बस परिचालकों ने कहा- कमीशन नहीं दिया तो टीआई साहब ने नाैकरी से निकाल दिया

छोटी-छोटी बातों और सीनियर अधिकारी को खुश न कर पाने के कारण कभी भी खत्म हो जाती है नौकरी।

Ashwani Kumar DwivediAshwani Kumar Dwivedi   27 April 2019 11:30 AM GMT

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बस परिचालकों ने कहा- कमीशन नहीं दिया तो टीआई साहब ने नाैकरी से निकाल दिया

लखनऊ। संविदाकर्मियों को सेवा पर रखना और उन्हें निकालना सरकारी तंत्र के लिए खेल जैसा है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में विधानसभा से महज दो किमी की दूरी पर स्थित उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम में पिछले 71 दिनों से धरने पर बैठे उत्तर प्रदेश के जिलों के निष्कासित बस परिचालकों की आवाज न तो आला अधिकारियों तक पहुंच पा रही है और न तो सरकार के पास।

दो महीने पहले निष्कासित संविदाकर्मी जब आमरण अनशन पर बैठे तो उनमें से कई की स्थिति बिगड़ गई थी। तब पुलिस प्रशासन ने उन्हें बलरामपुर अस्पताल में भर्ती करवाकर आमरण अनशन ख़त्म करवा दिया था। लेकिन संविदाकर्मियों का क्रमिक अनशन अब भी जारी हैं। ये कहना है निष्कासित संविदा परिचालक बहाली संघ के प्रतिनिधि गौरी शंकर अवस्थी का जो अपने साथियों के साथ परिवहन निगम के मुख्यालय परिसर में धरना दे रहे हैं।

"सर हमारी गलती सिर्फ इतनी थी कि टीआई साहब को हफ्ता नहीं दे पाए। गाड़ी बस स्टॉप से मुश्किल से 100 कदम बढ़ी होगी तभी टीआई साहब ने जांच कर ली। टिकट काटना शुरू कर चुका था, कोई चार-पांच टिकट कटने बाकी थे। टीआई साहब ने मेरे ऊपर डब्लूटी (बिना टिकट) का चार्ज लगा दिया ये कहने पर कि सर टिकट काट ही रहा था अभी यात्रियों से पैसे लिए नहीं हैं आप बयान ले लो, इस पर मेरे अपराध में एक आरोप और बढ़ गया की मैंने टीआई से दुर्व्यवहार किया है और मुझे नौकरी से निकाल दिया गया। पिछले 6 वर्षो से बेकार हूं। 71 दिनों से निष्कासित साथियों सहित धरने पर हूं। घर से बाल बच्चे फोन करके पूछते हैं घर कब आएंगे? अब जब तक न्याय नही मिल जाता यहां से वापस नहीं जाएंगे। यहीं जान दे देंगे।" ये कहते हुए 41 वर्षीय पंकज त्रिपाठी जो की बस्ती के निवासी है घर परिवार की चिंता में परेशान हो उठते है।

लगभग पांच हजार संविदा परिचालकों को नौकरी से निकाला गया

आगरा रीजन ईदगाह डिपो से लखनऊ के धरना में शामिल कमल सिंह बताते हैं कि 2006 में परिवहन विभाग में संविदा परिचालक पद पर भर्ती हुई थी। 12 साल 6 महीने तक सेवा की लेकिन मुझ पर बिना टिकट का चार्ज लगाकर मेरी सेवाएं समाप्त कर दी गयी। उसके बाद उच्च अधिकारियों के सामने मुझे अपना पक्ष रखने का मौका भी नहीं दिया गया। इस विभाग में अगर टीआई या क्षेत्रीय अधिकारी को संविदा परिचालक सेट नहीं रखते या क्षेत्रीय अधिकारी या टीआई किसी बात पर नाराज हैं तो संविदा परिचालक चाहे कितना भी पुराना क्यों न हो उसकी नौकरी जानी तय हैं। टीआई ने जो भी लिख दिया वही ब्रम्हावाक्य हो जाता हैं।

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कमल सिंह आगे बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में करीब 30 हजार संविदा परिचालक काम कर रहे हैं जिनमें से 5 हजार से ज्यादा परिचालकों को इसी तरह डब्लूटी (बिना टिकट) का चार्ज लगाकर निकाला गया हैं। इतने लम्बे समय तक विभाग में काम करने के बाद अब कहीं और नौकरी मिलना भी मुश्किल है पूंजी है नहींख् कोई व्यापार भी शुरू नहीं कर सकते।

निष्काषित संविदा परिचालक कैलाशचन्द्र गुप्ता (55) बताते हैं कि बस में भीड़ ज्यादा थी, टिकट काटते समय चेकिंग हुई। तीन यात्री ऐसे थे जिनके टिकट नहीं कट पाए थे और चार लोगों का एक परिवार था जिन्होंने अनुरोध किया था की स्टॉप से थोडा आगे उत्तार दीजिये बुजुर्ग माँ बाप साथ है। उन्हें भी टीआई ने जोड़ दिया और सात लोगों को डब्लूटी(बिना टिकट) दिखाते हुए मेरी सेवा समाप्त करवा दी। टीआई साहब 5 हजार रूपये नौकरी बचाने के लिए मांग रहे थे मिला एक रुपया भी नहीं मै 5 हजार भला कहा से देता, मुझे बैठा दिया गया बड़े अधिकारीयों के पास गया पर कही मेरी बात नहीं सुनी गयी। इस उम्र में जब जिम्मेदारियां सर पर है, कहा जाए ,क्या करें कुछ समझ में नहीं आता।

