954 करोड़ के घोटाले के आरोपी को बचाने के लिए अखिलेश सरकार ने खर्च किए 21 लाख रुपए !

Mithilesh DharMithilesh Dhar   5 May 2017 12:52 PM GMT

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954 करोड़ के घोटाले के आरोपी को बचाने के लिए अखिलेश सरकार ने खर्च किए 21 लाख रुपए !954 करोड़ के घोटाले के आरोपी को बचाने के लिए अखिलेश सरकार ने खर्च किए 21 लाख रुपए ।

लखनऊ। प्रदेश की पूर्व समाजवादी पार्टी की सरकार ने यादव सिंह को बचाने के लिए 21 लाख रुपए खर्च किए थे। अखिलेश सरकार ने ये रुपए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकीलों पर खर्च किए।

यह तथ्य आरटीआई कार्यकर्ता नूतन ठाकुर द्वारा प्राप्त सूचना से सामने आया है। नूतन द्वारा दायर जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने इस मामले को सीबीआई को स्थानांतरित किया था। उत्तर प्रदेश सरकार ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की थी जो 16 जुलाई 2015 को पहली सुनवाई के दिन ही खारिज हो गई पर तत्कालीन सरकार ने सीबीआई जांच से बचाने के लिए हरसंभव प्रयास किया था। आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पैरवी के लिए चार वरिष्ठ वकील नियुक्त किए थे। इनमें कपिल सिब्बल को 8.80 लाख रुपए, हरीश साल्वे को पांच लाख रुपए, राकेश द्विवेदी को 4.05 लाख रुपए और दिनेश द्विवेदी को 3.30 लाख रुपए दिए गए थे।

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कुल 21. 25 लाख रुपए इन वकीलों को दिए गए। नूतन ने कहा कि यह वास्तव में अफसोसजनक है कि यादव सिंह जैसे दागी को बचाने के लिए राज्य सरकार ने इतनी भारी धनराशि खर्च की। गौरतलब है कि 954 करोड़ रुपए के टेंडर घोटाला मामले में आयकर विभाग ने यादव सिंह और उनकी पत्नी के परिसरों पर छापे मारे थे। इनमें भारी मात्रा में नकदी, दो किलो सोना और हीरे के आभूषण बरामद हुए। विभाग ने उनके दर्जन से ज्यादा बैंक खातों और उनके द्वारा संचालित निजी फर्मों को भी अपनी जांच के दायरे में ले लिया।

कौन है यादव सिंह और कैसे किया करोड़ों का हेरफेर

नोएडा अथॉरिटी के चीफ इंजीनियर थे यादव सिंह। भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे यादव सिंह पर जब अखिलेश सरकार ने कार्रवाई नहीं की तो जांच सीबीआई को सौंपी गई। 900 करोड़ की संपत्ति के मालिक यादव सिंह पर इनकम टैक्स विभाग ने छापा मारा था। छापेमारी में 2 किलो सोना, 100 करोड़ के हीरे, 10 करोड़ कैश के अलावा कई दस्तावेज मिले। 12 लाख रुपए सालाना की सैलरी पाने वाले यादव सिंह और उनका परिवार 323 करोड़ की चल अचल संपत्ति का मालिक बन बैठा। इसके बाद ही यादव सिंह से पूछताछ शुरू हुई और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

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1995 में यादव सिंह को असिस्टेंट प्रोजेक्ट इंजीनियर से प्रोजेक्ट इंजीनियर के तौर पर प्रमोशन दिया गया। जबकि यादव सिंह के पास सिर्फ इंजीनियरिग का डिप्लोमा था। नियम के हिसाब से इस पद के लिए इंजीनियरिंग की डिग्री जरुरी है, लेकिन दस्तावेजों के मुताबिक यादव को बिना डिग्री के प्रमोशन दिया गया। इस हिदायत के साथ कि वो अगले तीन साल में इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल कर लें।

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जानकार के मुताबिक यादव सिंह को राजनीतिक सरपरस्ती भी खूब मिली। सत्ता किसी की भी रही, उनका बाल बांका नहीं हुआ। आयकर विभाग ने यादव सिंह के गाजियाबाद और दिल्ली के 20 ठिकानों पर छापा मारे थे। आयकर विभाग ने खुलासा किया था कि यादव सिंह ने मायावती सरकार के दौरान अपनी पत्नी कुसुमलता, दोस्त राजेन्द्र मिनोचा और नम्रता मिनोचा को डायरेक्टर बनाकर करीब 40 कम्पनी बना डालीं और कोलकाता से बोगस शेयर बनाकर नोएडा अथॉरिर्टी से सैकडो बड़े भू-खण्ड खरीदे। बाद में उन्हें दूसरी कम्पनियों को फर्जी तरीकों से बेच दिया।

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