भिखारियों की जिंदगी में कभी झांककर देखा है ?

Neetu SinghNeetu Singh   15 Sep 2017 8:20 PM GMT

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भिखारियों की जिंदगी में कभी झांककर देखा है ?लखनऊ में भिक्षुकों से बात करते शरद पटेल।

लखनऊ। एक युवा जो भिक्षुकों को मांगने पर भीख नहीं देता है बल्कि ये भिक्षुक कैसे भीख माँगना छोड़ दें इसके लिए ये पिछले तीन वर्षों से प्रयास कर रहा है। इनकी जागरूकता की वजह से अबतक 22 भिक्षुक भीख मांगना छोड़कर मेहनत मजदूरी करने लगे हैं। इस युवा ने तीन हजार भिक्षुकों पर एक रिसर्च किया जिसमे 98 फीसदी भिक्षुकों ने कहा अगर उन्हें सरकार से पुनर्वास की मदद मिले वो भीख माँगना छोड़ देंगे।

“सड़क पर जब भी भिखारियों को भीख मांगते देखता तो हमेशा मेरे मन ये जानने की बेचैनी रहती थी कि आखिर क्या वजह है जो ये लोग हजारों की संख्या में भीख मांग रहे हैं। इस बात को जानने के लिए हर दिन तीन चार घंटे इनके साथ बिताना शुरू किया। धीरे-धीरे इनसे एक रिश्ता बन गया, तब इन्होने अपनी आप बीती बताई। ये भीख नहीं मांगना चाहते थे ये काम करना चाहते थे।” ये कहना है शरद पटेल (28 वर्ष) का। इनका कहना है, “अगर इन्हें हम भीख देंगे तो ये उसी दिन खायेंगे और दूसरे दिन फिर मांगने लगेंगे। इनके लिए क्यों न कुछ ऐसा किया जाए जिससे ये रोजगार करने लगें और भीख मांगना बंद कर दें। इसी सोच के साथ इनके लिए ‘भिक्षावृत्ति मुक्त अभियान’ की शुरू की।”

राजधानी के भिक्षुकों के साथ तीन साल से चला रहे ‘भिक्षावृत्ति मुक्त अभियान’

शरद पटेल मूल रूप से हरदोई जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर माधवगंज ब्लॉक के मिर्जागंज गाँव के रहने वाले हैं। मास्टर आफ़ सोशल वर्क की पढ़ाई के लिए लखनऊ आये थे। साल 2014 में लखनऊ के राजाजीपुरम में टैम्पो स्टेण्ड पर एक दिन एक भिखारी ने इनसे खाना खाने के लिए पैसे मांगें। शरद ने पैसे न देकर उसे दुकान पर ले जाकर खाना खिला दिया। इस दौरान इन्होने भिखारी से बात की तो उसने बताया मजदूरी न मिलने की वजह से वो मजबूरी में भीख मांगता है तब कहीं जाकर उनका पेट भरता है। इस घटना के बाद शरद ने गांधी जयंती पर ‘भिक्षावृत्ति मुक्त अभियान’ की शुरूआत 2014 में की। शुरूआत में शरद ने लखनऊ शहर की उन जगहों कों चिन्हित कर लिया जहाँ पर सबसे ज्यादा भिखारी बैठते हैं।

“इनके बारे में ज्यादा जानने के लिए मैंने 3000 से अधिक भिक्षुकों को चिन्हित कर उनके साथ एक रिसर्च किया। रिसर्च में ये पता चला कि 66 प्रतिशत से अधिक भिक्षुक व्यस्क हैं, जिनकी उम्र 18-35 वर्ष के बीच है। 28 प्रतिशत भिक्षुक वृद्ध हैं, पांच प्रतिशत भिक्षुक 5-18 वर्ष के बीच के हैं।” शरद ने बताया, “शोध से ये भी निकल कर आया कि लखनऊ में भीख मांगने वालों में 71 प्रतिशत पुरुष हैं, जबकि 27 प्रतिशत महिलाएं इस व्यवसाय से जुड़ी हैं। इनके बीच अशिक्षा का आलम ये है कि 67 प्रतिशत बिना पढ़े-लिखे हैं, लगभग सात प्रतिशत भिक्षुक साक्षर हैं और 11 प्रतिशत पांचवी तक और पांच प्रतिशत आठवीं तक पढ़े हैं। चार प्रतिशत दसवीं पास, एक प्रतिशत स्नातक होने के बावजूद भीख मांग रहे हैं।”

भिक्षुकों को इकट्ठा करके उनके हक़ और अधिकारों के बारे में बताते हुए शरद पटेल

उत्तर प्रदेश भिक्षावृत्ति प्रतिषेध अधिनियम 1975 में इन भिक्षुकों के लिए क्या सुविधाएँ हैं ये जानने के लिए शरद ने ‘सूचना का अधिकार कानून 2005’ से जानकारी हासिल की। इस जानकारी में ये निकल कर आया कि उत्तर प्रदेश के सात जिलों में आठ राजकीय प्रमाणित संस्था (भिक्षुक गृह) का निर्माण कराया गया है। इन भिक्षुक गृहों में 18-60 वर्ष तक के भिक्षुकों को रहने खाने, स्वास्थ्य तथा रोजगारपरक प्रशिक्षण देने तथा शिक्षण की व्यवस्था की गयी, जिससे भिक्षुओं को मुख्य धारा से जोड़ा जाए और उन्हें रोजगार मुहैया कराया जाए। मगर इनमें एक भी भिखारी नहीं रहता है। इन भिक्षुक गृहों का सही क्रियान्वयन न होने से यह योजना सिर्फ हवा हवाई साबित हो रही है।

