इस गाँव में बेटी के जन्म पर लगाए जाते हैं 111 पौधे, बिना पौधरोपण हर रस्म अधूरी होती है

Neetu SinghNeetu Singh   30 March 2019 7:31 AM GMT

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लखनऊ। अपनी ग्राम पंचायत में सरकारी योजनाओं का सही से क्रियानवयन करने वाले इस सरपंच के कार्यों की चर्चा देश के साथ-साथ विदेशों में भी हो रही है। यहां बेटी के जन्म पर 111 पौधे लगाने के साथ ही 21 हजार रुपए बीस साल के लिए उस बेटी के खाते में जमा किये जाते हैं।

राजस्थान के राजसमंद जिले से 10 किलोमीटर दूर पिपलांत्री ग्राम पंचायत आज किसी परिचय की मोहताज नहीं है। इस गाँव के पूर्व सरपंच श्याम सुन्दर पालीवाल (50 वर्ष) ने अपने पांच वर्षीय कार्यकाल (2005-2010) में अपनी 16 वर्षीय बेटी किरण की पुण्यतिथि पर 'किरण निधी योजना' की शुरूआत की। इस योजना का मुख्य उद्देश्य था कि गाँव में हर बेटी के जन्म पर 111 पौधे लगाए जायेंगे। इस योजना के तहत अब तक इस ग्राम पंचायत में तीन लाख से ज्यादा पौधे लग चुके हैं। ग्राम पंचायत के उत्कृष्ट कार्यों को देखते हुए बेटियों की 12वीं तक की शिक्षा के लिए सितम्बर माह में यूनियन बैंक ने 60 लाख रुपए दिए हैं, जिससे बेटियों की शिक्षा और सुविधाओं में किसी तरह की कोई रूकावट न आये।

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इस गाँव की हर बेटी जाती है स्कूल

श्याम सुन्दर पालीवाल गाँव कनेक्शन को फ़ोन पर बताते हैं, "ग्राम पंचायत में बेटी, पानी, पेड़, गाँव की सामूहिक जमीन, चारागाह, वन्य जीवों को बचाने के लिए अपने कार्यकाल में एक मुहिम की शुरुआत की थी, जिसके परिणाम आज देखने को मिल रहे हैं, गाँव में कन्या भ्रूण हत्या रुक गयी है, गाँव की हर बेटी पढ़ रही है, बाल–विवाह रुक गया है।" उन्होंने कहा, "गाँव का व्यक्ति पलायन न करे, लोगों को बंधुआ मजदूरी से छुटकारा मिले इसके लिए गाँव में ही लगभग 25 लाख एलोवीरा के पौधे लगाये गये हैं जिससे गाँव की महिलाएं जूस, शैंपू, जैल बनाकर रोजगार कर रही हैं और अपना खर्चा चला रही हैं, खेती को बढ़ावा दिया जिससे किसानो को मजदूरी के लिए बाहर नहीं जाना पड़ता है।"

राजस्थान की लगभग साढ़े नौ हजार से ज्यादा ग्राम पंचायतों में पिपलांत्री गाँव के माडल को अपनाया जा रहा है। कभी बंजर दिखने वाला राजस्थान आज हर-भरा दिख रहा है। यहाँ की ग्राम पंचायतों में लाखों की संख्या में पौधे लगाए जा चुके हैं। श्याम सुन्दर पालीवाल का कहना है, "सरकार की तमाम जनकल्याणकारी योजनायें हैं, सरकारी मशीनरी है, सरकार का पैसा और सरकारी जमीने है, मैंने कुछ भी अपनी तरफ से नहीं किया है सिर्फ सरकारी योजनाओं का सही से क्रियान्वयन किया है जिसकी वजह से आज गाँव में सभी सुविधायें मौजूद हैं।"

