सरल शब्दों में विशेषज्ञों से जानिए कृषि कानूनों से आम किसानों का फायदा है या नुकसान?

कृषि कानूनों से किसानों को फायदा है या नुकसान? गांव कनेक्शन ने किसान, किसान संगठन, कृषि से जुड़े उद्दमियों, कृषि में तकनीकी देने वाली कंपनियों के सीईओ, फाउंडर और जैविक क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों को बुलाकर चर्चा की, वीडियो देखिए

Arvind ShuklaArvind Shukla   20 Sep 2020 6:46 AM GMT

भारत में कृषि कानून लागू हो गए हैं। राष्ट्रपति ने संसद से पास तीनों बिलों पर हस्ताक्षर भी कर दिए हैं। पीएम मोदी कह रहे कृषि अध्यादेशों farmers bill से किसान मजबूत होंगे, आय के जरिए बढ़ेंगे, लेकिन किसान संगठन और विपक्ष के मुताबिक इससे किसान तबाह हो जाएंगे। कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग लेकर किसान संगठन प्रदर्शन भी कर रहे हैं। कृषि अध्यादेशों में किसानों के लिए क्या अच्छा है? और कहां बदलाव की जरुरत है ?

तीनों कृषि अध्यादेशों की आशंकाओं, संभावनाओं और भविष्य में दिखने वाले उसके संभावित प्रभावों को लेकर गांव कनेक्शन के विशेष शो #GaonCafe में विशेष चर्चा हुई। इस शो में आम किसान, किसान संगठन के प्रतिनिधि, कृषि उद्दम से जुड़ी कंपनियों के मालिक, कृषि उपकरण बनाने वाली कंपनी के मालिक, तकनीकी सहायता देने वाली कंपनी के सीईओ, एग्री पॉलिसी से जुड़े वैज्ञानिक, जैविक को बढ़ावा देने वाले संगठनों के मुखिया शामिल हुए।

शो में प्रगतिशील किसान नितिन काजला ने कहा, "जो सरकार अध्यादेश लेकर आई है, उसमें कहीं भी MSP का जिक्र नहीं है। इस कारण किसानों के अंदर रोष है। किसानों में एक डर की स्थिति है, लेकिन, चिंता इस बात है कि सरकार किसानों की बात नहीं सुन रही है। अपने मन से किए काम जा रही है। सरकार कह रही है कि एमएसपी रहेगी, लेकिन एमएसपी के रहने के बावजूद भी मक्का 750 रुपए कुंतल में बिका जबकि मक्के की MSP 1,500 रुपए से ऊपर है। जब प्राइवेट प्लेयर्स डायरेक्ट किसान के संपर्क में आएंगे, तब किस तरह की स्थिति बनेगी?"

दिल्ली स्थित आयुर्वेट कंपनी के प्रबंध संचालक (एमडी) मोहनजी सक्सेना ने कहा कि आज देश में हमारे अन्नदाता की स्थिति काफी खराब है। भारत में श्वेत दुग्ध क्रांति को मिल का पत्थर माना जाता हैं। पूरे विश्व में भारत का दूध उत्पादन के क्षेत्र में नाम भी नहीं था। वर्ष 1965 में जब लाल बहादुर शास्त्री युद्ध के बाद खेड़ा गांव में पहली बार कॉपरेटिव बनाकर दुग्ध उत्पादन के लिए पहल की तो इसका मुख्य बिंदु ये था कि दुग्ध उत्पादन का डेढ़ गुना किसानों को मिले। यानी किसानों को 70 फीसद लाभ मिले।

सबको अपने उत्पाद का मूल्य निर्धारित करने का अधिकार है, केवल किसान ही ऐसा है कि जिसका मूल्य सरकार निर्धारित करती है। इसके पीछे का तर्क दिया जाता था कि ये ब्रिटिश के समय से चली आ रही प्रथा है। अब इसे बदल दिया गया है। इसके बदलने से भी कोई परिवर्तन नहीं होने वाला है क्योंकि, जो समस्या है, वो अब जटिल हो गई है। वे आगे कहते हैं।

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राष्ट्रीय किसान महासंघ के प्रवक्ता अभिमन्यु कोहाड़ ने कहा कि 2007 में स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट आई थी। 2007 से 2014 तक कांग्रेस की सरकार रही, लेकिन सरकार ने कानून लागू नहीं किया। 2014 से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कहते थे कि उन्हें प्रधानमंत्री बना दिया जाए, वे लागू कर देंगे, लेकिन, उन्होंने ने भी लागू नहीं किया। ऐसे में किसानों के साथ एक विश्वास का संकट सामने आ गया है। प्रधानमंत्री और कृषि मंत्री बार-बार अपने भाषणों में जिक्र कर रह है कि MSP जारी रहेगी, तो सरकार क्यों नहीं MSP की बात को विधयेक में जोड़ देती हैं?

