खेती की लागत को घटाने और मुनाफा बढ़ाने के गुर किसानों को सिखाते हैं आकाश चौरसिया

Neetu SinghNeetu Singh   29 Nov 2017 10:36 AM GMT

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खेती की लागत को घटाने और मुनाफा बढ़ाने के गुर किसानों को सिखाते हैं आकाश चौरसियाआकाश किसानों को दिखाते ‘वाटर रिचार्ज हार्वेस्टिंग एंड रिसाइक्लिंग सिस्टम’ (गढ्ढा) 

सागर (मध्यप्रदेश)। किसान आकाश चौरसिया देश भर के किसानों को सिखा रहे हैं कि खेती की लागत को एकदम कम करने के साथ-साथ अधिक मुनाफा कैसे कमा सकते हैं। आकाश खाद, कीटनाशक और बीज कुछ भी बाज़ार से नहीं खरीदते हैं। इसके बावजूद वो एक खेत से चार-चार (फोर लेयर फार्मिंग विधि से) लेते हैं।

आकाश गाय के गोबर से खाद और उसके मूत्र से कीटनाशक बनाकर फसल में इस्तेमाल करते हैं। इसके साथ की वो खेत के उपजाऊ पन को बरकरार रखने के लिए तरह-तरह के काम करते रहते हैं।

बारिश से खेत में बहने वाली उपजाऊ मिट्टी और पानी को बचाने के लिए युवा किसान आकाश चौरसिया ने खेत के पास ‘वाटर रिचार्ज हार्वेस्टिंग एंड रिसाइक्लिंग सिस्टम’ (गढ्ढा) बनाकर एक ऐसी तरकीब निकाली जिससे एक साधारण किसान करोड़ों लीटर पानी और कई ट्राली उपजाऊ मिट्टी को संरक्षित कर सकता है। जिससे उसकी लागत शून्य होगी और खेत उपजाऊ होगा।

मध्यप्रदेश के सागर जिले के रेलवे स्टेशन से महज छह किलोमीटर दूर राजीव नगर तिली सागर के रहने वाले आकाश चौरसिया (28 वर्ष) का मानना है, “हर साल बरसात में या सालभर में जब भी बारिश होती तो मैं देखता की हमारे ही खेतों का पानी बहकर बर्बाद हो रहा है, खेत की जो उपजाऊ मिट्टी थी वो तीन महीने की बारिश में कमसेकम एक ट्राली मिट्टी बह जाती थी। इस बर्बाद होते पानी और मिट्टी को बहने से रोकने के लिए मैंने अपने खेत से गढ्ढे बनाने की शुरुआत की।” इस गढ्ढे को बनाकर आकाश ने न सिर्फ अपने खेत की मिट्टी और पानी को बहने से रोका बल्कि अपने जैसे देश के हजारों किसानों को ये नि:शुल्क तरकीब बताकर उन्हें भी मिट्टी और पानी को बहने से रोकने के लिए प्रेरित किया।

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इस गढ्ढे में आकाश पान भी रख लेते हैं

आकाश ने 2014 में पास ‘वाटर रिचार्ज हार्वेस्टिंग एंड रिसाइक्लिंग सिस्टम’ (गढ्ढा) बनाने की शुरुआत अपने खेत से की थी। ये तीन एकड़ जमीन में पूरी तरह से जैविक खेती करते हैं, मल्टीलेयर फॉर्मिंग इनके द्वारा बनाई गयीं जैविक खादें, कीटनाशक दवाइयां, खेती के आसान तौर-तरीके सीखने यहाँ देश के विभिन्न हिस्सों से किसान हर महीने की 27-28 तारीख को आते हैं। इनके बताये अनुसार साल 2014 से 2017 तक 12 हजार किसानों ने 14050 गढ्ढे अपने खेतों में बनाए हैं। इससे हर साल लगभग 30 हजार ट्राली मिट्टी और करोड़ों लीटर पानी संरक्षित किया जा रहा है।

आकाश बताते हैं, “अगर एक घंटे बारिश हुई तो मान लो कि खेत में 25 हजार लीटर पानी गिरा तो वो पानी इस गढ्ढे में इकठ्ठा हो जाता है। दो दिन फिर बारिश नहीं हुई तो इस पानी से भूमि रिचार्ज होती रहती है। जब-जब बारिश होगी गढ्ढे में पानी होगा और उससे खेत रिचार्ज होगा। बारिश के तीन महीने में एक एकड़ से एक ट्राली बहने वाली मिट्टी भी इसी गढ्ढे में इकठ्ठा हो जाती है।” वो आगे बताते हैं, “बारिश के पानी से खेत रिचार्ज होता रहता है और यहाँ जमा उपजाऊ मिट्टी को पु:न खेत में डाल देते हैं, जिससे हमारे वायुमंडल में मौजूद अनगिनत जैव उर्वरक तत्व जमीन में पहुंच जाते हैं। ये पानी रिचार्ज करने का सबसे सस्ता, सरल और सहज तरीका है जिसे बिना पैसे के कोई भी किसान अपना सकता है।”

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फ़ौजी भी इनके यहाँ सीखने आते हैं इनके तौर-तरीके

ऐसे बनता है पानी रिचार्ज करने का ये गढ्ढा

आकाश ने साल 2014 में अपने खेत की ढलान वाली जगह जहाँ से पूरे खेत का पानी बह जाता था वहां 10-10 का एक गढ्ढा खोदा। ये गढ्ढा 10 मीटर लम्बा, 10 मीटर चौड़ा, 10 मीटर गहरा होता है। इसे किसान बरसात के अलावा कभी भी अपने खेत में बना सकते हैं। पूरी बारिश में हुए पानी से आठ से 10 लाख लीटर पानी एक गढ्ढे में एक एकड़ खेत से रिचार्ज होता है।

कोई भी किसान इस गढ्ढे को बरसात के अलावा कभी भी अपने खेत के पास ढलान वाली जगह पर बना सकता है। इससे उसके खेत में पानी रिचार्ज की कभी कोई समस्या नहीं होगी। आकाश का कहना है, “हमारे खेतों की मिट्टी बहुत ताकतवर होती है जिसे किसान जरा सी लापरवाही में बहने देता है, खेत में हमेशा नमी की समस्या रहती है। वायुमंडल के बहुत सारे तत्व जिसे किसान बाजार से नहीं खरीद सकता है वो सारे तत्व इस मिट्टी के जरिये खेत में पहुंच जाते हैं।”

वो आगे बताते हैं, “बारिश के पानी से उगी फसल की चमक अलग होती है इसलिए इस पानी से भूमि को रिचार्ज करना बहुत जरूरी है। किसान बिना पैसे से इस तरीके को अपनाकर अपने खेत को उपजाऊ बना सकता है। इससे खेत में नमी हमेशा मौजूद रहेगी, इमरजेंसी में थोड़ा बहुत पानी इस गढ्ढे का इस्तेमाल भी किया जा सकता है, इसमे जानवर पानी पी सकते हैं, मैं तो कच्चे पान का बंडल भी इसी पानी में डाल देता हूँ इसके लिए हमे अलग से इंतजाम नहीं करना पड़ता है।”

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