मॉडल फार्मिंग से इन महिलाओं को मिल रहा अरहर का तीन गुना ज्यादा उत्पादन

Neetu Singh | Jul 20, 2019, 14:05 IST
इन महिलाओं की बदौलत राज्य में अरहर का रकबा तेजी से बढ़ रहा है। मॉडल फार्मिंग की सबसे अच्छी बात ये है कि दाल उगाने वाली महिलाएं, ट्रेनिंग देने वाली महिलाएं, प्रोसेसिंग यूनिट पर काम करने वाली महिलाएं और आखिर में इसको बेचने वाली भी महिलाएं ही होती हैं।
#अरहर का उत्पादन
लातेहार (झारखंड)। जिस एक एकड़ जमीन में दो साल पहले अरहर की पैदावार महज 300-350 किलो होती थी। आज उसी जमीन में उन्नत और जैविक तरीके से प्रति एकड़ की पैदावार तीन गुना ज्यादा हो गयी है। आज यहाँ की महिला किसान जैविक तरीके से अरहर का उत्पादन से लेकर प्रोसेसिंग और बाजार पहुँचाने तक का काम सखी मंडल की महिलाएं करती हैं।

"सालभर में खाने भर की दाल हो जाती थी बेचने के बारे में तो हम लोगों ने सोचा ही नहीं। लेकिन अब 20 डिसमिल खेत में ही पूरे साल दाल खाने को भी हो जाती है और बेचने को भी। बाजार से न कोई खाद डालते न कोई दवा। सबकुछ घर पर ही बनाकर डालते हैं।" यशोदा देवी (26 वर्ष) बताती हैं, "अच्छी उपज सिर्फ हम नहीं ले रहे हैं मेरे यहाँ की सैकड़ों महिलाएं अरहर की अच्छी पैदावार करके मुनाफा कमा रही हैं। हम लोगों के देखादेखी और लोग भी अब अरहर में दो तीन फसलें और उगा रहीं हैं।" यशोदा लातेहार जिला के उदयपुरा गाँव की रहने वाली हैं और आजीविका कृषक मित्र भी हैं। जो सखी मंडल से जुड़ी दूसरी महिलाओं को जैविक तरीके से अरहर की खेती करने के लिए प्रेरित कर रही हैं।

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यशोदा की तरह लातेहार जिले में 20 डिसमिल में माडल फार्मिंग करने वाली महिला किसानों की संख्या वर्ष 2018 में 12500 हो गयी थी जो वर्ष 2019 में 20,000 पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। पायलट प्रोजेक्ट की तर्ज पर शुरू हुआ ये माडल आज पूरे झारखंड के लिए उदाहरण बना हुआ है। पर जैविक तरीके से तीन गुना अरहर का उत्पादन बढ़ाने का ये लक्ष्य इतना आसान भी नहीं था।

झारखंड की धरती खूबसूरत है, लेकिन यहाँ की पथरीली जमीन उनके लिए काफी मुश्किलें पैदा करती है जो इस जमीन पर खेती करके गुजारा करते हैं। प्रदेश का केवल 15 फीसदी हिस्सा ही सिंचित है। बाकी की 85 फीसदी असिचिंत जमीन बारिश के सहारे है। बारिश हुई तो धान पैदा हो जाता है वर्ना ये लाखों लाख हेक्टेयर जमीन खाली पड़ी रह जाती है। इस जमीन पर ग्रामीण अपनी मेहनत से कुछ पारंपिरक फसलें तो उगाते हैं लेकिन उसका उप्पादन न के बराबर होता है।

ऐसे विषम हालातों में ग्रामीण विकास विभाग एवं झारखंड स्टेट लाइवलीवुड प्रमोशन सोसाइटी के एक प्रयास और सखी मंडल की महिलाओं की बदौलत काफी कुछ बदल गया है। अब वो फसलें उगाई जाती है, जो कम पानी और सूखे में उत्पादन दें, ऐसी किस्मे और तकनीकी अपनाई जा रही है, जो किसानों को मुनाफा दे। ऐसी ही एक पहल थी झारखंड की धरती पर उन्नत किस्म की अरहर दाल की खेती। जो महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना के तहत की जा रही है।

