एक फोन कॉल पर सुदूर क्षेत्रों की लड़कियों और महिलाओं को मिल रहा सेनेटरी पैड

देशव्यापी लॉकडाउन में लाखों किशोरियों और महिलाओं को सेनेटरी पैड न मिलने से इनकी मुश्किलें बढ़ी हैं। लॉकडाउन में जरूरत के सामान की दुकानें तो खुली हैं लेकिन सुदूर और दुर्गम क्षेत्रों की दुकानों पर सेनेटरी पैड खत्म हो चुके हैं। इन मुश्किल हालातों में लड़कियों की मदद के लिए कुछ 'कोरोना वारियर्स" आगे आये हैं जो लड़कियों के एक फोन कॉल पर उनके घर तक सेनेटरी पैड पहुंचा रहे हैं।

Neetu SinghNeetu Singh   31 May 2020 8:15 AM GMT

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लॉकडाउन में लाखों किशोरियों और महिलाओं को सेनेटरी पैड न मिलने से इनकी मुश्किलें बढ़ी हैं। देशव्यापी लॉकडाउन में जरूरत के सामान की दुकानें तो खुली हैं लेकिन सुदूर और दुर्गम क्षेत्रों की दुकानों पर सेनेटरी पैड खत्म हो चुके हैं। इन मुश्किल हालातों में लड़कियों की मदद के लिए कुछ 'कोरोना वारियर्स" आगे आये हैं जो लड़कियों के एक फोन कॉल पर उनके घर तक सेनेटरी पैड पहुंचा रहे हैं।

देश की लाखों किशोरियों और महिलाओं के सामने लॉकडाउन में सेनेटरी पैड दुकानों पर न मिलना एक बड़ी समस्या हो गयी है। ऐसे में कुछ गुमनाम 'कोरोना वारियर्स' आगे आये हैं जो सुदूर क्षेत्रों की लड़कियों की एक फोन कॉल्स पर उनके घर तक सेनेटरी पैड पहुंचा रहे हैं।

झारखंड के तरुण कुमार हों या फिर लखनऊ के अमित सक्सेना इनसे लड़कियां बेझिझक फोन करके सेनेटरी पैड मांग लेती हैं।

डॉ अमित सक्सेना लखनऊ में पैडमैन के नाम से जाने जाते हैं.

तरुण बताते हैं, "दूसरे चरण के लॉकडाउन में हमारे पास लड़कियों की सबसे ज्यादा फोन कॉल्स आयीं। सब परेशान थीं कि आने जाने का साधन बंद है बाजार लेने कैसे जाएँ? पास में जो दुकाने हैं उनके पास स्टॉक खत्म हो गया है।"

लड़कियों की इस समस्या के समाधान पर तरुण ने काम करना शुरू कर दिया कि ग्रामीण क्षेत्रों तक सेनेटरी पैड इस मुश्किल समय में कैसे पहुंचाएं जाएँ?

"मैं रोज अपनी बाइक पर एक बड़े गत्ते में सेनेटरी पैड भरकर बांधता और फिर सुनसान सड़कों से होते उन गाँव तक पहुंच जाता जहां से मुझे फोन आया होता है। हर जगह मैं नहीं पहुंच सकता था इसलिए मैंने कुछ वालेंटियर की टीम तैयार की है जो अपने-अपने क्षेत्रों में पैड घर-घर पहुंचा सकें, " तरुण ने लॉकडाउन में पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्रों में सेनेटरी पैड बांटने को अपना अनुभव साझा किया।

झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के 11 प्रखंड के 100 से ज्यादा गाँव में तरुण ने लॉकडाउन में 5,000 से ज्यादा सेनेटरी पैड अपने सहयोगियों की मदद से उन सुदूर और दुर्गम क्षेत्रों में पहुंचाएं जहाँ की दुकानों पर सेनेटरी पैड खत्म हो गये थे।

इस देशव्यापी लॉकडाउन में जरूरत के सामान की दुकानें तो खुली हैं लेकिन सुदूर और दुर्गम क्षेत्रों की दुकानों पर सेनेटरी पैड खत्म हो चुके हैं। इस संबंध में राजस्थान की लड़कियों ने तो मुख्यमंत्री को पत्र तक लिख दिया।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे 2018 के अनुसार भारत में लगभग 33.60 करोड़ वो महिलाएं हैं जो माहवारी से होकर गुजरती हैं। इनमें से लगभग 42 प्रतिशत यानि 12.10 करोड़ महिलाएं ही ऐसी हैं जो सेनेटरी पैड का प्रयोग करती हैं। अभी भी 21.5 प्रतिशत महिलाएं पुराने कपड़े का इस्तेमाल करती हैं। पर जो महिलाएं और लड़कियाँ सेनेटरी पैड का इस्तेमाल कर भी रही हैं लॉकडाउन में उन्हें भी नहीं मिल पा रहा है।

