एनटीपीसी: देश में पहले भी हाे चुके हैं ऐसे हादसे

Divendra SinghDivendra Singh   2 Nov 2017 1:06 PM GMT

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एनटीपीसी: देश में पहले भी हाे चुके हैं ऐसे हादसेएनटीपीसी में हादसे के वक़्त उठा धुएँ और धूल का ग़ुबार

लखनऊ। रायबरेली के ऊंचाहार में एनटीपीसी में हुए हादसे में अब तक 20 लोगों की मौत हो गई और कई घायल अभी भी अस्पताल में हैं।एनटीपीसी हादसे पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई लोगों ने संवेदना प्रकट किया।

ऊंचाहार एनटीपीसी की इस दुर्घटना ने एक बार फिर औद्योगिक हादसों की याद दिला है, जिन हादसों में सैकड़ों की जाने गईं। ऐसे हादसे जिनकी मनहूस याद से अब भी लोग डर जातेे होंगे।

भोपाल गैस त्रासदी, जिसमें हजारों जाने गईं

यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी जिसमें हुआ था हादसा

देश में अब तक का सबसे बड़ा हादसा भोपाल गैस त्रासदी है, मध्य प्रदेश में 3 दिसम्बर सन् 1984 को एक भयानक औद्योगिक दुर्घटना हुई। इसे भोपाल गैस कांड, या भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी के कारखाने से एक ज़हरीली गैस का रिसाव हुआ, जिससे लगभग 15000 से अधिक लोगो की जान गई तथा बहुत सारे लोग अनेक तरह की शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए।

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भोपाल गैस काण्ड में मिथाइल आइसो साइनाइट (मिक) नामक जहरीली गैस का रिसाव हुआ था। जिसका उपयोग कीटनाशक बनाने के लिए किया जाता था। अधिकारिक तौर पर मरने वालों की संख्या 2,259 थी। मध्यप्रदेश की तत्कालीन सरकार ने 3,787 की गैस से मरने वालों के रूप में पुष्टि की थी। अन्य अनुमान बताते हैं कि 8000 लोगों की मौत तो दो सप्ताहों के अंदर हो गई थी और लगभग अन्य 8000 लोग तो रिसी हुई गैस से फैली संबंधित बीमारियों से मारे गये थे।

उस दिन यूनियन कार्बाइड के प्लांट नंबर 'सी' में हुए रिसाव से बने गैस के बादल को हवा के झोंके अपने साथ बहाकर ले जा रहे थे और लोग मौत की नींद सोते जा रहे थे। लोगों को समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर एकाएक क्या हो रहा है? कुछ लोगों का कहना है कि गैस के कारण लोगों की आंखों और सांस लेने में परेशानी हो रही थी। जिन लोगों के फैंफड़ों में बहुत गैस पहुंच गई थी वे सुबह देखने के लिए जीवित नहीं रहे।

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सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस दुर्घटना के कुछ ही घंटों के भीतर तीन हजार लोग मारे गए थे। हालांकि गैर सरकारी स्रोत मानते हैं कि ये संख्या करीब तीन गुना ज्यादा थी। इतना ही नहीं, कुछ लोगों का दावा है कि मरने वालों की संख्या 15 हजार से भी अधिक रही होगी। पर मौतों का ये सिलसिला उस रात शुरू हुआ था वह बरसों तक चलता रहा।

क्या होता है बॉयलर और ऐसे करता है काम, जिसके फटने से हुआ हादसा

बॉयलर असल में एक ऐसा यंत्र है जिसमें भाप बनती है। यहां हीट एनर्जी से इलेक्ट्रिक एनर्जी बनाई जाती है। ज्यादातर जगहों पर बिजली पैदा करने के लिए जो टर्बाइन घूमती है वह स्टीम यानी भाप से ही घूमती है। यहां पानी गर्म होकर भाप बनता है और उससे स्टीम टर्बाइन घूमती है और इस क्रिया से एक इलेक्ट्रिक जेनरेटर चल पड़ता है। फिरोज गांधी ऊंचाहार थर्मल पावर प्लांट का अधिग्रहण एनटीपीसी ने 1992 में किया था। 1994 तक एनटीपीसी ने यहां 15000 मेगावाट की क्षमता विकसित कर ली थी।

चासनला खनन दुर्घटना, 1975

साल 1975 को हुए खदान हादसे में कुछ ही मिनटों में 300 ज्यादा लोगों की जल समाधि बन गई। झारखंड के धनबाद जिले में चासनाला खदान हादसा भी देश के बड़े हादसों में से है।

