क्या ये सेहत से खिलवाड़ नहीं?

गाँव कनेक्शन | May 28, 2017, 14:24 IST
uttar pradesh
स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क, इंडिया स्पेंड

लखनऊ। ग्रामीणों की सेहत की देखभाल की जिम्मेदारी जिन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं पर है, उनके पास न तो पर्याप्त प्रशिक्षण है और न ही उन्हें पर्याप्त वेतन ही मिलता है।

स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों का इंडिया स्पेंड द्वारा विश्लेषण करने पर हकीकत सामने यह आई कि करीब दस लाख स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को जरूरी सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं।

एटा जिले के गाँव करनपुर से टीकाकरण अभियान के बाद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र मिरहची पहुंचीं आशा बहू ज्योति बताती हैं, “हमें किसी भी स्वास्थ्य योजना का बेहतर प्रशिक्षण नहीं मिल पाता, जिसकी वजह से तमाम समस्याएं सामने आती हैं। कई महिलाएं अपने बच्चे को टीका नहीं लगवातीं। शायद हम उन्हें बेहतर तरीके से स्वास्थ्य के प्रति जागरूक नहीं कर पाते,” आगे बताती हैं, “हम जितनी मेहनत करते हैं उतना मानदेय भी नहीं मिल पाता।”

स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (आशा) को स्वैच्छिक कार्यकर्ता माना जाता है और सरकार द्वारा उन्हें प्रोत्साहन राशि दी जाती है। अधिकतर स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को महीने में 1,000 रुपए मिलते हैं। यह राशि एक माल्ट की बोतल या एक ब्रांडेड शर्ट की कीमत से भी कम है। आशा कार्यकर्ताओं के लिए 12 महीनों में 23 दिन के प्रशिक्षण का प्रावधान है।

रायबरेली के बछरावां ब्लाक की बन्नावा ग्राम सभा की आशा बहू तुलसा देवी (45 वर्ष) कहती हैं,“कई बार एएनएम हम लोगों से कागजात ले जाती हैं और उन्हें समय से जमा नहीं करती हैं, जिससे हमारा पैसा तो रुक ही जाता है। लाभार्थी का पैसा भी समय से नहीं मिल पाता है।”

वहीं, लखनऊ के सरोजनीनगर की आशा बहू रीता कहती हैं, “बहुत काम पड़ता है, लेकिन मानदेय कुछ भी नहीं है। इतना दौड़ने के बाद भी मिलता सिर्फ 1000 रुपये ही है।” वहीं, परिवार कल्याण विभाग की महानिदेशक नीना गुप्ता कहती हैं कि हम आशा बहूओं और एएनएम को समय-समय प्रशिक्षण देते रहते हैं, ताकि गाँवों में अच्छे से काम कर सकें। वेतन की बात करें तो वेतन आशाओं को कम जरूर मिलता है। उनके काम की अपेक्षा तो इस पर एक बार विचार जरूर करना चाहिए। हालांकि उन्हें समय-समय पर उन्हें भत्ता का लाभ मिलता है।

हर वर्ग के घरों तक जाती हैं आशा बहू

एक आशा कार्यकर्ता स्वास्थ्य देखभाल सुविधा देने के लिए काम करती है। वह समाज के सबसे गरीब और सबसे कमजोर वर्ग के लोगों के घरों तकजाती है। करीब 22 फीसदी या 26.9 करोड़ भारतीय अब भी गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं। आशा कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियां प्रजनन और बालस्वास्थ्य, प्रतिरक्षण, परिवार नियोजन और सामुदायिक स्वास्थ्य से संबंधित हैं। इसमें गर्भवती महिलाओं के घर का दौरा और परामर्श, गांव की स्वास्थ्य योजनाओं में मदद करना , मामूली बीमारियों जैसे कि दस्त, बुखार और मामूली चोटों के लिए प्राथमिक उपचार प्रदान करना भी शामिल है।

दस में सात ने कहा, नहीं मिला बेहतर प्रशिक्षण

करीब 70-90 फीसदी आशा कार्यकर्ताओं ने कहा कि उन्हें बेहतर प्रशिक्षण, आर्थिक सहायता और दवाओं की किट की बेहतर पूर्ति की जरूरत है। आशा कार्यकर्ताओं ने यह भी कहा कि उन्हें पंचायत और सहायक नर्स दाइयों और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की ओर से मिल रहे सीमित समर्थन से कोई मदद नहीं मिलती। उत्तर बिहार में वर्ष 2015 के अध्ययन के अनुसार सर्वेक्षणों में शामिल केवल 22 फीसदी आशा कार्यकर्ताओं को अपनी भूमिका के बारे में पता था। अधिकांश आशा कार्यकर्ताएं मातृ और शिशु देखभाल में शामिल जरूर थीं, लेकिन स्थानीय स्वास्थ्य योजना या स्वास्थ्य सक्रियता से संबंधित अन्य कामों में वे शामिल नहीं थीं।

गिर रहा आशा बहुओं का अनुपात

आशा कार्यकर्ता की उम्र 25 से 45 साल के बीच होती है। वह आठवीं कक्षा या उससे अधिक शिक्षित होती हैं। आमतौर पर, 1000 लोगों की आबादीपर एक आशा कार्यकर्ता तैनात होती हैं, लेकिन बाद में यह गिर कर प्रति 910 की आबादी पर एक आशा कार्यकर्ता का अनुपात हो गया है। नेशनल आशा मेन्टरिंग ग्रुप द्वारा 16 राज्यों में अध्ययन के बाद वर्ष 2015 की इस रिपोर्ट के मुताबिक, बच्चे की बीमारी के दौरान कम से कम 65 फीसदी मामलों में आशा कार्यकर्ताओं से परामर्श किया गया, लेकिन कौशल में कमी, आपूर्तिया सीमित साधन की कमी के कारण आशा कार्यकर्ताओं का प्रदर्शन कमतर देखा गया।

ताजा अपडेट के लिए हमारे फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए यहां, ट्विटर हैंडल को फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें।

Tags:
  • uttar pradesh
  • हिंदी समाचार
  • Samachar
  • Health workers
  • asha bahu

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.