लिंग भेद मिटाने की अनोखी पहल, साइकिल से पूरी की 18 हजार किमी की यात्रा, 41 महीने से जारी है सफर

Mithilesh DharMithilesh Dhar   11 Sep 2018 10:30 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
लिंग भेद मिटाने की अनोखी पहल, साइकिल से पूरी की 18 हजार किमी की यात्रा, 41 महीने से जारी है सफरराइडर राकेश।

लखनऊ। लैंगिक असमानता को समझने, समझाने और एक अलख जगाने का जज्बा। दो पहियों पर देश को समझने निकला जुनूनी। फिलहाल कोई ठौर नहीं। लेकिन वो जहां जाते हैं लोगों को अपना बना लेते हैं। बिहार के छपरा में जन्मे राकेश कुमार सिंह अभी राइडर राकेश के नाम से जाने जाते हैं। सीएसडीएस की नौकरी छोड़ कर भारतीय परिवेश में लैंगिक असमानता को समझने के लिए साइकिल से भारत भ्रमण पर निकले हैं।

राइडर राकेश कहते हैं, 'यह हमारी महान परंपरा ही है, जिसने आदि काल से हमें बेटों का महत्त्व समझाया है। जिसमें यह बताया गया कि बेटे वंश बढ़ाते हैं, जिसने बेटी के जन्म पर उसे लक्ष्मी कहा लेकिन उसी ने बेटी को दान की वस्तु भी बता दिया। ये हमारी ही परंपरा ही है जिसमें साल में दो बार नौ दिन शक्ति पूजा होती है लेकिन उसी शक्ति के स्वरूप को नौ दिन भी खुली हवा में टहलने से रोका जाता है। मैं इसी बात को समझने की कोशिश कर रहा हूं कि वह कौन सी लैंगिक मजबूरी है जो लड़कियों, समलैंगिकों और तीसरी श्रेणी वालों को जन्म से ही एक अलग नजरिए से देखने पर मजबूर कर देती है'।

ये भी पढ़ें- बाइकरनी ग्रुप : ये जब बाइक पर फर्राटा भरती हैं, लोग बस देखते रह जाते हैं

राकेश करीब 41 महीनों से ऐसे ही सवालों के जवाब की तलाश में 18750 किलोमीटर की यात्रा कर चुके हैं। इस दौरान उन्होंने लगभग पांच लाख लोगों से बातचीत की। 13 राज्यों से होकर गुजरे। 2000 सभाएं कीं। राकेश ने गाँव कनेक्शन को बताया "केरल, तमिलाडु, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, ओडीशा, बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों लैंगिक भेदभाव और असमानताएं कमोवेश एक सी हैं। हां, कम शिक्षित स्तर वाले बिहार की स्थिति इन बाकी सूबों से कहीं बेहतर हैं। हरियाणा की महिलाएं पढ़ी-लिखी होने के बावजूद साड़ी और दुपट्टे के परदे से पूरा मुंह ढंकने को मजबूर हैं।"

राकेश ने कहा "जब हरियाणा के गांवों के पुरुष सो रहे होते हैं महिलाएं सिर पर पानी की मटकी भर के ला चुकी होती हैं, खेतों से लौट चुकी होती हैं। इसके उलट पुरुष उठ कर मुंह-हाथ धोने में ही कई मटके पानी बर्बाद कर देने को अपनी जिम्मेदारी समझता है।" राकेश कहते हैं कि आजादी एक मन: स्थिति है जो एक प्रक्रिया के तहत निर्मित होती है। यह 26 जनवरी, 15 अगस्त से कहीं आगे का मसला है। संविधान के अनुसार हमें चुनने की आजादी है, पढ़ने का अधिकार है और तरक्की के तमाम पैमाने हम नाप-नाप कर बता रहे हैं। सरकार वजीफों में क्यों कटौती कर रही है। क्या इसलिए कि लोग न पढ़ें। इस तरह तो हम कभी भी आजाद नहीं होगे।

राइडर राकेश मूल रूप से बिहार के शिवहर जिले के तरियानी छपरा के हैं। हाल ही में "फेमिना" के जून 2017 संस्करण में इनपर एक आलेख छपा है। इन्होने अपनी पहली किताब "बम संकर टन गनेस" लिखने के बाद अपनी दूसरी किताब "बियॉन्ड नागाज" पर काम करना शुरू किया जिसके लिए वो इलाहाबाद गए थे। इसी दौरान तीन महीने की अवधि में वो 26-27 एसिड अटैक विक्टिम्स से मिले जिसने उन्हें अपनी इस यात्रा के लिए प्रेरित किया। राकेश ऐसी घटनाओं की जड़ तक पहुचना चाहते थे जो किसी एक लिंग विशेष के साथ होती हैं।

ये भी पढ़ें- इनका चिमटा रसोई में नहीं, स्टेज पर बजता है, इनकी धुन आपने सुनी है?

