नेट न्यूट्रैलिटी : अमेरिका के इस फैसले का भारत की वेबसाइट्स पर पड़ेगा ये असर...
Anusha Mishra 15 Dec 2017 4:50 PM GMT
नेट न्यूट्रैलिटी का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने नेट न्यूट्रैलिटी यानि इंटरनेट तटस्थता के पुराने फैसले को पलट दिया है। नए फैसले के मुताबिक, अमेरिका में अब नेट न्यूट्रैलिटी ख़त्म हो जाएगी और टेलीकॉम कंपनियां किसी ख़ास वेबसाइट को दिखाने के लिए अपनी मर्ज़ी से पैसे वसूल पाएंगी।
ऐसा माना जाता था कि इंटरनेट की दुनिया में अमीर ग़रीब का भेद नहीं होता लेकिन अब ये बात यहां भी लागू होने वाली है। अब उन्हीं वेबसाइट को वरीयता दी जाएगी जो खुद को उपभोक्ताओं तक पहुंचाने के लिए ज़्यादा पैसे खर्च करेंगी। ऐसे में जो स्टार्ट अप्स हैं, क्राउड फंडिंग से चलने वाली कंपनियां है या छोटी स्वायत्त कंपनियां हैं उन पर ख़तरा ज़्यादा है। उनके पास इतना पैसा नहीं होगा कि वे अपनी स्पीड को बढ़वाने के लिए इंटरनेट प्रदाता कंपनियों को मुहं मागा पैसा दे सकें। जिसका नकारात्मक असर उस वेबसाइट पर पड़ना तय है। भारत जहां इंटरनेट की दुनिया में अपनी साख स्थापित करने की लगातार कोशिश कर रहा है, वहीं अमेरिका इंटरनेट को बड़ी कंपनियों के हाथों में सौंपने को बेताब है।
नेट न्यूट्रैलिटी कानून खत्म करने के विरोध में अमेरिका के रेग्युलेट्रर्स ने गुरुवार को वोट दिया। फेडरल कम्युनिकेशंस कमीशन के अजित पाई ने ओबामा के नेट न्यूट्रैलिटी कानून के फैसले के खिलाफ वोट दिया है। नेट न्यूट्रैलिटी को खत्म करने का प्रस्ताव रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से कुछ दिन पहले नियुक्त भारतीय-अमेरिकी चेयरमैन अजित पाई ने रखा था।
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ओबामा प्रशासन का मत था कि इंटरनेट सेवा को सार्वजनिक सेवा का दर्जा दिया जाए। जिसके मुताबिक हर इंसान को बराबर का इंटरनेट समान कीमत पर मिले। लेकिन ट्रम्प प्रशासन ने ओबामा के महत्वपूर्ण फैसले को बदल दिया है। फेडरल कम्युनिकेशंस ने इस बार फैसला पलट दिया और 3-2 के पक्ष में मतदान किया है। नेट न्यूट्रलिटी के फैसले का विरोध करने वालों का कहना है कि इससे उपभोक्ताओं को नुकसान होगा और बड़ी कंपनियों को लाभ मिलेगा।
क्या है नेट न्यूट्रेलिटी
नेट न्यूट्रैलिटी इस सिद्धांत पर काम करता है कि इंटरनेट सेवा देने वाली सभी कंपनियों को हर तरह के डाटा को समान दर्जा देना चाहिए। यह वही सिद्धांत है जिस पर इंटरनेट अपनी शुरुआत से चला रहा है। इन कंपनियों को न तो किसी सेवा को ब्लॉक करना चाहिए न ही उसकी स्पीड धीमी करनी चाहिए। लेकिन नियामकों, उपभोक्ता अधिवक्ताओं और इंटरनेट कंपनियों को चिंता थी कि ब्रॉडबैंड कंपनियां अपने इंटरनेट का फायदा किस तरह उठा सकती हैं। वे चाहें तो अपनी किसी प्रतिद्वंदी कंपनी की स्पीड धीमी कर सकती हैं। नेट न्यूट्रेलिटी के पक्षधर ये भी कहते हैं कि टेलीकॉम ऑपरेटर्स को भी एक जैसे डेटा के इस्तेमाल पर अलग - अलग चार्ज नहीं लेना चाहिए।