27 दिसंबर 1975 के दिन खदान में काम करते जाते लोगों ने शायद ये सोचा भी नहीं वो वापस अपने घरों को नहीं लौट पाएंगे। भारत के इतिहास की सबसे बड़ी खान दुर्घटना धनबाद की चासनाला की खदानों में घटी, अंदाजे के अनुसार इस हादसे में 375 लोग मारे गए। कोयले की इस खदान में अचानक कई गैलन पानी छत तौड़ कर घुस आया। इस बाढ़ में यहां काम करने वाले लोग फंस गये। इन लोगों की जान बचाने के लिए अनेक प्रयास किये गये कई जगह बात की गई, लेकिन इसके बावजूद खदान में फंसे लोगों के पास किसी तरह की कोई मदद नहीं पहुंची और तमाम कोशिशों के बावजूद इन लोगों की जान नहीं बचाई जा सकी।

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जयपुर ऑयल डिपो अग्निकांड, 2009

जयपुर इंडियन ऑयल डिपो अग्निकांड, 29 अक्टूबर 2009 को हुआ था। इस अग्निकाण्ड में राजस्थान राज्य की राजधानी जयपुर शहर के निकट स्थित सांगानेर में इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड के तेल भण्डार डिपो में भीषण आग लग गई जिसमें 12 लोगों की मौत हो गई

29 अक्टूबर को इंडियन ऑयल डिपो में कर्मचारियों द्वारा पास ही के अन्य भण्डारण व्यवस्था को तेल की आपूर्ति करने के लिए दो टैंको के बीच की तेल पाइपलाइन के वाल्व खोले गए। भूलवश उन्होंने जिस टैंक में तेल पूरा भरा था, वह टैंक उस के कारण उच्च दबाव में था के वाल्व पहले खोले व आगे के बाद में। इसी कारण बीच के वाल्व में एकदम से तेज रिसाव हुआ व पेट्रोल का फव्वारा छूट पड़ा। इससे हर तरफ पेट्रोल तेजी से फैल गया व ज्वलनशील पदार्थ की गैस इलाके में फैल गयी। पेट्रोल रिसाव होने व पेट्रोल की गंध के कारण ज्यादातर कर्मचारी व आस पास के औद्योगिक व रिहाइशी इमारतें खाली करा ली गयीं।

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घटना के बाद जिला प्रशासन ने सभी उपायों के साथ आग बुझाने की कोशिश की और वहां दमकल सेवा व एंबुलेंस भेजी गयीं। कानून व्यवस्था सुचारु रखने व पूरे क्षेत्र को खाली कराने के लिए भारी पुलिस बंदोबस्त के साथ सेना की भी सहायता ली गयी। आग और न फैले इस उद्देश्य से अन्य शहरों से भी मदद बुलाई गयी पर विशेषज्ञो की राय के बाद आग को खुद ही बुझने के लिए छोड़ दिया गया व उस पर किसी भी प्रकार से पानी आदि नहीं डाला गया।

इंडियन ऑयल कंपनी को इस अग्निकांड से लगभग एक हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ व 10 करोड़ लीटर तेल जल कर बर्बाद हो गया। इस हादसे में इंडियन ऑयल के कर्मचारियों समेत 11 लोगों की जान गयी व करीब 150 लोग घायल हो गए

कोरबा चिमनी दुर्घटना, 2009

छत्तीसगढ़ के कोरबा में 23 सितंबर 2009 को हुए हादसे में भी कई जाने गईं थीं, भारतीय एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड (बाल्को) में ये हादसा हुआ था। दुर्घटना के बाद एक बचाव प्रयास शुरू किया गया था। चल रही बारिश में फंसे हुए श्रमिकों को पुनः प्राप्त करने के प्रयासों में बाधा उत्पन्न हुई। कम से कम सात घायल लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। बाल्को के आने वाले बिजली संयंत्र में निर्माणाधीन चिमनी को बारिश के दौरान दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी, जिसमें 40 लोग मारे गए थे और कई अन्य लोग घायल हुए थे।

बॉम्बे डॉक्स विस्फोट, 1944

बॉम्बे विस्फोट (या बॉम्बे डॉक्स विस्फोट) 14 अप्रैल 1944 को बॉम्बे के विक्टोरिया डॉक में हुआ था, जब मालवाहक एसएस. फोर्ट स्टाइकिन सोना और गोला-बारूद का एक मिश्रित माल ले रखा था, जिस दौरान उसमें आग लग गई और दो भंयकर विस्फोटों से सब कुछ तहस-नहस हो गया। इस हादसे में 800 से अधिक लोगों की मौत हो गई और कई हजार लोग घायल हो गए।

24 फरवरी को जिब्राल्टर, पोर्ट सैद और कराची के माध्यम से नौकायन चली जो 12 अप्रैल 1944 को मुंबई पहुंची। उसमें कई तरह के विस्फोटक समाग्रियां रखीं थीं, विस्फोटक इतनी तेज था कि 12 किमी. दूर तक के घरों में खिड़कियों के कांच टूट गए थे, सैकड़ों लोग इस हादसे से बेघर हो गए।

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