मल्टीलेयर फ़ार्मिंग : लागत 4 गुना कम, मुनाफ़ा 8 गुना होता है ज़्यादा, देखिए Video
Neetu Singh | Jan 29, 2018, 11:04 IST
आकाश बनना तो डॉक्टर चाहते थे लेकिन जब उन्हें लोगों के बीमार होने की वजह पता चली तो उन्होंने खेतों में पड़ने वाले जहर को खत्म करने के लिए जैविक तरीके से खेती करने की ठान ली।
सागर (मध्य प्रदेश) । बहुस्तरीय खेती यानि एक साथ चार से पांच फसलें लेकर आकाश चौरसिया एक साल में तीन एकड़ में लाखों रुपए कमा रहे हैं। मल्टीलेयर फॉर्मिंग से इनकी फसलों में न तो कीट पतंगों का प्रकोप रहता है और न ही खरपतवार होता है। आकाश के द्वारा शुरू किये इस मॉडल को सैकड़ों किसान अपना रहे हैं।
"मल्टीलेयर फॉर्मिंग से किसानों की लागत चार गुना कम होती है, जबकि मुनाफा आठ गुना ज्यादा होता है। अगर हम एक साथ कई फसलें लेते हैं तो एक दूसरी फसल से एक दूसरे को पोषक तत्व मिल जाते हैं, जमीन में जब खाली जगह नहीं रहती तो खरपतवार भी नहीं निकलता।" ये कहना है मध्यप्रदेश में सागर जिले के रेलवे स्टेशन से छह किलोमीटर दूर राजीवनगर तिली सागर के आकाश चौरसिया (28 वर्ष) का।
आकाश बनना तो डॉक्टर चाहते थे लेकिन जब उन्हें लोगों के बीमार होने की वजह पता चली तो उन्होंने खेतों में पड़ने वाले जहर को खत्म करने के लिए जैविक तरीके से खेती करने की ठान ली। बीमार होने वाले लोगों की संख्या बहुत ज्यादा थी इसलिए इन्होंने खुद तो जैविक तरीका अपनाया ही साथ ही हजारों लोगों को जैविक खेती करने के लिए प्रशिक्षित भी किया। (ऊपर देखें वीडियो)
इनके तरीके को अपनाने से किसानों की लागत कम होने के साथ ही अच्छा मुनाफा भी मिल रहा है। साल 2011 में दस डिसिमल से जैविक खेती की शुरुआत करने वाले आकाश आज पूरे देश में साढ़े छह किसान और 250 युवाओं की मदद से 18 हजार एकड़ जमीन में जैविक तरीके से खेती कर रहे हैं। अबतक ये 42 हजार से ज्यादा किसानों को जैविक खेती के तौर तरीके सिखा चुके हैं। इनके बताए 50 से ज्यादा मॉडल फॉर्म पूरे देश में बन चुके हैं।आकाश बताते हैं, "मल्टीलेयर खेती करने से एक फसल में जितनी खाद डालते हैं उतनी ही खाद से चार से फसल हो जाती हैं,पानी भी एक फसल जितना ही खर्च होता है। इस तरीके से 70 प्रतिशत पानी की बचत होती है। बांस, तार और घास से जो मंडप तैयार करते हैं उसमें एक एकड़ में एक साल की 25 हजार लागत आती है, मतलब एक बार इसे तैयार करने में एक एकड़ में सवा लाख का खर्चा आता है और ये पांच साल तक चलता है।"
वो आगे बताते हैं, "एक एकड़ में एक साल में पांच से छह लाख रुपए बच जाते हैं, हर साल तीन एकड़ में बाजार भाव के हिसाब से 15 से 18 लाख रुपए बचत हो जाती है। हम कोई भी चीज खाद से लेकर तक अब बाजार से नहीं खरीदते हैं, सारी चीजें खुद ही तैयार करते हैं।" मल्टीलेयर फॉर्मिंग की शुरुआत कोई भी किसान किसी भी क्षेत्र का फरवरी माह में शुरू कर सकते हैं। एक साथ क्षेत्र के और मिट्टी के हिसाब से किसान चार से पांच फसल ले सकते हैं।
अगर हम पॉली हाउस या नेट हॉउस लगाते हैं तो 30 से 40 लाख रुपए की लागत आती है जबकि मंडप बनाने में सिर्फ सवा लाख रुपए खर्च होते हैं। जो कि पांच साल तक लगातार चलता है। यानि एक साल की लागत सिर्फ 25 हजार आयी। एक एकड़ खेत में 2200 बांस के डंडे लगाते हैं जिसकी लम्बाई नौ दस फ़ीट की होती है। एक दो इंच नीचे गाड़ देते हैं एक फीट ऊपर लगा देते हैं, सिर्फ सात फीट का बांस खेत में दिखता है जिसमे हमारी फसल चलती है। 5-6 फ़ीट की दूरी पर बांस लगाते हैं। सवा सौ से डेढ़ सौ किलो तक बीस गेज पतला तार लगाते हैं।
जब जमीन पर खाली जगह नहीं होगी तो खरपतवार नहीं निकलता है। आकाश बताते हैं, "हमारी जमीन में अदरक,चौलाई,पपीता,करेला,कुंदरू लगा है, खाली जगह नहीं है इससे खेत में खरपतवार नहीं निकलता है। पूरा खेत चारो तरफ से ढका हुआ है इससे बाहरी कीट पतंग फसल को नुक्सान नहीं पहुंचा पाते हैं। बाउंड्री बॉल होने से बाहर के कीट पतंग अंदर नहीं जाते हैं। 15 से 20 हजार निराई गुड़ाई का खर्चा बच जाता है।"
