खेती में होने वाली थकान को भुलाकर, किसानों को नया जोश देता है हुड़किया बौल गीत

Devanshu Mani TiwariDevanshu Mani Tiwari   10 Feb 2018 4:54 PM GMT

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खेती में होने वाली थकान को भुलाकर, किसानों को नया जोश देता है हुड़किया बौल गीतउत्तरायणी संस्कृति के लोकप्रिय गीतों में से एक है हुड़किया बौल गीत।      फोटो - नेश्नल पब्लिक रेडियो

खेती करते हुए आपने किसानों को कुछ गुनागुनाते हुए सुना होगा। किसान खेती के दौरान अक्सर ही अपने क्षेत्रीय गीतों व भजनों को गाना पसंद करते हैं। उत्तराखंड में खेतों में रोपाई और गुड़ाई जैसे काम करते हुए किसान व खेतिहर मजदूर एक खास तरह का गीत गाते हैं। मेरे गाँव मेरे गीत सेगमेंट के तीसरे भाग में आज बात उत्तरायणी संस्कृति के लोकगीत हुड़किया बौल की।

पहाड़ी क्षेत्रों में किसान खेती के दौरान हुड़किया बौल गीत गाते हैं। उत्तरायणी संस्कृति के लोकप्रिय गीतों में से एक माना जाने वाला हुड़किया बौल गीत कुमाऊं व गड़वाल क्षेत्र में ज़्यादा सुनने को मिलता है। हुड़किया बौल उत्तराखंड की वो लोकगायन शैली है, जिसमें आमतौर पर खेतों में काम करने वाले लोग व किसान महिलाएं शामिल होती हैं। इस लोकगीत को किसान खेतों में रोपाई वा गुड़ाई के समय गाते हैं, क्योंकि वो मानते हैं कि इस समय खेती में मेहनत ज़्यादा होती है और यह गीत उनमें नया जोश भर देता है। इस गीत को गाते हुए किसान एक छोटे ढोल के आकार नुमा वाद्य यंत्र ( हुड़का ) बजाते हैं।

मेरे गाँव मेरे गीत सीरीज़ का तीसरा हिस्सा।

उत्तराखंड राज्य में हल्द्वानी की पर्वतीय सांस्कृतिक उत्थान मंच संस्था पिछले 25 वर्षों से उत्तराखंड के लोकगीतों पर रिसर्च और कलाकारों के साथ काम कर रही है। इस संस्था के प्रमुख चंद्रशेखर तिवारी हुड़किया बौल गीत के बारे में बताते हैं, '' उत्तराखंड में खेतिहर मजदूरों को बौल के नाम के जाना जाता है। यह गीत भी इन मजदूरों के लिए ही बना है। इसे गाते समय गायक खेत में काम कर रहे मजदूरों को यह गीत सुनाता है। इससे उन्हें तेज़ी से काम करने की शक्ति मिलती है।''

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इस गीत को गाते समय ग्रामीण महिलाओं व पुरूषों के समूह मुख्यरूप से शामिल होते हैं , जो एक पंक्ति में खड़े होते हैं, जिसके हाथ में वाद्य यंत्र होता है वो ही गीत की शुरूआत करता है,बाकी सभी लोग उसके गाने के बाद उसके बोल को दोहराते हैं।

हुड़किया बौल गीत की शुरूआत में किसान अपने खेतों की पूजा करते हैं और फिर अपनी स्थानीय खेती के तौर-तरीकों से खेती की तैयारी करते हुए गीत गाते हैं। किसान मानते हैं कि खेत में फसल तैयारी करते हुए हुड़किया बौल गीत गाने से फसल की पैदावार अच्छी होती है।

हुड़किया बौल गीत गाते समय लोग घरों की थाली,प्लेटें और ढोल भी बजाते हैं। इन गीतों में अधिकतर स्थानीय शूरवीरों की गाथाओं का जिक्र किया जाता है। इससे लोगों में ताकत आती है, जिससे वो थकान व सुस्ती भूल जाते हैं।


हुड़किया बौल गीत की कुछ पंक्तियां


ओघोगोंक भुमियाराजो

माताजैकी बौलाहो भुमियाराजो।

कम होती जा रही लोकगीत गाने की परंपरा

'' इस गीत को गाने की परंपरा अब धीरे धीरे खत्म हो रही है। आज यहां पर लोग गाँवों को छोड़कर दूसरी जगह जा रहे हैं। इससे खेतों में काम करने वाले मजदूरों की संख्या भी कम हो गई है।'' चंद्रशेखर तिवारी आगे बताते हैं।

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