जान जोखिम में डाल बांस के पुल से गुजरने को मजबूर ग्रामीण

Swati ShuklaSwati Shukla   20 May 2017 6:45 PM GMT

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जान जोखिम में डाल बांस के पुल से गुजरने को मजबूर ग्रामीणबिराहिम पुरवा गांव के पास बने बांस के पुल से गुजरता बाइक सवार।

स्वाति शुक्ला /अश्वनी कुमार द्विवेदी, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। ऐसा कोई दिन नहीं होता, जब मलिहाबाद तहसील के बिराहिम पुरवा और उसके आसपास के दर्जन भर गाँवों में किसी अनहोनी की खबर नहीं आती। वजह, हजारों की आबादी वाले इन गाँवों को जोड़ने वाले बांस के पुल से गुजरने का जोखिम। बांस के बने पुल गुजरने के दौरान हो रहे हादसों की फिक्र से घिरे लोग विधानसभा चुनाव का बहिष्कार भी कर चुके हैं। डर के साये में जी रहे यहां के लोगों को सांत्वना देने के लिए अधिकारी इसकी नापी भी कर चुके हैं। बावजूद जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा के कारण पिछले एक दशक से पुल का निर्माण नहीं हो पा रहा है।

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ये हाल तब है जबकि ये गाँव लखनऊ जनपद मुख्यालय से महज 48 किमी की दूरी पर मलिहाबाद तहसील अंतर्गत आते हैं।

इस पुल को लेकर को ग्रामीणों को बहुत सी समस्या हो रही हैं। इसके लिए ग्रामीणों ने चुनाव का बहिष्कार भी किया था। इसके लिए पहले एक प्रपोजल बनया गया था, लेकिन क्यों नहीं बना इसके लिए अधिकारीयों से बात की जा रही है। तहसील दिवस पर आई शिकायत पर मुख्य विकास अधिकारी ने पुल बनाने के लिए फाइल बनाने को कहा है।
नीलम यादव, उपजिलाधिकारी

बिराहिम पुरवा और आसपास के गाँव के लोगों ने सरकार से कोई मदद न मिलने पर खुद की सुविधा के लिए एकजुट होकर बांस का पु्लिया बना ली है, जिससे कभी समय बचत करने तो कभी जल्दबाजी के कारण जान जोखिम में डालकर लोग साइकिल से लेकर बाइक तक पार करने की कोशिश करते हैं। कई बार तो इसी पुल से होकर लोग छोटे जानवरों को भी उस पार ले जाने का जोखिम लेते हैं।

बिराहिम पुरवा गांव के पास बने बांस के पुल से गुजरते साइकिल सवार।

24 किमी की दूरी कम करने के लिए एकमात्र विकल्प

ग्रामीणों के मुताबिक इस बांस के पुल से रामपुर, बिरहिमपुर, अटौरा, पहाड़पुर, नवीनगर, महदुइया, गदौहा, औरास, बांगरमऊ सहित करीब दर्जन भर गाँवों का रास्ता है। घूम कर आने से कुल 24 किमी का सफर बढ़ जाता है।

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इसी वजह से लोग खतरा होने के बावजूद इस पुल से गुजरते हैं। आए दिन किसी न किसी का पुल से गिरकर चोटिल होना यहां आम बात है।

नेता और अधिकारियों की कोरी कवायद

बिराहिम पुर गाँव के निवासी रामविलास कहते हैं, "चुनाव के समय नेता और अधिकारी अस्थाई पुल जीप में लादकर लाते हैं। चुनाव खत्म होने के बाद पुल फिर से जीप में लादकर वापस चले जाते। चुनाव के दिनों अधिकारी भी नेताओं के निर्देश पर खूब इस पुल की नापजोख करते हैं। कहने को करीब एक दशक से हर एक नेता इस पुल को लेकर चिंतित है और इसे बनवाने में लगा हुआ है।"

बिराहिम पुर गाँव के निवासी हरिहर (45) वर्ष बताते हैं,"एक माह पहिले लड़िका पुल से गिर गवा राहे। कमर और गर्दन मा बहुत चोट आई है। अउकात भर दवा-दारू करेन, लेकिन लड़िका अबही ठीक नाइ भवा।" गाँव के ही गंगाराम रावत बताते हैं, "तीन महीना पहिले अटौरा गाँव से हरहा डाँक्टर अजीत का बुलाए रहन। आवत मा गाड़ी लइके बेचारे पुल के खाले चले गए। हरहा तो ठीक हुई गवा, लेकिन डॉक्टर अबे तक परे हैं।"

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बिराहिम पुर गाँव की महिला राजवती बताती हैं, "यही 17 तारीख वाले दिन हमार लड़िका छोटू (11) साइकिल लइके पुल की तरफ गवा रहे। हम जान नाही पाएन कित्ते टाइम घर से निकल गवा, थोड़ी देर बाद गाँव के लड़िका बताइन की छोटू साईकिल लइके पुल पर से नीचे गिरगा।" वहीं हरिहरपुर गाँव निवासी उर्मिला कहती हैं, "अब तक कउनो नेता गाँव कर मुसीबत समझिस नाइ, अब सुना है कोई बाबाजी मुख्यमंत्री बने है हो सकता है कि वे पुल बनवा दें।"

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