ड्रिप सिंचाई से बदल रही झारखंड में खेती की तस्वीर, महिलाएं एक खेत में ले रही 3-3 फसलें

जो महिलाएं कल तक दूसरों के खेतों में मजदूरी करती थीं आज वो खेती के उन्नत तरीके अपनाकर सफल किसान बन गयी हैं। छोटी जोत में ड्रिप इरीगेशन लगाकर जैविक तरीके से खेती करके ये अच्छा मुनाफा ले रही हैं।

Neetu SinghNeetu Singh   5 Aug 2019 1:27 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
ड्रिप सिंचाई से बदल रही झारखंड में खेती की तस्वीर, महिलाएं एक खेत में ले रही 3-3 फसलें

रांची (झारखंड) ड्रिप इरीगेशन यानी बूंद-बूंद सिंचाई के क्या फायदे होते हैं, अगर ये समझना है तो झारखंड में कुछ महिला किसानों से मिला जा सकता है। झारखंड की 85 फीसदी जमीन बारिश के पानी पर निर्भर है। कई इलाके ऐसे हैं जहां सिर्फ साल में एक फसल होती थी, लेकिन बूंद -बूंद सिंचाई प्रणाली, यानि ड्रिप इरीगेशन लगवाने के बाद उतने ही पानी में अब यहां तीन-तीन फसलें उगाई जा रही हैं।

झारखंड की खेती का स्वरूप पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बदल रहा है, जिसका श्रेय यहां की महिलाओं को जाता है। झारखंड की ग्रामीण महिलाएं पथरीली जमीन पर खेती के उन्नत तरीके अपनाकर मुनाफे की फसल काट रहीं हैं। ये खेती के उन तरीकों को अपना रहीं हैं जिसमें लागत कम आए और आमदनी में बढ़ोत्तरी हो।

झारखंड की महिला किसान अनीता देवी हों या फिर चांदनी कच्छप आज ये अपनी छोटी जोत की खेती से सालाना डेढ़ से दो लाख रुपए बचत कर लेती हैं। ये कहानी राज्य में सिर्फ इन दो महिला किसानों की नहीं बल्कि यहाँ की ऐसी सैकड़ों सफल महिला किसानों की कहानियाँ हैं जो कल तक दूसरों के यहाँ मजदूरी करती थीं लेकिन अब वो खुद के खेत में मजदूर लगाकर काम करवा रही हैं। अब ये सहयोगी के रूप में नहीं जानी जाती बल्कि इनकी अपनी खुद की पहचान है। कई लोग इनसे खेती का हुनर सीखने आते हैं तो कई जिलों में ये खुद जाकर दूसरी महिला किसानों को खेती करने के लिए प्रेरित करती हैं।

ये भी पढ़ें-गहने बेचकर महिला ने छुड़ाई गिरवीं रखी जमीन, सब्जियों की खेती से अब सालाना 2 लाख तक की बचत

ये महिलाएं अपने खेत में जैविक खाद का करती हैं उपयोग.

रांची जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर काँके प्रखंड के कुम्हरिया गाँव की रहने वाली अनीता देवी (40 वर्ष) अपने तरबूज के 25 डिसमिल ( एक चौथाई एकड़) खेत के बारे में बता रहीं थीं, "हम इसी खेत में खीरा, करेला और तरबूज साल में तीन फसलें लेते हैं और इन तीनो फसलों में बाजार से रासायनिक खाद-कीटनाशक दवा नहीं डालते। पिछले साल इस खेत से लागत निकालकर दो लाख रुपए मुनाफा कमाया था।"

25 डिसमिल खेत में दो लाख रुपए की आमदनी कैसे सम्भव हुई इस सवाल के जबाब में वो मुस्कुराते हुए बोलीं, "सखी मंडल से जुड़ने के बाद खेत में ड्रिप इरीगेशन लगवाई है। पहले पानी की किल्लत की वजह से साल में एक ही फसल ले पाते थे लेकिन अब साल की तीन फसलें फिक्स हैं। हमारे समूह को 90 फीसदी सब्सिडी पर कृषि यंत्र मिले हैं अब जुताई के लिए ट्रैक्टर वालों को पैसे नहीं देने पड़ते।"

ये भी पढ़ें-मॉडल फार्मिंग से इन महिलाओं को मिल रहा अरहर का तीन गुना ज्यादा उत्पादन

