क्या बिजली परियोजनाओं से नेपाल की स्थानीय आबादी को कोई फायदा मिला है?

बिजली परियोजनाएँ देश में समृद्धि लाती हैं, लेकिन जब फायदा लेने की बात आती है तो इन परियोजनाओं के आस-पास रहने वाले लोग अक्सर पीछे रह जाते हैं। विकास परियोजनाओं को स्थानीय आबादी के स्वास्थ्य और आजीविका को प्राथमिकता देनी चाहिए। विकास 'न्यायपूर्ण' होना चाहिए।

Nidhi JamwalNidhi Jamwal   1 Sep 2023 8:23 AM GMT

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नुवाकोट, नेपाल। वह ज़मीन पर बैठकर मिट्टी के चूल्हे में लकड़ी डाल रही थी और अपने परिवार के पाँच लोगों के आलू की सब्जी बनाने में व्यस्त थी। धुएँ से उसकी आँखों में पानी आ रहा था और वह बार-बार खाँस भी रही थी।

यह कोई नई बात नहीं है। 41 साल की मिथु राय सालों से ऐसा करती आ रही हैं। उनकी शादी सत्रह साल की उम्र में हो गई थी, तब से वह चुल्हे पर ही खाना बनाती आ रही हैं।

मिथु राय के पति बिष्णु राय के साथ सौर परियोजना में एक मजदूर के रूप में काम करते थे। सभी फोटो: निधि जम्वाल

उनकी रसोई की दीवारें पत्थरों से बनी थीं। इन बेतरतीब से रखे गए पत्थरों पर एस्बेस्टस शीट की छत टिकी है। पत्थर धुएँ की कालिख से ढंके हुए थे, ठीक उसी बिजली के बल्ब की तरह जो धीमी रोशनी छोड़ रहा था।

जैसे ही उसने अपनी साँस खींची और आग जलाने के लिए चूल्हे में फूँक मारने के लिए आगे झुकी, मैंने मिथु राय से पूछा कि क्या उनके पास रसोई गैस (एलपीजी) सिलेंडर है।

उन्होंने जवाब दिया, “सिलेंडर को फिर से भरने में दो हज़ार रुपये (नेपाली रुपये) का ख़र्च आता है। हमारे पास इसके लिए पैसे नहीं हैं। मैं जंगल से लकड़ी लाती हूँ और चूल्हे पर खाना बनाती हूँ।” उसके लिए अपना परिवार उसकी खुद की सेहत से कहीं अधिक महत्वपूर्ण था।

41 साल की मिथू राय सालों से ऐसा करती आ रही हैं। उनकी शादी सत्रह साल की उम्र में हो गई थी, तब से वह चुल्हे पर ही खाना बनाती आ रही हैं।

आश्चर्य की बात है कि काठमांडू से 70 किलोमीटर दूर, नेपाल के नुवाकोट जिले के बिदुर पंचायत में मिथु राय का गाँव दो प्रमुख बिजली परियोजनाओं - 25 मेगावाट पीक (एमडब्ल्यूपी) सौर परियोजना और त्रिशुली जलविद्युत परियोजना (अपने कैस्केड प्रोजेक्ट देवीघाट जल विद्युत स्टेशन के साथ) से बस कुछ ही दूरी पर था।

इन विकास परियोजनाओं से राजधानी काठमांडू के निवासियों को बिजली की सप्लाई की जाती है। यहाँ तक कि मानसून के बिजली सरप्लस महीनों के दौरान इन जलविद्युत परियोजनाओं से अतिरिक्त बिजली भारत को भी बेची जाती है। लेकिन ये परियोजनाएँ स्थानीय लोगों के जीवन में कोई ख़ास बदलाव लाने में सफल रहीं हो, ऐसा नहीं है।

मिथु राय जैसे लोगों के लिए आज भी उतना ही ऊर्जा संकट बना हुआ है। जबकि इस क्षेत्र के लोगों ने, जिनमें मिथु के पति बिष्णु राय भी शामिल हैं, सौर परियोजना के निर्माणाधीन होने के दौरान एक मज़दूर के रूप में काम किया था।

