सीमाब अकबराबादी : जिन्होंने क़ुरान का उर्दू कविता में किया था अनुवाद
Anusha Mishra 31 Jan 2018 2:17 PM GMT

सीमाब अकबराबादी उर्दू के पसंदीदा शायरों में से एक हैं। उनका नाम तो आशिक़ हुसैन सिद्दीक़ी था लेकिन उन्हें लोग उनके तख़ल्लुस 'सीमाब अकबराबादी' से ही जानते हैं। 5 जून 1882 को उत्तर प्रदेश के आगरा में जन्मे सीमाब, दाग़ देहलवी के शागिर्द थे। आज उनकी पुण्यतिथि है। सीमाब अकबराबादी को फ़ारसी और अरबी भाषा की अच्छी जानकारी थी।
1892 में जब वह सिर्फ 10 साल के थे तब ही उन्होंने उर्दू में ग़ज़ल कहना शुरू कर दिया था। उर्दू साहित्य में उनका नाम जोश मलीहाबादी और फि़राक़ गोरखपुरी के साथ लिया जाता है। इनकी ग़ज़लों की ख़ूबसूरती का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि बीते ज़माने के मशहूर गायक कुंदन लाल सैगल जिन्हें लोग केएल सैगल के नाम से जानते हैं, ने उनकी कई ग़ज़लों को गाया है।
सीमाब ने सभी साहित्यिक स्वरूपों और सामाजिक व राजनीतिक विषयों पर लिखा था। उन्होंने क़ुरान का कविता के रूप में उर्दू में अनुवाद किया था, जिसे 'वाही-ए-मंज़ूम' नाम दिया था। इसके लिए उन्हें कोई प्रकाशक नहीं मिल रहा था। उनकी वो कृति छप जाए इसलिए वे एक प्रकाशक की खोज में 1948 में पाकिस्तान के लाहौर और उसके बाद कराची गए लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ लेकिन वह आगरा नहीं लौटे। 1949 में उन्हें पैरालिसिस का अटैक हुआ जिससे वह उबर नहीं पाए और 31 जनवरी 1951 को उनकी मौत हो गई। 30 साल बाद क़ुरान का उनका अनुवाद प्रकाशित हुआ। आज उनकी पुण्यतिथि पर पढ़िए उनकी लिखी पांच नज़्म...
1. मज़दूर
गर्द चेहरे पर, पसीने में जबीं डूबी हई
आँसुओं मे कोहनियों तक आस्तीं डूबी हुई
पीठ पर नाक़ाबिले बरदाश्त इक बारे गिराँ
ज़ोफ़ से लरज़ी हुई सारे बदन की झुर्रियाँ
हड्डियों में तेज़ चलने से चटख़ने की सदा
दर्द में डूबी हुई मजरूह टख़ने की सदा
पाँव मिट्टी की तहों में मैल से चिकटे हुए
एक बदबूदार मैला चीथड़ा बाँधे हुए
जा रहा है जानवर की तरह घबराता हुआ
हाँपता, गिरता,लरज़ता ,ठोकरें खाता हुआ
मुज़महिल बामाँदगी से और फ़ाक़ों से निढाल
चार पैसे की तवक़्क़ोह सारे कुनबे का ख़याल
अपनी ख़िलक़त को गुनाहों की सज़ा समझे हुए
आदमी होने को लानत और बला समझे हुए
इसके दिल तक ज़िन्दगी की रोशनी जती नहीं
भूल कर भी इसके होंठों तक हसीं आती नहीं.
मज़रूह: घायल ; मुज़महिल :थका हुआ ; बामाँदगी: दुर्बलता
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2. जन्नत जो मिले ला के मैख़ाने में रख देना
जन्नत जो मिले लाके मैख़ाने में रख देना
क़ौसर (1) मेरे छोटे से पैमाने में रख देना
मय्यत न मेरी जा के वीराने में रख देना,
पैमानों में दफ़ना के मैख़ाने में रख देना
वो जिस से समझ जायें रुदाद (2) मेरे ग़म की,
ऐसा भी कोई टुकरा अफ़साने (3) में रख देना
सज्दों पे ना देना मुझ को अर्बाब (4)-ए-हरम ताने,
काबे का कोई पत्थर बुत-ख़ाने में रख देना
"सीमाब" ये क़ुद्रत का अदना (5) सा करिश्मा है,
ख़ामोश सी इक बिजली परवाने में रख देना
1. स्वर्ग में नदी, 2. कहानी, 3. अफ़साना=बताना या कहना, 4. दोस्त, 5. छोटा
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3. वतन
जहाँ जाऊँ वतन की याद मेरे साथ रहती है
निशाते-महफ़िले- आबाद मेरे साथ रहती है
वतन ! प्यारे वतन ! तेरी मुहब्बत जुज़वे ईमाँ है
तू जैसा है,तू जो कुछ है, सुकूने-दिल का सामाँ है
वतन में मुझको जीना है,वतन में मुझको मरना है
वतन पर ज़िन्दगी को एक दिन क़ुरबान करना है
4. अब क्या बताऊँ मैं तेरे मिलने से क्या मिला
अब क्या बताऊँ मैं तेरे मिलने से क्या मिला
इर्फ़ान-ए-ग़म(1) हुआ मुझे, दिल का पता मिला
जब दूर तक न कोई फ़कीर-आश्ना मिला,
तेरा नियाज़-मन्द (2) तेरे दर से जा मिला
मन्ज़िल मिली,मुराद (3) मिली मुद्द'आ (4) मिला,
सब कुछ मुझे मिला जो तेरा नक़्श-ए-पा (5) मिला
या ज़ख़्म-ए-दिल को चीर के सीने से फेंक दे,
या ऐतराफ़ (6) कर कि निशान-ए-वफ़ा मिला
"सीमाब" को शगुफ़्ता (7) न देखा तमाम (8) उम्र,
कमबख़्त (9) जब मिला हमें कम-आश्ना मिला
1. ज्ञान, 2. विनीत, चाहने वाला, 3. इच्छा,चाह, 4. विषय, 5. पद-चिह्न, 6. स्वीकार कर, 7. आनंदित, 8. सारी, 9. अशुभ
5. दिल की बिसात क्या थी
दिल की बिसात क्या थी निगाह-ए-जमाल में
एक आईना था टूट गया देखभाल में
सब्र आ ही जाए गर हो बसर एक हाल में
इमकां एक और ज़ुल्म है क़ैद-ए-मुहाल में
आज़ुर्दा इस क़दर हूँ सराब-ए-ख़याल से
जी चाहता है तुम भी न आओ ख़याल में
तंग आ के तोड़ता हूँ तिलिस्म-ए-ख़याल को
या मुतमईन करो कि तुम्हीं हो ख़याल में
दुनिया है ख़्वाब हासिल-ए-दुनिया ख़याल है
इंसान ख़्वाब देख रहा है ख़याल में
उम्रर-ए-दो-रोज़ा वाक़ई ख़्वाब-ख़याल थी
कुछ ख़्वाब में गुज़र गई बाक़ी ख़याल में
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