लकड़ियां बेची, आर्मी में जाने की तैयारी भी की लेकिन आज चाय की जैविक खेती ने बनाया सफल किसान

असम के कछार जिले के एक दूर दराज इलाके में एक युवा चाय बागान मालिक चाय उत्पादन के मामले में अपने गाँव को एक बड़ा हब बनाने की योजना बना रहा है। जब सोनाचेरा-2 गांव में अपनी पुश्तैनी जमीन पर चाय की खेती शुरू करने के लिए उन्हें पैसे की कमी पड़ी तो इसके लिए उन्होंने बेंगलुरु में एक सुरक्षा गार्ड के रूप में काम करने से भी गुरेज नहीं किया।

Sayantani DebSayantani Deb   20 April 2023 6:27 AM GMT

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लकड़ियां बेची, आर्मी में जाने की तैयारी भी की लेकिन आज चाय की जैविक खेती ने बनाया सफल किसान

गुवाहाटी, असम। सुभाषीश दत्ता हार मानने वालों में से नहीं हैं। उन्होंने ग्यारह बार सेना में जाने की कोशिश की, लेकिन हर बार उनके हाथ विफलता ही लगी। वह हताश तो थे तो मगर उन्होंने अपना ध्यान कहीं ओर लगाने का फैसला किया और फिर चाय के बागान उनका नया जुनून बन गया।

27 साल के दत्ता अब एक सफल चाय उत्पादक हैं और उनका मुख्य मिशन कछार जिले के निर्वाचन क्षेत्र में पड़ने वाले अपने गाँव सोनाचेरा-2 को एक प्रमुख चाय उत्पादक हब में बदलना है। सोनाचेरा - 2 राज्य की राजधानी दिसपुर से लगभग 400 किलोमीटर दूर असम के एक दूर-दराज इलाके में स्थित है। गाँव चारों ओर से लोहारबंद जंगल से घिरा हुआ है और यहां के लोगों के लिए विकास अभी भी एक बहुत दूर का सपना है। गाँव की ओर जाने वाली सड़कों का होना न होना एक बराबर है। उनकी हालत इतनी खराब है कि उन्हें सड़क तो कतई नहीं कहा जा सकता है।

दत्ता की दो एकड़ पुश्तैनी जमीन पर 15,000 चाय के पौधे हैं और वह हर हफ्ते करीब 2.5 क्विंटल चाय की पत्तियां बेचते हैं। युवा चाय किसान अपने चाय के पौधों के लिए केमिकल फर्टिलाइजर के बजाय खाद और वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल करते हैं और उन्होंने शुष्क मौसम में अपने चाय बागान को पानी देने के लिए सौर ऊर्जा से चलने वाली मोटर भी लगाई हैं।


स्थानीय किसानों को चाय की खेती के लिए प्रोत्साहित करने के अलावा, वह पड़ोसी गाँवों के तीन लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं। हालांकि वह प्राकृतिक उर्वरकों का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन उन्हें अभी तक अपने चाय बागान के लिए ऑर्गेनिक प्रमाणीकरण नहीं मिल पाया है। उन्होंने बताया कि इसमें थोड़ा समय लगेगा। इस पर काम चल रहा है।

दत्ता ने गाँव कनेक्शन को बताया, "असम चाय के लिए जाना जाता है और इस व्यवसाय से जुड़कर मुझे गर्व हो रहा है। चाय की पत्तियां नाजुक और जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील होती हैं और उन्हें विशेष देखभाल की जरूरत होती है। हर सुबह मेरा पहला काम अपने बागान में जाना और अपने पौधों की जांच करना है।"

वह आगे कहते हैं, "मैं ज्यादा नहीं कमा सकता, लेकिन मैं दूसरे लोगों को रास्ता दिखा रहा हूं और बहुत से लोगों का आशीर्वाद कमा रहा हूं।"

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दत्ता ने याद करते हुए कहा, "मेरे पिता लकड़ी काटने का काम किया करते थे। मुझे आज भी याद है मैं और मेरा भाई छुट्टी वाले दिनों में लकड़ियों की तलाश में उनके साथ जंगलों में जाया करते थे। ताकि हमें ज्यादा लकड़ियां मिल सकें। उस समय हम काफी छोटे थे। ज्यादा लकड़ियों होने का मतलब हमारे लिए ज्यादा पैसा मिलना था।"

दत्ता की चाहत देश की सेवा करना थी। उन्होंने सेना में जाने के लिए काफी कोशिशें भी कीं। लेकिन, नियति को उनके लिए कुछ और ही मंजूर था।


27 साल के दत्ता ने कहा, “मुझे दसवीं के बाद अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी क्योंकि मेरे परिवार के पास इतने पैसे नहीं थे कि वो स्कूल का खर्च उठा सकें. फिर मैंने पास के एक चाय बागान में काम करना शुरू किया। यही वह जगह थी जहां मैंने चाय उत्पादन के बारे में काफी कुछ सीखा।"