"लॉकडाउन में बाजार जाने का कोई साधन नहीं है। आसपास की दुकानों पर पैड कबका खत्म हो गया है। अब तो स्कूल भी बंद है, बहुत दिक्कत हो रही थी। तरुण भैया को फोन करके समस्या बताई अगले दिन वो पैड लेकर आ गये। हमारे पड़ोस की सब लड़कियाँ बहुत खुश हैं, " उषा मुर्मू (16 वर्ष) ने बताया।

उषा की तरह सैकड़ों लड़कियों में अब ये हिम्मत आ गयी है कि वो अब फोन करके तरुण से सेनेटरी पैड मांगने लगी हैं। तरुण ने तीन साल पहले 28 मई 2017 को निश्चय फाउंडेशन नाम की संस्था खोली। जिसका मुख्य उद्देश्य बाल अधिकारों पर काम करना था लेकिन धीरे-धीरे जब ये समुदाय में गये तो इन्हें माहवारी विषय पर बातचीत करना जरूरी लगा क्योंकि सुदूर क्षेत्रों में इस विषय को लेकर काफी संकोच और झिझक थी।

पूर्वी सिंहभूम जिले के तरुण लॉकडाउन में बाइक से दुर्गम क्षेत्रों में पहुंचा रहे सेनेटरी पैड.

तरुण बताते हैं, "यह एक संवेदनशील विषय है जिसपर जन अभियान चलाने की बहुत जरूरत है। मुझे खुशी है कि इतने कम समय में मैं अपने क्षेत्र के लोगों का भरोसा जीतने में कामयाब रहा हूँ। मेरी इस पहल में कई युवा साथी आगे आये जिसकी वजह से हम लॉकडाउन में हर प्रखंड में अपने दो तीन साथियों को ये जिम्मेदारी सौंप पाए। हर प्रखंड के साथियों का नम्बर पब्लिश कर दिया है जिससे उस क्षेत्र की लड़कियाँ सीधे संपर्क कर सकें।"

तरुण अबतक 16 सरकारी विद्यालयों में पैड बैंक बना चुके हैं, इससे 10,000 लोग लाभान्वित हो चुके हैं। सीमित संसाधनो में काम करने वाले तरुण कहते हैं, "मुझे जनसहयोग बहुत ज्यादा मिला है। सोशल मीडिया के माध्यम से अभी 40,000 रूपये का सहयोग भी प्राप्त हुआ जिससे इस काम को और गति दे पा रहे हैं।"

सरकार द्वारा किशोरी सुरक्षा योजना के तहत स्कूलों में सेनेटरी पैड का वितरण किया जाता है लेकिन लॉकडाउन के कारण स्कूलों के बंद होने से ये काम भी ठप्प पड़ा है। फैक्ट्रियां बंद होने से इसका उत्पादन ठप पड़ा है। जो दुकानों पर पहले से स्टॉक था वो धीरे-धीरे खत्म हो रहा है।

सब इंस्पेक्टर अनूप मिश्रा उनकी पत्नी रीना पाण्डेय जरुरतमंदों तक पहुंचा रहीं सेनेटरी पैड.

इस मुश्किल समय में देश के कई गैर सरकारी संगठन जैसे गूँज, विज्ञान फाउंडेशन, एक्शनएड, वात्सल्य, निश्चय फाउंडेशन, रेड ब्रिगेड, सृजन फाउंडेशन जैसी कई संस्थाएं और सैकड़ों समाजसेवी इस मुहिम में आगे आये हैं। इन सभी के सहयोग से वंचित और जरुरतमंदों तक सेनेटरी पैड पहुँचाने की मुहिम लगातार चल रही है। पर एक बड़ी आबादी अभी भी इससे वंचित है।

अप्रैल महीने में वाटर ऐड इंडिया एंड डेवलपमेंट सॉल्यूशन द्वारा समर्थित मेंसट्रूअल हेल्थ अलायन्स इंडिया (एमएचएआई) द्वारा माहवारी स्वच्छता जागरूकता एवं उत्पाद से जुड़े संस्थानों से एक सर्वेक्षण किया गया। इस सर्वे में देश विदेश के 67 संस्थानों ने हिस्सा लिया था। इस सर्वे में निकल कर आया कि कोविड-19 के बाद 67 प्रतिशत संस्थानों ने माहवारी स्वच्छता जागरूकता एवं उत्पाद से जुड़ी अपनी सामान्य कार्रवाई को रोक दिया है। एमएचएआई भारत में मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता पर काम करने वाले गैर सरकारी संगठनों, शोधकर्ताओं, निर्माताओं और चिकित्सकों का एक नेटवर्क है।

जब स्थानीय दुकानों पर सेनेटरी पैड मिलना बंद हो गया तब लड़कियों ने उन्हें याद किया जो उस क्षेत्र में माहवारी मुद्दे पर काम कर रहे थे। लखनऊ के जानकीपुरम के रहने वाले डॉ अमित सक्सेना (40 वर्ष) को लड़कियाँ पैडमैन के नाम से बुलाती हैं।

तरुण के इस काम में वालेंटियर योगदान बहुत मिल रहा है.

