प्राथमिक विद्यालय के ये बच्चे भी बनना चाहते हैं इंजीनियर और डॉक्टर

महराजगंज जिले के निचलौल ब्लॉक के चंदा खास प्राथमिक विद्यालय में चली बदलाव की बयार, अब कोई भी बच्चा नहीं होता अनुपस्थिति

Divendra SinghDivendra Singh   27 Aug 2018 6:29 AM GMT

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प्राथमिक विद्यालय के ये बच्चे भी बनना चाहते हैं इंजीनियर और डॉक्टर

महाराजगंज। कभी बकरियां चराने व जंगल से लकड़ी बीनने वाले मुसहर परिवार के बच्चे अब रोज स्कूल आते हैं और पढ़-लिखकर डॉक्टर, इंजीनियर और अपने गुरु जी की तरह बनना चाहते हैं।

महराजगंज जिले के निचलौल ब्लॉक के चंदा खास प्राथमिक विद्यालय की कहानी बिलकुल बदल चुकी है। हर बच्चा समय पर स्कूल पहुंचता है, विद्यालय में 80 प्रतिशत अनुपस्थिति रहती है लेकिन कुछ साल पहले तक स्थिति ऐसी नहीं थी। लगभग 1300 जनसंख्या वाले मुसहर बाहुल्य इस गाँव में लोगों के रोजगार का मुख्य साधन जंगल से लकड़यिां काटना, या बाहर मजदूरी करना है। ऐसे में माता-पिता के काम पर जाने के बाद बच्चे दिन भर बकरियां चराते, लकड़ी बीनते और अन्य काम किया करते थे।


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विद्यालय प्रबंधन समिति के सदस्य संजय बताते हैं, गाँव में लोग सुबह से ही मौसमी फल तोड़ने निकल जाते हैं, बाकी समय जंगल से लकड़ियां तोड़ते हैं और इसी से सबका घर चलता है। ऐसे में माता-पिता बच्चों पर ध्यान ही नहीं दे पाते लेकिन अब हालात बदल चुके हैं।

तीन साल पहले प्रधानाध्यापक सुभाष चंद्र की नियुक्ति यहां पर हुई तो मुश्किल से दस-बारह बच्चे स्कूल आते थे। आज यह संख्या बढ़कर 111 हो गई है। वह बताते हैं, "मजदूरी करने वाले मां-बाप अपने बच्चों पर ध्यान ही नहीं दे पाते थे। दस-बारह दिनों तक बच्चे स्कूल नहीं आते। ऐसे में विद्यालय प्रंबधन समिति के सदस्यों के साथ मीटिंग की गई, प्रधान जी को भी बुलाया गया, अब लोग समझ रहे हैं और बच्चों को स्कूल भेज रहे हैं।"

बाढ़ भी नहीं रोक पाती

महराजगंज जिले में बाढ़ के समय कई गाँव डूब जाते हैं। चंदाखास गाँव के पास से ही नेपाल से आयी नारायणी नदी बहती है, हर वर्ष अगस्त के महीने में बाढ़ का पानी गाँव में घुस जाता है। विद्यालय परिसर में भी घुटनों तक पानी भर जाता है। ऐसे में ग्रामीण नहर के पास चले जाते हैं, तो नहर पर ही स्कूल चलता है। प्रधानाध्यापक सुभाष चंद्र बताते हैं, "पिछले साल 14 अगस्त को स्कूल आया तो घुटनों तक पानी भर गया था। जब बाढ़ आयी तो गाँव वाले अपने साथ सिर्फ घर का सामान नहीं बल्कि स्कूल का सामान भी ले गए। गाँववालों ने स्कूल का सारा जरूरी सामान सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया। जब तक गाँव में बाढ़ रही नहर पर ही बच्चों की क्लास भी चलती रही।"

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जंगल से बुलाकर लाते हैं बच्चों को

जब बच्चे स्कूल नहीं आते हैं तो प्रधानाध्यापक घरों से बच्चों को पकड़कर लाते हैं। विद्यालय प्रबंधन समिति के सदस्य मिठाई लाल के तीन पोते-पोतियां प्राथमिक विद्यालय में पढ़ते हैं। वह बताते हैं, "अगर बच्चे नहीं आते हैं तो हम लोग उन्हें स्कूल छोड़कर आते हैं, कई बार हम लोग नहीं होते तो बच्चे जंगल में बकरियां चराने चले जाते हैं, तब मास्टर जी जंगल में जाकर बच्चों को लेकर आते हैं।"

कोई डॉक्टर बनना चाहता है तो कोई इंजीनियर


मुसहर बाहुल्य इस गाँव के लोग भले ही मजदूरी कर अपना घर चलाते हों, लेकिन बच्चे पढ़-लिखकर अच्छी नौकरी करना चाहते हैं। पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाले किशन को अंग्रेजी और गणित जैसे विषय पढ़ने में अच्छे लगते हैं। किशन बताता है, "मैं अब हर दिन स्कूल आता हूं, सर जी जो पढ़ाते हैं पूरा काम करके आता हूं, मुझे पढ़ना अच्छा लगता है।"

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ग्रामीणों व ग्राम प्रधान के सहयोग से हुए कई बदलाव

हर महीने विद्यालय प्रबंधन समिति की मीटिंग होती है, मजदूरी करने वाले ग्रामीण मीटिंग के लिए समय निकाल ही लेते हैं। ग्राम प्रधान रामचंद्र ने बताया, "पहले स्कूल में मोटर नहीं लगी थी और शौचालय भी नहीं था, सदस्यों ने मीटिंग में बताया कि ये बनना जरूरी है। अब स्कूल में अपनी मोटर लग गई है, जिससे बच्चों को साफ पानी मिलता है।"

स्कूल से मिला बेरोजगार को रोजगार

प्राथमिक विद्यालय में अभी प्रधानाध्यापक सुभाष चंद्र अकेले शिक्षक हैं। ऐसे में 111 बच्चों को पढ़ाना मुश्किल हो जाता है, इसलिए सुभाष चंद्र ने गाँव की ही किरन को पढ़ाने के लिए रख लिया है और अपने पास से ही उन्हें वेतन देते हैं। ऐसे में किरन को रोजगार भी मिल गया है बच्चों की पढ़ाई भी आसान हो गई है।

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