानीय व्यापारी भी, उन्हें बिचौलिया कहा जाता है। बिचौलिया किसान से ख़रीदता है और हमें बेचता है। वो रिस्क लेता है तो कई बार वो पैसा ज्यादा कमाता है। लेकिन सबसे ज्यादा पैसा सब्जी के मामले में फुटकर बेचने वाले कमाते हैं।"

किसान आंदोलन में आढ़तियों की कितनी भूमिका है इस बारे में एक किसान नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "पंजाब और हरियाणा के ऐसे कई किसान नेता हैं जिनकी खुद की आढ़त हैं। लेकिन ये आंदोलन आढ़तियों का है, ये कहना गलत है। ये किसानों का आंदोलन है। मंडी व्यवस्था में सुधार की मांग पुरानी है पूरे देश के किसानों का भला सही मायने में तब होगा जब न्यूनतम समर्थन मूल्य का कानून बन जाएगा।"

राष्ट्रीय आढ़तिया किसान संघ के उपाध्यक्ष रविंदर सिंह चीमा गांव कनेक्शन से कहते हैं, "मंडियों में अगर कर लगेगा और बाहर कोई कर नहीं लगेगा, तो मंडी में काम करने वाले आढ़तियों को नुकसान होगा। इसलिए आढ़ती संघ कृषि कानूनों का विरोध कर रहे थे। हालांकि अगर सरकार इसमें संशोधन की बात कर रही है, तो हम उससे संतुष्ट और खुश हैं।"

किसान आंदोलन को फंडिंग देने के सवाल पर चीमा कहते हैं कि सबसे पहले हम बिचौलिया नहीं बल्कि आढ़ती हैं। हमारे लिए सरकार ने नियम बनाया है और हम बिना रेगुलेशन के कोई काम नहीं करते हैं, जबकि सरकार को टैक्स भी देते हैं। हां, हम किसानों को समर्थन दे रहे हैं और जबसे यह कृषि आंदोलन पंजाब में चल रहा है, तब से आढ़तिया संघ के लोग इन आंदोलनकारी किसानों के खाने-पीने, रहने आदि का प्रबंध कर रहे हैं। इसमें हमारा भी योगदान है।"


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