अमित लॉकडाउन में सेनेटरी पैड न मिलने से लड़कियों की मुश्किलें साझा करते हैं, "झुग्गी-झोपड़ी की बच्चियां चार साल से मुझे जानती हैं। लॉकडाउन में जब उनके पास पैसे की किल्लत है और आसपास कहीं पैड नहीं मिल रहा तब इन्होंने मुझे फोन किया। जब भी जिस बस्ती से फोन आता है वहां उतना सेनेटरी पैड पहुंचा देता हूँ।"

"ये बहुत बड़ा प्रयास तो नहीं है लेकिन कोशिश जारी है जितने ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच पाए। लॉकडाउन में कई युवा और कई गैर सरकारी संस्थाएं आगे आयी हैंl कुछ लोग राशन किट के साथ भी सेनेटरी पैड दे रहे हैं। पर एक बड़ी आबादी तक अभी भी इसकी उपलब्धता नहीं हो पा रही है, " अमित ने बताया।

माहवारी एवं स्वच्छता प्रबन्धन पर लम्बे समय से वात्सल्य संस्था में काम कर रहीं नीलिमा गुप्ता बताती हैं, "पहले भी पैड यूज करने वालों की संख्या काफी कम थी, लॉकडाउन की वजह से जो प्रतिशत था वो भी अब कम हो जायेगा। गंदा कपड़ा, राख, रेत या कागज के इस्तेमाल से संक्रमण हो सकता है। महिलाओं को सर्वाइकल कैंसर, यूट्रस इंफेक्शन, पेशाब या मूत्राशय संबंधी बीमारियां हो सकती हैं। पहले तो लड़कियाँ जैसे-तैसे मंगा भी लेती थीं लेकिन लॉकडाउन में उनके लिए खरीदना मुश्किल है। कुछ लड़कियाँ अभी कपड़े का पैड बनाकर उपयोग में ला रही हैं।"

लॉकडाउन में इन लड़कियों ने सीख लिया कपड़े का सेनेटरी पैड बनाना.

लखनऊ से लगभग 30 किलोमीटर दूर मलीहाबाद ब्लॉक के मुजासा गाँव में रहने वाली सरिता देवी (26 वर्ष) को अपने आसपास किसी दुकान पर सेनेटरी पैड नहीं मिला तो सरिता ने लखनऊ की वात्सल्य संस्था की मदद से घर पर ही कपड़े का सेनेटरी पैड बनाना शुरू कर दिया। लॉकडाउन में आसपास की कई लड़कियाँ सरिता से पैड बनाना सीख गयी हैं।

सरिता बताती हैं, "जिन भी लड़कियों के पास सेनेटरी पैड नहीं है सब मेरे पास खरीदने आते हैं। पांच रूपये में एक पैड देती हूँ जो धुलकर दोबारा भी यूज किया जा सकता है। लॉकडाउन से अबतक 200 कपड़े के बने पैड गाँव में ही बेच चुकी हूँ।कई लड़कियाँ तो खुद ही बनाकर यूज कर रही हैं।"

माल ब्लॉक में काम कर रही वैशाली बताती हैं, "लोगों को इस समय खाने की मुश्किल पड़ी है ऐसे में पैड खरीदना उनके लिए बहुत मुश्किल है। प्लान इण्डिया के तहत हम एक-एक किट बनाकर हर उस परिवार को दे रहे हैं जो इसे खरीदने में सक्षम नहीं हैं।"

लॉकडाउन की वजह से अपने घर भोपाल लौटीं दिल्ली यूनिवर्सिटी की छात्रा और सेनेटरी पैड्स को लेकर बात करो-छुपाओ मत-सेनेटरी पैड्स का इस्तेमाल करो मैसेज के साथ कैंपेन चलाने वाली सामाजिक कार्यकर्ता यशस्वी कुमुद बताती हैं, "यहाँ पर कुछ झोपडिय़ां हैं, इनके पास न तो कपड़ा है न सेनटरी पैड्स। यहाँ के लोगों को दो वक़्त का खाना मुश्किल है ऐसे में वो पैड कहां से खरीद पाएंगी? कई पैदल चलने वाली महिलाओं ने अपनी मुश्किलें बताई कि हम लोग माहवारी को बंद तो नहीं कर सकते इसलिए संभल-संभल चलते हैं।"


   

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