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2015 में, बमुश्किल 20 साल की उम्र में दत्ता ने दो एकड़ पैतृक भूमि पर चाय उगाने का फैसला किया। यह जमीन काफी समय से बेकार पड़ी थी। लेकिन उन्हें जल्द ही इस बात का अहसास हो गया कि चाय बागान शुरू करने के लिए बड़े निवेश की जरूरत है। इसलिए, उन्होंने अपने चाय बागान की योजना को कुछ समय के लिए होल्ड पर रख दिया और अपने गाँव से 3,200 किलोमीटर दूर कर्नाटक चले गए। उन्होंने बेंगलुरु में कुछ महीनों के लिए सुरक्षा गार्ड के तौर पर काम किया। जब उनके पास लगभग 18,000 रुपये जमा हो गए तो वह अपने सपनों को पूरा करने के लिए वापस घर लौट आए।

चाय उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करना

आज दत्ता के पास अपनी जमीन पर 15,000 चाय की पौधे हैं और हर हफ्ते लगभग 2.5 क्विंटल चाय की पत्तियां बेचते है, जिससे महीने में कम से कम 15,000 रुपये की कमाई होती है। वह क्षेत्र के अन्य लोगों को भी चाय उगाने के लिए प्रोत्साहित करते है।

उसी गाँव के एक चाय उत्पादक बिरेश मुरा ने गाँव कनेक्शन को बताया, “ईमानदारी से कहूं, तो मुझे चाय उगाने के बारे में कुछ नहीं पता था, भले ही मैं चाय उत्पादकों के समुदाय से हूं। लेकिन सुभाषीश ने मुझे अपना चाय बागान शुरू करने की सलाह दी। मैंने उसकी बात मानते हुए अपनी पांच बीघा जमीन पर चाय की खेती करना शुरू कर दिया।"


मुरा अब हर सप्ताह लगभग 70-80 किलोग्राम चाय की पत्तियां बेचते हैं। उन्हें उम्मीद है कि उपज जल्द ही बढ़ेगी। उन्होंने कहा, "सुभाषी मेरी प्रेरणा हैं।"

आठ गाँवों - जिसमें से एक सोनाचेरा-2 भी है- के पंचायत अध्यक्ष ब्रजनाथ चक्रवर्ती ने कहा कि दत्ता उनके गाँव का गौरव हैं। चक्रवर्ती ने गाँव कनेक्शन को बताया, "उनकी पहल उल्लेखनीय हैं और गाँव के विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। कई युवा जो यह नहीं जानते थे कि उन्हें अपने जीवन का क्या करना है, उन्होंने उनसे प्रेरणा ली है और अब अपने दम पर कुछ कर रहे हैं।"

पंचायत अध्यक्ष ने कहा, “सुभाशीष दूसरों लोगों को जीवन में कुछ करना सिखा रहे हैं। इसके अलावा उन्होंने गाँव के लगभग तीन लोगों को रोजगार भी दिया हुआ है। वह और ज्यादा लोगों को रोजगार देने और अपने बाग का विस्तार करने की योजना बना रहे हैं। वह आत्मनिर्भर भारत की एक बेहतरीन मिसाल हैं। गांव के आर्थिक हालात सुधर रहे हैं। हमें सुभाशीष जैसे और लोगों की जरूरत है।”

मजदूरों को फायदा

सुभाशीष के चाय बागान में काम करने वाली वाली 50 साल की बसंती घाटोवार ने गाँव कनेक्शन को बताया, “यहां काम करने से मेरा और मेरे परिवार का जीवन काफी बदल गया है। मेरी आर्थिक स्थिति काफी सुधरी है और अब में आसानी से अपने परिवार को पाल सकती हूं।"

सुबह से शाम तक बगीचे में अपने कर्मचारियों के साथ काम करने के बाद सुभाशीष दिन भर की उपज टी कलेक्टर सुपायन चौधरी के पास लेकर जाते हैं.

चौधरी ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मेरा काम अलग-अलग चाय बागानों से आने वाली चाय की पत्तियों को इकट्ठा करना और उन्हें पड़ोसी जिले हैलाकांडी में बंदुकमारा टी एस्टेट में जमा करना है। वहां इन्हें प्रोसेस किया और बेचा जाता है। अपने अनुभव से कह सकता हूं कि सुभाशीष के बागान में उगाई जाने वाली चाय की पत्तियां बेहद शानदार हैं।"

दत्ता ने कहा, "मैं अपनी खुद की चाय की फैक्ट्री खोलना चाहता हूं, लेकिन इसके लिए काफी पैसे की जरूरत होगी।" उनके मुताबिक, अगर उनका अपना कारखाना होगा तो वह अपने उत्पाद की मार्केटिंग और डिजाइनिंग में एक बड़ी भूमिका निभा सकते हैं. साथ ही वह अपने गाँव के ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार दे पाएंगे। लेकिन उन्हें पता है कि सपना पूरा होने में अभी और समय लगेगा।

“हमारा एक दूर-दराज के इलाके में रह रहे है जहां लोगों के पास अभी भी बुनियादी सुविधाओं की कमी है। मैं चाहता हूं कि मेरे गाँव के युवा अपनी मर्जी से चाय उत्पादन को अपनाएं ताकि हम साथ मिलकर अपने गाँव को एक प्रमुख चाय उत्पादक हब बन सकें।'

उन्होंने मुस्कराते हुए बताया कि फिलहाल वह कुछ और काम करने में भी व्यस्त हैं। वह अपने चाय बागान के पास बांस की झोपड़ी बनाने जा रहा है। वह कहते हैं, "लोग यहां आ सकते हैं, आराम कर सकते हैं और आसपास के जंगलों में घूम सकते हैं। यह मेरे गांव में एक रिसॉर्ट जैसा होगा।”

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