कोई लड़की ये कहे कि मैं आज तुम्हारे साथ नहीं जा पाऊंगी तो लड़के को उसकी ना से दिक्कत क्यों है? क्यों हम जिस सेक्स में पैदा होते हैं उससे हमारा व्यवहार तय होता है और सेक्स जेंडर कैसे बन जाता है? यही समझना मेरी यात्रा का मकसद है'।
राइडर राकेश

राकेश सिर्फ एक अभियान पर नहीं निकले थे बल्कि कई सवालों के जवाब ढूंढने निकले थे जो उन्हें अपनी यात्रा के दौरान मिलते गए। देश के 29 में से 11 राज्यों को नापने के बाद उन्हें अपनी साइकिल यात्रा को विराम देना पड़ा क्यूंकि मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में कुएं और तालाबों का पानी पीने के बाद उनको लीवर सम्बन्धी समस्याएं हो गयी थी। 23 जुलाई 2017 के आसपास उन्होंने अपनी यात्रा को पुनः आरम्भ किया और संभवतः दिसंबर 2018 में उनकी यात्रा का समापन हो जाएगा।

राकेश की साइकिल में साढ़े पांच फीट का एक झंडा लगा है और आगे एक तख्ती लगी है जिसपर लिखा है "राइड फॉर जेंडर फ्रीडम" उनकी ज़रूरत का सारा सामान उनकी साइकिल पर ही होता है। अपनी साइकिल से वो तकरीबन 18000 किलोमीटर की दूरी तय कर चुके हैं। लोग उनकी साइकिल देख कर उनसे पूछते हैं की वो क्या कर रहे हैं और इस तरह उन्हें अपनी बात कहने का मौका मिलता है। वो स्कूलों में जाकर भी अपनी बात रखते हैं। कई बार वो गांवों में जाकर लोगों से ऐसी शादियों का बहिष्कार करने को कहते हैं जिनमे दहेज़ लिया और दिया जा रहा हो। और कई बार उनके कहने पर लोग ऐसी शादियों में नहीं भी जाते हैं।

महिलाओं के कई मुश्किलें

राकेश कहते हैं "अक्सर आपने किसी पुरुष को सड़क किनारे हल्का होते देखा होगा, लेकिन कभी किसी महिला को ऐसा करते हुए देखा है? कामकाजी महिलाओं को जिन्हें सारा दिन घर से बाहर रहना पड़ता है उन्हें अपनी इस जरूरत के लिए मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। कभी आपने सोचा है ऐसा क्यों हैं? इसका जवाब भी राकेश ही देते हैं।"

ये भी पढ़ें- 2300 रुपए में किसान ने बनाया यंत्र, गोदामों में नहीं सड़ेगा अनाज

एक घटना का जिक्र करते राकेश बताते हैं "एक शादी में मैंने कि शादी के मंडप के बगल में खाना खाती एक महिला को उसके डेढ़ वर्षीय बेटे ने कहा की उसे सूसू करनी है। उसकी माँ ने तुरंत उसकी पैंट एक इंच नीचे कर दी। वहीं अगर उनकी बेटी होती तो उसे थोड़ी देर रुकने को कहा जाता। उसकी माँ खाना खतम कर के उसे दोनों हाथों से उठा कर टॉयलेट या कमसे कम किसी मोड़ी पर लेकर जाती। इस तरह वो डेढ़ साल का बच्चा सीखता है की उसे लड़कियों की तरह टॉयलेट खोजने की जरूरत नहीं है। वो कहीं भी हल्के हो सकते हैं और इस तरह हमारी परवरिश हमारे बच्चोँ का व्यवहार तय करती है।"

प्रेरणादायक ख़बर- सूखे के लिए कुख्यात बुंदेलखंड से एक किसान की प्रेरणादायक कहानी

ये भी पढ़ें- एलोवेरा की खेती का पूरा गणित समझिए, ज्यादा मुनाफे के लिए पत्तियां नहीं पल्प बेचें, देखें वीडियो

              

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.