ये हैं अनीता देवी जो साल में लेती हैं तीन फसलें और कमाती हैं अच्छा मुनाफा

झारखंड में दीन दयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत इक्कीस लाख से ज्यादा ग्रामीणों के गरीब परिवारों की महिलाओं को सखी मंडल से जोड़ा जा चुका है। सखी मंडल से जुड़ी इन महिलाओं को स्वयं सहायता समूह में केवल बचत करना ही नहीं सिखाया जाता बल्कि इनके हुनर को तराश कर इन्हें सफल उद्यमी भी बनाया जाता है। ग्रामीण विकास विभाग,झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी द्वारा समय-समय पर इन महिलाओं को कई तरह के प्रशिक्षण दिए जाते हैं जिससे ये अपनी आजीविका को मजबूत कर सकें। आज झारखंड में महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना के तहत तीन लाख महिला किसान जैविक खेती कर खेती से अच्छा मुनाफा ले रही हैं।

ये भी पढ़ें-झारखंड: महिलाओं ने मिलकर शुरु की खेती तो छोटे पहाड़ी खेतों में भी उगने लगी मुनाफे की फसल

ये महिला किसान 25 डिसमिल के खेत में ड्रिप इरीगेशन का माडल बनाकर कर रहीं खेती

अनीता देवी चमन महिला विकास समूह की सदस्य हैं। इनके समूह में 11 महिलाएं हैं जिसमें छह महिलाओं के खेत में ड्रिप इरीगेशन लगा हुआ है। अनीता के पास कुल 45 डिसमिल जमीन है जिसमें 25 डिसमिल में ड्रिप इरीगेशन लगा हुआ है। अनीता अपने बीते दिनों को याद करके बताती हैं, "बचपन में दूसरों के खेतों में धान लगाते थे तब उस समय दिन का एक रुपया मिलता था। थोड़े बड़े हुए तो पांच रुपए मिलने लगे। जब दिन का डेढ़ सौ रुपए मिलने लगा तबतक हमने मजदूरी की है। अब तो अपने खेत में ही इतना काम हो जाता है कि मजदूर लगाकर पूरा करना पड़ता है।"

ये भी पढ़ें-इरीगेशन से अब झारखंड में होगी सालभर खेती, महिलाएं आसानी से कर सकेंगी सिंचाई

खेती करने के लिए ये समूह से ले लेती हैं लोन

सखी मंडल की महिलाएं उन्नत तरीके से खेती करें इसके लिए इन्हें समय-समय पर प्रशिक्षित किया जाता है। कुछ महिला किसानों को इजरायल भी भेजा गया था जिससे ये वहाँ खेती की तकनीकी समझकर यहाँ खेती कर सकें। खेती में जब भी इन्हें लागत लगानी पड़ती है ये जरूरत पड़ने पर समूह से पैसे लोन ले लेती हैं।

अनीता ने भी समूह से 50 हजार रुपए का लोन लेकर अपने बच्चों की फीस भरी थी। अनीता की तरह ही चांदनी की गिनती भी राज्य में सफल किसानों में होती है। चांदनी कच्छप (32 वर्ष) वर्ष 2013 में सखी मंडल से जुड़ी और वर्ष 2018 से ड्रिप इरीगेशन से खेती कर रही हैं।

ये भी पढ़ें-जोहार परियोजना से बदल रहे झारखंड के गाँव

सब्जियों में केंचुआ खाद का करती हैं उपयोग

चांदनी बताती हैं, "जिस 25 डिसमिल खेत में ड्रिप इरीगेशन लगाया था पिछले साल उसमें लागत 30,000-40,000 रुपए आयी थी। ढाई लाख रुपए की सब्जियां बेची थीं। लागत निकालकर दो लाख से ज्यादा की बचत हो गयी थी। जब खेती करना शुरू किया था तो सखी मंडल से लोन लेकर लागत लगाई थी जैसे सब्जियां बिकी लागत चुका दी।"

वो आगे बताती हैं, "पहले केवल हम धान की खेती बरसात में करते थे लेकिन अब ड्रिप लगने के बाद साल में तीन चार किस्म की सब्जियां लगा लेते हैं। हमारे समूह को 90 फीसदी सब्सिडी पर पावर ट्रिलर और भी कई कृषि यंत्र मिले हैं। हमारे समूह की सभी महिलाएं तेल डालकर जुताई कर लेती हैं। खाद और कीटनाशक दवाइयां घर पर बना लेते हैं जिसमें लागत न के बराबर होती है।"

ये भी पढ़ें-अगर आप छोटी जोत के किसान हैं तो सामूहिक खेती की कला इन महिलाओं से सीखिए