2006 में बिहार में APMC मंडियों को खत्म कर दिया गया। उस समय कहा गया था कि निजी क्षेत्र काफी निवेश करेगा, जिससे किसान तरक्की के रास्ते पर बढ़ेगा। प्रधानमंत्री भी अपने भाषण में कह रहे थे कि किसानों की हालत अच्छी है। बिहार के किसानों की मुख्य फसल मक्का है। उसका सरकारी रेट 1850 रुपए कुंतल हैं, लेकिन, आज व्यापारी उसे 500-600 रुपए कुंतल में खरीद रहे हैं। आप बताइए ये तरक्की है या बर्बादी? इसी कारण बिहार का किसान अपनी 5-5 एकड़ की जमीन को छोड़कर पंजाब, हरियाणा में दूसरे जमीन पर मजदूरी करते हैं। अभिमन्यु आगे कहते हैं।

जैविक मुहिम से जुड़ी और भूमिजा के फाउंडर गौरी सरीन ने कहा कि सरकार द्वारा पारित तीन कृषि अध्यादेश पर टिप्पणी नहीं करना चाहती हूं। इसके साथ में सरकार क्या-क्या कर रही है उसे साथ में देखने की जरूरत हैं। सरकार एक जिला-एक उत्पाद की बात कर रही है साथ में वोकलफ़ॉर लोकल होने की बात कह रही है। इसके अलावा सरकार आत्मनिर्भर भारत की भी बात कह चुकी है। सरकार FPO की भी बात कह रही है। इन तीनों को कृषि अध्यादेश से आने वाले समय से जोड़कर देखना चहिए।

हमें आज वर्ल्ड क्लास फूड और एग्रीकल्चरहब बनाने की जरूरत है जिसपर आज की तारीख में कोई सोच नहीं रहा है। बड़े-बड़े देश ब्राजील, अर्जेन्टीना और अमेरिका इस पर काम कर चुके हैं, लेकिन, इनसे आगे जा सकते हैं।

देहात कंपनी के संस्थापक श्याम सुंदर सिंह ने कहा कि तीनों कृषि अध्यादेश का स्वागत करते हैं, लेकिन, इसके साथ कुछ और एनबलर्स की जरूरत है। उस पर सरकार को ध्यान देना चाहिए, ताकि उससे जुड़े जितने लोग है वे आसानी से पार्टिसिपेट कर पाएं। बिहार में APMC एक्ट को खत्म किए जाने के बाद किसानों के सामने संकट आने की वजह ये है कि जितना निवेश इंफ्रास्ट्रक्चर पर होना चाहिए था, वो नहीं हुआ था। बात करें स्टॉक से जुड़े हुए अध्यादेश की तो यह तभी काम कर सकते हैं, जब इसके साथ किसानों को ट्रांसपोर्ट की सुविधा भी उपलब्ध कराई जाए, ताकि किसान की उपज हर एक जगह पहुँच सकें, ना कि किसी एक जगह पर।

क्यों MSP पर कानून बनाने की हो रही है मांग?

एग्री सेक्टर आईआईएम अहमदाबाद के IT कंसलटेंट विवेक पांडे ने कहा कि ये मेरा अधिकार होना चाहिए कि मैं कुछ भी उगाऊं, जिसको चाहूं बेचू, चाहे बाराबंकी में बेचूं या किस और जगह। APMC में जाकर बेचूं या APMC से बाहर जाकर बेचूं। एक किसान के रूप में मुझे ये सभी विकल्प मिलने चाहिए। जहां तक मैं इस कृषि अध्यादेश को समझ पाया हूं, उससे पता चलता है कि ये APMC को खत्म करने की बात नहीं कर रहा हैं। जिसको APMC में बेचना होगा, वह बेचेगा। जिसकी इच्छा नहीं होगी, वो नहीं बेचेगा।

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विवेक अपने गांव का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि एक से डेढ़ एकड़ जमीन वाले किसान अपनी फसल को बेचने कभी मंडी नहीं गए। उनकी फसल बिचौलिया आकर खरीद लेता है फिर वह किसी और व्यापारी को बेच देता है। इसी क्रम में लंबी संख्या बढ़ती जाती है। नतीजतन जितना किसान नहीं कमा पाता है, उससे ज्यादा मीडिएटर कमा लेता है। इतने सारे मीडिएटर हैं और आप बोलोगे कि जो जैसे चल रहा है, वो ठीक है। APMC मंडियों में ही खरीदो और बेचो। ये चीज तो ठीक तो नहीं है न।

फसल कंपनी के फाउंडर और सीईओ आनंद वर्मा ने कहा कि जो किसान दूसरी जगह पर जाकर मजदूरी का काम कर रहा है, जिसके पास खुद की अपनी जमीन है इसके बावजूद भी वो किसान ऐसा कर रहा है तो इसके पीछे का कारण है कि किसान के पास उतनी जानकारी नहीं है, जिससे वो अपनी जमीन पर अच्छी फसल की पैदावार कर सके।

अगर उस किसान के खेत में मिर्ची हो सकती है, तो धान क्यों लगाए। उसे तो मिर्ची लगानी चाहिए। इस जानकारी से अवगत कराना है किसान को। जब यह हो जाएगा, तो चार एकड़ वाला किसान दो एकड़ वाले किसान के यहां काम नहीं करेगा। ये मूलभूत चीज जिसे हमें सभी को समझने की कोशिशें करनी चाहिए।

टेक्स्ट- आनंद कुमार

इस मुद्दे पर गांव कनेक्शन लगातार किसान संगठनों से भी चर्चा कर रहा है. नीचे वीडियो में देखिए किसान क्या कह रहे हैं

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कृषि से जुड़े तीन कानूनों में आवश्यक वस्तु अधिनियम भी शामिल है। सरकार ने 65 साल पुराने इस कानून में संसोधन करके कई खाद्य वस्तुओं से स्टॉक लिमिट हटा दी है। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि इस कानून में बदलाव करके उन्होंने सरकार के अधिकार कम किए हैं, जिससे कृषि क्षेत्र में निवेश बढ़ेगा, जो किसान और उपभोक्ता दोनों के लिए लाभदायक होगा। लेकिन विपक्ष और किसान संगठनों के मुताबिक ऐसा करने से कालाबाजारी और जमाखोरी बढ़ेगी.. 65 साल पुराने कानून में बदलाव से क्या बदलेगा? संबंधित खबर नीचे पढ़िए

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