नेपाल की कुल बिजली उत्पादन क्षमता 2,577.48 मेगा वाट (मेगावाट) तक पहुँच गई है, जिसमें से 2,492.95 मेगावाट राष्ट्रीय ग्रिड से जुड़ा है, जबकि बाकी 84.53 मेगावाट ऑफ-ग्रिड आपूर्ति है।

42 वर्षीय बिष्णु राय ने कहा, “इन परियोजनाओं से हमें क्या फायदा है? उन्होंने हमारे जीवन में कोई सुधार नहीं किया है। हम अभी भी गरीबी में जी रहे हैं।” वह आगे कहते हैं, “जब सौर परियोजना का निर्माण चल रहा था तो मुझे सिर्फ एक साल के लिए इसमें एक मज़दूर के रूप में काम करने का मौका मिला था। तब भी महीने में सिर्फ 15-20 दिन ही काम मिल पाता था। मैंने यहाँ से रोजाना 700 रुपये (नेपाली रुपये) कमाए थे। लेकिन अब, मेरे पास कोई काम नहीं है।''

बिष्णु और मिथु राय के पास तीन रोपन जमीन (0.15 हेक्टेयर) है, जिस पर वे अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए धान, मक्का और सरसों उगाते हैं। अगर बारिश नहीं हुई तो उनकी ये फसल भी बर्बाद हो जाती हैं।

पनबिजली स्टेशनों जैसी विकास परियोजनाओं का दावा है कि वे स्थानीय लोगों के लिए समृद्धि लाएँगे और उनके जीवन और आजीविका में सुधार करेंगे। लेकिन वे ऐसा कम ही कर पाते हैं। इन परियोजनाओं से पैदा होने वाली बिजली को अन्य 'महत्वपूर्ण' शहरों और विकास के शहरी केंद्रों में ले जाया जाता है।

मिथु राय के एक कमरे के घर से कुछ मीटर की दूरी पर बीर बहादुर राय का घर है। दो साल पहले तक, वह नेपाली सेना में तैनात थे और अब नुवाकोट में नेपाल के सबसे बड़े और एकमात्र सरकारी स्वामित्व वाले सौर ऊर्जा संयंत्र, 25 मेगावाटपी सौर परियोजना में सुरक्षा गार्ड के रूप में काम करते हैं। इस साल जनवरी से इन्होंने काम करना शुरू किया है।

बीर बहादुर राय ने कहा, “स्थानीय लोगों को इन परियोजनाओं से कभी फायदा नहीं मिलता है। मैं भाग्यशाली हूँ कि मुझे सौर परियोजना में सुरक्षा गार्ड की नौकरी मिल गई और मैं हर महीने 18 से 19 हजार रुपये (नेपाली रुपये) कमा लेता हूँ। लेकिन हमारे युवा बेरोज़गार हैं। जब परियोजना निर्माणाधीन थी, तो उन्होंने मज़दूर के रूप में काम किया और अब फिर से काम से बाहर हो गए हैं।” बीर बहादुर की तीन बेटियाँ और पत्नी हैं और वह अपने परिवार के एकमात्र कमाने वाले सदस्य हैं।

उनके पास तीन रोपन ज़मीन भी है जिसमें वह अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए अनाज और सब्जियां उगाते हैं। उन्होंने आगे कहा, “त्रिशुली नदी के करीब रहने के बावजूद हमारे पास सिंचाई की कोई सुविधा नहीं है। हम वर्षा आधारित खेती करते हैं।”


त्रिशुली नदी पर एक छोटा सा झूलता हुआ पुल मुझे बिदुर नगर पालिका के वार्ड नंबर 4 में ले गया। साठ साल के नारायण कुमार रावल की सिमचोर टोले में चाय की दुकान है। इस गाँव में लगभग 32 घर हैं।

रावल ने कहा, “हमारे पास कोई लोड शेडिंग नहीं है। हमारे क्षेत्र में इन बिजली परियोजनाओं का बस यही एक फायदा है। वरना स्थानीय लोगों के जीवन में इनके आने से कोई बदलाव नहीं आया है।” रावल पिछले 30 सालों से चाय की दुकान चला रहे हैं।

