सब्जी के अलावा कमाल की औषधि भी है आलू

Deepak AcharyaDeepak Acharya   13 Feb 2019 6:45 AM GMT

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सब्जी के अलावा कमाल की औषधि भी है आलू

आलू दुनिया भर में अनाज के बाद भोजन के रूप में इस्तमाल किए जाने वाला सबसे अहम खाद्य पदार्थ है। वैसे तो आलू दक्षिणी अमेरिका के बोलिविया के एंडियन पर्वत और पेरू में लगभग 6000 वर्षों से पारंपरिक तौर से उगाया जा रहा है। भारत देश में भी आलू की खेती को लेकर एक लंबा इतिहास है। आलू के कंद ऊर्जा और पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। इनमें कार्बोहाईड्रेड्स, प्रोटीन, खनिज लवण, बीटा कैरोटीन, विटामिन A, C, B1, B2, B6 और फोलिक अम्ल आदि प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। वैसे तो आलू का प्रमुख घटक स्टार्च होता है, किंतु ये प्रोटीन से भरपूर होते हैं। करीब 100 ग्राम आलू की पोषक क्षमता कुछ इस तरह होती है।

100 ग्राम आलू की पोषक क्षमता कुछ इस तरह होती है।

आलू के कंदों में शर्करा के तमाम प्रकार जैसे सुक्रोज, ग्लुकोज और फ्रक्टोस पाए जाते हैं। आलू को दुनिया भर में अलग-अलग तरह के व्यंजनों के तौर पर सेवन में लाया जाता है। आलू को पशुओं, सूअर और मुर्गीपालन में भी चारे के तौर पर इस्तमाल किया जाता है। उद्योगों में आलू को स्टार्च, लुब्रिकेंट्स, एथिल एल्कोहल और कुछ अन्य उत्पादों के बनाने के लिए उपयोग में लाया जाता है।

आदिवासी आलूओं को चुनते समय ध्यान रखते हैं कि इसके कंदों से नयी कलियों का निकलना ना हो रहा हो, ये कलियाँ अक्सर हरे रंग लिये होती है। सामान्यत: ये काफी पुराने आलूओं में देखा जाता है। इस तरह के आलू सेहत के लिए उत्तम नहीं होते हैं। इस तरह के आलूओं का सेवन करने से दस्त, सिर चकराना, पेट दर्द, सिर दर्द, थकान या कभी-कभी साँस लेने में दिक्क्त होने लगती है। आदिवासी आलू का चुनाव करते वक्त विशेषत: छोटे आकार के आलूओं को चुनते हैं। इनके अनुसार आलूओं की फसल निकाले जाने के समय से थोड़े पहले आलूओं को जमीन से निकाल लिया जाता है, ये आलू आकार में छोटे होते हैं। माना जाता है कि छोटे आकार के आलूओं में पोषक तत्वों की मात्रा अधिक होती हैं और सेहत के लिए इन्हें बेहतर माना जाता है।

आलू के अनेक ऐसे औषधीय गुण हैं जिन्हें आधुनिक विज्ञान भी मानता है। आलू रसोई के अंदर आसानी से मिलने वाली एक प्रमुख औषधि है। आलू के ताजे कंदो का रस अम्लता या एसिडिटी और पेप्टिक अल्सर के नियंत्रण के लिए उत्तम होता है। आलू का सेवन पेशाब की समस्याओं में फायदेमंद होता है और कई इलाकों में आलू को माताओं के लिए दूधवर्धक के तौर पर दिया जाता है। आलूओं को उबालकर, कुचलकर एक सूती कपड़े में बाँधकर, दर्द वाले अंगों पर बाँध दिया जाए तो दर्द में आराम मिलता है। कच्चे आलू का रस बदन के जल जाने पर लगाया जाए तो जलन तुरंत कम हो जाती है और फफोले नहीं पड़ते हैं। आलू के छिलकों को मसूड़ों पर लगाकर हल्का-हल्का रगड़ा जाए तो मसूड़ों की सूजन कम हो जाती है। आलू की पत्तियों का इस्तमाल अक्सर पेट दर्द में कारगर होता है। कुछ आधुनिक शोधों के अनुसार आलू की पत्तियाँ, बीज और कंद का काढ़ा अनेक प्रकार के जीवाणुओं की वृद्दि रोकता है।

पारंपरिक तौर पर आलू का इस्तमाल आदिवासी अनेक फार्मुलों में सदियों से करते चले आ रहें है। मध्यप्रदेश के पातालकोट घाटी और गुजरात के डाँग जिले में आदिवासी आलू को सब्जी के तौर पर इस्तमाल करने के अलावा अनेक हर्बल फार्मुलों में भी करते है। चलिए जानते हैं कुछ चुनिंदा आदिवासी हर्बल फार्मुलों को ताकि "गाँव कनेक्शन" के पाठक भी जान पाएं आदिवासियों के इस हर्बल खजाने को..