फरवरी महीने में जमीन के नीचे अदरक लगाते हैं उसके ऊपर कोई भी साग भाजी जैसे-मेंथी, पालक ,चौलाई में से कोई भी एक। तीसरी कोई भी बेल वाली फसल जिसमें कुंदरू, करेला, परवल, पड़ौरा। इसकी पत्तियां छोटी होती हैं जिससे नीचे की फसल पर कोई नुकसान नहीं होता है। इसके साथ ही पपीता लगा सकते हैं।
आकाश का कहना है, "जगह और मिट्टी के हिसाब से हम सहफसल लेते हैं। जिसकी जिस क्षेत्र में मांग हो वही सब्जी लगाते हैं। हमने लागत कम करने के तरीके खोजे मुनाफा अपने आप बढ़ता गया। हर महीने की 27, 28 तारीख को हम फ्री में किसानों को ट्रेनिंग देते हैं । ज्यादा से ज्यादा संख्या में किसान ये तरीका अपनाएं ये हमारी कोशिश है।"
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"मल्टीलेयर फॉर्मिंग से किसानों की लागत चार गुना कम होती है, जबकि मुनाफा आठ गुना ज्यादा होता है। अगर हम एक साथ कई फसलें लेते हैं तो एक दूसरी फसल से एक दूसरे को पोषक तत्व मिल जाते हैं, जमीन में जब खाली जगह नहीं रहती तो खरपतवार भी नहीं निकलता।" ये कहना है मध्यप्रदेश में सागर जिले के रेलवे स्टेशन से छह किलोमीटर दूर राजीवनगर तिली सागर के आकाश चौरसिया (28 वर्ष) का।
आकाश बनना तो डॉक्टर चाहते थे लेकिन जब उन्हें लोगों के बीमार होने की वजह पता चली तो उन्होंने खेतों में पड़ने वाले जहर को खत्म करने के लिए जैविक तरीके से खेती करने की ठान ली। बीमार होने वाले लोगों की संख्या बहुत ज्यादा थी इसलिए इन्होंने खुद तो जैविक तरीका अपनाया ही साथ ही हजारों लोगों को जैविक खेती करने के लिए प्रशिक्षित भी किया। (ऊपर देखें वीडियो)
इनके तरीके को अपनाने से किसानों की लागत कम होने के साथ ही अच्छा मुनाफा भी मिल रहा है। साल 2011 में दस डिसिमल से जैविक खेती की शुरुआत करने वाले आकाश आज पूरे देश में साढ़े छह किसान और 250 युवाओं की मदद से 18 हजार एकड़ जमीन में जैविक तरीके से खेती कर रहे हैं। अबतक ये 42 हजार से ज्यादा किसानों को जैविक खेती के तौर तरीके सिखा चुके हैं। इनके बताए 50 से ज्यादा मॉडल फॉर्म पूरे देश में बन चुके हैं।आकाश बताते हैं, "मल्टीलेयर खेती करने से एक फसल में जितनी खाद डालते हैं उतनी ही खाद से चार से फसल हो जाती हैं,पानी भी एक फसल जितना ही खर्च होता है। इस तरीके से 70 प्रतिशत पानी की बचत होती है। बांस, तार और घास से जो मंडप तैयार करते हैं उसमें एक एकड़ में एक साल की 25 हजार लागत आती है, मतलब एक बार इसे तैयार करने में एक एकड़ में सवा लाख का खर्चा आता है और ये पांच साल तक चलता है।"
वो आगे बताते हैं, "एक एकड़ में एक साल में पांच से छह लाख रुपए बच जाते हैं, हर साल तीन एकड़ में बाजार भाव के हिसाब से 15 से 18 लाख रुपए बचत हो जाती है। हम कोई भी चीज खाद से लेकर तक अब बाजार से नहीं खरीदते हैं, सारी चीजें खुद ही तैयार करते हैं।" मल्टीलेयर फॉर्मिंग की शुरुआत कोई भी किसान किसी भी क्षेत्र का फरवरी माह में शुरू कर सकते हैं। एक साथ क्षेत्र के और मिट्टी के हिसाब से किसान चार से पांच फसल ले सकते हैं।
कैसे बनता है खेत में मंडप
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100 किलो तार 16 गेज का लगाते हैं। इसके बाद आधा आधा फीट के गैप से तार को बुनते हैं, गुनैइया नाम की घास या फिर कोई भी घास डालने के बाद उसके ऊपर लकड़ी डाल देते हैं जिससे घास उड़े नहीं। इससे 60-70 प्रतिशत धूप सोख लेती है, ये मंडप प्राकृतिक आपदा को फसल के नुकसान से रोकने का काम करता है। बाउंड्री बॉल ग्रीन नेट से या साड़ी से चारो तरफ से ढक देते हैं। ये देशी तरीके से फॉर्म हॉउस बन जाता है। अगर सबकुछ बाजार से खरीदना है तो सवा लाख खर्चा,हमारे पास यदि सामान है जैसे बांस,घास,साड़ी तो बहुत ही न्यूनतम पैसा खर्च होता है।
मल्टीलेयर फॉर्मिंग में नहीं होती खरपतवार और न ही लगते कीट
एक साथ ले सकतें हैं ये फसलें
आकाश का कहना है, "जगह और मिट्टी के हिसाब से हम सहफसल लेते हैं। जिसकी जिस क्षेत्र में मांग हो वही सब्जी लगाते हैं। हमने लागत कम करने के तरीके खोजे मुनाफा अपने आप बढ़ता गया। हर महीने की 27, 28 तारीख को हम फ्री में किसानों को ट्रेनिंग देते हैं । ज्यादा से ज्यादा संख्या में किसान ये तरीका अपनाएं ये हमारी कोशिश है।"
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