कम लागत में ज्यादा उत्पादन चाहिए, तो श्रीविधि से करें गेहूं की बुआई, देखिए वीडियो
गाँव कनेक्शन | Oct 20, 2017, 21:54 IST
भारत के कई प्रदेशों में इन दिनों धान की कटाई का सीजन चल रहा है, नवबंर-दिसंबर में इन्हीं खेतों में गेहूं की बुआई होगी। जानकारों का मानना है किसान अगर सामान्य की जगह श्रीविधी से गेहूं बोएं तो लागत कम और पैदावार कई गुना ज्यादा होगी।
विकास सिंह तोमर, कम्युनिटी जर्नलिस्ट
सीतापुर। धान की तर्ज पर गेहूं की खेती भी किसान यदि एसआरआई पद्दति (आम बोलचाल की भाषा में श्रीविधि) से करें तो गेहूं के उत्पादन में ढाई से तीन गुना वृद्धि हो सकती है। इस विधि (System of Rice Intensification) से खेती करने पर गेहूं की खेती में लागत परंपरागत विधि की तुलना में आधी आती है। पूरी जानकारी नीचे ख़बर में है।
खेत की तैयारी
बुवाई का समय
उन्नत किस्मों का चयन
बीज दर एवं बीज शोधन
अब बीज एवं ठोस पदार्थ कबाविस्टीन 2-3 ग्राम प्रति किग्रा. या ट्राइकोडर्मा 7.5 ग्राम प्रति किग्रा. के साथ पीएसबी कल्चर 6 ग्राम और एजेटोबैक्टर कल्चर 6 ग्राम प्रति किग्रा बीज के हिसाब से उपचारित कर नम जूट बैग के ऊपर छाया में फैला देना चाहिए। लगभग 10-12 घंटों में बीज बुवाई के लिए तैयार हो जाते है। इस समय तक बीज अंकुरित अवस्था में आ जाते हैं। इसी अंकुरित बीज को बोने के लिए इस्तेमाल करना है। इस प्रकार से बीजोपचार करने से बीज अंकुरण क्षमता और पौधों के बढ़ने की शक्ति बढ़ती है और पौधे तेजी से विकसित होते हैं, इसे प्राइमिंग भी कहते है। बीज उपचार के कारण जड़ में लगने वाले रोग की रोकथाम हो जाती है। नवजात पौधे के लिए गौमूत्र प्राकृतिक खाद का काम करता है।
श्रीविधी से बोए गए गेहूं का पौधा देखिए, बगल में सामान्य बुआई वाला गेहूं। फोटो- साभार ICAR
बुवाई की विधि
बुवाई के बाद बीज को हल्की मिट्टी से ढक देते हैं। बुवाई के 2-3 दिन में पौधे निकल आते हैं। खाली स्थान पर नया शोधित बीज लगाना अनिवार्य है, जिससे प्रति इकाई वांक्षित पादप संख्या स्थापित हो सके। कतार तथा बीज के मध्य वर्गाकार (20 x 20 सेमी.) की दूरी रखने से प्रत्येक पौधे के लिए पर्याप्त जगह मिलती है, जिससे उनमें आपस में पोषण, नमी व प्रकाश के लिए प्रतियोगिता नहीं होती है।
गेहूं की बुआई करते किसान। फोटो- साभार डिजिटल ग्रीन
खाद एवं उर्वरक
आखिरी जुताई के पूर्व 30-40 किग्रा. डाय अमोनियम फास्फेट (डीएपी) और 15-20 किग्रा. म्यूरेट आफ पोटाश प्रति एकड़ की दर से खेत में छींटकर अच्छी तरह हल से मिट्टी में मिला देंना चाहिए। प्रथम सिंचाई के बाद 25-30 किग्रा. यूरिया एवं 4 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट को मिलाकर कतारों में देना चाहिए। तीसरी सिंचाई के पश्चात एवं गुड़ाई से पहले 15 किग्रा. यूरिया एवं 10 किग्रा पोटाश उर्वरक प्रति एकड़ की दर से कतारों में देना चाहिए।
सिंचाई प्रबंधन: पानी का सही इस्तेमाल
बुवाई के 30-35 दिनों बाद दूसरी सिंचाई देना चाहिए, क्योंकि इसके बाद पौधों में नए कल्ले तेजी से आना शुरू होते हैं और नये कल्ले बनाने के लिए पौधों को पर्याप्त नमीं एवं पोषण की आवश्यकता रहती है। बुवाई के 40 से 45 दिनों के बाद तीसरी सिंचाई देना चाहिए, इसके बाद से पौधे तेजी से बड़े होते हैं साथ ही नए कल्ले भी आते रहते है। गेहूं की फसल में अगली सिंचाईयां भूमि एवं जलवायु अनुसार की जानी चाहिए। गेहूं में फूल आने के समय एवं दानों में दूध भरने के समय खेत में नमी की कमी नहीं रहनी चाहिए अन्यथा उपज में काफी कमी हो सकती है।
निराई-गुड़ाई
अंतर्कर्षण से जड़ों को आवश्यक हवा, पानी और पोषक तत्व सुगमता से प्राप्त होते रहते हैं, जिससे पौधों का समुचित विकास होता है। दरअसल अंकुरण के बाद गेहूं के पौधों में सेमिनल जड़े निकलती हैं, जो पानी व भोजन की तलाश में मिट्टी में नीचे की ओर तेजी से बढ़ती है, यदि मिट्टी सख्त है तो वे ज्यादा नीचे तक नहीं जा पाती है और उनकी बढ़वार अवरूद्ध हो जाती है।
बुवाई के 20 दिन बाद मिट्टी की सतह के ठीक नीचे क्राउन जडें निकलती है जो पानी एवं भोजन की तलाश में चारों तरफ फैलती है। यदि मिट्टी सख्त है तो वे ज्यादा फैल नहीं सकती है, जिससे नन्हें पौधों को पर्याप्त भोजन व पानी नहीं मिलता है। गेहूं में दूसरी एवं तीसरी गुड़ाई क्रमशः 30-35 व 40-45 दिन पर सिंचाई के 2-3 दिन पश्चात करना चाहिए।