कच्चे आलू का रस एसिडिटी और पेट के अल्सर में राहत पहुंचाता है।

पाचन रोग: मध्यम आकार के आलू का रस तैयार किया जाए और करीब एक गिलास मात्रा का रस प्रतिदिन सवेरे लिया जाए तो पाचन तंत्र व्यवस्थित हो जाता है। इस रस के सेवन से एसिडिटी नियंत्रण में भी जबरदस्त फायदा होता है। आदिवासियों की मान्यता के अनुसार यह रस पेट के छालों के लिए भी बेहद कारगर फार्मुला है।

उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर): डाँग- गुजरात के हर्बल जानकारों के अनुसार उच्च रक्तचाप से जुड़े विकारों के लिए रोगियों को उबले आलूओं का सेवन कराना चाहिए। नयी शोधों के अनुसार में आलू में पोटेशियम पाया जाता है जो ब्लड प्रेशर को सामान्य बनाने के लिए मददगार होता है।

वजन कम करना: उबले आलूओं पर हल्का सा नमक छिड़क दिया जाए और उस व्यक्ति को दिया जाए जो वजन कम करना चाहता है। आदिवासियों के अनुसार ये गलत बात है कि आलू को मोटापा बढाने में मदद करने वाला कंद माना जाता है। वजन आलूओं की वजह से नहीं बढता बल्कि आलू को तलने के लिए इस्तमाल में लाए जाने वाले तेल, घी आदि आलू को बदनाम कर जाते हैं। कच्चे आलू या आलू जिन्हें तेल, घी आदि के बगैर पकाया जाए, खाद्य पदार्थ के तौर पर इस्तमाल किए जा सकते हैं और इनकी मदद से वजन भी कम किया जा सकता है क्योंकि इनमें कैलोरी के नाम पर कुछ खास नहीं होता है।

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माना जाता है कि छोटे आकार के आलुओं में पोषक तत्व अधिक होते हैं।

आर्थराइटिस: कच्चे आलू का रस आर्थराइटिस से ग्रस्त रोगी के लिए जैसे एक वरदान है। आलू लेकर छील लिया जाए, बारीक टुकड़े कर लिए जाए और एक गिलास में रात भर इन टुकड़ों को डुबो कर रखा जाए। अगली सुबह इस पानी का सेवन किया जाए। आधुनिक शोधों के अनुसार खनिज लवणों और कार्बनिक नमक की उपस्थिति आलू को आर्थराइटिस के निवारण के लिए एक बेहतर उपाय बनाती है।

पीठ दर्द: कच्चे आलूओं को कुचलकर पुट्टी तैयार करके दर्द वाले हिस्सों पर लगाकर कुछ देर के लिए रखा जाए तो पीठ दर्द में आराम मिलता है। पातालकोट के आदिवासी कच्चे आलूओं को कुचलकर पीठ पर दर्द वाले हिस्सों पर लगाकर हल्की-हल्की मालिश की सलाह भी देते हैं।

पेटदर्द: एक गिलास में लगभग 2 इंच आलू का रस भर लिया जाए और इसमें गिलास भरने तक गर्म पानी डाला जाए, सुबह खाली पेट इस मिश्रण का सेवन करने से पेट दर्द में तेजी से राहत मिलती है।

पोषक तत्वों की कमी: हम जानते हैं कि आलू में पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। कच्चे आलू को कुचलकर एक चम्मच रस तैयार किया जाए और इसे दिन में कम से कम चार बार लिया जाए। आदिवासी हर्बल जानकारों के अनुसार आलू का रस रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है और कई प्रकार के रोगों से लड़ने की क्षमता शरीर को मिल जाती है। आलू की मदद से कमजोरी, थकान और ऊर्जा की कमी को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