आज की चकाचौंध से शरद बिल्कुल अलग है, बहुत ही साधारण पहनावे के साथ एक बैग टांगकर अकसर आपको भिखरियों से बाते करते ये दिखाई दे जायेंगे। शरद ने बताया, “इन भिक्षुकों के साथ लगातार काम करने के दौरान 22 लोगों ने तो भीख मांगना छोड़कर मजदूरी करना शुरू कर दिया है, लेकिन आज भी इनके पास सोने के लिए कोई ठिकाना नहीं है। मेहनत मजदूरी करने के बाद इन्हें अपनी रात फुठपाथ पर ही गुजारनी पड़ती है।” वो आगे बताते हैं, “मै जितने भी भिक्षुकों से मिला उनमे से ज्यादातर भिक्षुक भीख मांगना छोड़कर रोजगार की तरफ जाना चाहते हैं, अगर प्रशासन स्तर पर मुझे सहयोग मिल जाए तो हमारा काम सरल हो जाएगा।”

‘भिक्षावृत्ति प्रतिषेध अधिनियम 1975’ के तहत शरद विभाग से पुनर्वास केंद्र की मांग कर रहे हैं, जिसके लिए ये जिला प्रशासन से लेकर मुख्यमंत्री तक कई चक्कर लगा चुके हैं। पुनर्वास केंद्र में छह महीने तक भिक्षुकों को रहने की सुविधा के साथ ही उन्हें रोजगारपरक प्रशिक्षण भी दिया जाता है जिससे ये रोजगार कर सकें। शरद कहते हैं, “मेरे इस प्रयास में वक़्त भले ही लग सकता है लेकिन इन भिक्षुकों को इनके हक़ की लड़ाई में एक दिन सफलता जरुर मिलेगी। अब इनमे इतनी समझ हो गयी है कि ये अपने हक और अधिकार समझने लगे हैं और लीडरशिप की भावना से संगठित होकर अपने लिए खुद प्रयास कर रहे हैं।”

ये है साधारण युवा जो राजधानी में कर रहा है भिखारियों के लिए काम

इन कारणों से मांगते हैं भिक्षा

अपने शोध के दौरान निकले कारणों को साझा करते हुए शरद बताते हैं, “जब इनके साथ बहुत वक़्त बिताया तो इनकी भीख मांगने की वजहें पता चल पायीं। जिसमे पारिवारिक कलह, अनाथ, बीमारी, काम न मिलने की वजह से भीख माँगना जैसे कारण शामिल हैं।” इन भिक्षकों ने ये भी कहा इन्हें बहुत बुरा लगता है जब कोई दूर से से इन्हें पैसे फेंककर देता है पर इनकी अपनी मजबूरी है। पहले ये काम की तालाश करते हैं पर जब इन्हें काम नहीं मिलता है तो पेट भरने के लिए भीख मांगते हैं फिर ये इनकी आदत में शामिल हो जाता है। लखनऊ शहर में भीख मांगने का मुख्य कारण गरीबी है। शोध में ये निकलकर आया कि 31 फीसदी भिक्षुक गरीबी की वजह से भीख मांग रहे हैं, 16 फीसदी भिक्षुक विकलांगता, 14 प्रतिशत भिक्षुक शारीरिक अक्षमता, 13 फीसदी बेरोजगारी, 13 फीसदी पारम्परिक, तीन फीसदी भिक्षुक बीमारी की वजह से भीख मांग रहे हैं। इन भिक्षकों में 65 फीसदी नशे के आदी हैं जिसमे 43 प्रतिशत तम्बाकू खाते हैं। 18 फीसदी बीड़ी, सिगरेट, स्मैक जैसे नशा लेते हैं। 19 प्रतिशत भिक्षुक तम्बाकू, धूम्रपान और शराब तीनो प्रकार के नशों का सेवन करते हैं।

फुटपाथ पर गुजरती हैं इनकी रातें

शोध में ये निकलकर आया 38 फीसदी भिक्षुक सड़क पर रात काटते हैं। इनमे से 31 फीसदी भिक्षुकों के पास झोपड़ी है और 18 फीसद कच्चे मकान तथा आठ फीसदी के पास पक्के घर हैं। राजधानी में जो लोग भीख मांग रहे हैं उनमे 88 फीसदी भिक्षुक उत्तर प्रदेश के जबकि 11 फीसदी भिक्षुक अन्य राज्यों से भीख मांग रहे हैं।

शोध से ये आंकड़ें भी आये सामने, 98 फीसदी छोड़ना चाहते हैं भीख माँगना

शोध में 98 फीसदी भिक्षुकों ने कहा कि अगर सरकार उन्हें पुनर्वास की सुविधाएँ दे तो वो भीख माँगना छोड़ना चाहते हैं। भीख मांगने वालों में 38 फीसदी भिक्षुक अविवाहित हैं जबकि 23 फीसद अविवाहित हैं। इनमे से 22 फीसदी विधुर हैं और 16 प्रतिशत विधवाएं इसमे शामिल हैं। जो लोग भीख मांग रहे हैं उनमे से 31 फीसदी 15 साल से ज्यादा भीख मांगकर गुजर बसर कर रहे हैं।

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