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उनका कहना है, "अगर हर सरपंच दूसरे के काम की सराहना के बजाय अपनी ग्राम पंचायत में सरकारी योजनाओं का सही से क्रियान्वयन कर ले तो गाँव का विकास सुनिश्चित है, मैंने कभी सोचा नहीं था कि मेरे छोटे से प्रयास से इतना बड़ा बदलाव हो सकता है, आज पिपलांत्री गाँव में दूसरे देशों से भी लोग भ्रमण करने आते हैं, किसी मेहमान के आगमन पर गाँव में एक पौधा लगाया जाता है।"

बेटियां खुद करती हैं पेड़ों की देखभाल

इस गाँव के ऊपर तीन किताबें लिखने वाले कृषि-पर्यावरण पत्रकार मोईनुद्दीन चिश्ती अपना अनुभव साझा करते हुए बताते हैं, "इस गाँव में मै साढ़े पांच सौ से ज्यादा बार गया हूँ, यहाँ के बच्चे-बच्चे से परिचित हैं, मनरेगा मजदूरों के साथ काम किया है, तगाड़ीयां उठाई हैं, साल 2012 से अब तक इस ग्राम पंचायत पर तीन किताबें हिन्दी में लिख चुका हूँ, चौथी किताब अंग्रेजी में जल्द ही आने वाली है।" वो आगे बताते हैं, "एक पत्रकार के लिए ये बहुत ही सुखद अनुभव है कि एक खबर के लिए मै यहाँ सैकड़ों बार जा चुका हूँ, आज इस गाँव के माडल को पूरे राजस्थान में क्रियान्वयन किया जा रहा है।"

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गाँव के ग्रामीण भवंर सिंह सिसौदिया बताते हैं, "जिले में पानी की बहुत ज्यादा समस्या थी, सरकारी जमीन पर दबंगों का कब्जा था, जब 2005 में श्याम सुन्दर पालीवाल ग्राम प्रधान बने तो सबसे पहले उन्होंने भू-माफियाओं से सरकारी जमीनों को छुड़वाया, पानी की समुचित व्यवस्था के लिए पेड़-पौधे और चेक डैम बनवाये, हम सबके देखते-देखते तीन साल के अन्दर आज पूरे गाँव की तस्वीर बदल गयी है।" उन्होंने कहा, "अगर उस समय ये सब प्रयास न किये जाते तो आज हम बूँद-बूँद पानी के लिए तरस रहे होते, लोग गाँव छोड़कर जा रहे होते, बेटियों को इस धरती पर आने की आजादी न मिलती, सरपंच जी के इस प्रयास से पूरा गाँव प्रभावित है।"

पूर्व सरपंच श्याम सुन्दर पालीवाल ने सरकारी योजनाओं का सही से किया क्रियान्वयन

गांव की बंजर जमीन को बनाया हरा-भरा

आज से 10-12 साल पहले खनन की वजह से यहाँ बहुत ज्यादा प्रदूषण था, दूर-दूर तक हरियाली दिखाई नहीं पड़ रही थी। जलस्तर 800 फीट नीचे चला गया था, वन्य जीव गायब हो चुके थे। इस बंजर भूमि को हरा भरा बनाने के लिए पौधे लगाने की प्रक्रिया शुरू की गयी। बेटी के जन्म पर उसके नाम के 111 पौधे, गाँव में किसी के देहांत पर 11 पौधे, सार्वजनिक तौर पर किसी मेहमान के आगमन पर एक पौधा लगाया जाता है। इस प्रक्रिया से आज पूरे गाँव में तीन लाख से ज्यादा पौधे लगाए जा चुके हैं, खेतों में सिंचाई के लिए 4500 चेक डेम बनाए गये हैं। कभी वीरान दिखने वाला ये गाँव आज हर-भरा दिखाई दे रहा है। पौधों की देखरेख से लेकर साफ़-सफाई करना पूरे गाँव की जिम्मेदारी है।

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बेटी के जन्म पर जमा किये जाते है 21 हजार रुपए