उन्होंने आगे कहा, "मेरे पास दो रोपन ज़मीन थी लेकिन मुझे अपनी बेटियों की शादी करने के लिए इसे बेचना पड़ा। तीन बेटियों की शादी हो चुकी है और एक अविवाहित है।" रावल ने कहा, "हम अभी भी अपना पीने का पानी काली खोला से लाते हैं और हमारे ज़्यादातर युवा बेरोज़गार हैं।"

लेकिन बिदुर के वार्ड नंबर 4 के केदारनाथ अधिकारी जैसे कुछ ग्रामीण हैं जिन्होंने बताया कि ये बिजली परियोजनाएँ 'विकास' के लिए महत्वपूर्ण हैं।

उन्होंने कहा, “हो सकता है कि वे हमारे लोगों को रोज़गार न दें, लेकिन त्रिशूली नदी पर बन रहे पुल जैसे कई फायदे भी हैं। वरना दूसरी ओर जाने के लिए सिर्फ एक झूलता पुल ही हमारे पास होता।''

(मैंने ध्यान दिया कि निर्माणाधीन पुल का मलबा त्रिशूली नदी के बिल्कुल साफ पानी में डाला जा रहा था)

बिदुर के वार्ड 4 में रहने वाले लोकनाथ हिमाल ने अधिकारी का समर्थन किया। हिमाल ने कहा, “इन बिजली परियोजनाओं से हमें फायदा पहुँचा है। अब हमारे घरों में बिजली है। इसके अलावा, पहले लोगों को अनाज संसाधित करने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती थी। लेकिन अब बिजली की सप्लाई होने के कारण गाँवों में कुछ छोटी चावल मिलें खुल गई हैं।”

स्थानीय लोगों को रोज़गार के अवसरों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने स्वीकार किया कि परियोजनाएँ स्थानीय युवाओं को रोज़गार देने में विफल रही हैं। उन्होंने कहा, “इन परियोजनाओं को पहले स्थानीय लोगों और उसके बाद ही बाहरी लोगों को रोज़गार के अवसर देने चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। ये थोड़ा सा दुख है।''


जैसे-जैसे नेपाल अपने ऊर्जा क्षेत्र का विस्तार कर रहा है, और अधिक बिजली परियोजनाएँ आने की संभावनाएँ हैं। नेपाल इकोनॉमिक फोरम के अनुसार, देश की स्थापित क्षमता का 96.2 प्रतिशत जलविद्युत से, 3.7 प्रतिशत थर्मल से और 0.1 प्रतिशत सौर संयंत्रों से आता है।

नेपाल की कुल बिजली उत्पादन क्षमता 2,577.48 मेगा वाट (मेगावाट) तक पहुँच गई है, जिसमें से 2,492.95 मेगावाट राष्ट्रीय ग्रिड से जुड़ा है, जबकि बाकी 84.53 मेगावाट ऑफ-ग्रिड आपूर्ति है।

नेपाल का लक्ष्य 2030 तक 15,000 मेगावाट बिजली का उत्पादन करना है, जिसमें से 15 प्रतिशत (2,250 मेगावाट) सौर और पवन ऊर्जा परियोजनाओं सहित नवीकरणीय ऊर्जा के माध्यम से पूरा किया जाना है। इन परियोजनाओं को इस तरह से योजनाबद्ध और कार्यान्वित करने की ज़रूरत है ताकि स्थानीय आबादी को ज़्यादा फायदा मिल सके।

हालाँकि इन परियोजनाओं से बिजली काठमांडू या भारत को भेजी जाती है, लेकिन मिथु राय जैसी स्थानीय महिलाओं तक आज भी खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन नहीं पहुँच सका है। विकास परियोजनाओं में स्थानीय आबादी के स्वास्थ्य और आजीविका को प्राथमिकता दी जानी चाहिए - चाहे वह नेपाल हो, भारत या दुनिया का कोई और देश। विकास 'न्यायपूर्ण' होना चाहिए।

निधि जम्वाल गाँव कनेक्शन की मैनजिंग एडिटर हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।

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