दिल्ली में हिंदुओं की उच्च शिक्षा का पहला केंद्र: हिंदू कॉलेज  

Nalin ChauhanNalin Chauhan   4 April 2018 3:51 PM GMT

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दिल्ली में हिंदुओं की उच्च शिक्षा का पहला केंद्र: हिंदू कॉलेज  साल 1899 में हुई स्थापना

दिल्ली के हिंदुओं में 1860 के दशक के बीच में लगातार अकाल पड़ने के कारण ईसाई मिशनरियों की मतांतरण गतिविधियों के बढ़ने की गंभीर चिंता थी। खासकर मिशनरियों के गरीब परिवारों को भौतिक सहायता के बदले में मंतातरण करवाए जाने की आशंका थी। जबकि एक असली डर यह था कि मिशनरी संचालित शैक्षिक संस्थानों का मंतातरण के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। जिसपर अंग्रेजों ने 1792 में स्थापित तत्कालीन एकमात्र कॉलेज, एंग्लो अरबी कॉलेज (बाद में जिसका नाम दिल्ली कॉलेज हुआ) का 1824 में अधिग्रहण कर लिया था। जिसके कारण 1881 में मिशन कॉलेज (सेंट स्टीफंस) की स्थापना का विरोध किया गया क्योंकि दिल्ली में उच्च शिक्षा पूरी तरह से ईसाई मिशनरियों के हाथ थी।

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साल 1899 में दिल्ली में अंग्रेजी में उच्च विश्वविद्यालय के स्तर की बेहतर शिक्षा देने के उद्देश्य से एक कॉलेज की स्थापना के लिए हिंदू कॉलेज दिल्ली नाम की एक संस्था पंजीकृत हुई। आज यह बात जानकर किसी को भी हैरानी होगी कि हिंदू कॉलेज एक संयुक्त स्टॉक कंपनी के रूप में शुरू हुआ। पुरानी दिल्ली में कुछ प्रतिष्ठित नागरिकों जैसे रायबहादुर धर्म सुधाकर, लाला श्रीकृष्ण दास गुड़वाला, लाला सुल्तान सिंह सहित अन्य व्यक्तियों ने पूरी प्रतिबद्वता से एक शैक्षिक संस्था शुरू करने के लिए आवश्यक धन और एक स्थान की व्यवस्था की। इसी का परिणाम था कि चांदनी चौक के किनारी बाजार स्थित एक छोटे से किराए की इमारत से कॉलेज की शुरूआत हुई।

सेंट स्टीफंस

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दिल्ली विश्वविद्यालय से प्रकाशित "यूनिवर्सिटी ऑफ़ दिल्ली (1922-1997)" पुस्तक में अपर्णा बसु लिखती हैं कि पंडित मदन मोहन मालवीय ने बंसत पंचमी के दिन एक मई 1899 को इस कॉलेज के उद्घाटन समारोह की पूजा चैलपुरी में एक धर्मशाला में करवाई। प्रसिद्ध इतिहासकार डाक्टर ताराचंद, जो कि तब केवल नौ बरस के थे, इस समारोह के प्रत्यक्षदर्शी थे। इस कॉलेज को एनी बेसेंट और बालगंगाधर तिलक का भी आर्शीवाद था। इस कॉलेज के पहले प्रिंसिपल बी.बी. मुखर्जी थे, जिनकी महीने वेतन एक सौ रुपए थे। जबकि उप प्रधानाचार्य एन.एन. रे का वेतन अस्सी रुपए, चपरासी लक्ष्मण का पांच रुपए और जमादार का अठन्नी था। 1899 में कॉलेज का कुल वेतन पर व्यय 254 रुपए था।

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1910 की शुरुआत में प्रकाशित "पंजाब गजेटियर खंड पांच-ए" बताता है कि सनातन धर्म के सिद्धांत के आधार पर धार्मिक शिक्षा के साथ सस्ती मगर प्रभावी शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से मई 1899 में यह काॅलेज स्थापित हुआ। यहां दिल्ली विश्वविद्यालय के निर्धारित विषयों के अलावा सभी हिंदू छात्रों को दिन में एक धार्मिक कक्षा में भाग लेना होता था। यह कॉलेज पंजाब विश्वविद्यालय से संबद्ध था।