सोर्स और जुगाड़ हैं तो 75 बिना टिकट वाला निर्दोष और 5 वाला दोषी

बहराइच से आये दिनेश कुमार शुक्ला (संविदा परिचालक आजमगढ़ डिपो) बताते है "संविदा परिचालक की नौकरी में सब जुगाड़ और सोर्स का खेल है। बहराइच डिपो की बस में टीआई ने 75 यात्री बिना टिकट पकड़े उसे परिवहन विभाग द्वारा बहाल कर दिया गया क्योकि परिचालक फहीम पूर्व परिवहन मंत्री के रिश्तेदार हैं। भूलवश या ज्यादा भीड़ के कारण जिन डिपो में पांच भी लोग बिना टिकट मिले। उन्हें बर्खास्त कर दिया गया। इन सबके प्रमाण है, बहुत से लोग जो वास्तव में डिफाल्टर हैं ऐसे लोगों को प्रभावशाली लोगों के फोन पर प्रबंध निदेशक ने बिना किसी जांच के उनकी बहाली की है।

जिला सीतापुर से आये संविदा परिचालक विनोद कुमार वर्मा बताते हैं कि मुझे 10 डब्लूटी (बिना टिकट यात्री) की वजह से हटा दिया गया। मेरे साथ वास्तव में अन्याय हुआ है। मैं टिकट काट रहा था। टीआई ने कुर्सी में बस चेक की और कागजों पर उसे टिकैतगंज दिखा दिया और मेरी सेवा समाप्त कर दी गयी। इसके बाद मैंने गृहमंत्री से लेकर सभी बड़े अधिकारीयों को पत्र दिया, उसकी रिसीविंग भी हैं लेकिन कही सुनवाई नहीं हुई सब लोग मुझे ही चोर बता रहे हैं।

नए संविदाकर्मियो को भर्ती करने में अधिकारीयों को है एक से ढेढ़ लाख का फायदा

जिला बलिया से धरना में आये संविदा परिचालक अरविन्द कुमार मेहता बताते हैं "मैं दिल्ली से बस लेकर आ रहा था। रास्ते में टीआई महोदय ने हाथ दिया और बोला कि अपना मशीन दीजिए मैंने मशीन दे दिया और वो टिकट बनाकर मशीन वापस करके अपनी बोलेरों में बैठ कर चले गये। जब मैं ऑफिस पहुचा तो पता चला की टीआई साहब डब्लूटी का चार्ज काटकर गये थे। मैंने इन टीआई साहब को सिर्फ पचास रुपए देने से मना किया था। उसी में नौकरी चली गयी। उसी शाम रजिस्टर से मेरा नाम काट दिया गया।

अरविंद आगे बताते हैं कि जरा सी सेटिंग बिगड़ने पर संविदा परिचालकों को निकालने की एक वजह ये भी है कि संविदा परिचालक पद के लिए नई भर्ती पर अधिकारी एक से ढेढ़ लाख तक की रिश्वत ले लेते हैं। यही वजह है की जिन संविदाकर्मियों से फायदा नहीं होता उन्हें बाहर कर दिया जाता हैं। यही वजह है की ज्यादा से ज्यादा पुराने लोगों को बाहर किया जा रहा हैं। संविदा के सामान्य नियमों का पालन भी क्षेत्रीय स्तर के अधिकारी नहीं करते हैं और बड़े अधिकारी संविदाकर्मियों की बात नहीं सुनते। बंधुआ मजदूरों वाली हालत हैं जिसमें गलती हमेशा मजदूर की होती हैं।

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उत्तर प्रदेश राज्य परिवहन निगम के अपर प्रबंध निदेशक राधेश्याम ने बताया "संविदा परिचालक की नियुक्ति क्षेत्रीय प्रबंधक स्तर पर की जाती है और क्षेत्रीय प्रबंधक स्तर पर ही अनियमितता पाए जाने पर उन्हें निकाला जाता है।"

संविदा परिचालकों द्वारा लगाए गये पक्ष न सुनने के आरोप पर अपर प्रबंध निदेशक आगे बताते हैं कि रीजनल स्तर पर ही चार सदस्यों की एक जांच कमिटी होती है जहाँ संविदाकर्मी अपना पक्ष रखते है और कमिटी जांच के बाद निर्णय लेती है। अगर कमिटी के निर्णय से संविदाकर्मी संतुष्ट नही होते है तो निगम स्तर पर दूसरी सुनवाई अपील का कोई प्रावधान नही है फिर वो कोर्ट जाकर अपना पक्ष रख सकते हैं।


    

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