चांदनी देवी मिर्च की खेती से कमा लेती हैं अच्छी कमाई

छोटी जोत की महिला किसान अब जैविक खेती से ले रही हैं अच्छा मुनाफा

अनीता और चांदनी की तरह पश्चिमी सिंहभूम जिले की गुलबरी गोप की कहानी भी इनसे मिलती जुलती है। गुलबरी गोप सफल किसान के साथ-साथ आजीविका कृषक मित्र भी हैं जो अपने आसपास की कई महिलाओं को उन्नत खेती का प्रशिक्षण देती हैं।

गुलबरी गोप बताती हैं, "यूरिया-डीएपी की जगह हम गौमूत्र से जीवामृत बनाते हैं, फसल में कीट और रोग लगने पर नीम-धतूरा जैसे घरेलू चीजों से नीमास्त्र और ब्रह्मास्त्र बना लेते हैं जिसमें मामूली लागत आती है। पिछले साल 15,000 की लागत पर 70,000-80,000 हजार रुपए के जैविक तरीके से करेले बेचे थे।"

ये भी पढ़ें-झारखंड की ये महिलाएं गाँव-गाँव जाकर महिला किसानों को सिखा रहीं उन्नत खेती के गुण

गुलबरी गोप जैविक तरीके से करती हैं मचान विधि से करेले की खेती

झारखंड में सफल महिला किसानों की संख्या गिनी चुनी नहीं बल्कि ये संख्या हजारों में हैं। यहाँ की महिलाएं छोटी जोत में साल में तीन से चार किस्म की सब्जियां लगाती हैं। पानी की किल्लत से छुटकारा पाने के लिए ड्रिप इरीगेशन का उपयोग हो रहा है।

खेती में लागत कम और मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनाये रखने के लिए जैविक खाद और कीटनाशक दवाइयां घर पर बन रही हैं। फसलों में अधिक उपज हो उसके लिए उन्नत किस्म के बीजों का इस्तेमाल हो रहा है। खेत की जुताई-निराई करने के लिए सरकार की तरफ से सखी मंडल को 90 फीसदी सब्सिडी पर कृषि यंत्र मुहैया कराए जा रहे हैं। महिलाओं को उनके उत्पाद का उन्हें बाजिब दाम मिले इसके लिए उन्हें बाजार भी उपलब्ध करना सुनिश्चित किया जा रहा है।

ये भी पढ़ें-Jharkhand: औषधीय खेती और वनोपज से महिलाओं को मिल रहा अच्छा बाजार

सखी मंडल की महिलाओं को मिलते हैं 90 फीसदी सब्सिडी पर कृषि यंत्र

सफल महिला किसान राज्य की हजारों महिलाओं के लिए हैं उदाहरण

अनीता केवल अपनी खेती करके ही अच्छा मुनाफा नहीं कमा रहीं बल्कि अब इनकी पहचान कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन के रूप में भी है। राज्य में चल रही जोहार परियोजना के अंतर्गत अनीता राज्य के दूसरे जिलों में जाकर सखी मंडल की महिलाओं को खेती के उन्नत तरीके बताती हैं। एक गाँव में पांच दिन रूककर इनकी तरह तीन चार रिसोर्स पर्सन खेती के अपने अनुभव दूसरी महिलाओं से साझा करती हैं। महिलाएं इनसे प्रेरित होकर उत्पादक समूह का हिस्सा बन जाती हैं। इस प्रशिक्षण का अनीता को दिन का 500 रुपए मिलता है।

महिला किसान जैविक खेती, ड्रिप इरीगेशन और कृषि यंत्रो की मदद से खेती से ले रहीं अच्छा लाभ

अनीता बताती हैं, "जब सखी मंडल की दीदियों को हम अपनी आपबीती बताते हैं तो वो हमसे जुड़ा पाती हैं क्योंकि हम उनकी ही भाषा में अपनी सच्ची कहानियाँ बताते हैं। आसपास के होने की वजह से उन्हें मेरी हर बात पर भरोसा होता है। ये भी अपनी स्थिति ठीक करने के लिए खेती के उन्नत तरीके अपनाना शुरू कर देती हैं।" वो आगे बताती हैं, "धीरे-धीरे जब ये खेती के उन्नत तरीके अपनाती हैं तो इन्हें उसके लाभ पता चलते हैं। यहाँ की महिलाएं मेहनती बहुत होती हैं। ये खेत की बुआई से लेकर बाजार में बेचने तक का काम खुद करती हैं। इसलिए लेबर चार्ज भी बच जाता है।"


    

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.