समय-समय पर हिंदू कॉलेज को अनेक गंभीर वित्तीय संकटों से गुजरना पड़ा पर श्रीकृष्ण दास गुड़वाला और चांदनी चौक के व्यापारी समुदाय ने लगातार भारी धनराशि दान करके उससे कॉलेज को निकाला। ऐसा न होने पर कॉलेज के अस्तित्व का बने रहना मुश्किल था। जब 1902 में पंजाब विश्वविद्यालय ने हिंदू कॉलेज को स्वयं की इमारत न होने पर मान्यता रद्द करने की चेतावनी दी। ऐसे में राय बहादुर सुल्तान सिंह ने तारणहार बनकर सामने आए। जब उन्होंने कॉलेज भवन के निर्माण के लिए कश्मीरी गेट पर अपनी भूमि, जो कि मूल रूप से कर्नल स्कीनर की थी, में से एक भाग दान दे दिया। इस तरह 1908 में हिंदू कॉलेज कश्मीरी गेट में स्थानांतरित हुआ। यह घटना काॅलेज के इतिहास में एक मील का पत्थर थी।

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हिंदू कॉलेज के आरंभिक तेरह छात्रों में सर श्री राम थे, जिन्होंने अपने परिवारिक कारोबार से जुड़ने के पूर्व छह महीने की छोटी अवधि में यहां पढ़ाई की। वे बाद में शीर्ष उद्योगपति बने और कॉलेज की कार्यकारी समिति के अध्यक्ष भी हुए। इतना ही नहीं, उनका पूरा परिवार इस कॉलेज के माध्यम से दिल्ली में उच्च शिक्षा को समर्पित रहा। यह बात बाद में उनके बेटे लाला भरत राम के भी काॅलेज समिति के अध्यक्ष बनने के तथ्य से साबित होती है। 1922 में दिल्ली विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद हिंदू काॅलेज, सेंट स्टीफंस कॉलेज और रामजस कॉलेज उससे सम्बद्ध हुए।

नियोगी बुक्स से प्रकाशित "हिन्दू कॉलेज दिल्ली" पुस्तक के अनुसार, इन परिस्थितियों की पृष्ठभूमि में जब हिंदू कॉलेज की स्थापना की गई थी तो कोई आश्चर्य की बात नहीं कि यह कॉलेज बाद के वर्षों में अंग्रेज-विरोधी भावनाओं को पुष्ट करने वाला एक महत्वपूर्ण स्थान बना। 23 दिसंबर 1929 की सुबह महात्मा गांधी से वार्तालाप के लिए लॉर्ड इरविन दिल्ली पहुंचा। जबकि 22 दिसंबर को हिंदू कॉलेज के छात्रावास में क्रांतिकारियों की एक बैठक हुई, जिसमें चंद्रशेखर, वीरभद्र तिवारी, भगवती चरण वोहरा, यशपाल और कैलाशपति उपस्थित थे।

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इसी तरह जब 25 जनवरी 1930 को गांधी हिंदू कॉलेज आए, जिसको लेकर छात्रों में काफी उत्साह था। यह कॉलेज के इतिहास के लिए एक महत्वपूर्ण दिन था। इस अवसर पर सभी छात्रों ने मिलकर पांच सौ रुपए की राशि जमाकर गांधी को भेंट की। हिंदू कॉलेज की पत्रिका "इंद्रप्रस्थ" ने इस घटना को दर्ज करते हुए गांधी की कॉलेज छात्रों-शिक्षकों से शाम को हुए बैठक का विवरण दिया है। यहां तक कि हिंदू कॉलेज के छात्रों ने साइमन कमीशन के विरोध में चांदनी चौक में जुलूस में भाग लिया और साइमन वापिस जाओ के नारे लगाए।

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