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आप इंटरनेट के यातायात को सड़क के यातायात के हिसाब से भी समझ सकते हैं। ये बिल्कुल ऐसा ही है जैसे कोई सड़क की यातायात व्यवस्था को देखने वाला किसी भी गाड़ी के मॉडल के हिसाब से उसे पहले ये बाद में गुजरने के लिए नहीं कह सकता। सड़क पर चलने वाली हर गाड़ी के लिए ट्रैफिक रूल समान होते हैं। वैसा ही नेट न्यूट्रेलिटी के पक्ष में बोलने वाले लोगों का मानना है। किसी भी ख़ास वेबसाइट के लिए ख़ास स्पीड देना या कम करना ग़लत है।
क्या पड़ेगा प्रभाव
अगर नेट न्यूट्रेलिटी को ख़त्म कर दिया गया तो इसका सबसे ज़्यादा असर उन देशों पर पड़ेगा जहां इंटरनेट की सेवाओं को शुरू हुए ज़्यादा साल नहीं हुए हैं। नेट न्यूट्रेलिटी के कारण अभी तक बड़ी कंपनियां छोटी कंपनियों का वेब ट्रैफिक स्लो नहीं कर सकती थीं लेकिन इसके ख़त्म हो जाने के बाद गूगल जैसी बड़ी कंपनियां किसी छोटी कंपनी की वेबसाइट को धीमा कर सकती हैं। ऐसा हो सकता है कि अब जो कंपनियां ज़्यादा पैसा ख़र्च करेंगी, उनका सर्च इंजन उतनी ज़्यादा तेज़ काम करेगा। ऐसा भी हो सकता है कि नेट न्यूट्रेलिटी के बाद कुछ कंपनियों को इंटरनेट पर आने से ही रोक दिया जाए। जिन कंपनियों के पास इतना राजस्व नहीं होगा कि प्रतियोगिता में बने रहने के लिए ज़्यादा पैसा खर्च करें उनका अस्तित्व ख़त्म हो जाएगा और इंटरनेट पर बड़ी कंपनियों का एकाधिकार हो जाएगा।
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नेट न्यूएट्रेलिटी के पक्ष में बोलने वालों का कहना है कि अगर इंटरनेट की तटस्थता को ख़त्म कर दिया गया तो छोटी कंपनियां कभी सफल नहीं हो पाएंगी लेकिन इंटरनेट देने वाली कंपनियों का मानना है कि नेट न्यूट्रेलिटी को ख़त्म करने से उन्हें जो मुनाफ़ा होगा उससे वो इंटरनेट के बुनियादी ढांचे में सुधार कर सकेंगी। उनका ये भी कहना है कि इस पैसे को वे दूर दराज़ और गाँव के इलाकों तक पहुंच बनाने के लिए इस्तेमाल करेंगी ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक इंटरनेट की पहुंच बढ़ाई जा सके।
भारत पर भी असर
भारत में लगभग पिछले 10 वर्षों से ही इंटरनेट सेवा प्रभाव में आई है। यहां भी 2015 से नेट न्यूट्रेलिटी का मुद्दा लगातार उठता रहा है। जहां कुछ कंपनियां इसके विरोध में हैं वहीं कुछ ऐसी भी कंपनियां भी जो नेट न्यूएट्रेलिटी के पक्ष में हैं। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, नेट न्यूट्रेलिटी को अगर 10 साल पहले ख़त्म कर दिया गया होता तो ऑरकुट और माइस्पेस जैसी कंपनियां पैसे देकर अपना अस्तित्व बचा सकती थीं और ऐसे में फेसबुक जैसी कंपनियों को शुरुआत में अपना बाज़ार बनाने में काफी दिक्कत होती।
