ग्रामीण महिलाएं बन गईं खेती की जानकार, कम लागत में खेती कर ले रहीं अच्छा मुनाफा

झारखंड की निभा देवी हों या फिर शान्ति देवी, इनकी तरह सैकड़ों महिलाएं आज खेती से कमाई इसलिए कर पा रही हैं क्योंकि ये बाजार से न तो खाद खरीदती हैं और न ही बीज। घर पर गौमूत्र से जीवामृत बनाती हैं और फसल में कीट-रोग लगने पर नीम-धतूरा जैसे घरेलू चीजों से नीमास्त्र और ब्रह्मास्त्र।

Neetu SinghNeetu Singh   7 Oct 2019 12:30 PM GMT

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ग्रामीण महिलाएं बन गईं खेती की जानकार, कम लागत में खेती कर ले रहीं अच्छा मुनाफाझारखंड की महिलाएं आजीविका कृषक मित्र बन कम लागत में ले रहीं अच्छा मुनाफा

रांची (झारखंड)। जो महिलाएं कल तक मजूदरी करती थीं वो आज उनकी पहचान सफल किसान के रूप में है। ये खेती की जानकार महिलाएं अब अपने क्षेत्र की महिलाओं को खेती करने का हुनर कम लागत में सिखा रही हैं। इन महिलाओं की मदद से झारखंड में तीन लाख से ज्यादा महिला किसान कम लागत में खेती कर मुनाफे की फसल काट रही हैं।

रांची की निभा देवी (32 साल) ये भली-भांति जानती हैं कि खेती की लागत कैसे कम की जाए। नीता के पास खुद की जमीन तो नहीं है लेकिन अपने पड़ोसी की खाली पड़ी जमीन जिसे वो बेकार समझते थे आज निभा उसमें सब्जियां उगा रही हैं। निभा कहती हैं, "खेती करने के मेरे शौक को देखते हुए मुझे आजीविका कृषक मित्र की ट्रेनिंग दी गयी। एक साल बाद मैं सीनियर आजीविका कृषक मित्र बन गयी। अभी मेरी देखरेख में 350 किसान जैविक तरीके से खेती करते हैं और आठ आजीविका कृषक मित्र जो किसानों को ट्रेनिंग देते हैं।"

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ये हैं निभा देवी जो किसानों से जैविक सब्जियां खरीदकर बाजार पहुंचाती हैं

निभा के आसपास रहने वाले किसानों को अपनी शुद्ध ताजी जैविक सब्जियां बेचने के लिए भटकना नहीं पड़ता। क्योंकि निभा घर बैठे इनकी सब्जियां खरीदती हैं और फिर उसे रांची में आजीविका फ्रेस नाम की बाजार में बिकने के लिए भेज देती हैं। निभा रांची जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर अनगड़ा प्रखंड के बीसा गाँव की रहने वाली हैं। निभा की तरह झारखंड में 5,000 से ज्यादा महिलाएं आजीविका कृषक मित्र हैं। जो खुद तो जैविक तरीके से मिश्रित खेती करती ही हैं साथ ही अपने आसपास के सैकड़ों किसानों को प्रशिक्षित भी करती हैं।

झारखंड ग्रामीण विकास विभाग, झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी सखी मंडल से जुड़ी सैकड़ों महिलाओं को उन्नत खेती के तौर-तरीके सिखाकर उन्हें प्रशिक्षित करता है। यही महिलाएं गाँव की आजीविका कृषक मित्र के नाम से जानी जाती हैं। जब ये खेती में अच्छी उपज लेनी लेती हैं और इनके आसपास के किसान भी जैविक खेती करने लगते हैं तब ये सीनियर आजीविका कृषक मित्र बन जाती हैं। फिर महिलाओं का यही कैडर दूसरी महिलाओं को आजीविका कृषक मित्र के लिए प्रशिक्षित करने लगता है।

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ये महिलाएं खेती करके ले रही हैं अच्छा मुनाफा

केंद्र सरकार की महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना का साथ मिलने से इन मेहनतकश महिलाओं की जिंदगी बदल रही है। खेती-बाड़ी में इनका ज्ञान हैरान करने वाला है। निभा देवी की तरह लातेहार की आजीविका कृषक मित्र शांती देवी भी आज खेती से अच्छा मुनाफा कमा रही हैं। शान्ती देवी (26 वर्ष) बताती हैं, "खेती-किसानी की मास्टर ट्रेनिंग ली है, पहले जिस एक एकड़ खेत में अरहर चार से पांच कुंतल ही पैदा होती थी अब उसी खेत में आठ से नौ कुंतल श्रीविधि लगाने से अरहर पैदा होता है। अरहर की ग्रेडिंग करने के बाद बाजार में बेचते हैं, जिससे अच्छा भाव मिल जाता है।"

झारखंड की निभा देवी हों या फिर शान्ति देवी इनकी तरह सैकड़ों महिलाएं खेती से कमाई इसलिए कर पा रही हैं, क्योंकि ये बाजार से न तो खाद खरीदती हैं और न ही बीज। घर पर गौमूत्र से जीवामृत बनाती हैं और फसल में कीट-रोग लगने पर नीम-धतूरा जैसे घरेलू चीजों से नीमास्त्र और ब्रह्मास्त्र। आजीविका कृषक मित्र महिलाओं का एक महत्वपूर्ण कैडर है जो गाँव-गाँव जाकर किसानों को जैविक खेती के लिए प्रशिक्षित करता है।

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सामूहिक खेती कर ये महिला किसान ले रहीं अच्छा उत्पादन

झारखंड में ज्यादातर किसान छोटी जोत के हैं। ऐसे में कम जमीन पर इन्हें ज्यादा लाभ मिले इसके लिए इन्हें सहफसली खेती की तकनीकी सिखाई जा रही है। खेती की लागत कम हो और स्वास्थ्य बेहतर हो इसलिए जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। खेती के महंगे उपकरण महिलाओं के साथी बन सकें, इसलिए सखी मंडलों को कृषि यंत्र पर 90 फीसदी तक सरकार द्वारा सब्सिडी भी दी जा रही है।

एक आजीविका कृषक मित्र अपने आसपास की 100-150 महिलाओं को हर हफ्ते ट्रेनिंग देती हैं। ये सिलसिला पिछले कुछ वर्षों से निरंतर चल रहा है। ये अपनी मेहनत से पथरीली जमीन में हरी-भरी फसल उगाने वाली महिलाओं को सखी मंडल और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन का साथ मिलने से अब ये खेती से मुनाफे की फसल काटने लगी हैं। शांती देवी बताती हैं, "हम तो हम दूसरे जिले में भी खेती की ट्रेनिंग देने जाते हैं। गाँव की महिलाओं को हमारी बात ज्यादा समझ में आती हैं क्योंकि हम उन्ही की भाषा में उन्हें खेती की तकनीकी सिखाते हैं।"

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