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अरहर का बेहतर उत्पादन ले रहीं मुक्का गाँव की सूरजमुखी स्वयं सहायता समूह की सदस्य शांती देवी (26 वर्ष) बताती हैं, "पिछले साल हमने 20 डिसमिल खेत में 250 ग्राम अरहर लाइन से लाइन लगाया था जिसमें डेढ़ कुंतल अरहर पैदा हुआ। इतना अरहर इससे पहले कभी पैदा नहीं हुआ। बेचने के लिए हमें बाजार नहीं खोजना पड़ा। यहीं ग्रामीण सेवा केंद्र मुक्का में दाल मील पर बेच दिया जहाँ हमें बाजार भाव से ज्यादा पैसे मिले क्योंकि अरहर जैविक तरीके से उगाया था।" शांती की तरह जितनी भी महिलाएं माडल फार्मिंग अपना रही हैं उनका 20 डिसमिल में उत्पादन लगभग ऐसा ही हो रहा है।

मॉडल फार्मिंग के तहत महिलाओं को जमीन की जांच, बीज का चुनाव, बोने के तरीके, कीड़ पतंगों से फसल बचाने के तरीके सिखाए गए थे। खास बता ये थी कि ये सब तरीके डिजिटलीकरण से थे। फसल से जुड़ी जानकारियों के क्रमवार वीडियो बनाकर आजीविका महिला कृषक मित्रों ने महिलाओं को गांव-गांव जाकर सिखाया और समझाया था।

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शांती आजीविका कृषक मित्र भी हैं वो बताती हैं, "हम लोग सखी मंडल की बैठक में जाकर पीको प्रोजेक्टर से महिलाओं को अरहर की खेती के वीडियो दिखाते हैं। वीडियो देखकर महिलाएं ज्यादा समझ जाती हैं और सवाल भी पूंछती हैं। पहली बार जब अरहर का इतना ज्यादा उत्पादन हुआ तो हम लोगों को भरोसा नहीं हो रहा था।" शांती ग्रामीण सेवा केंद्र पर जो दाल की पैकेजिंग होती है उसे सरस मेला में बेचने भी जाती हैं इसके साथ ही अब ये दूसरे जिले की महिलाओं को खेती की ट्रेनिंग देने भी जाती हैं।

नए तरीकों से खेती देख महिला किसानों का हौसला बढ़ा तो जेएलएसपीएस ने इसे मुहिम बना लिया। कृषि जानकारों और वैज्ञानिकों का साथ मिलने से महिला किसानों ने पथीरीली जमीन में कम पानी में भी फसल उगानी शुरू कर दी। ऐसे में उन्हें उनकी उपज के अच्छे दाम दिलाने की कोशिश शुरु हुई। 2018 में रुरल सर्विस सेंटर यानी ग्रामीण सेवा केंद्र की स्थापना हुई। जहां 20-20 महिलाओं को मिलाकर एक कमेटी बनाई गई। जो महिला किसानों से सीधे अरहर खरीदकर दाल बनाने की शुरुआत की थी। अरहर से दाल प्रोसेसिंग करने के लिए प्रोसेसिंग मशीन केंद्र सरकार की मदद से मैसूर से आई थी। इन महिलाओं की मेहनत से उगाई गई प्राकृतिक दाल को नाम भी मिल गाया था सखी नेचुरल ब्रांड का।

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"जो महिलाएं जैविक दाल उगाती हैं उन्हें बाजार बेचने के लिए नहीं जाना पड़ता। ग्रामीण सेवा केंद्र पर हम उस अरहर को खरीद कर दाल बनाते हैं फिर उसकी आधा एक किलो की पैकेजिंग करके बाजार भेजते हैं। दिल्ली के सरस मेले में ये शुद्ध दाल ग्राहकों को खूब भाती है।" यशोदा देवी (30 वर्ष) ने बताया, "जरूरत के अनुसार सखी मंडल की कुछ महिलाएं इस सेंटर पर काम करती हैं जिसका उन्हें डेली के हिसाब से पैसा मिलता है। कुछ लोग दाल बनाती हैं तो कुछ इसकी पैकिंग करती और तौलती हैं। कुछ महिलाएं सरस मेला में बेचने जाती हैं और कुछ अरहर की गाँव-गाँव जाकर खरीददारी करती हैं।" यशोदा ग्रामीण सेवा केंद्र की अध्यक्ष हैं।