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पुणे में एक कॉरपोरेट कंपनी में सीनियर सॉफ्टवेयर इंजीनियर अनुभव मिश्रा बताते हैं कि नेट न्यूएट्रेलिटी ख़त्म होने से इसका असर कंपनियों के साथ - साथ आम उपभोक्ताओं पर भी पड़ सकता है। ऐसा हो सकता है कि अब इंटरनेट प्रदाता कंपनियां आपको फेसबुक, व्हॉट्सऐप, यूट्यूब जैसी किसी ख़ास सेवा को लेने के लिए आपको अलग से या ज़्यादा पैसे चुकाने पड़ें। या ऐसा भी हो सकता है कि अगर आपने किसी कंपनी का 10 जीबी का इंटरनेट पैक लिया है तो वो कंपनी ये तय कर दे कि उस 10 जीबी में से आप सिर्फ 1 जीबी डेटा का ही इस्तेमाल फेसबुक चलाने के लिए कर पाएंगे। अगर आप इससे ज़्यादा डेटा इस्तेमाल करते हैं तो आपसे अलग से पैसे लिए जाएंगे।
छोटी वेबसाइटों पर ख़तरा
सिर्फ भारत ही नहीं, दुनियाभर में कई छोटी वेबसाइट हैं जो इंटरनेट पर अभी अपनी जगह बना रही हैं, अगर नेट न्यूट्रैलिटी के आभाव में इस तरह की वेबसाइट अमेरिका में बंद कर दी जाती हैं, तो भारत जैसे देशों में भी इनके यूज़र्स में कमी आएगी। भारत हमेशा से नेट न्यूट्रैलिटी को किसी भी तरह से प्रभवित करने का पक्षधर नहीं, लेकिन ये जरूर है अमेरिका में नेट न्यूट्रैलिटी खत्म होने से भारत सहित कई देश इससे प्रभावित होंगे।
अमेरिका में ही हो रहा है विरोध
अमेरिका की जनता भी वहां की सरकार के इस फैसले का विरोध कर रही है। अमेरिका के वरिष्ठ राजनीतिज्ञ बर्नी सैंडर्स ने ट्विटर पर इसका विरोध करते हुए लिखा है - हमारे लोकतंत्र पर यह एक बड़ा हमला है । नेट न्यूट्रेलिटी को ख़त्म करने का मतलब है कि इंटरनेट सबसे ज्यादा बोली लगाने वाले के हाथों बिक जाएगा। जब हमारे लोकतांत्रिक संस्थान पहले से ही संकट में हैं, तब इस निर्णय को प्रभावी होने से रोकने के लिए हम सब को कुछ करना चाहिए।
This is an egregious attack on our democracy. The end of #NetNeutrality protections means that the internet will be for sale to the highest bidder. When our democratic institutions are already in peril, we must do everything we can to stop this decision from taking effect. https://t.co/8GGrJFMdrU
— Bernie Sanders (@SenSanders) December 14, 2017
केसी नाम की एक ट्विटर यूज़र लिखती हैं : नेट न्यूट्रेलिटी सिर्फ सोशल मीडिया से हमें दूर करने से ज़्यादा है। जानकारी तक पहुंचने का मेरा अधिकार है। मेरी स्वतंत्रता व्यक्त करने का मेरा अधिकार है, अब वे मेरी जानकारी तक पहुंच को सीमित करना चाहते हैं। हम क्या कर सकते हैं और क्या नहीं ये वे तय करेंगे। यह लोकतंत्र नहीं है, बल्कि तानाशाही है।
#NetNeutrality
— Kasy (@kasycruz) December 15, 2017
Is more than just taking away social media,
but my right to access information,
my right to express my freedom,
now they want to restrict my access to information,
control what we can and can not see,
this is not Democracy but an act of Dictatorship.
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