ग्रामीणों की इस आदत से गाँवों में तेजी से बढ़ रहे मधुमेह रोगी

Chandrakant Mishra | Mar 20, 2019, 06:28 IST
गांव और शहर में अब ज्यादा अंतर रह नहीं गया है, गांव के लोग भी अब शहरी लोगों की दिनचर्या को अपना रहे हैं, आज की तारीख में मधुमेह की स्थिति गांव और शहरों में लगभग बराबर है
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लखनऊ। अभी तक यह माना जाता रहा है कि मधुमेह शहरी और कम शारीरिक श्रम करने वालों को अपना शिकार बनाता है। लेकिन देशभर में ग्रामीण और मजदूरी करने वाले लोग इसका शिकार हो रहे हैं। शुगर की बीमारी गांवों में तेजी से पैर पसार रही है। इसकी बड़ी वजह यह है कि गांव पहले की तरह रहे नहीं। वहां के लोग भी अब पहले की तरह शारीरिक श्रम नहीं कर रहे हैं।

कुछ साल पहले तक मधुमेह यानि डायबिटीज को अमीरों और शहरी लोगों की बीमारी कहा जाता था, लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार अब मध्यम और निम्न आय वाले देशों में यह बीमारी तेजी से फैलती जा रही है। भारत के लिए चिंताजनक बात यह है कि हमारे देश में आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा गाँव और गरीबी रेखा से नीचे रहता है। इसके साथ ही दुनिया के सबसे ज्यादा डायबिटीज के मरीज भारत में ही हैं।

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उन्नाव की शशि देवी पिछले 25 साल से शुगर से परेशान हैं।

उन्नाव के ब्लॉक अचलगंज के गाँव बदरका की रहने वाली शशि त्रिवेदी (55 वर्ष) को 25 साल से शुगर है। शशि ने बताया, " डाक्टर और लोग कहते हैं कि, यह बीमारी शहर के लोगों को होती है, क्योंकि वे काम नहीं करते हैं। वे शुद्ध खाना भी नहीं खाते हैं। लेकिन पता नहीं मुझे कैसे यह बीमारी हो गई। मैं तो खूब काम करती थी। पूरे घर के लोगों का खाना बनाना, जानवरों की देखभाल और खेती का काम भी मेरे जिम्मे था। काम करते-करते जान निकल जाती थी, फिर भी इस बीमारी से पीड़ित हूं। हर महीने चार से पांच हजार रुपए इलाज में खर्च हो जाते हैं। "



राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय के वरिष्ठ फीजिशियन डॉक्टर एससी मौर्य का कहना है, " ग्रामीणों में विभिन्न तरह के दबाव के कारण भी मधुमेह की बीमारी तेजी से फैल रही है। ग्रामीणों की जीवनचर्या में हुए बदलाव के कारण इन रोगियों की संख्या बढ़ रही है। खाने-पीने की चीजों में कीटनाशकों का इस्तेमाल भी इन बीमारियों के लिए ज़िम्मेदार है। साथ ही ग्रामीण इलाकों में भी शारीरिक श्रम करने का चलन कम हुआ है, इसलिए अब गांवों में भी मधुमेह रोगी बढ़ रहे हैं। मधुमेह में जिस तरह की सावधानी और महंगे इलाज की ज़रूरत होती है, उसे वहन कर पाना किसी ग़रीब के लिए संभव नहीं है। इसके अलावा ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य को लेकर जागरुकता की भी कमी है।"

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जून 2014 में राज्यसभा में कहा था, "बुरा राजकाज डायबिटीज से भी बदतर है।'' उसके बाद से वे डायबिटीज को "सबसे बड़ा खतरा'' बता चुके हैं। अपने रेडियो प्रसारण में "डायबिटीज की महामारी'' की आशंका के खिलाफ आगाह कर चुके हैं। ट्विटर पर "डायबिटीज को परास्त'' करने का आह्वान कर चुके हैं और योगाभ्यास से डायबिटीज को हराने की बात कह चुके हैं।

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गोरखपुर के पिपराइच ब्लॉक के गाँव रक्षवापार निवासी रामराज (40) से पीड़ित हैं। बच्चू बताते हैं, " मुझे तो पता ही नहीं था कि मुझे शुगर की बीमारी है। एक दिन बैठे-बैठे चक्कर आने लगा, बेचैनी होने लगी और बहुत पसीना निकलने लगा। घर वाले आनन-फानन में डाक्टर के पास ले गए। जहां जांच के बाद पता चला कि मुझे शुगर है। मुझे तो यकीन नहीं होता यह बीमारी मुझे कैसे हो गई।"



भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद तथा स्वास्थ्य मंत्रालय के स्वास्थ्य शोध विभाग आईएनडीआईआई ने सितंबर 2012 से जुलाई 2015 के बीच मधुमेह के विस्तार पर एक अध्ययन किया। इस अध्ययन में 14 राज्यों पंजाब, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, बिहार, झारखंड, असम, त्रिपुरा, मिजोरम, मेघालय और मणिपुर के अलावा केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ को शामिल किया गया। करीब 57 हजार लोगों पर किये गए सर्वे से जो नतीजे निकले हैं वह काफी चौंकाने वाले हैं। अध्ययन में शामिल 7 राज्यों के शहरी इलाकों के गरीब वर्गों में मधुमेह की तादात अमीरों से ज्यादा पाई गई है।

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प्रतीकात्मक तस्वीर साभार: इंटरनेेट

इस रिपोर्ट के अनुसार इन 15 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेश में कुल आबादी के 7.3 प्रतिशत लोग मधुमेह से पीड़ित पाए गए। इसमें शहरी क्षेत्रों में 11.2 फीसदी जबकि ग्रामीण इलाकों में 5.2 फीसदी लोग मधुमेह से पीड़ित हैं। अध्ययन में शामिल इलाकों में चंडीगढ़ में सबसे ज्यादा 13.6 फीसदी मधुमेह के रोगी पाए गए जबकि बिहार में सबसे कम 4.3 फीसदी लोगों में मधुमेह पाया गया। चंडीगढ़ के शहरी इलाकों में सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों के बीच मधुमेह की दर 26.9 फीसदी पाई गई।

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खान-पान विशेषज्ञ डॉक्टर सुरभि जैन का कहना है, " गांव और शहर में अब ज्यादा अंतर रह नहीं गया है। गाँवों का बहुत तेजी से शहरीकरण होता हो रहा है। मधुमेह एक वंशानुतगत बीमारी है। इसके साथ-साथ खान-पान और दिनचर्या भी इस पर असर डालती है। गांव के लोग भी अब शहरी लोगों की दिनचर्या को अपना रहे हैं, देर रात तक जागना और सुबह देर तक सोना। वहीं फास्ट फूड की पहुंच अब गांवों तक हो चुकी है। मैगी और बर्गर लगभग हर बड़े चौराहे पर मिलने लगा है। यह सब कहीं न कहीं ग्रामीणों में बढ़ती मधुमेह की बीमारी के कारण हैं। आज की तारीख में मधुमेह की स्थिति गांव और शहरों में लगभग बराबर ही है।"

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