झारखंड में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़ी महिला किसानों ने पहले साल ही पांच लाख मीट्रिक टन दाल तैयार की थी। इन दालों को उगाने में न तो किसी उर्वरक का उपयोग हुआ था न कीटनाशक का। खाद के नाम पर गोबर और वर्मी कंपोस्ट था तो कीटपतंगों से लड़ने के लिए नीमास्त्र और जैविक ब्रहमास्त्र। इसलिए जैविक दालों को लोगों ने हाथों हाथ लिया। दिल्ली हाट, सरस मेला से लेकर रांची के मोरहाबादी मैदान समेत कई राष्ट्रीय मेलों में इन महिलाओं की दाल खूब बिक रही है।

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मॉडल फार्मिंग की ये है विशेषता

जेएलएसपीएस की तरकीब काम कर गई थी, सूखी जमीन पर फसल लहलहाने लगी थी। प्रदेश में अरहर दाल का रकबा तेजी से बढ़ा था। घर चलाने के लिए संघर्ष करने वाली महिलाओं को अरहर के रुप में रोजगार का जरिया मिल गया था। ये अरहर के साथ सहफसली खेती भी करने लगी थीं। जिसका इन्हें अच्छा लाभ मिल रहा था। यही वजह थी कि 2018 में 600 किसानों का ये आंकड़ा बढ़कर साढे 12 हजार हो गया।

मॉडल फार्मिंग से जुड़ी महिलओं की संख्या जल्द ही 20 हजार पहुंचने वाली है। मॉडल फार्मिंग की सबसे अच्छी बात ये है कि दाल उगाने वाली महिला, ट्रेनिंग देने वाली महिलाएं, प्रोसेसिंग यूनिट पर काम करने वाली महिलाएं और आखिर में इनकी बेचने वाली भी महिलाएं ही होती हैं।

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ऐसे हुई थी मॉडल फार्मिंग की शुरुआत

झारखंड की जमीन को तीन भागों में बांटा गया है। टांड, मध्य और ढलान वाली यानी नीची जमीन। ढलान वाली नीची जमीन पर धान की खेती हो पाती है। इस योजना के तहत मध्य जमीन वाले उन किसानों को चुना गया जो पहले थोड़ी बहुत अरहर की खेती करते थे। प्रकृति के सताए इन किसानों के साथ समस्या ये भी थी कि इन्हें उन्नत बीजों, वैज्ञानिक तरीकों की जानकारी नहीं थी।

जेएसएलपीएस ने पलामू और लाहेतर जिलों में एक सर्वे कराया था, जिसमें ये निकल कर आया कि यहाँ के किसान एक एकड़ में मुश्किल से किसान 300-सवा तीन सौ किलो अरहर का उत्पादन कर पा रहे थे। अपने परिवारों को चलाने के लिए संघर्ष कर रही महिला किसानों को इस दौरान महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना से जोड़ा गया। ताकि ये न केवल अरहर का बेहतर उत्पादन ले सकें, बल्कि उनके खेतों में जो उगा है वो अच्छे रेट पर बिक भी सके। 2017 में लातेहार की 600 महिला किसानों के साथ प्रति किसान 20 डिसमिल में अरहर की मॉडल खेती शुरुआत कराई गई, इसके जो रिजल्ट आए वो चौंकाने वाले थे।

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ये हैं आंकड़े




2017 में 600 महिलाओं से हुई थी शुरुआत

पहले जहां एक एकड़ में एक साल में 300 से 325 किलो उत्पादन होता था

वो मॉडल फार्मिंग में बढ़कर 900 किलो प्रति एकड़ के पार जा पहुंचा था।

2018 में एक साल में ही मॉडल फार्मिंग से जुड़ीं 12500 महिलाएं

आने वाले कुछ दिनों में 20 हजार को पार करने वाली है महिला किसानों की संख्या

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