एक गरीब पिता बेटी के जन्म को बोझ न समझे इसके लिए बेटी के जन्म पर 21 हजार रुपए सभी के सहयोग से जमा कराए जाते हैं। श्याम सुन्दर बताते हैं, "जो बेटी गरीब घर में जन्म लेती है उसके बेहतर भविष्य के लिए गाँव के सक्षम लोग आपस में चंदा करते हैं, बेटी का पिता 10 हजार रुपए देता है, कुल 21 हजार रुपए 20 साल के लिए उसके खाते में जमा कर दिए जाते हैं।" बेटी के जन्म पर उसके घर से एक फॉर्म भी भरवाया जाता है जिसमे भ्रूण हत्या नहीं करेगे, 20 साल से पहले शादी नहीं करेंगे, बेटी को पढ़ायेंगे जैसी कई शर्ते शामिल होती हैं। अबतक इस ग्राम पंचायत में 40 से ज्यादा बेटियों के नाम 21 हजार रुपए जमा हो चुका है।

कभी बंजर दिखने वाला गाँव आज हरा-भरा दिखाई दे रहा है

बेटियों की शिक्षा के लिए यूनियन बैंक ने पांच साल के लिए दिए 60 लाख रुपए

गाँव में विकास की इस रफ्तार को देखते हुए यूनियन बैंक ने इसी महीने गाँव की बेटियों की शिक्षा के लिए पांच साल के लिए हर साल 12 लाख रुपए दिए हैं। गाँव की बेटियां किसी भी सुविधा से वंचित न रहे इसके लिए यूनियन बैंक द्वारा 60 लाख का योगदान महत्वपूर्ण है। इस गांव की हर बेटी बेफिक्र होकर आज पढ़ने जाती है, बेटी के जन्म पर यहाँ खुशियाँ मनाई जाती हैं।

ग्राम पंचायत के सभी बच्चे पढ़ते हैं सरकारी स्कूल में

इस ग्राम पंचायत में सरकारी योजनाओं का सही ढंग से लाभ लिया जा रहा है। ग्राम पंचायत में चल रहे प्राइवेट विद्यालयों को बंद करा दिया गया है। पहली कक्षा से लेकर 12वीं तक का हर बच्चा सरकारी स्कूल में पढ़ाई करता है।

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पलायन रोकने के लिए गाँव में ही रोजगार

गाँव का कोई भी पढ़ा-लिखा व्यक्ति 10 से 15 हजार की नौकरी के लिए पलायन न करे बल्कि गाँव में ही रहे, महिलाएं और किसान बंधुआ मजदूरी न करें इसके लिए गाँव में रोजगार के कई तरह के अवसर निकाले गये हैं। गाँव की कमजोर वंचित और दिव्यांग महिलाएं घर बैठे एलोवीरा से तमाम तरह के उत्पाद बनाकर रोजगार कर रही हैं। पुरुष रोजगार की तालाश में बाहर न जाकर खेती को आधुनिक तरीके से कर रहे हैं, गाँव में सभी सुविधाएँ होने की वजह से अब इस गाँव का कोई भी ग्रामीण बाहर जाना पसंद नहीं करता है।

सरकारी योजनाओं को सिर्फ समझने की जरूरत है

सरकारी योजनाओं को सिर्फ सही ढंग से समझने की जरूरत है। श्याम सुन्दर पालीवाल का कहना है, "अगर कोई भी सरपंच चाह ले तो सरकारी योजनाओं का सही से क्रियानवयन करके अपने गाँव की दशा बदल सकता है, आज गाँव की खुशहाली देखकर अच्छा लगता है, गाँव की बेटियां आशीर्वाद देती हैं, हंसते खेलते पढ़ने जाती है, बड़े होकर अपने नाम के पौधों की देखरेख खुद करती हैं।" गाँव के लोग सभी पर्व और त्यौहार मिलजुलकर मनाते हैं, एक दूसरे की मदद के लियी आगे आते हैं, पंचायत के विकास में सभी अपनी जिम्मेदारी समझते हैं।

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