आदिवासी सदियों से आलू का इस्तेमाल औषधि के रूप में करते चले आ रहे है।

घाव, जलना या छाले होना: ताजे आलूओं को कुचलकर पेस्ट तैयार किया जाए और इसे घावों, जले अंगों और जलने पर बने छालों पर लगाने से तुरंत राहत मिल जाती है। ताजे आलू के छिलके भी जले हुए अंगो पर राहत दिलाते हैं। जलने के बाद यदि घावों पर सूक्ष्मजीवी संक्रमण भी हो गया हो तो आलू जबरदस्त काम करता है और शीघ्र संक्रमण समाप्त हो जाता है।

सिरदर्द: आधा कटा हुआ ताजा आलू माथे पर लगाया जाए और इसी आलू को बीच-बीच में कनपटी पर भी रखा जाए, सिर दर्द में आराम मिलता है।

मस्सा: अक्सर गर्दन और काँख पर लोगों को छोटे-छोटे मस्से निकल आते हैं, पातालकोट के हर्बल जानकारों के अनुसार कटे हुए आलू के हिस्से को प्रतिदिन दिन में 4-5 बार इन मस्सों पर लगाया जाए तो कुछ दिनों बाद मस्सा अपने आप त्वचा से टूटकर अलग हो जाता है। आलू में पोटेशियम और विटामिन C पाए जाता है जो घाव को सुखाने के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।

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नींद ना आना: जिन्हें अक्सर नींद ना आने की शिकायत होती है उन्हें उबले आलूओं का सेवन करना चाहिए। आलू पेट के अम्लों के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता है, अक्सर अम्लों के प्रभाव से नींद अनियंत्रित हो जाती है। सोने से पहले उबला हुआ आलू और एक गिलास दूध लेने से फायदा होता है।

बवासीर: ताजे आलूओं का रस बवासीर के लिए बेहद फायदेमंद होता है। आदिवासियों के अनुसार बवासीर होने पर रोगी को प्रतिदिन एक गिलास कच्चे आलू का रस का सेवन करना चाहिए और आलू के रस को प्रभावित अंग पर लेपित भी करना चाहिए।

रक्त अल्पता (एनिमिया): आलुओं में लोहा और लौह तत्व प्रचूर मात्रा में पाए जाते हैं जो कि लाल रक्त कणिकाओं के निर्माण के लिए अत्यंत आवश्यक है। इसी वजह से एनिमिया को रोकने के लिए आलू बेहद महत्वपूर्ण नुस्खा है। पातालकोट के हर्बल जानकारों के अनुसार अधकच्चे आलूओं का सेवन रक्त अल्पता दूर करने के लिए कारगर होता है।

सौंदर्य प्रसाधन: आलूओं का इस्तमाल सौंदर्य प्रसाधन के रूप में कई तरह से किया जाता है। ताजे आलू मुहाँसो और ब्लेक हेड्स पर लगाने से आराम मिलता है। ताजे आलूओं के रस से चेहरा धोने से चेहरे से कई तरह के दाग दूर हो जाते हैं। ताजे आलू लेकर आँखो के ऊपर हल्का हल्का रखकर मालिश की जाए और रगड़ा जाए तो आँखों के चारों तरफ आए कालेपन से निजात मिल जाती है। आँखों के नीचे सूजन आने या गोल हो जाने पर कच्चा आलू रखने से आराम मिलता है।

आदिवासी अपने रोगोपचारों के लिए प्राकृतिक स्रोतों पर निर्भर रहते हैं। इन आदिवासियों की जीवन शैली को अपनाकर हम आधुनिक विकास की राह पकड़े लोग भी अपना जीवन आसान कर सकते हैं। रसायनयुक्त दवाओं से दूरी बनाना जरूरी है क्योंकि ये दवाएं क्षणिक आराम जरूर देती हैं लेकिन इनके दूरगामी परिणाम अत्यंत घातक सिद्ध हो सकते हैं। आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान को एक स्रोत मानकर नयी दवाओं का निर्माण किया जाना चाहिए ताकि आम लोगों तक सस्ती, सुलभ और पर्यावरण मित्र दवाएं आसानी से उपलब्ध हो सकें। आदिवासियों का ज्ञान हमारे जीवन को एक नई दिशा दे सकता है बशर्ते हम इस पर यकीन करना शुरू करें।

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